Monday, 16 December 2019

रीतिकाल की याद रखने की बातें-

 रीतिकाल की याद रखने की बातें-
1. डॉ. नगेन्द्र के अनुसार: इस युग को ‘रीति’ विशेषण सहित प्रयोग में लाया जा सकता है क्योंकि यह शृंगार की अपेक्षा अधिक वैज्ञानिक है। कारण इस अवधि में रीति सम्बन्धी ग्रंथ ही अधिक लिखे गये हैं तथा रचनाकारों की प्रवृत्ति भी यही रही है।
2. हिन्दी के मध्ययुगीन कवियों में चिंतामणि, मतिराम, भूषण, देव आदि अनेक ऐसे हैं, जिन्होंने काव्य रचना-पद्धति को ‘रीति’ और उसके पर्याय ‘पथ’ से ही अभिहित किया है।
3. नामकरण- संस्कृत-काव्य शास्त्र में ‘रीति’ शब्द काव्य रचना के मार्ग अथवा पद्धति विशेष के अर्थ में ही व्यवहृत हुआ है। जिसे काव्य की आत्मा के रूप में घोषित कर आचार्य वामन ने तत्संबन्धी पृथक संप्रदाय का प्रवर्तन किया। उनके अनुसार गुण विशिष्ट रचना, अर्थात पद संघटना-पद्धति विशेष का नाम ‘रीति’ है।
4. जिस युग में रीति-निरूपण अथवा रीति-प्रभावित ग्रंथों के निर्माण का प्राचुर्य रहा, उसको ‘रीति काल’ संज्ञा देते हुए उसका समय भी संवत् 1700 (1643 ई.) से 1900 (1843 ई.) तक निश्चित किया है।
5. साहित्य और कला की दृष्टि से यह युग पर्याप्त समृद्धि का माना जा सकता है। इस काल के कवि और कलाकार यद्यपि साधारण वर्ग के व्यक्ति हुआ करते थे तथापि अपने आश्रय दाता मुगल सम्राटों अथवा देशी राजा व नवाबों से उन्हेें इतना सम्मान मिलता था कि समाज के प्रतिष्ठित लोगों में उनकी गणना होती थी ।
6. आज रामचन्द्र शुक्ल जी द्वारा किया इस काल का विभाजन प्राय: सर्वमान्य-सा ही हो गया है। चाहे यह सर्वथा निर्दोष न हों तो भी वह संगत एवं विवेक पूर्ण अवश्य है। शुक्ल जी के अनुसार रीति काल के अन्तर्गत सं.1700 से सं.1900 तक पूरी दो शताब्दियाँ आ जाती हैं।
7. इस काल में समाज में नैतिक अवस्था कारुणिक थी। राजा सामंत सभी विलाशी थे। नैतिक बल के ह्स से लोग पूर्णत: भाग्यवादी हो गये थे।
8.  राजनीतिक स्थिति संक्षेप में -1.समस्त देश युद्ध और विप्लवों से आक्रांत रहा। देश में कोई भी केन्दीय शासन नही था। , 2. औरंगजेब असफल शासक रहा। अकबर और उसके सचिव भगवानद ास, टोडरमल आदि की राजनीतिक योग्यता की इस युग में कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।, 3. इस समय देश में भयानक बाह्य आक्रमण हुए-नादिर शाह और अहमद शाह अब्दाली के हमलों ने गिरती दीवार को धक्का देने का काम किया। शासन-विधान स्वेछाचारी राजतंत्र था।, 4. शाहजहाँ की धार्मिक असहिष्णुता औरंगजेब ने पूरी कर दी। हिन्दू मुसलमान दोनों आमने सामने थे। किन्तु दुर्भाग्य हिन्दू आपस में असंगठित थे तो मुसलमान विलास-जर्जर।
9. रीति काल की समय सीमा-स.1700-1900 ।
10.  मिश्रबंधुओं के अनुसार मध्य काल का नाम अलंकृत काल है।
11. कालक्रम के अनुसार रीति काल के प्रथम कवि-केशव दास है।
12. रीति की अविरल परम्परा चिंतामणि से चली।
13. रीति काल की प्रमुख रचनाएँ और रचनाकार हैं- मतिराम-शृंगार सागर और ललित ललाम । कृपाराम-हित तरंगिनी। चिंतामणि-काव्य निर्णय तथा छंद प्रकाश,छंद विचार और कविकुल कल्पतरू। भूषण- छत्रसाल दशक। देव-सुजान विनोद और भाव विलास। रसलीन- -अंगदर्पण। बोधा -इश्कनामा। सेनापति-कवित्त रत्नाकर और काव्य कल्पद्रुम। पद्माकर- प्रबोध पचासा और गंगालहरी ।   ग्वाल-  यमुना लहरी, हम्मीर हठ, विजय विनोद, गोपी पच्

