Monday, 12 August 2024

भारत का समुज्ज्वल भविष्य

अमृत महोत्सव अर्थात् पञ्च कोष का जागरण
प्रो उमेश कुमार सिंह 
आलेख के परिप्रेक्ष्य दो हैं, पहला- ‘स्वाधीनता का अमृत महोत्सव’ और दूसरा ‘भारत का समुज्ज्वल भविष्य की संकल्पना’ । ‘अमृत महोत्सव’! किसका ? स्वाधीनता का !  शास्त्र कहते हैं, ‘वयम अमृतस्य पुत्राः’। फिर अमृत पुत्र को ‘अमृत महोत्सव’ मनाने का कारण ? सहज रूप से आप और हम समझ सकते हैं कि भारत की राजकीय सत्ता वर्षों तक पराधीन रही ? कुछ का मानना है कि हम स्वतंत्र हुए अर्थात् अपने तंत्र के आधार पर राज्य सत्ता का संचालन होगा ? इसे दो प्रकार से समझना होगा, एक- हम स्वाधीनता और स्वतन्त्रता को 75 साल पहले प्राप्त किये ।  ठीक बात है किन्तु क्या यह केवल इतना ही है ? तो उत्तर हाँ और न दोनों में ही आयेगा । हाँ, इसलिए की देश के सामान्य जन को यह बोध कराना कि हम एक स्वतंत्र देश के नागरिक हैं ? दूसरा अर्थ थोड़ा गहरा है ।  हम अमृत महोत्सव मना रहे है ? हम यानि कौन ? जो अमृत हैं ? इसका सीधा अर्थ है, हमको हमारा परिचय कराने वाला कार्यक्रम ? इसलिए यह महोत्सव है अन्यथा स्वतंत्रता किसी भी राष्ट्र के बाह्य संचालन की एक प्रक्रिया का अंग है । जब कोई राजकीय सत्ता स्वदेशी, लोकोन्मुखी होती है तो वह अपनी परम्परा के आधार पर सता का संचालन कराती है और जो भी परकीय सता होती है वह अपने परम्परा के आधार पर पर सत्ता का संचालन करती है । परिणाम जन गण उससे धीरे-धीरे उसी के अनुसार चलने का आदी हो जाता है ।  पराधीन मानसिकता को अपने स्वत्वों के आधार पर जन गण को स्मरण कराना ‘अमृत महोत्वव’ है । अर्थात् हमी को हमारा परिचय कराना । किन्तु इसके विरोधाभाष को भी समझना होगा । एक और जन गण स्वधीनता का अमृत महोत्सव की बात करता है वहीं तंत्र ‘आजादी के अमृत महोत्सव’ की बात कराता है, क्या आजादी भारतीय चेतना अपने ‘स्व’ का, ‘अमरता’ का बोध करा सकता है ?
     फिर भी यह सत्य है कि भारत सरकार की पहल से ‘स्वाधीनता / आजादी के अमृत महोत्सव’ को कुछ ऐसा स्वरुप प्राप्त हुआ जो न केवल भारत के जन मन को आंदोलित किया, बल्कि करोड़ों प्रवासी, अप्रवासी और विदेशी नागरिकों के मन में भारत की एक ऐसी प्रतिमा खाड़ी हुई जो उनके मानस और नजरिये को भी बदला है । किसी भी देश के लिए यह गौरव का विषय है, किन्तु अंतिम पड़ाव नहीं, संतुष्टि का कारण भी नहीं ।
इस महोत्सव में प्रधानमंत्री जी ने चार बातें- जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान और जय अनुशंधान स्मरण दिलाई । लाल बहादुर शास्त्री से प्रारम्भ होकर अटल बिहारी बाजपाई तक बात आई, किन्तु अब उनका केवल दुहराव नहीं हुआ तो उसमें अनुसंधान को जोड़कर उसको धरती में दिखाया भी गया । सियाचिन में जाकर देश के सेना के साथ प्रधानमंत्री का राष्ट्रीय पर्वों में न केवल सहभाग करना, बल्कि पड़ोसी देशों की बदनीयति से पौरुषता के साथ निपटने की खुली छूट देना बड़ा कार्य हुआ है । 
भारत सदा से कृषि प्रधान देश रहा है किन्तु इसी कृषि प्रधान देश ने आकाल का काल भी देखा है, तो अमरीका के लाल गेहूं को भी खाया है । वही भारत आज विदेशों को गेहूँ के साथ अनेक कृषि उत्पाद भेज रहा है । सचमुच में देश अन्नदाता बन कर उभरा है ।
