Thursday, 1 August 2024

जाति न पूछो साधु की

कल ही उच्च शिक्षा की चर्चा करते हुए मैंने आग्रह किया था कि यदि आरक्षण में सही गरीब, उपेक्षितों को लाभ देना है तो आरक्षण का युक्तियुक्तकरण होना चाहिए। 

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय भी इस बात को स्वीकार करता है कि आरक्षण का लाभ जाति के आधार पर देने से जाति के अंदर के अंतिम पायदान पर खड़े निर्धन को धन और मान कब मिलेगा?

जाति के सच को भी समझें -

सिद्धांत और व्यवहार -
जाति न पूछो साधु की,पूछ लीजिए ज्ञान।
मोल करो तलवार की पड़ी रहन दो म्यान।।

फिर भी -
व्यवहार - बाल्मीकि -ब्राह्मण- शूद्र?
तुलसी ब्राह्मण, कबीर -जुलाहा, हिंदू या मुसलमान?

राष्ट्रपति -दलित, पिछड़ा!
प्रधानमंत्री -पंडित जवाहरलाल, लाल बहादुर शास्त्री (कायस्थ - जाति व्यवस्था में यह कौन-सी जाति है?), पिछड़ा आदि आदि।

अनुसंधानकर्ताओं के शोधग्रंथों को भी देखें।
विद्या निवास मिश्र बिना पंडित के अधूरे हैं ?
मुख्यमंत्री, न्यायाधीश, कलेक्टर, आयुक्त सभी की तो जाति के आधार पर फील्ड में पदस्थापना होती है।

मुख्यमंत्री से मंत्री तक के प्रमुख सचिव, सचिव,, विशेष सहायक की तलाश करिये। बिना जाति के विश्वास ही नहीं।

इसके अतिरिक्त खाने वाले दांत तो अजाति,कुजाति,विजाति भी चलते हैं!

 कल एक नई जाति टी वी में सुना -टोटी चोर। दूसरे ने कहा -चायवाला? क्या यह भी जातियां हैं?

दर असल कोई नहीं पूछता मोलतजा है, बेहना है-मैमल ,पंगल , मैमल ( शेख ) ,जोलहा (मोमिन और अंसारी ) ,मारिया (एम-बीसी) , धुनिया (मुस्लिम) {शेख मंसूरी} ...अशराफ़', 'अजलाफ़', और 'अरज़ाल कौन हैं ?

आंध्र ईसाई, अक्कासलिगा ईसाई, बंजारा ईसाई, बेस्टारू ईसाई, बिलवा ईसाई, ब्राह्मण ईसाई, एडिगा ईसाई, गोला ईसाई, गौडी ईसाई, गौडी ईसाई, होलेया ईसाई, जंगमा ईसाई, कम्मा ईसाई, कुरुबा ईसाई, लमनी ईसाई, लम्बानी ईसाई आदि कहां से आये हैं? जनगणना से 
प्रोटेस्टेंट, कैथोलिक ग़ायब।  

आर्थिक परिस्थिति, सामाजिक स्थिति क्या है, जनसंख्या कितनी हैं?
फिर भी अल्पसंख्यक हैं! आरक्षण चाहिए ?

अल्पसंख्यकों के नाम पर शिक्षा में छूट। अल्पसंख्यकों के विद्यालय से विश्वविद्यालय तक पढ़ने वाले बहुसंख्यक?

फिर चर्चा दलित, पिछड़ा,अति दलित की ही क्यों?

बंचित, दलित भी बंचिका की तरह एक अलग कहानी कहते हैं।

गरीब और उपेक्षित की चिंता कौन करेगा? 

क्या यह जाति की लड़ाई हिंदुत्व को जिंदा रखने वालों को नष्ट-भ्रष्ट करने का सोचा समझा एजेंडा है?

देश के बजट तैयार करने में भी जाति?
मज़े की बात जब भी संसद में भाषण होता है तो कहा जाता है वे इस मुद्दे पर 'राजनीति' कर रहे हैं तो वे दूसरे मुद्दे पर।

क्या सचमुच 'राजनीति' शब्द का अर्थ 'षणयंत्र' के लिए रूढ़ हो रहा है। क्या यह आसन्न खतरा नहीं?

5 comments:

  1. बहुत अच्छा विश्लेषण ,सर

    ReplyDelete
  2. //क्या यह जाति की लड़ाई हिंदुत्व को जिंदा रखने वालों को नष्ट-भ्रष्ट करने का सोचा समझा एजेंडा है?//- निश्चित रूप से यही सोच काम कर रही है।

    ReplyDelete
  3. आरक्षण का युक्ति -युक्त करण !? इस वाक्य का एक निहितार्थ तो यह है कि "आरक्षण"व्यवस्था सदैव रहना चाहिए, तथापि समय-समय पर उसमें तर्क संगत परिवर्तन होते रहना चाहिए। ऐसा क्यों? ताकि कथित वंचित लोगों को भी" मलाई खाने"के अवसर मिलते रहें। याने आरक्षण की अवधारणा ही क्या दोष पूर्ण नहीं है? शिक्षण -प्रशिक्षण व्यवस्था में आरक्षण मान्य होना ही चाहिए। क्योंकि, परिवारों में अवसरों की असमानता है। लेकिन,एक बार शिक्षण-प्रशिक्षण के बाद नौकरी के क्षेत्र में चयन के लिए आरक्षण अन्ततोगत्वा व्यक्ति, परिवार,समाज, राज्य व्यवस्था सबके लिए अहितकारी होती है और होती रहेगी।

    ReplyDelete
  4. सारगर्भित सम्यक लेख

    ReplyDelete