Saturday, 8 June 2024

व्यक्तित्व विकास एवं चरित्र निर्माण - ब्रहम जिज्ञासा

 

(यह जिज्ञासा समाधान स्नातक एवं परा स्नातक के साथ शोध क्षेत्र में लगे विद्यार्थियों के लिए है . यह दर्शन, साहित्य, मनोविज्ञान, धर्म शास्त्र , योग एवं भाषा के विद्यार्थियों के लिए भी उपयोगी है . शिक्षक भी लाभ उठा सकते हैं . इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करना चाहिए - सादर )

ब्रहम जिज्ञासा

1.      जिज्ञासा-   ॐ क्या है ?

समाधान -   ॐ ब्रह्मदेवानां प्रथमः संबभूव विश्वस्य कर्ता भुवनस्य गोप्ता । स ब्रह्मविद्यां सर्वविद्यप्रतिष्ठामथर्वाय ज्येष्ठपुत्राय प्राह ॥ (मुण्डको१..)

ॐ इत्येतदक्षरमिदं सर्वं तस्योपव्याख्यानंभूतं भवद् भविष्यदिति सर्वमोङकार एव यच्चान्यत् त्रिकालतीतं तदप्योङकार एव ॥(माण्डूक्य-१)

  - यह अविनाशी शब्द ही इस दृश्यमान ब्रह्माण्ड का सम्पूर्ण स्वरूप है। इसकी व्याख्या इस प्रकार है- क्या हो गया है, क्या हो रहा है, क्या होगा, यह सब वास्तव में है । जो समय की इन तीन अवस्थाओं से परे है, वह भी, वास्तव में, है। ॐ यह पमेश्वर का नाम वेदोक्त जितने भी मन्त्र है, उनमें सर्वश्रेष्ट मन्त्र कहा गया है । यह ईश्वर स्वरुप है । ‘ॐकार’नाम है, परमेश्वर नामी है ।

2.      जिज्ञासा-  ॐ में श्रध्दा-भक्ति कैसे हो ?

समाधान -  ॐ परमब्रह्म परमात्मा का नाम होने से (प्रणव ‘ॐ’उसका वाचक होने से ) स्वयं साक्षात् परमब्रह्म ही है । यह प्रत्यक्ष दिखाई देनेवाला जगत ही ॐ है । ॐ यह अनुकृति अर्थात् अनुमोदक सूचक है ।

3.      जिज्ञासा- ‘परा से लेकर बैखरी’ तक की यात्रा क्या है ?

 समाधान - उपनिषद का ऋषि परा से लेकर बैखरी’ तक की यात्रा पूर्ण कर आत्मोघटन करता है कि विश्व में भूत, भविष्य और वर्तमान में तथा इसके परे भी जो नित्य तत्व सर्वत्र व्याप्त है, वह ॐ है यह सब ब्रह्म है और यह आत्मा भी ब्रह्म है   यहीं से नाद की वह यात्रा प्रारंभ होती है जहाँ ब्रह्म के भेद का प्रपंच नहीं होता और  केवल अद्वैत शिव (ॐ) ही रह जाता है। 

4.      जिज्ञासा - गायत्री मन्त्र में तीन व्याव्हृतियाँ ?

 समाधान - गायत्री मन्त्र में तीन व्याव्हृतियाँ जिनका प्रथम रूप - भू:, भुवः, स्वः और चौथी व्याहृति ‘मह:’ आती है । ऋषियों का मत है कि यही ‘मह:’ ब्रह्म है । ‘भू:’ यह पृथ्वीलोक है तो भुवः’ यह अन्तरिक्ष लोक और ‘स्वः’ यह स्वर्गलोक है । ‘मह:’ यह सूर्यलोक है । अर्थात् ‘भू:, भुवः, स्वः’ यह तीनों व्याव्हृतियाँ परमेश्वर के विराट शरीर रुपी इस ब्रह्माण्ड को बताने वाली हैं, तो ‘मह:’ यह चौथी व्याव्हृति परमेश्वर के आत्मस्वरूप है ।

दूसरा रूप - ‘भू:’ यह व्याहृति अग्नि का नाम होने से मानों ‘अग्नि’ ही है ।  यह ज्योतिस्वरूप है । ‘भुवः’ यह वायु स्वरुप है । वायु देवता त्वक-इन्द्रिय स्पर्श को प्रकाशित करनेवाली ज्योति और त्वचा भी समझना चाहिए । ‘स्वः’ यह सूर्य है ।  सूर्य चक्षु -इन्द्रिय का अधिष्ठाता देवता है । ‘मह:’ यह  मानो चन्द्रमा है और चन्द्रमा मन का देवता है । ‘मन’ के कारण ही सभी इन्द्रिया क्रियाशील रहती हैं, अत: ‘मन’ ही  प्रधान है ।

 तीसरा स्वरुप - भू: ऋग्वेद , भुवः सामवेद, स्वःअजुर्वेद और मह: यह ब्रह्म है । चौथा - भू: प्राण, भुवःअपान, स्वः व्यान और मह अन्नं है । अन्न में ही सभी प्राण महिमायुक्त होते हैं, अत: ‘मह:’ ही ब्रह्म स्वरुप प्राण है ।

5.      जिज्ञासा  -  ‘ब्रह्मरन्ध्र’ क्या है ?