हम विज्ञान में नासा से भागी दारी कर रहे हैं, तो अनुसंधान में करोना काल के प्राणदाता भी बने हैं । कई देशों की सेटेलाइट को ही लांच नहीं किया है तो इस्रायल और अन्य देशों से तकनीक लेकर अपनी स्वदेशी तकनीक विकसित करने में सफलता भी पाई है । इस वर्ष के गणतंत्र दिवस पर सौर्य स्मारक पर स्वदेशी तोपों की सलामी आत्मनिर्भर भारत का प्रतीक है । तात्पर्य यह की जय जवान से लेकर जय अनुसंधान की सार्थक यात्रा ने स्वाधीनता के ‘अमृत महोत्सव’ को न केवल सार्थक किया है, बल्कि स्वतंत्रता से सुराज की यात्रा का मार्ग भी प्रशस्त किया है ।     
तब यहीं से दूसरा परिप्रेक्ष्य ‘भारत के समुज्ज्वल भविष्य की संकल्पना’ प्रारम्भ होता है । इसके लिए भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पञ्च प्रण को ठीक से समझना होगा ।  क्या हैं पञ्च प्रण -  (1) भारत को विकसित देश बनाना (2) जीवन से गुलामी का अंश मिटाना  (3)  अपनी विरासत पर गर्व  (4) एकता और एकजुटता   (5) नागरिकता का पालन । 
आइये इन पञ्च प्रणों को संकल्पना के साथ समझने का प्रयास करें कि इन संकल्पनाओं के अंदर ‘भारत का समुज्ज्वल भविष्य कैसा होगा ?  इस अमृत महोत्सव में स्वतन्त्रता के काल से ही नहीं तो पिछले हजार वर्षों के अतीत पर व्यापक विचार-मंथन हुआ है । कुछ महत्वपूर्ण निष्कर्ष भी हमारे सामने आए हैं । 
(1) भारत को विकसित देश बनाना - आज भारत  का राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक परिदृश्य परिवर्तित स्वरुप में खड़ा है । प्रशासनिक तंत्र, सुरक्षा, शिक्षा, इतिहास, स्वास्थ्य, उद्योग, सबके लिए दृष्टि तय हुई है । भविष्य की आवश्यकताओं के अनुरूप ढांचा खड़ा हुआ है । देश की एक दिशा निश्चित हुई है ।  देश की उपलब्धियां और चुनौतियां सभी हमारे सामने आई हैं ।  एक राष्ट्र ने स्वतंत्र होते ही विभाजन की हिंसा का दंश और सीमा पर आक्रमण का सामना किया । फिर भी पचहत्तर वर्षों में राष्ट्र ने लोकतंत्र को ही मजबूत नहीं किया बल्कि भारत के जन गण  के सामर्थ्य और इच्छाशक्ति से अपने को एकता के सूत्र में बांधा । पिछला दशक भारत के लिए अनेक उपलब्धियों से भरपूर रहा है । चाहे वह भारत के नागरिकों को मूलभूत सुविधाएं- स्वास्थ्य, आवास, पेय जल और वित्तीय संसाधन उपलब्ध करने का विषय हो या भारत के नियमों, कानूनों की बात हो ।  भारत की मेधा शक्ति ने कोरोना समय में सबसे सस्ती और सबसे सुरक्षित वैक्सीन का निर्माण किया। जिसने पूरे विश्व की सहायता की और करोड़ों जीवन की रक्षा की । आज भारतीय अर्थ व्यवस्था तमाम संकटों के बाद भी आगे बढ़ रही है, मगर भारत की बढ़ी आबादी की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए इसे और तेजी से प्रगति करनी होगी । इसके लिए आवश्यक है कि हम भारतीय सूक्ष्म लघु उद्योगों और उपक्रमों को बढ़ावा दें । इसके बिना हम भारत की रोजगार की अपेक्षा को पूरा नहीं कर पाएंगे । 
