बृहदारण्यकोपनिषद्:
बृहदारण्यक
अद्वैत वेदान्त और संन्यासनिष्ठा का प्रतिपादक है । यह उपनिषदों में सर्वाधिक
बृहदाकार है तथा मुख्य दस उपनिषदों के श्रेणी में सबसे अंतिम उपनिषद् माना जाता है
। इसमें जीव,
ब्रह्माण्ड और ब्रह्म (ईश्वर) के बारे में कई बाते कहीं गईं है ।
यजुर्वेद के प्रसिद्ध पुरुष सूक्त के अतिरिक्त इसमें अश्वमेध, असतो मा सद्गमय, नेति नेति जैसे विषय हैं। इसमें ऋषि
याज्ञवल्क्य और मैत्रेयी का संवाद है, जो अत्यन्त क्रमबद्ध और युक्तिपूर्ण है।
इसके नाम (बृहदारण्यक = बृहद् + आरण्यक) का अर्थ 'बृहद ज्ञान
वाला' या 'घने जंगलों में लिखा गया'
उपनिषद है । इस उपनिषद् का ब्रह्मनिरूपणात्मक अधिकांश उन व्याख्याओं
का समुचच्य है जिनसे अजातशत्रु ने गार्ग्य बालाकि की, जैवलि
प्रवाहण ने श्वेतकेतु की, याज्ञवल्क्य ने मैत्रेयी और जनक की
तथा जनक के यज्ञ में समवेत गार्गी और जारत्कारव आर्तभाग इत्यादि आठ मनीषियों की
ब्रह्म जिज्ञासा निवृत्त की थी।
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