पुराने वर्ष के कर्मों की दुंदुभि
आगत वर्ष के हर पृष्ठ पर
छोड़ रही है काल झंझा से
मर्माहत -उन्मादी थाप
यद्यपि युग दे रहा है
बदलाव का संकेत
तथापि हम अंजान अबोध से
एक नये हृदयहीन अध्याय के
नये पृष्ठ पर
निर्मम इतिहास के लिए
लिख रहे हैं अर्थार्थी काव्य।
बर्बादियों की प्रेतात्मा
भविष्य के अग्रदूत को
घसीटकर
खड़ा करेगी भारती के भाल पर ?
या
ध्वस्त होगी बर्बरता ?
होगा नव-युग निर्माण
राम-रज शिला पर ?
नष्ट होगी श्याम-स्याह
दासता की मानसिकता
क्या-क्या रह सकेगा शेष ?
जलतरंगी नये पृष्ठों पर
घड़ी आ गई है
स्वर्ण अक्षरों के गुम्फन के लिए
बज रहे नगाड़ों में
सप्त स्वरों के कालातीत युग्म!!
चल रहा सदियों से
वीभत्स उत्सव
रुकेगा
सजकर प्रेम और मृत्यु के
भयंकर नृत्य में ।
तपःपूत पावन मनुष्य का
श्रम मोती
लोभ बंद सीपी से परे
हिरण्यमयी चिता भस्म पर समाधि लेगा!!!
आगत सृष्टि के लिए
कालजयी सुरध्वनि
कर सकेगी नई सर्जना का सूत्रपात ।
व्यथा से उन्मुक्त होकर
आस्था को दृढ़मूल करने
लिखूंगा नया पृष्ठ
हे नरोत्तम!
शुभ संकेत होगा
फिर तुम्हारे रामराज्य का।
No comments:
Post a Comment