राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020
भाग एक – विद्यालयीन शिक्षा
इसलिए यह समझ लेना आवश्यक है की कब-कब, क्या-क्या हुआ ? स्वतंत्रता के बाद सर्वप्रथम 1948 में डॉ. राधाकृष्णन की अध्यक्षता में ‘विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग’ का गठन हुआ था। 1952 में मुदलियार आयोग, फिर शिक्षा के क्षेत्र में ‘कोठारी आयोग’ (1964-1966) आया जिसकी सिफारिशों पर आधारित 1968 में पहली बार महत्त्वपूर्ण बदलाव वाला प्रस्ताव पारित हुआ था।
1968 के बाद अगस्त, 1985
‘शिक्षा की चुनौती’ नामक एक दस्तावेज
तैयार किया गया, जिसमें भारत के विभिन्न वर्गों ( बौद्धिक, सामाजिक, राजनैतिक, व्यावसायिक, प्रशासकीय आदि) ने अपनी शिक्षा सम्बन्धी टिप्पणियाँ दीं और 1986 में भारत सरकार ने ‘नई शिक्षा नीति 1986’ का प्रारूप तैयार किया। इस नीति में सारे देश के लिए एक समान शैक्षिक
ढाँचे को स्वीकार किया गया और अधिकांश राज्यों ने 10+2+3 की संरचना को अपनाया। बाद में 1992 में इस नीति
में कुछ संशोधन किया गया था।
2014 के आम चुनाव में भारतीय
जनता पार्टी के चुनावी घोषणा-पत्र में एक ‘नवीन शिक्षा नीति’ बनाने का विषय था। अत:
सत्ता में आने के बाद केंद्र सरकार (मोदी जी की नेतृत्व वाली सरकार) द्वारा ‘राष्ट्रीय
शिक्षा नीति के निर्माण के लिए जून, 2017 में
इसरों (ISRO) प्रमुख डॉ. के.
कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया।
2019 में ‘मानव संसाधन
विकास मंत्रालय’ ने ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ के लिये जनता से सलाह माँगना प्रारम्भ
किया। और मई, 2019 में ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ का
मसौदा आया।
29,जुलाई-2020 को केंद्र सरकार ने ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020’ (National Education
Policy- 2020) को मंज़ूरी दी। ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020’ पुरानी ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीतियों, वर्ष 1968 और 1986 [National Policy of Education (NPE), 2020] के बाद स्वतंत्र भारत की यह तीसरी शिक्षा नीति बनी । जिसमे ‘मानव संसाधन
विभाग’ अब ‘शिक्षा विभाग’ में बदल गया।
आइये विद्यालयीन शिक्षा के दृष्टिपथ और संभावित
परिणामों पर विचार करने के पूर्व जरा प्रधानमंत्री जी के उद्वोधन-सार में इनको तलासें फिर आगे बढ़ें।
उद्वोधन - सार और दृष्टिपथ -‘‘ राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 सभी के परामर्श से तैयार की गई है। यह कोई सर्कुलर नहीं बल्कि महायज्ञ है। जो नए देश की नींव रखेगा और एक नई सदी तैयार करेगा। अब पढ़ाई ही नहीं बर्किंग कल्चर को डेवलेप किया जागेया। हमें अपने विद्यार्थियों को ग्लोबल सिटीजन बनाना है लेकिन वे अपनी जड़ों से भी जुड़े रहें।
