कठोपनिषद
सामवेदीय शाखा का उपनिषद
है । “ॐ सह नाववतु । सह नौ भुनक्तु । सह वीर्यं करवावहै । तेजस्विनावधीतमस्तु मा
विद्विषावहै ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः
शान्तिः॥” यह उपनिषद आत्म-विषयक आख्यायिका से आरम्भ होता है । प्रमुख रूप से यम
नचिकेता के प्रश्न प्रतिप्रश्न के रुप में है । नचिकेता के पिता , ऋषि अरुण के पुत्र उद्दालक लौकिक कीर्ति की इच्छा से विश्वजित (अर्थात
विश्व को जीतने का) याग का अनुष्ठान करते हैं । याजक अपनी समग्र सम्पत्ति का दान
कर दे यह इस यज्ञ की प्रमुख विधि है । इस विधि का अनुसरण करते हुए उसने अपनी सारी
सम्पत्ति दान कर दी । उसके पास कुछ पीतोदक, जग्धतृण, दुग्धदोहा, निरिन्द्रिय और
दुर्बल गाएँ थीं । नचिकेता ने पिता से कहा,
इस प्रकार के दान से तो आपका याग सफल न होगा न आपकी आत्मा का
अभ्युदय होगा । संवाद में वह कहता है की आपमें सचमुच दान की भावना है तो मुझे दान
कीजिये, "कहिये मुझे किसको दान में देने को तैयार हैं"
- कस्मै मा दास्यसि ? पिता ने पुत्र की बात अनसुनी कर दी ;
समझा नादान बालक है। जब नचिकेता ने देखा की उसका पिता उद्दालक उसकी
बात पर ध्यान नहीं दे रहा है तो उसी प्रश्न को कई बार दोहराया - "मुझे किसे
दोगे" ? तब क्रोधित होकर पिता ने कहा - तुझे मृत्यु को
दान में देता हूँ (मृत्यवे त्वा ददामि)। यह सुन नचिकेता मृत्यु अर्थात यमाचार्य के
पास गया और उनसे तीन वर मांगें - पहला वर पिता का स्नेह मांगा। दूसरा अग्नि विद्या जानने के बारे में
था। तीसरा वर मृत्यु रहस्य और आत्मज्ञान को लेकर था। इसी सवाद को लेकर यह
उपनिषद सामने आता है ।
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