Friday, 23 August 2024

नकल के दोषी अतिथि विद्वानों की सेवा समाप्त!!

नकल के दोषी अतिथि विद्वानों की सेवा समाप्त!!

पत्रिका के पृष्ठ 7 पर यह खबर छपी है। शायद शासन का यह निर्णय शासन की नज़र में सही हो सकता है,पर यह व्यवस्था को लेकर उच्च शिक्षा विभाग मध्यप्रदेश शासन पर गंभीर प्रश्न चिन्ह है।

विभिन्न परिक्षाओं में उच्चतम न्यायालय से लेकर सभी राज्य एवं केन्द्र सरकारें चिंतित हैं। 
फिर उच्च शिक्षा विभाग की व्यवस्था कौन देखेगा?

मध्यप्रदेश में उच्च शिक्षा विभाग से लेकर सभी विश्वविद्यालयों को ज्ञात है कि सामूहिक नकल कहां कहां होती है या हो सकती है। फिर भी जैसा कि समाचार पत्र में छपा है,एक अतिथि विद्वान को आपने केन्द्राध्यक्ष बना दिया? क्यों?

एक तरफ अतिथि विद्वानों को आप नियमित योग्य नहीं मानते! लगातार 1990 से इस व्यवस्था को चालू कर रखा है। जो अतिथि विद्वान छह महीने,साल भर की भी एक जगह पर नौकरी नहीं कर सकता (फालेन आउट होता है,या घर बैठा दिया जाता है) उसे परीक्षा का केन्द्राध्यक्ष? क्या परीक्षा का एक्ट अनुमति देता है?

अतिथि विद्वान की निष्ठा, समर्पण सब होने के बाद भी वह विद्यार्थी से लेकर शिक्षक और शासन तक की नज़र में गैर/अनपेक्षित है!

यह घटना केवल भिंड में ही नहीं है, प्रदेश के अनेक महाविद्यालय हैं जहां नियमित प्राचार्य और प्राध्यापक न होने से पूरे महाविद्यालय की व्यवस्था या तो चपरासी,लैब तकनीकीशियन सम्हाल रहे हैं या अतिथि विद्वान। 

हर जिले और संभाग के महाविद्यालयों में नियमित और अतिरिक्त प्राध्यापक बिना वर्क लोड के बैठे हैं, क्यों? क्या इन्हें ऐसे स्थानों पर नहीं पदस्थ करना चाहिए? क्या नर्सिंग की तरह इसमें भी उच्चतम न्यायालय के आदेश की प्रतीक्षा है?

कुकुरमुत्ते (जो आज स्वादिष्ट और हाइजीनिक भोजन की श्रेणी में आता है) की तरह बिना अपेक्षित आधार भूत संरचना और शिक्षकों के निजी से लेकर शासन तक के महाविद्यालय और विश्वविद्यालय चल रहे हैं, हर वर्ष नये खुल रहे हैं,उन पर अंकुश कब लगेगा? परीक्षा और पढ़ाई दोनों को इतना कैजुअल कैसे ले सकते हैं?

चरमराती व्यवस्था नौनिहालों का भविष्य बिगाड़ रही है। ऐसे स्थानों से मैरिट प्राप्त विद्यार्थी कहा संतुलन बिगाड़ रहे हैं ,कौन देखेगा?

अभी तक पीएम एक्सीलेंस की व्यवस्था बनाने में सरकार को पसीना छूट रहा है,तो सामान्य महाविद्यालयों का क्या होगा,?

अतिथि विद्वानों को हटाने और उनके सामूहिक नकल में भागीदारी (यदि है तो) के स्थानीय शिक्षा माफियाओं और उच्च शिक्षा के विश्वविद्यालयों में बैठे कुलपतियों, कुलसचिवों की भूमिका की भी जांच होनी चाहिए।
 क्या यह परीक्षा के आर्डिनेंस का उल्लंघन नहीं है?
24/8/24
भोपाल 

2 comments:

  1. सर, आपने बहुत जरूरी मुद्दा उठाया है। बहुत अनदेखी की जा रही है, विद्यालयीन और महाविद्यालयीन दोनों क्षेत्रों में। शिक्षक भर्तियों को लेकर। अतिथि शिक्षकों और अतिथि विद्वानों के कंधे पर सारी जिम्मेदारियों की बंदूक रख कर चलायी जा रही है। यानी विद्यार्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़।

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  2. शासन-प्रशासन, नौकरी देता है और नौकरों-चाकरों से "व्यवस्था" बनती है। व्यवस्था,का आधार नियम कानून हैं और, इन्हें भी नौकर -चाकर बनाते -बिगाडते हैं। अतः अब, जड़ में घुस गई बुराई को दूर करने के दो ही उपाय हैं।एक यह कि, जड़ को काट फेंको और , जमीन को ठीक करने के बाद नये बीज रोप कर कुछ अच्छा करो।दूसरा उपाय यह है कि,नदी -नालों की सफाई के लिए बारिशों के रुकने का इंतजार करो और फिर नये सिरे से योजनाएं बनाओ।
    लेकिन, अक्षमता का पोषण अपराध है ; अक्षम व्यक्ति को बड़ी जिम्मेदारी देने वाले व्यक्ति को भी ताड़ित -प्रताड़ित करना ही होगा।

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