भारत सही मायने में तभी सशक्त होगा, जब भारत स्वावलंबी होगा । भारत की स्वाधीनता को जब आज ७५ वर्ष पूरे हो रहे हैं तो यह आवश्यक है कि हम विचार करें कि क्या भारत के नीति प्रतिष्ठान, वर्तमान के भारत की आकांक्षाओं और अपेक्षाओं के अनुरूप हैं । अगर वह नहीं हैं तो उसमे परिवर्तन कैसे हो सकता है, इस पर भी विचार की आवश्यकता है । आज हम बहुत सी ऐसी व्यवस्था देखते हैं, जिसमें एक साधारण आदमी अपने को असहज और असमर्थ पाता है, चाहे वह आज की न्यायिक व्यवस्था हो या राजनीतिक व्यवस्था । ये एक साधारण आदमी की पहुंच में सहजता और सुलभता से कैसे पहुंचे, इस पर विचार करने की आवश्यकता है । 
भारत वैश्विक चुनौतियों का सामना तभी कर सकता है, जब उसकी आंतरिक व्यवस्था मजबूत हो । आंतरिक व्यवस्था न केवल आर्थिक और सुरक्षा की है बल्कि इसके लिए सामाजिक सशक्तिकरण और समरसता एक चुनौती है। अब तक भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा रक्षा उपकरण आयातक देश था । यह देश के बजट पर बड़ा बोझ तो था ही, उसमें हमारी महत्वपूर्ण रक्षा जरूरतों को विदेशी शक्तियों द्वारा नियंत्रित करने का जोखिम भी निहित था । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में रक्षा उपकरणों के निर्माण को पूरी तरह देश की जिम्मेदारी बनाने का फैसला लिया गया । यह पहल ही आत्मनिर्भर भारत की नीति और भविष्य के भारत के समुज्ज्वल भविष्य का संकेत है । रक्षा सम्बन्धी उपकरण के साथ औषधियों, उन्नत कृषि उपकरणों का निर्माण अब मेक-इन-इंडिया का केंद्र बिंदु बन गया है । इसे मेक-क, मेक-क क और मेक-क क क श्रेणी में बांटा गया है । दूसरी श्रेणी के तहत परियोजनाओं का वित्त पोषण रक्षा उपकरणों के नए उभरते घरेलू विनिर्माण उद्योग द्वारा किया जा रहा है। इस श्रेणी की परियोजनाएं प्रोटोटाइप, स्पेयर पार्ट्स, राडार प्रणाली, इंस्ट्रूमेंटेशन पार्ट्स और संबद्ध घटकों से संबंधित हैं। इसके तहत सरकार ने निजी उद्योगों को रक्षा प्रणालियों के निर्माण के लिए प्रोत्साहित किया है । इस क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाने के साथ डीपीएसयू को रक्षा वस्तुओं के स्थानीय निर्माण में भाग लेने के इच्छुक स्थानीय एमएसएमई, स्टार्ट-अप के साथ संवाद करने की अनुमति देने के लिए भी एक प्रणाली बनाई गई है । 
समझना होगा की सरकार की आठ वर्ष की रक्षा आधुनिकीकरण की नीति ने न केवल सेना और रक्षा क्षेत्र की प्रकृति को  बदला है बल्कि पडोसी देश के साथ दुनिया के सबल राष्ट्रों के बीच अपनी उपस्थिति भी दर्ज कराई है जो भविष्य के भारत , शसक्त भारत का उद्घोष है । नौसेना को स्वदेश निर्मित विमानवाहक पोत से आधुनिक बनाया गया है । फरवरी 2015 में भारत सरकार ने विशाखापत्तनम में शिप बिल्डिंग सेंटर में छह परमाणु पनडुब्बियों के स्वदेशी निर्माण को मंजूरी दी। भारत का परमाणु शक्ति संपन्न बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी (एसएसबीएन) कार्यक्रम डीआरडीओ, परमाणु ऊर्जा विभाग और भारतीय नौसेना के प्रबंधन व संचालन के अधीन चल रहा है । वर्तमान में, भारत फ्रांस के नौसेना समूह के साथ साझेदारी में मुंबई में सरकारी स्वामित्व वाली मझगांव डॉक लिमिटेड में 6 नई स्कॉर्पीन-श्रेणी की पनडुब्बियों का