स्कूली बच्चों के घर की बोली और स्कूल की सीखने
की भाषा एक ही होनी चाहिए। इसमें पाँचवी तक के बच्चों को सहायता मिलेगी। जहां तक संभव हो कम से कम ग्रेड-5 तक शिक्षा का
माध्यम घर की भाषा, मातृभाषा, स्थानीय भाषा या क्षेत्रीय भाषा होगी। इसके बाद स्थानीय भाषा को जहां तक
संभव हो भाषा के रूप में पढ़ाया जाता रहेगा। सार्वजनिक एवं निजी स्कूल इसका
अनुपालन करेंगे। किसी राज्य पर कोई भाषा थोपी नहीं जाएगी।
प्री-प्राइमरी से इंटर तक 100 फीसदी नामांकन होगा । आरम्भिक बाल्यावस्था देखभाल
यानी तीन वर्ष की आयु से लेकर उच्चतर माध्यमिक शिक्षा अर्थात ग्रेड-12 तक शिक्षा नि:शुल्क एवं अनिवार्य होगी। भारत में आज टैलेंट-टेक्नोलॉजी की
वजह से गरीब व्यक्ति को बढऩे का मौका मिल सकता है। शिक्षा
में आटोनामी चाहिए। शिक्षा नीति के जरिए देश को अच्छे छात्र, नागरिक देने का माध्यम बनना चाहिए। इसके साथ ही नए शिक्षक तैयार किए
जायेगे।’’
नीति लागू करने में आने वाली दिक्कतें और कुछ
प्रश्र-
1. क्या स्वतंत्र भारत की यह तीसरी ‘राष्ट्रीय
शिक्षा नीति-2020’ नई सदी की चुनौतियों का सामना करने में सक्षम होगी ? 2. हर शिक्षा नीति अपने विजन और आकांक्षाओं
में अच्छी ही थी, लेकिन उसके धरातल पर उतरने में जमीन
आसमान का फर्क रहा है। 3. क्या यह शिक्षानीति भी समूचे
समाज की आकांक्षाओं, आग्रहों और सोच को संतुष्ट कर पाएगी, क्योंकि व्यावहारिक जरूरतें कुछ और हैं और शिक्षा नीति अपने ढंग से चीजों
को देखती है। 4. शिक्षा नीति का महत्त्वपूर्ण बिन्दु प्राथमिक स्तर पर भारतीय भाषाओं
में शिक्षा देना है। किन्तु बीते दशक में जिस तरह से शिक्षा में निजीकरण और अर्थ
व्यवस्था के कारपोरेटरीकरण ने भारतीय भाषाओं की शिक्षा के आग्रह को अंगरेजी शिक्षा
की जरूरत और जुनून ने
लगभग दफन किया है, वह इसमें सबसे बड़ी बाधा है।
अल्पसंख्यक विद्यालयों में मदरसों को छोड़कर क्या अन्य अल्पसंख्यकों के विद्यालयों
में बहुसंख्यक विधार्थियों के प्रवेश पर कोई रोक या नियम बनेगें इसमें कही नहीं है।
फिर मातृभाषा का क्या होगा। 5. त्रिभाषा फार्मला का
क्या होगा ? तामिलनाडु इसके लिये तैयार नहीं। वह दो ही
भाषा अंग्रेजी और तमिल पढ़ाना चाहता है। ऐसे ही कुछ और
राज्यों की ओर से विषय आयेंगे। 6. छठी के पूर्व बच्चे
को क्रियेटिव बनाया जायेगा तथा कक्षा छह के बाद वोकेशनल। क्या यह सम्भव है और छठे
कक्षा के विद्यार्थी को क्या यह बौद्धिक सामर्थ्य रहेगा ?
क्या ग्रामीण विद्यालयों के कक्षा छह के विद्यार्थियों को अपरेंटिस के लिए संसाथान और उद्योगिक संस्थाएं हैं ? क्या प्रत्येक विद्यालयों में सभी मनचाहे विषय को पढ़ने
वाले शिक्षक होंगे । 9. प्रायवेट और शासकीय विद्यालयों
के विद्यार्थियों की अमीर -गरीब की खाई कैसे खत्म होगी? 10. निजीकरण के इस दौर में माता-पिता बच्चे को मातृभाषा में पढ़ाने को क्या तैयार
होंगे ?
