अच्छी खबर- उच्च शिक्षा विभाग मध्यप्रदेश शासन की राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के क्रियान्वयन में तीन साल पूरे होने पर एक अच्छी खबर। “एन सी सी को मुख्य विषय के रूप में पाठ्यक्रम में जोड़ा जाएगा । मिलेगा रोजगार। नगर सैनिक से रक्षा के सभी क्षेत्रों तक प्राप्त कर सकेंगे सेवा का अवसर।” युवा हितैषी निर्णय के लिए सरकार को साधुवाद। एन एस एस के लिए भी इसी तरह की पहल हो ताकि उसमें सभी इक्छुक विद्यार्थी विषय को पढ़ सकें।
चिंता जनक समाचार - उच्च शिक्षा विभाग मध्यप्रदेश द्वारा अग्रणी महाविद्यालयों को नया नाम "प्रधानमंत्री कॉलेज आफ एक्सीलेंस" दिया गया है। उक्त महाविद्यालयों में शिक्षकों के विभिन्न नामित पदों पर भर्ती हेतु जारी (आयुक्त स्तर से) विज्ञापन पर उच्च शिक्षा विभाग मध्यप्रदेश शिक्षक भर्ती नियम 1990 व यथा संशोधन के विरुद्ध होने से विवाद की स्थिति पैदा हो गई है।
अब यह प्रकरण माननीय उच्च न्यायालय में पहुंच गया है। माना जा रहा है कि आयुक्त के अधिकार क्षेत्र को चुनोती दी गई है? आयुक्त को इस प्रकार की भर्ती /पदस्थापना का विज्ञापन/आदेश जारी करने का अधिकार भर्ती नियम 1990 में नहीं है।
डेढ़ वर्ष पूर्व शासन स्तर से गलती -
डेढ़ वर्ष पूर्व इसी तरह की प्रक्रिया अपनाकर उच्च शिक्षा उत्कृष्टता संस्थान भोपाल में निर्देशक नियुक्त किया गया था, जिसमें एक जूनियर प्राध्यापक के अधीन आज भी वरिष्ठ प्राध्यापक कार्य कर रहे हैं, जहाँ आज भी शैक्षिक और प्रशासनिक वातावरण संस्था के अनुरूप नहीं है।
प्रकरण न्यायालय में -
यह चयन लोक सेवा आयोग द्वारा चयनित तथा पदस्थ शिक्षकों के बीच है,जो कई प्रश्न खड़ा करते हैं।
क्या लोक सेवा आयोग के चयनित सहायक प्राध्यापक/प्राध्यापक प्रधानमंत्री उत्कृष्टता संस्थान में पढ़ाने के योग्य नहीं है? यदि नहीं हैं तो वे शिक्षक जहाँ पढ़ा रहे हैं क्या विद्यार्थियों के साथ न्याय हो रहा है?
याचिकाकर्ताओं के अनुलग्नक पी-4 दिनांक 08.07.2024 के माध्यम से पीएम उत्कृष्टता महाविद्यालयों में पूर्व से लोक सेवा आयोग से चयनित प्राचार्य, प्रोफेसर और सहायक प्रोफेसरों की पदस्थापना की प्रणाली को तीन आधारों पर चुनौती दी गई है-
एक - उक्त आदेश आयुक्त द्वारा जारी किया गया है जो उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
दो - जो प्रणाली अपनाई गई है वह यूजीसी नियमों के विपरीत है।
तीन- यह राज्य द्वारा बनाए गए शैक्षणिक भर्ती नियमों के विपरीत है, जो एक निश्चित कैडर संरचना प्रदान करता है।
राज्य के सरकारी वकील ने उपरोक्त पहलुओं पर निर्देश प्राप्त करने के लिए समय मांगा और कहा कि राज्य सरकार द्वारा दिनांक 08.07.2024 के आदेश के लिए एक शुद्धिपत्र जारी किया जा रहा है और आवेदन की अंतिम तिथि भी 10.08.2024 तक बढ़ा दी गई है।
'पी एम कालेज आफ एक्सीलेंस 'में-
अब विभाग के पदस्थापना प्रक्रिया पूर्ण होने तक अतिथि विद्वान ( जिन्हें विभाग नियमित करने योग्य नहीं मानता) अथवा डेप्लॉयमेंट (अस्थाई पदस्थापना) के माध्यम से ही उन शिक्षकों से अध्यापन कराया जाएगा जिन्हें योग्य न मानते हुए प्रक्रिया अपनाई जा रही है।