निर्माण कर रहा है । वायु सेना की दक्षता बढ़ाने के लिए सरकार ने सुखोई लड़ाकू विमानों को उन्नत किया है और फ्रांस से चौथी पीढ़ी के राफेल लड़ाकू विमान खरीदे हैं। इनके अतिरिक्त रुद्र अटैक हेलिकॉप्टर, ध्रुव यूटिलिटी हेलिकॉप्टर, एमआई 17वी ट्रांसपोर्ट हेलिकॉप्टर और कामोव केए-226टी लाइट यूटिलिटी हेलिकॉप्टर मौजूदा सरकार की कुछ प्रमुख उपलब्धियां रही हैं। एचएएल और वैमानिकी विकास एजेंसी (एडीए) संयुक्त रूप से उन्नत मध्यम लड़ाकू विमान का विकास कर रहे हैं। यह एक स्वदेशी सक्रिय इलेक्ट्रॉनिक स्कैन ऐरे राडार और सुपरक्रू क्षमता वाला एकल सीट और ट्विन-इंजन स्टील्थ आल-वेदर मल्टीरोल फाइटर विमान होगा। विचारणीय है की आज भारत राष्ट्रीय दृष्टि के करान बेहतर रक्षा परियोजनाओं को लागू करने में सक्षम हुआ है। फिर भी भारत को अभी भी अमेरिका, चीन और रूस के आयुध विकास को शान्ति का सन्देश देने दुर्गम किन्तु असम्भव नहीं ऐसा मार्ग तय करना है । सशक्त भारत, समर्थ भारत और अजेय भारत के लिए यही संकल्प सूत्र है ।
(2) जीवन से गुलामी का अंश मिटाना -  प्रायः गुलामी का सम्बन्ध हम स्वतन्त्रता से जोड़कर देखते है किन्तु यह तात्कालिक सम्बन्ध है । बाह्य वातावरण का प्रभाव है । हमारे शिक्षा और संस्कारों के सन्देश के विस्मरण का प्रभाव है । भारत सदा से बाह्य और आभ्यांतर दोनों प्रकार से जीवन को प्रकाशित करता रहा है । इसलिए यदि भारत के स्वतंत्रता संग्राम के आधार पर गुलामी को समझने का प्रयास करेंगे तो पाएंगे कि संघर्ष के पदचिन्ह नगरों, ग्रामों, जंगलों, पहाड़ों व तटीय क्षेत्रों में हर जगह मिलते हैं। चाहे संथाल का विद्रोह हो या दक्षिण के वीरों का सशस्त्र संघर्ष । सभी संघर्षों में एक ही भाव मिलेगा स्वतन्त्रता । सभी लोग किसी भी कीमत पर स्वाधीनता चाहते थे और वो यह स्वाधीनता केवल अपने लिए ही नहीं, अपितु अपने समाज और सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए चाहते थे। यह भारतवासियों का सामर्थ्य और इच्छाशक्ति ही थी, जिसने १९४७ के बाद लगातार भारत के छूटे हुए हिस्से गोवा, दादरा एवं नगर हवेली, हैदराबाद और पुड्डुचेरी को फिर भारत भूमि में मिलाने का प्रयास जारी रखा और अंत में नागरिक प्रयासों से लक्ष्य की प्राप्ति की। और यह प्रयत्न आगे भी जरी रहेगा क्योंकि भारत की प्राकृत अखंड मंडलाकार है ।  
प्रश्न यह आता है कि जब हमने राजकीय स्वायतत्ता प्राप्त कर ली तो गुलामी से मुक्ति की बात फिर क्यों ? इसके लिए भारत को समझना होगा । जिस तरह दुनिया के अन्य आर्थिक रूप से संपन्न देशों की नागरिकों की मानसिकता से हमारी सम्पनता की मानसिकता अलग है, उसी प्रकार राजनीतिक गुलामी से मुक्ति के अतिरिक्त भी एक गुलामी से बाहर आने की हमारी सोच है । भारत पञ्च कोष के आधार पर जीता है । इसलिए इसे ठीक से समझाने की आवश्यकता है । राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020 के अन्दर यह सन्देश छिपा है । हमारा  आह्वान है -‘कृण्वन्तो विश्‍वमार्यम्  - (ऋग्वेद ९।६३।५) सारे संसार के मनुष्यों को श्रेष्ठ गुण-कर्म-स्वभाव वाले बनाओ । जय और  विजय से आगे अजेय का संदेश । मानसिक गुलामी से बाहर आने का सन्देश । उपनिषदों का सन्देश ।  