वर्ड्सवर्थ
सन् 1770-1850 ई0, विलियम वर्ड्सवर्थ
सन् 1770-1850 ई0, विलियम वर्ड्सवर्थ
मूलतः कवि थे। रोमानी काव्य युग के प्रर्वतक कवि।
20 वर्ष की आयु से ही साहित्य साधना प्रारंभ की। सन् 1793 के प्रारंभ में उनकी कृतियाँ -
1. ‘वर्णात्मक रेखाचित्र (डिस्क्रिप्टिव स्कैचिज)
2. ‘साध्य अटन (एन इवनिंग वाक्य) प्रकाशित हुई।
सन् 1843 ई. में उन्होंने राजकवि की उपाधि प्राप्त की। वर्डसवर्थ का काव्य-सिद्वांत प्रकृति प्रेम पर आधृत है।
वर्ड्स्वर्थ का काव्य-सिद्वांत प्रकृति प्रेम पर आधृत है। उनका विश्वास है कि प्रकृति के ‘मूलभूत सिद्वांत’ तथा उसका ‘सुन्दर शाश्वत रूप’ सामान्य जीवन से पृथक और भिन्न है। वर्ड्सवर्थ काव्य के बहिरंग की अपेक्षा अंतरंग का महत्व, शैली की परिशुद्धता और अलंकृत के स्थान पर आत्मा की अन्तःस्फूर्ति औैर उससे प्रेरित भावों के सहज उच्छ्लन पर बल देकर रोमानी आलोचना का प्रवर्तन किया तथा आलोचक न होते हुए भी आलोचक कहलाये।
काव्यभाषा-सिद्वांत-
वर्ड्स्वर्थ का मानना है कि कविता की भाषा अधिकांश में सुष्ठु गद्य की भाषा से किसी प्रकार भी भिन्न नहीं हो सकती। वह कहता है कि गद्य भाषा और छन्दोंबद्ध रचना की भाषा में न तो कोई तात्विक अन्तर है, न हो सकता है। कविता जो आँसू बहाती है वह ‘स्वर्ग’ के देवताओं जैसे आँसू नहीं होते बल्कि वे मानव के प्राकृतिक आँसू होते हैं, कविता कोई इस प्रकार का गर्व नही कर सकती कि उसके अन्तर में कोई दिव्य प्राण-रस प्रवाहित होता है जो गद्य से भिन्न है ।
तथ्य यह है कि दोनों की शिराओं में एक ही मानव रक्त का संचार होता है।एक सामान्य प्रश्न खड़ा होता है कि ‘कवि’ शब्द का अर्थ क्या होता है? कवि कौन होता है? वह किससे अपनी बात कहता है? उससे किस भाषा की अपेक्षा की जानी चाहिए?
कवि मानव होता है। मानव से ही अपनी बात कहता है। हाँ सामान्य मनुष्य से उसकी संवेदना शक्ति अधिक जीवन्त होती है। उससे अधिक उत्साह और सौकुमार्य होता है। मानव स्वभाव को उसे अधिक गंभीर ज्ञान होता है। सामान्य मानव में ये तत्व उतनी मात्रा में नहीं होते। इस कारण से और अभ्यास से वह जो कुछ भी सोचता है, अनुभव करता है वह सजगता से काव्य में प्रेषित करता है।
किन्तु जब वह भावों का वर्णन और अनुकरण करता है तो यथार्थ एवं पीड़ानुभूति की तीव्रता एवं कार्य कलाप की स्वतंत्रता की अपेक्षा उसका कर्म किसी हद तक यांत्रिक होता है।
अतः कवि अपनी भावनाओं को उन व्यक्तियों की भावनाओं के निकट ले जाना चाहेगा जिनकी भावनाओं का वह निरूपन करता है।वह इस प्रकार स्फुरित भाषा में संशोधन कर लेगा। यर्थाथ भाव जिस भाषा की प्रेरणा देता है,सैदव वैसी ही एकान्तः भावानुरुप भाषा प्रस्तुत कर पाना कवि के लिए सम्भव नही है, अतः उचित होगा कि वह अपने को अनुवादक की स्थिति में समझे।
