Friday, 21 August 2020

जाग मत यह भोर देखो

 

जाग मत यह भोर देखो

 

जाग ! मत यह भोर देख, है अंधेरा आज भी

उठ ! कंटकों की राह में  छाया उंजेरा आज भी।।

 

चल पड़े जो नियत पथ नियति उनका साथ देती ।

जो घरौंधों में छिपे रोकती राह उनका आज भी ।।

 

इस अमावस रात में भी पूर्णिमा का है सहारा।

चल पथिक गन्तव्य में है भोर तारा आज भी ।।

 

काग के उत्पात से वह से रही है वंशजों को।

कोकिला के मौन में क्रांति स्वर सुन आज भी।।


यह अमावस रात भी है पूर्णिमा की साधना। 

पाल डाले लंगरों में दिख रही लौ आज भी ।।

 

ज्वार में भी लहर से निकले सदा विश्वास लेकर।

हृदय में संकल्प की एक आश थी जो आज भी ।।

 

नित्य हो आराधना बस विश्व के करतार की।

विश्वास रख पूर्ण होंगी कामना सब आज भी ।।

 

जो मिलेंगे राह में जन  बन सहारा थाम लेना।

पूर्णता संकल्प की हो बस यही एक आज भी ।।

 

भूल जाना करुण क्रंदन आत्मबल की राह लेना ।

 कौरव सदा कंटक रहेंगे युगधर्म उनका आज भी ।।

 

 जगत में हैं सर्वदा चंद्रमौलि ही एक सहारा ।

इस अकेले आश से मलमास हारा आज भी ।।

 

 अस्तित्व जिनका मिट गया था रश्मियों के जाल में ।

 कृष्णपक्षी चाँद से खिलखिला हंस रहे हैं आज भी ।।

 

अब अमावस भी थमेंगी पूर्णिमा की राह में।

गगन पथ पर हम चलेंगे पूर्णता से आज भी ।।

 

जो झुकेगा वह रुकेगा ‘बंजर’ चल तू सीना ताने ।

इस धारा में हिम्मतों की राह समतल आज भी।।  

 

राह में किंचित सवेरा दोपहर की मेजवानी ।

क्रोड़ संध्या डूबना प्रभा निशानी है आज भी  ।।

 

 

 

 

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