प्रश्नों के समाधान तथा अपेक्षित परिणामों हेतु
नीतियाँ -
1. ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020’ में शिक्षा अंतिम छात्र तक पहुँचे, यह समानता
और गुणवत्ता वाली शिक्षा सभी के लिए सुलभ हो और उत्तरदायित्व का विकास करे । इसके लिए प्राथमिक शिक्षा को हमें दो स्तरों में विभाजन कर
देखना होगा -
(क). 3 वर्ष से 6 वर्ष की आयु के बच्चों के लिये आँगनवाड़ी / बालवाटिका/प्री-स्कूल (Pre-School) के माध्यम से मुफ्त, सुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण ‘प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा’ (Early
Childhood Care and Education-ECCE) की उपलब्धता सुनिश्चित होगी
।
(ख). स्कूलों में अब-तक जहाँ पढ़ाई कक्षा एक से शुरू होती थी. वहीं अब तीन साल के
प्री-प्राइमरी के बाद कक्षा 3 से 5 के तीन साल शामिल हैं। फिर कक्षा 6 से 8 तक की कक्षा। चौथी श्रेणी (कक्षा 9 से 12वीं तक का) 4 साल का होगी । पहले जहाँ 11वीं कक्षा से विषय चुने जाते थे, अब 9वीं से चुन सकेंगे ।
(ग). कक्षा-6 से
ही शैक्षिक पाठ्यक्रम में व्यावसायिक शिक्षा को शामिल कर दिया जाएगा और इसमें
इंटर्नशिप (Internship) की व्यवस्था भी दी जाएगी। साथ
ही मातृभाषा को कक्षा-8 और आगे की शिक्षा के लिये
प्राथमिकता देने का सुझाव दिया गया है।
(घ). महत्वपूर्ण परिवर्तन यह है की अब
पांचवी तक के शिक्षण का माध्यम मातृभाषा, स्थानीय भाषा अथवा
क्षेत्रीय भाषा होगी ।
2. अब इस महत्वपूर्ण लक्ष्य
की प्राप्ति हेतु करना क्या है - 1. वर्ष 2025 तक
प्राथमिक विद्यालयों में कक्षा-3 तक के सभी बच्चों में ‘बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान पर एक राष्ट्रीय मिशन’ (National
Mission on Foundational Literacy and Numeracy)) की स्थापना अपेक्षित
है।
‘राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और
प्रशिक्षण परिषद’ (National Council of Educational Research and
Training- NCERT) द्वारा ‘स्कूली
शिक्षा के लिये ‘राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा’ [National Curricular
Framework for School Education, (NCFSE) तैयार की जाएगी।
जिसमे छात्रों में 21वीं सदी के कौशल के विकास हेतु अनुभव आधारित शिक्षण के साथ तार्किक चिंतन को प्रोत्साहन और पाठ्यक्रम के
बोझ को कम करते हुए कला, विज्ञान, व्यावसायिक तथा
शैक्षणिक विषयों एवं पाठ्यक्रम व पाठ्येतर गतिविधियों के बीच समन्वय रहेगा। ‘एडल्ट
लर्निंग’ में ‘क्वालिटी और टेक्नोलॉजी बेस्ड ऑप्शंस’ को शामिल किया जाएगा। जैसे
नये ऐप्स का निर्माण, ऑनलाइन कोर्सेस अथवा मॉड्यूल्स, सैटेलाइट आधारित टीवी चैनल्स, ऑनलाइन किताबें, ऑनलाइन लाइब्रेरी, एडल्ट एजुकेशन सेंटर्स आदि
को डेवलेप किया जाएगा। त्रि-भाषा फार्मूला रहेगा। संस्कृत और अन्य प्राचीन भारतीय
भाषाओं का विकल्प भी होगा परंतु विद्यार्थिओं पर कोई भी भाषा थोपी नहीं जाएगी ।