समाधान - ह्रदय के भीतर जो अंगुष्ठ मात्र परिणाम वाला आकाश है, उसी में विशुद्ध प्रकाश स्वरुप अविनाशी मनोमय अंतर्यामी पर पुरुष पमेश्वर विराजमान हैं, वहीं उनका साक्षात्कार होता है । मनुष्यों के मुख में तालुओं के बीचोबीच जो एक न के आकार का मांस -पिंड लटकता है, जिसे बोलचाल की भाषा में ‘घंटी’ कहते हैं उसके आगे केशों का मूलस्थान ‘ब्रह्मरन्ध्र’ है ।


6.      जिज्ञासा- ‘सुषुम्ना’ क्या है ?

समाधान- ह्रदय देश से निकलकर घंटी के भीतर से होती हुई दोनों कपालों को भेद कर जो नाड़ी गई हुई है वह सुषुम्ना नाम से प्रसिद्ध है , उसे परमेश्वर प्राप्ति का द्वार कहा जाता है ।


7.      जिज्ञासा  -पदार्थ के कितने भाग यहाँ सामने आते हैं?

समाधान- पदार्थ के दो भाग यहाँ सामने आते हैं, प्रथम में आधिभौतिक पदार्थों को लोक, ज्योति और स्थूल पदार्थ माना जाता है तथा दूसरे भाग में प्राण करण और धातु का वर्णन आता है


8.      जिज्ञासा  - लोक की आधिभौतिक दिशाएं कितनी हैं ?

समाधान - लोक की आधिभौतिक दिशाएं- पृथ्वीलोक, अन्तरिक्षलोक, स्वर्गलोक, पूर्व-पश्चिम दिशाएँ आदि तथा आग्नेय, नैरित्य आदि अवांतर दिशाएं हैं ।

9.      जिज्ञासा  -   लोक की आधिभौतिक ज्योतियाँ  कितनी हैं ?

समाधान - अग्नि, वायु, सूर्य, चन्द्रमा और नक्षत्र यह ज्योतियों की आधिभौतिक पंक्ति हैं ।


10.  जिज्ञासा  - भौतिक स्थूल शरीर जड़ पदार्थों की आधिभौतिक पंक्तियाँ कितनी हैं ?

समाधान - जल, औषधियां, वनस्पतियाँ,आकाश और पांच भौतिक स्थूल शरीर जड़ पदार्थों की आधिभौतिक               पंक्तियाँ हैं ।

11.  जिज्ञासा  - प्राणों की पंक्ति कितनी हैं ?

समाधान - प्राण, अपान, उदान, सामान और व्यान प्राणों की पंक्ति हैं ।

12.  जिज्ञासा  -  करण समुदाय की पंक्ति कितनी हैं ?

समाधान -  नेत्र, कान, मन, वाणी और त्वचा करण समुदाय की पंक्ति है ।


13.  जिज्ञासा  - शरीरगत धातुओं की पंक्ति कितनी हैं ?

समाधान -  चर्म, मांस, नाडी, हड्डी और मज्जा शरीरगत धातुओं की पंक्ति हैं ।


14.  जिज्ञासा - आधिभौतिक और आध्यात्मिक विकास में लोक ,ज्योति , स्थूल पदार्थों का आपस में क्या समबन्ध है ?

समाधान -  इनके सम्बन्ध को सारिणी इस प्रकार समझा जा सकता है -

(1)आधिभौतिक ‘लोक’ सम्बन्धी पंक्ति से चौथी प्राण- (प्राण, अपान, उदान, सामान और व्यान) समुदाय रूप आध्यात्मिक पंक्ति का सम्बन्ध है । 

(2) ‘ज्योति’ विषयक आधिभौतिक पंक्ति से पांचवीं करन -(नेत्र, कान, मन, वाणी और त्वचा) समुदाय रूप आध्यात्मिक पंक्ति का सम्बन्ध है ।

(3) ‘स्थूल’ पदार्थों की आधिभौतिक पंक्ति का छ्ठी शरीरगत धातुओं -(चर्म, मांस, नाडी, हड्डी और मज्जा) से सम्बन्ध है क्योंकि ओषधि और वनस्पतियाँ अन्न से ही मांस-मज्जा आदि की पुष्टि और वृद्धि करती हैं ।


15.  जिज्ञासा  - तपश्चर्या क्या है ?

समाधान -  ॐ उच्चारण के साथ सत्य भाषण और सत्यभाव पूर्वक कार्य करने को ही तपश्चर्या कहलाती है । पुरुशिष्ट पुत्र तपोनित्य ने तपश्चर्या को ही सर्व श्रेष्ठ माना गया है । मुद्गल पुत्र नाक का कहना है, धर्मशास्त्रों का अध्यन-अध्यापन ही तप है । त्रिशंकु का कहना है की अंत:करण में भावना करना भी परमात्मा की प्राप्त का साधन है ।


16.  जिज्ञासा  -   आचारण क्या है ?

समाधान -  “ सत्यंवद । धर्मं चर । स्वध्यायान्मा प्रमद: । इसी में “मातृदेवो भाव । पितृदेवो भाव । आचार्य देवो भव।” की  भी बात कही है । यही भाव लेकर जीवन का निर्वाह करना सत्याचरण है ऐसा शास्त्रों का मत है ।

क्रमशः 3

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