क्या यह शिक्षकों का अपमान (जिन्हें अभी पूर्णिमा के दिन गुरु माना गया था) एवं महाविद्यालयों के छात्रों के साथ अन्याय नहीं होगा। संभवतः पूरा सत्र इसी खीचतान में निकल जाएगा।
उच्च शिक्षा के सभी संस्थानों में संस्कृत अनिवार्य हो- राष्ट्रीय शिक्षा नीति में ‘भारतीय ज्ञान परम्परा’ आधारित शिक्षा का समावेश किया गया है। इसके लिए आवश्यक है कि भारतीय ज्ञान परम्परा को ठीक से विद्यार्थियों के बीच लाने के लिए संस्कृत भाषा का अध्यापन कराया जाए।
यह क्रम विद्यालयीन शिक्षा से विश्वविद्यायीन शिक्षा के सभी क्षेत्रों में पहुंचे। इसके लिए उच्च शिक्षा में अध्ययन मंडलों में भारतीय ज्ञान परम्परा के जानकार विद्वानों को रखा जाये, ताकि पाठ्यसामग्री का सही चयन हो सके। भाषा नीति और अनुवाद के सम्बन्ध में शिक्षा नीति के मार्गदर्शी दिशा निर्देशों का पालान हो।
यू जी सी व्यवहारिक सलाह दे - यू जी सी जो भी सलाह जारी करे, वह देश की दूरस्थ सुदूर अंचलों की संस्थाओं को देख समझ कर जारी करे। आकाओं को प्रसन्न करने हेतु नहीं।
जरा विचार करें देश भर में साधारण महाविद्यालय, निजी महाविद्यालय, डीम्ड विश्वविद्यालय, स्टेट विश्वविद्यालय, निजी विश्वविद्यालय, केन्द्रीय विश्वविद्यालय, स्वायत्तशासी संस्थान।
सबके अपने पाठ्यक्रम, फीस ढ़ांचा, परीक्षा, पेपर सेटिंग, माडरेशन सब अलग अलग? जब एक देश,एक विधान और एक साथ चुनाव की चिन्ता है तो जो शिक्षा राष्ट्र निर्माण, व्यक्तित्व विकास की बात करती है उसमें विविधता? एक पाठ्यक्रम,एक प्रश्न पत्र,एक मूल्यांकन क्यों नहीं?
भारतीय ज्ञान परम्परा की पाठ्य सामग्री तय हो- देखा जा रहा है की भारतीय ज्ञान परम्परा में प्रयोग चल रहा है। अनाधिकृत विद्वानों से लेकर अधिकृति विद्वान् बिना उच्च शिक्षा के ढाँचे को ठीक से समझे अपनी राय ठूसते जा रहे हैं। जब की शिक्षा नीति में इसके साफ संकेत हैं।
आधार पाठ्यक्रमों के परीक्षा में प्रश्न : राष्ट्रीय शिक्षा नीति में आधार पाठ्यक्रमों में महत्वपूर्ण सामग्री रखी गई है, जिसके अध्यापन के लिए शिक्षकों की पृथक से नियुक्ति होनी चाहिए तथा परीक्षा के प्रश्नपत्रों में वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के साथ लघु और दीर्घ प्रश्न भी पूछें जाने चाहिए ताकि विद्यार्थियों के लिखने और उसके समझाने के स्तर का परीक्षक मूल्यांकन कर सके।
क्षेत्रीय भाषाओं और हिंदी भाषा में सामग्री अद्यतन हो- चिकिस्ता शिक्षा से लेकर तकनीकी तक की पाठ्य सामग्री समय-सीमा में तैयार हो। भाषा का प्रयोग तकनीकी आधार पर जटिल न हो। 2047 की प्रतीक्षा क्यों?
शिक्षा में आरक्षण- शिक्षा में आरक्षण को आय के आधार पर युक्तियुक्तिकरण हो। किसी भी आरक्षिति श्रेणी के उन्हीं छात्रों को लाभ मिले जिनकी आर्थिक स्थिति वास्तव में कम हो।
जातीगत आरक्षण के नाम पर, सम्पन्न अभिभावकों, राजनेताओं, प्रशासनिक अधिकारियों, कर्मचारियों के छात्र बार-बार लाभ लेकर बंचित को बंचित रहने को बाध्य न करें।
Umeshksingh58@gmail.com
सामयिक , तर्कसंगत , बहुत अच्छा ब्लॉग सर
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