आर्यावर्त का सन्देश। युजे वां ब्रह्म पूर्व्यं नमोभिर्विश्लोक एतु पथ्येव सूरेः।शृण्वन्तु विश्वे अमृतस्य पुत्रा आ ये धामानि दिव्यानि तस्थुः॥ ज्ञानियों के चरण-चिह्नों का अनुगमन करते हुए मैं निरन्तर ध्यान के द्वारा तुम दोनों का अनादि ब्रह्म में विलयन करता हूँ । महिमामय एकं प्रभु अपने आप को अभिव्यक्त करें! अमृत आनन्द के पुत्र मेरी बात सुनेंवे भी जो दिव्य धाम में निवास करते हैं, का सन्देश ।  ‘अयमात्मा ब्रह्म’ का सन्देश ।  ‘अहम् ब्रह्म’ का सन्देश । अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम् । यह मेरा अपना है और यह नहीं है, इस तरह की गणना छोटे चित्त वाले लोग करते हैं । उदार हृदय वाले लोगों की तो (सम्पूर्ण) धरती ही परिवार है, का सन्देश । ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का सन्देश । 
इसलिए समझना होगा भारत का भविष्य हजार, दश हजार के संघर्ष के परिणामों को लेकर नहीं जीता।  भारत स्वायत प्रकाश में जीता है ।  और यही बोध हमें हमारी गुलाम मानसिकता से बाहर ला सकता है और इसके लिए सनातन शिक्षा को प्रकाश में लाना होगा ।  प्राणमय संकल्पना से मनोमय संकल्पना की और बढ़ाना होगा।  समझान होगा विज्ञानमय कोष के अन्दर ज्ञान पहले से उपस्थित है जिसे पहचाना है, क्योकि भारत का समुज्ज्वल भविष्य आनंदमय कोष में बसता है ।  इसे ही रामराज्य, स्वराज्य और सुराज कहते हैं  ।  इसलिए शिक्षा जो विद्या का एक उपांग है के साथ पूरी ज्ञान परम्परा जिसके अंदर शौर्य परम्परा है, संत परमपरा, भक्ति परम्परा है , तप है , तेज है, पराक्रम है , ओज है , सहिष्णुता है  को ठीक से जन गण के मानस में उतार कर गुलामी से बाहर लाना होगा । भारत का भविष्य भारत के सुषुम्ना में है और इसे साधने के लिए इड़ा और पिंगला की निरंतरता कायम रखनी होगी । स्पष्ट है स्वाधीनता की गारंटी निर्भयता में है, स्व केंद्रित है । इसलिए भविष्य में  भौगोलिक, आर्थिक और सामाजिक सभी विभाजनों के परे जाकर भारत के जनमानस को  भारत के ज्ञान परम्परा का बोध कराना होगा । इसके लिए किसी एक क्षेत्र में स्थिर रहने से काम नहीं चलेगा तो मूलाधार से लेकर सहस्त्रधार  की यात्रा करनी ही होगी । यदि भारत को भारत बनाए रखना है तो चिरातन किन्तु नित्य नूतन इतिहास को स्मरण रखना होगा , नान्यः पन्था ।  
(3)  अपनी विरासत पर गर्व - भारत की विरासत भारत की परम्परा में है । उसके राष्ट्रीयत्व में, धर्म में, संस्कृति में है । और इन सबका प्राणतत्व अध्यात्म है जिसका बोध सभी में एक ही ब्रह्म है । समझना होगा धर्म में, संस्कृति में विचलन तभी आता है जब उसकी नाभि का अमृत अध्यात्म काल के श्याह पक्ष में ,अन्धकार में, अज्ञानता से आच्छादित हो जाता है ।  विरासत मिटती, हटती नहीं कभी-कभी विलुप्त होती है, तब हम हीनता बोध से भर जाते हैं । भगवान् श्रीकृष्ण ने योग का परिचय कराते हुए विरासत को सामने रखा - इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्‌ । विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत्‌ ॥ (गीता 4-1) ( मैंने इस अविनाशी योग-विधा का उपदेश सृष्टि के आरम्भ में विवस्वान (सूर्य देव) को दिया था, विवस्वान ने यह उपदेश अपने पुत्र मनुष्यों के जन्म-दाता मनु को दिया और मनु ने यह उपदेश अपने पुत्र राजा इक्ष्वाकु को दिया।) एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः । स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप ॥ (4/2) (हे परन्तप अर्जुन! इस प्रकार गुरु-शिष्य परम्परा से प्राप्त इस विज्ञान सहित ज्ञान को राज-ऋषियों ने बिधि-पूर्वक समझा, किन्तु समय के प्रभाव से वह परम-श्रेष्ठ विज्ञान सहित ज्ञान इस संसार से प्राय: छिन्न-भिन्न होकर नष्ट हो गया। )  
हमारे पास राम और रामायण हैं । समय चक्र घूमता है, साधना के तरीके बदलते हैं किन्तु तत्व शास्वत है, लक्ष्य स्पष्ट है, भारत की गौरव पताका विश्व में लहराना । भारत के अध्यात्मिकता को समझाने के लिए सांस्कृतिक परम्परा की उदात्त विरासत को याद रखना होगा।  स्मरण रखना होगा राम-लक्षमण, कृष्ण -बलराम के विरोधी सहस्तित्व को । उग्रता, अधीरता और क्रोध के समन्वय को । भारत के समुज्ज्वल भविष्य को देखने के लिए राम -रावन युध्य , महाभारत युद्ध के साथ 1959 में कम्युनिस्ट चीन द्वारा तिब्बत पर कब्जा और दलाईलामा के निष्कासन,  1962 में भारत पर चीन के हमले, और 1971 के बांग्लादेश के अस्तित्व को । एक और बात की और ध्यान खीचना चाहता हूँ , हमें नारद की पत्रकारिता से लेकर आज की पत्रकारिता की विरासत को भी समझना होगा । बाल्मीक के साथ कालिदास को  श्रीराम जन्मभूमि,काशी -मथुरा  और  कश्मीर को, जिनके अन्दर भारत के विरासत के मूल तत्व तथा भविष्य के सन्देश छिपे हैं। 
  भविष्य के सत्य का संधान करना है तो एक पूरी राष्ट्रीय और पर राष्ट्रीय, पंथीय, साहित्यिक और इतिहासकारों की इस विराटता को - चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी, राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन, आचार्य कृपलानी, डॉ. भगवान दास, डॉ. संपूर्णानंद, जयप्रकाश नारायण, अच्युत पटवर्धन, राममनोहर लोहिया, मीनू मसानी, प्रख्यात वामपंथी विचारक मानवेंद्रनाथ राय, विनोबा भावे को,  डॉ. ईश्वरी प्रसाद, जदुनाथ सरकार, राधाकुमुद मुखर्जी, रमेशचंद्र मजूमदार, आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव, सतीश चंद्र मित्तल जैसे ख्यातिलब्ध इतिहासकारों ने अपने आलेखों से पाञ्चजन्य को समृद्ध किया और पाठकों की दृष्टि को दिशा दी। न्यायविदों में पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति मेहरचंद महाजन, ननी पालकीवाला, वी.एम. तारकुण्डे, सुभाष कश्यप ने विधि की दृष्टि से विभिन्न विषयों पर दृष्टि दी। पाणिनि, आचार्य किशोरीदास वाजपेयी, भाषाविद् डॉ. नगेंद्र, नाटककार डॉ. लक्ष्मीनारायण लाल, आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, उपन्यासकार अमृतलाल नागर, जैनेंद्र कुमार, अज्ञेय, डॉ. महीप सिंह, डॉ. रामकुमार भ्रमर, मनहर चौहान, रामवृक्ष बेनीपुरी, रामधारी सिंह ‘दिनकर’, महादेवी वर्मा, भवानीप्रसाद मिश्र, सोहनलाल द्विवेदी, नरेंद्र कोहली इत्यादि साहित्यकारों ने न केवल साहित्य