14. निम्न पंक्तियां हैं-   ‘तुलसी गंग दुवौ भए सुकविन के सरदार।
      इनके काव्यन में मिली भाषा विविध प्रकार।। ’- भिखारी दास
15.  ‘केशव को कठिन काव्य का प्रेत’ -रामचंद्र शुक्ल
16. ‘‘रीझि हैं सुकवि तो कविताई/ न तो राधिका कन्हाई सुमिरन का बहानो है’’-भिखारीदास
17.  ‘‘जदपि सुजाति सुलक्षिणी, सुवरण सरस सुवृत/ भूषण बिनु न विराजहिं कविता, बनिता, मित’’-केशवदास
18 ‘‘फागु की भीर अभीरन में गहि गोविंद लै गई भीतर गोरी’’-पद्माकर
19.  ‘‘वेद में बखानी तीन लोकन को ठुकरानी’’- सेनापति
20.  ‘‘ लोग हैं लागि कबित्त बनावत/ मोहें तो मेरे कबित बनावत।।- घनानंद
21.  ‘‘क्यों इन आंखिन से निहसंक ह्वै/ मोहन को तन पानिप पीजै।’’-मतिराम
22.  ‘‘अमिय हलाहल मद भरे, सेत,स्याम रतनार/ जियत, मरत, झुकि झुकि परत जेहि चितवत एक बार’’ -रसलीन
23. ‘‘अमिधा उत्तम काव्य है मध्य लक्षणा लीन/ अधम व्यंजना रस विरस, उलटी कहत नवीन।।’’-देव
24. ‘‘ भले बुरे सब एक सम, जौ लौ बोलत नाहिं/ जानि परत हैं काक पिक, ऋतु बसंत  के माहिं।’’- वंृद
25. ‘ईसा की सत्रहवी शती के मध्य भाग में संस्कृति की काव्य शास्त्रीय परंपरा के क्षीर्ण होते ही हिन्दी के आचार्यों ने अपना स्थान बनाया।- हजारी प्रसाद द्विवदी।
26.  ‘‘हिन्दी के आचार्यों का उद्देश्य संस्कृत के आचार्यों से नितांत भिन्न था। जहाँ संस्कृत आचार्य काव्य शास्त्री लक्ष्य-ग्रथों को आधार पर लक्षण-ग्रंथों का निर्माण करते चले आ रहे थे वहीं हिन्दी के आचार्यांे ने  लक्ष्य-ग्रंथों को आधार बनाकर स्वतंत्र सिद्धांतों का निर्माण नहीं किया ।’’ -  हजारी प्रसाद द्विवदी।
27. हिंदी के रीति-ग्रंथकार वस्तुत: कवि पहले थे, और आचार्य बाद में। इनका प्रमुख उद्ेदश्य शंृगार  रस-परिपूर्ण  अथवा स्तुति-परक कवित्त-सवैये लिखकर आश्रय दाता राजाओं से आश्रय एवं पुरस्कार प्राप्त करना था। -- हजारी प्रसाद द्विवदी।
28. इसी आधार पर आधुनिक इतिहासकारों ने दो सौ सालों के इस साहित्यिक काल को ‘रीति काल’  की संज्ञा दी है।
29.  हिन्दी के अधिकांश काव्य शास्त्रियों का प्रमुख लक्ष्य शंृगार  एवं स्तुति परक उदाहरणों का निर्माण  करना है ।

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