Monday, 16 December 2019

अरस्तु त्रासदी की श्रेष्ठता

 त्रासदी की श्रेष्ठता
त्रासदी-अनुकरण वही श्रेष्ठ है जो सुरुचि सम्पन्न सामाजिक को आह्लादित करे। त्रासदी और महाकाव्य के साथ वही सम्बन्ध हुआ जो नये अभिनेताओं का ज्येष्ठ अभिनेता के साथ। त्रासदी निम्न स्तर की जनता के लिये होती है। त्रासदी भी महाकाव्य के समान-बिना आंगिक अभिनव के ही प्रभाव डालती है। पढ़ने मात्र से उसका प्रभाव व्यक्त हो जाता है। त्रासदी कला के रूप में अपने विशेष कर्तव्य की अधिक सफलता के साथ पूर्ति करती है। हम जानते हैं प्रत्येक कला को किसी सांयोगिक नही, अपितु एक विशिष्ठ आनन्द की सृष्टि करनी चाहिए। अतः आदमी उत्कृष्टतर त्रासदी किसी गंभीर, स्वतःपूर्ण तथा निश्चित आयाम से युक्त कार्य की अनुकृति का नाम है।
  त्रासदी का पहला अंग- रंग विधान, दूसरा- गीत और पदावली। त्रासदी किसी कार्य-विशेष की अनुकृति है। घटनाएँ और कथानक ही त्रासदी के साध्य है। बिना कार्य-व्यापार के त्रासदी नहीं हो सकती किन्तु बिना चरित्र - चित्रण के हो सकती है।

त्रासदी घटनाओं का संगठन है। त्रासदी अनुकृति है व्यक्ति की नही, कार्य की तथा जीवन की क्योंकि जीवन कार्य व्यापार का ही नाम है। कथानक त्रासदी का प्रमुख अंग है, दूसरा चरित्र, तीसरा विचार का अर्थ चौथा तत्व है पदावली-अर्थात शब्दों द्वारा अर्थ की अभिव्यक्ति। इसका प्राण तत्व गद्य और पद्य दोनों में एक सा ही रहता है। त्रासदी के सरल, जटिल, नैतिक और करुण रूप होते हैं। त्रासदी के लिये ‘अ˜ुत’ शब्द अपेक्षित है, त्रासदी का कथानक असंगत अंगों से निर्मित नही होना चाहिए। जो कुछ विवेक संगत न हो उससे बचना चाहिये या कम से कम नाटक के कार्य से तो बाहर रखना ही चाहिए।

अरस्तू के अनुसार होमर ने दूसरे कवियों को ‘कलात्मक झूठ’ बोलना सिखाया। काल और स्थान की दृष्टि से तत्कालीन ट्रेजडी में विश्राम पर ध्यान नही रखा जाता था। किन्तु ट्रेजडी को चौबीस घंटे तक सीमित कर देने के कारण आलोचना साहित्य के इतिहास में भ्रमवश (समय, रूप या देश और कार्य) को महत्व दिया जाने लगा। किन्तु स्थान और काल की अन्विति के सम्बन्ध में विद्वानों को संदेह रहा। संकलन त्रयी संबधी भ्रम के लिये अरस्तु दोषी नही है। अतः संकलन त्रयी-सम्बन्धी भ्रम के लिए अरस्तु की दुहाई देकर शेक्सपीयर के नाटकों में संकलन त्रयी-सम्बधी दोष निकालना उचित नही माना जाता।

    प्रकृति की दृष्टि मे ट्रेजडी मुख्यतः अनुकरण है। अनुकरणात्मकता पर विचार करते हुए अरस्तु ने तीन मौलिक प्रश्न उठाए थे- अनुकरण किसका (विषय), अनुकरण किसके द्वारा(माध्यम) और अनुकरण किस प्रकार(रीति)। ये तीनों प्रश्न ट्रेजडी की प्रकृति के सम्बध में भी लागू होते हैं।

ट्रैजडी जीवन का नही, जीवन की जानी पहचानी घटनाओं और व्यक्तियों को केवल साहित्य के आसन पर बिठा देने का नही, वरन जीवन की भावना का अनुकरण करती है। अरस्तु की दृष्टि से यह अनुकरण इतिहासकार या वैज्ञानिक या फोटोग्राफर वाला अनुकरण न होकर सौन्दर्यमूलक होता है। 

ट्रैजडी में भी कार्य की देवी प्रेरणा जन्य यह अन्विति रहनी आवश्यक है। कार्य को देखते हुए ट्रैजडी का प्रथम तत्व वस्तु है। दूसरा तत्व पात्र है जिसका चरित्र मूल में होता है। ट्रैजडी भय और करुणा द्वारा भय और करुणा का शमन कर मानसिक स्वास्थय-लाभ देती है। ट्रैजडी समान भावों के संचार से उनकी अतिशयता और तीव्रता का शमन कर चित में शान्ति, गंम्भीरता, और सन्तुलन को जन्म देती है। 

अरस्तु संगीत का उदाहरण दे इसको समझाता है। हमारी मानसिक उत्तेजना और तीव्रता मिटाकर संगीत श्रोताओं में आनन्द की सृष्टि करता है। ट्रैजडी भय और करुणा द्वारा भय और करुणा का समन कर उसी प्राकर मानसिक स्वास्थय लाभ देती है, जिस प्रकार दाल में उफान आने से उसकी गन्दगी निकल जाती है, वह शुद्ध हो जाती है, उसी प्रकार ट्रैजडी मनुष्य के ह्रदय में भय और करुणा नामक भावों का उफान पैदा कर विकार दूर करती और चित का परिमार्जन करती है।

अरस्तू प्लेटो का कार्यकारण सिद्धांत स्वीकार करता है।टैजडी में उसने अन्विति भी मानी। इसका अर्थ यह है कि ट्रेजेडी  में कार्यरत और विचाररत व्यक्तियों की विपत्तियों का वास्तविक जीवन के आधार पर वर्णन होता अवश्य है, किन्तु एक तो वह तथ्यात्मक वर्णन नही होता, दूसरे ट्रेजडी की कलात्मक अन्विति द्वारा वही बातं जो वास्तविक जीवन में दुःखद सिद्ध होती है, मानसिक क्लेश और पीडा़ पहुचाती हैं, ट्रेजडी में सुखद जान पड़ती हैं। इतना ही नहीं उनका ‘कु’ ‘सु’ में बदल जाता है। इस दृष्टि से भी अरस्तु का विरेचन-सिद्धांत कार्यान्वित होते हुए दृष्टिगोचर होता है।

निष्कर्ष रूप में यह कह सकते है कि अरस्तू के अनुसार ट्रेजडी किसी गंम्भीर कार्य का उसके अपने समग्र रूप में औचित्य के साथ सुनदर भाषा के माध्यम द्वारा अन्विति और सामंजस्य पूर्ण कलात्मक अनुकरण है और भय और करूणा के संचार द्वारा वह मानव-ह्दय का परिमार्जन करती है। उसके प्रमुख तत्व वस्तु, पात्र, विचार और भाषा-सौन्दर्य है। 



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