तीन से आठ साल की उम्र तक न परीक्षा होगी, ना कोई पाठ्यक्रम होगा, ना किताब होगी,तो क्या होगा? नीति में कहा गया है कि पहले और दूसरे कक्षा में भाषा और गणित तथा चौथे और पांचवीं कक्षा में विद्यार्थियों को लेखन कराया जायेगा।
अब उन्हें यह सब केवल खेल-खेल में सिखाया जाएगा। छात्रों की प्रगति के मूल्यांकन के लिये
मानक-निर्धारक निकाय के रूप में ‘परख’ (PARAKH) नामक एक नए ‘राष्ट्रीय आकलन केंद्र’ (National
Assessment Centre) की स्थापना की जाएगी। छात्रों की प्रगति के
स्वमूल्यांकन तथा अपने भविष्य से जुड़े निर्णय लेने में सहायता के लिये ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ (Artificial Intelligence-AI) आधारित सॉफ्टवेयर का प्रयोग किया जाएगा।
‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ के तहत कक्षा तीन, पांच एवं आठ में भी परीक्षाएं होगीं। वहीँ 10वीं
एवं 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं को साल में दो बार आयोजित
करवाना या फिर इन परीक्षाओं को दो भागों में बांटकर ‘वस्तुनिष्ठ और ब्याख्यात्मक’
करवाने का सुझाव है। परीक्षाओं में ध्यान विद्यार्थियों
के ज्ञान-परीक्षण पर होगा। इससे विद्यार्थियों में रटने की प्रवृति ख़त्म होगी और योग्यता
और वास्तविक क्षमता का परीक्षण किया जायेगा। साथ ही अधिक अंक लाने का दबाव कम होगा
और भविष्य में अभिभावक भी कोचिंग के चक्कर से मुक्ति पा सकेंगें।
एन.आई.ओ.एस. द्वारा ‘सेकेंडरी एजुकेशन
प्रोग्राम्स’ जो ग्रेड 10 और 12 के समकक्ष होंगे, ‘वोकेशनल एजुकेशनल कोर्सेस’ ‘एडल्ट
लिट्रेसी’ और ‘लाइफ इनरिचमेंट प्रोग्राम्स’ भी ऑफर किए जाएंगे। एन.सी.ई.आर.टी. एक 'नेशनल क्यूरीकुलर एंड पैडेगॉजिकल फ्रेमवर्क फॉर अर्ली चाइल्डहुड केयर एंड
एजुकेशन ' (NCPFECCE) बनायेगा जो आठ साल तक के
बच्चों के लिए होगा । क्लास 6 से बच्चों को क्लास
में कोडिंग भी सिखायी जाएगी । अब विद्यालयों में स्थानीय ज्ञान और लोक विद्या जैसी
जानकारियों के लिए स्थानीय पेशेवरों को अनुबंध पर लिया जा सकता है। म्यूजिक़ और
आर्ट्स को पाठयक्रम में शामिल कर बढ़ावा दिया जायेगा। ई-पाठ्यक्रम
को बढ़ावा देने के लिए एक राष्ट्रीय शैक्षिक टेक्नोलॉजी फोरम (NTTF) बनाया जा रहा है जिसके लिए वर्चुअल लैब विकसित की जा रहीं हैं।
‘फंडामेंटल लिट्रेसी और न्यूमरेसी’ पर ‘मिनिस्ट्री
ऑफ ह्यूमन रिर्सोस डेवलेपमेंट’ द्वारा ‘नेशनल मिशन’ तैयार किया जाएगा। जिसमें स्टूडेंट्स
की हेल्थ (शारीरिक और मानसिक ) और न्यूट्रीशन का भी पूरा ख्याल रखा जाएगा, इसके लिए भोजन की ‘पौष्टिक खुराक’ और ‘नियमित स्वास्थ्य परीक्षण’ की
व्यवस्था रहेंगीं । विद्यार्थियों को ‘हेल्थ कार्ड’ दिया जायेगा जिससे सेहत की ‘मॉनीटरिंग’
की जा सके। 'अर्ली चाइल्डहुड केयर एंड एजुकेशन
क्यूरीकुलम ' (ECCEC) की प्लानिंग और
इम्प्लीमेनटेशन, एच.आर.डी. मिनिस्ट्री, वुमेन एंड चाइल्ड डेवलेपमेंट, हेल्थ एंड फैमिली
वेलफेयर और ट्राइबल अफेयर्स मिलकर करेंगे।
हर स्कूल में छात्र – शिक्षक अनुपात दो प्रकार से होगा। संपन्न