कवि और वैज्ञानिक दोनों का ज्ञान आनन्दरूप होता है परन्तु एक का ज्ञान हमारे अस्तित्व का आवश्यक अंग होता है- वह हमारा प्रकृतिक उतराधिकार है। उसे कोई हमसे छीन नही सकता। दूसरे का ज्ञान वैयक्तिक उपलब्धि है, उसका अर्जन धीरे-धीरे किया जा सकता है, वह किसी स्वाभाविक एवं प्रत्यक्ष अनुभूति द्वारा अपने बन्धु-बान्धवों से हमारा सम्बन्ध नही जोड़ता।
वैज्ञानिक सुंदर और अज्ञात उपकर्ता समझ कर सत्य का संधान करता है, वह एकाकी उसका पोषण करता है, उससे प्रेम करता है, कवि सत्य को साकार मित्र और अभिन्न साथी के रूप में साक्षात् उपस्थित समझ खुशी से गीत गाता है,जिसमें मानव मात्र उसका साथ देता है।कविता ज्ञान का प्राण है उसकी शुद्ध-बुद्ध आत्मा है,वह दाग दीप्त अभिव्यक्ति है जो समस्त विज्ञान का आश्रय है।
कवि कवियों के लिए नही लिखता वह जन साधारण के लिए लिखता है,अतः कवि को अपनी कल्पित ऊचाँई से उतरना होगा।उसे अन्य लोगों की भांति अपनी अभिव्यक्ति करनी होगी। कविता बलवती भावनाओं का सहज उच्छ्लन होती है। शांत अवस्था मंे भाव के स्मरण से उसका उ˜व होता है। उच्चभाव का भावन किया जाता है।
अस्तु सामंजस्य पूर्ण छन्दोबद्ध भाषा का संगीत,कठिनाई पर विजय पा लेने की भावना, इसी या इसके सदृश रचना वाले छन्द अथवा लय की कृतियों से पहले कभी प्राप्त आनन्द से अलस्य सम्बध-संसर्ग वास्तविक जीवन की भाषा के अत्यन्त सदृश किन्तु छन्द के कारण उससे अत्यन्त भिन्न होने का बार-बार होने वाला भाषा विषयक अस्पष्ट बोध ये अनजाने ही मिलकर एक संश्लिष्ट हर्ष-भावना को जन्म देती है, और यह दुःख की उस भावना को मर्यादित रखने में अत्यंत महत्वपूर्ण होती है जो गहनतर वासनाओं के सशक्त निरूपण के साथ प्रायः जुड़ी रहती है।
वर्ड्सवर्थ ने भी ब्लैक की भाँति बाह्य दृष्टि से आरोपित सभी प्रकार के बन्धनों के प्रति अरुचि प्रकट की और अनुभूति की तीव्रता और सहज भावोंच्छास को प्रमुखता प्रदान कर अरस्तु का ‘शासन’ अस्वीकार किया। नैसर्गिक जीवन के साथ स्थापित सम्पर्क के फलस्वरूप उत्पन्न प्रतिक्रिया ही उसके लिए काव्य का विषय बनी। इसलिए साहित्य में सहज-स्वाभाविक, सरल और अकृतिम तथा निरलंकृत जीवन की स्थापना प्रिय थी।
साहित्य का शैलीकरण उसे अच्छा नही लगता। भाव,भाषा,रचनापद्धति, विषय -चयन एवं प्रतिपादन,इन सभी दृष्टि कोणों से वह कलाकार को प्रकृति के सारल्य का अनुसरण करते देखना चाहता है।सहजाभुति और तीव्र भावा भिव्यक्ति के अतिरिक्त उसे सामान्य दैनिक जीवन-विशेषतः ग्रामीण दैनिक जीवन से ग्रहण की गई भाषा पर बल दिया। भाषा के इस रूप की दृष्टि से वह दांते और लाँनजाइनस दोनों से असहमत था।
स्वच्छन्ता से वडर््सवर्थ का आशय उच्छृखलता से कदापि नही था। वह कवि के भाव-बोध और उसकी चिन्तन एवं मनन शक्ति को महत्वपूर्ण मानता था। साधारण से साधारण घटना के पीछे‘आध्यात्मिक शक्ति’ निहित देखना वह कवि का चरम लक्ष्य मानता था। यह कार्य बिना अनुशासन के भाव के नहीं हो सकता था। वर्ड्सवर्थ सामान्य से सामान्य तथ्य को काव्य-पुलक से भर देने और प्रकृति के साथ साहचर्य में विश्वास रखता था।
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