पर, बल्कि अपनी विरासत पर विमर्श किया। इसी तरह कंप्यूटर विज्ञानी विजय पाण्डुरंग भटकर, अंतरिक्ष विज्ञानी कृष्णास्वामी कस्तूरीरंगन और रसायन विज्ञानी रघुनाथ अनंत माशेलकर का लेखकीय अवदान भी भारत के अभिलेखागार की थाती हैं । साहित्यकारों में हिंदी के पाणिनि कहे जाने वाले वैयाकरण आचार्य किशोरीदास वाजपेयी, भाषाविद् डॉ. नगेंद्र, नाटककार डॉ. लक्ष्मीनारायण लाल, आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, उपन्यासकार अमृतलाल नागर, जैनेंद्र कुमार, अज्ञेय, डॉ. महीप सिंह, डॉ. रामकुमार भ्रमर, मनहर चौहान, रामवृक्ष बेनीपुरी, रामधारी सिंह ‘दिनकर’, महादेवी वर्मा, भवानीप्रसाद मिश्र, सोहनलाल द्विवेदी, नरेंद्र कोहली इत्यादि साहित्यकारों ने न केवल साहित्य पर, बल्कि समाज के अन्य विषयों पर भी अपनी स्थापना रखी। इसी तरह शीर्ष वैज्ञानिकों कंप्यूटर विज्ञानी विजय पाण्डुरंग भटकर, अंतरिक्ष विज्ञानी कृष्णास्वामी कस्तूरीरंगन और रसायन विज्ञानी रघुनाथ अनंत माशेलकर का लेखकीय अवदान भी पाञ्चजन्य अभिलेखागार की थाती है ।
  (4) एकता और एकजुटता - किसी भी सभ्य, सुसंस्कृत और कालजई राष्ट्र न केवल  पंचमहाभूतों की एकता, योग के समत्व की आवश्यकता होती है बल्कि उसे अपने राष्ट्र की एकता और अखण्डता की भी रक्षा करनी होती है और उसके लिए न केवल वैचारिक एकता आवश्यक है बल्कि समाजगत पांचजन्य के बोध की,’वयम पंचाधिकं शतं’ भी आवश्यकता है ।  हमें सुरक्षित भविष्य के लिए मुंबई में 26/11 के हमले को स्मरण रखना होगा जिसने न सिर्फ भारत को, बल्कि पूरी मानवता को हिला दिया था । एकता और एकजुटता को बनायेंगे किन्तु  शर्त याद रखते हुए की ‘न भूलेंगे, न माफ करेंगे’ । आजादी के अमृत महोत्सव के बाद  भविष्य की एकता के लिए तीन चेहरे सामने रखने होंगे  - पहला आजादी की लड़ाई के समय का , दूसरा वर्तमान सामाजिक, सांस्कृतिक उत्थान के लिए  और तीसरा चेहरा समाज सुधार और रूढ़ियों व कुरीतियों का विरोध करने के लिए । आजादी का अमृत महोत्सव तीनों को महाभाव को जोड़ता है ।  
वर्तमान इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया के समय में एकता और एकजुटता के लिए पत्रकारिता का महत्वपूर्ण योगदान है । दिग्गज तकनीकी कंपनियां तकनीक की आड़ में कुछ भी करें, कोई उसके विरुद्ध बोलने का साहस नहीं करता। हमें दो पत्रिकाएँ स्मरण होनी चाहिएं - एक ‘क्रॉस रोड्स’, जो वामपंथी विचार से प्रेरित थी, मद्रास से निकलती थी । दूसरी ‘आर्गेनाइजर’। हमें आपातकाल भी याद रखना होगा ।  आजाद भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर जिस तरह की वकालत हमारे प्रेरणास्रोत और मार्गदर्शक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने की है, वह अपने आप में बेमिसाल है ।आज देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर फिर से एक बहस छिड़ी है ।  उसके भविष्य को भी तलाशना होगा । समरसता के लिए काम करने होंगे और प्रयास इन सभी बातों के बाद भी, भारतीय समाज और एक राष्ट्र के रूप में हमें कई आंतरिक और बाह्य संकटों का न केवल सामना करना है, अपितु उसका समाधान भी ढूंढना है । भारत को अभी भी समरसता के लिए और प्रयास करने होंगे क्योंकि समाज जितना समरस होगा, उतना सशक्त होगा । इसलिए इस पर और भी कार्य करने की आवश्यकता है । इसमें राजनीती की सुचिता और ब्यूरोक्रेसी की मानसिकता को भी बदलना होगा।  
 (5) नागरिकता का पालन - नागरिकता एक विशेष सामाजिक, राजनैतिक, राष्ट्रीय या मानवी की  एक नागरिक होने की अवस्था है।
सामाजिक अनुबंध के सिद्धांत के तहत नागरिकता की अवस्था में अधिकार और उत्तरदायित्व दोनों शामिल होते हैं। सक्रिय नागरिकता" का दर्शन अर्थात् नागरिकों को सभी नागरिकों के जीवन में सुधार करने के लिए आर्थिक सहभागिता, सार्वजनिक, स्वयंसेवी कार्य और इसी प्रकार के प्रयासों के माध्यम से अपने समुदाय को बेहतर बनाने की दिशा में कार्य आता है।  इस दिशा में, कुछ देशों में स्कूल  नागरिकता शिक्षा उपलब्ध करते हैं । वर्जीनिया लिएरी (1999) के द्वारा नागरिकता को "अधिकारों के एक समुच्चय-के रूप में परिभाषित किया गया है- उनके अनुसार नागरिकता की अवस्था में प्राथमिक रूप से सामुदायिक जीवन में राजनैतिक भागीदारी, मतदान का अधिकार, समुदाय से विशेष संरक्षण प्राप्त करने का अधिकार और दायित्व शामिल हैं।
बाजारवाद ने नागरिकता को प्रभावित किया है । अमेजॉन जैसे अनेक संस्थानों द्वारा बाजार में छल करने के तौर-तरीकों ने सामान्य जीवन को प्रभावित किया है । इसी तरह संविधान, कोलेजियम व्यवस्था, कन्वर्जन जैसे मुद्दों पर जागरूकता लाकर नागरिक कर्तव्यों पर भविष्य आधारित बहस की आवश्यकता है ।
सारांश यह की जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान और जय अनुसंधान से लेकर पञ्च प्रण पर ही भारत का भविष्य टिका है । प्रकृति में हम दो प्रकार के तत्वों से घिरे हैं, एक है बहुमूल्य और दूसरा अमूल्य । बहुमूल्य शब्द अर्थशास्त्र से आता है । वे वस्तुएं जो कम हैं, उनकी कीमत अधिक है । यह आवश्यक नहीं कि वह वस्तु सबके लिए जरूरी हो । ऐसा भी नहीं कि इसके बिना काम नहीं चल सकता । लेकिन जिन्हें यह चाहिए, उनके लिए पर्याप्त नहीं है- जैसे सोना, चांदी, हीरा आदि । इसे प्राप्त करना किसी भी राष्ट्र का भौतिक विकास है क्योंकि यह सबके नागरिक अधिकार के अंतर्गत भी आता है  । दूसरा अमूल्य।  अमूल्य वह है जो प्राणिमात्र के कल्याण के लिए चाहिए, और जिसका कोई विकल्प नहीं है, जैसे हवा, पानी, आकाश । इनका कोई मूल्य नहीं है। ये अमूल्य हैं, क्योंकि इनके बिना जीवन नहीं हो सकता ।
  साहित्यकार को समय के साथ इन दोनों मूल्य और अमूल्य पर चर्चा करना चाहिए किन्तु इन दोनों से अधिक एक तीसरा भी है जो मूल्य से परे है और वह हैं मनुष्य होने का अर्थ । यह सम्पूर्ण विश्व को कोई सिखा सकता है तो केवल और केवल भारतवर्ष । इसलिए यदि भारतवर्ष  का स्वत्व, मूल्यबोध, सांस्कृतिक परम्परा, धर्म -दर्शन और  अध्यात्म का ‘ओरा’ कायम रहा तो दुनिया में ईश्वरीय सन्देश सार्थकता के साथ जीवित रहेगा । इसके लिए भारत को अपने पञ्च कोष को जागृत रखना होगा ।
नमस्कार  

प्रकृति प्रवाह 
21-22 शुभालय विलास 
बरखेडा पठानी , भोपाल 
462022
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