क्षेत्रों में 30:1 और सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित
क्षेत्रों के विद्यालयों में छात्र –शिक्षक अनुपात 25:1 रहेगा ।
शिक्षा नीति में वर्ष 2022 तक ‘नेशनल
काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन’(NCTE) को टीचर्स के लिए
एक समान मानक तैयार करने को कहा गया है। ये पैरामीटर ‘नेशनल प्रोफेशनल स्टैंडर्ड
फॉर टीचर्स’ कहलाएंगे। यह कार्य जनरल एजुकेशन काउंसिल के निर्देशन में पूरा करेगी।
भारत में B.Ed डिग्री कोर्स के
लिए नए पैरामीटर्स होंगे। वर्ष 2030 तक सभी
बहुआयामी कालेजों और विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के पठन-पाठन के पाठ्यक्रमों को
संस्थानों के अनुरूप अपग्रेड करना होगा। साल 2030 तक शिक्षकों के लिए न्यूनतम डिग्री बी.एड. होगी, इसकी अवधि चार साल हो जाएगी। साथ ही बी.एड. की दो साल की डिग्री उन
ग्रेजुएट छात्रों को मिलेगी जिन्होंने किसी खास विषय में चार साल की पढ़ाई की हो।
चार साल की ग्रेजुएट की पढ़ाई के साथ स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त करने वाले
छात्रों को बी.एड. की डिग्री एक साल में ही प्राप्त हो जाएगी।
शिक्षा शास्त्र की सभी विधियों को शामिल करते
हुए नए बी.एड. कोर्स का सिलेबस तैयार किया जायेगा। इसमें साक्षरता, संख्यात्मक ज्ञान, बहुस्तरीय अध्यापन और
मूल्यांकन को विशेष रूप से सिखाया जाएगा। इसके अलावा ‘टीचिंग मेथड’ में टेक्नोलॉजी
को खास तौर पर जोड़ा जाएगा।
अयोग्य शिक्षक हटाए जाएंगे, स्तरहीन स्कूल बंद किए जाएंगे। पूरे भारत में देश में एक जैसे शिक्षक और
एक जैसी शिक्षा को आधार बनाकर इस समिति की सिफारिशों को लागू किया गया है।
सारांश यह कि, हर स्टेज पर ‘एक्सपीरियेंशियल लर्निंग’ को शामिल किया जाएगा। यानी केवल किताबों से पढऩे के बजाय उसे करके सीखना या ‘कनवेंशनल मैथड्स’ को छोडक़र दूसरे तरीकों से पढ़ाना। जैसे स्टोरी टेलिंग, स्पोर्ट्स के माध्यम से सीखना, आर्ट्स को शामिल करना आदि। ‘टिपिकल क्लासेस कंडक्ट’ करने के बजाय स्टूडेंट की कम्पीटेन्सी बढ़ाने वाले तरीके प्रयोग किए जाएंगे। टीचिंग और लर्निंग को ज्यादा इंटरैक्टिव बनाने और कोर्स कंटेंट में 'की – कांसेप्ट्स, आइडियाज', 'एप्लीकेशंस और प्रॉब्लम सॉल्विंग एटीट्यूड ' पर अधिक फोकस किया जाएगा। साथ ही क्यूरिकुलम के कंटेंट को ऐसे कम किया जाएगा जिससे सब्जेक्ट के कोर पर किसी प्रकार का कोई प्रभाव न पड़े और उसमें ‘क्रिटिकल थिंकिंग’ को भी शामिल किया जा सके तथा इंक्वायरी, डिस्कवरी, डिस्कशन एवं एनालिसेस बेस्ड लर्निंग को बढ़ावा दिया जा सके।
स्टडेंट्स को ‘360 डिग्री होलिस्टिक रिपोर्ट कार्ड’ दिया जाएगा। इस रिपोर्ट कार्ड का मतलब है
कि सब्जेक्ट्स में मार्क्स के साथ ही स्टूडेंट की दूसरी स्किल्स और मजबूत बिंदुओं
को रिपोर्ट कार्ड में जगह दी जाए। कुल मिलाकर नया रिपोर्ट कार्ड सिर्फ पढ़ाई पर
केंद्रित नहीं होगा। एजुकेशन मिनिस्ट्री, 'नेशनल कमेटी फॉर द
इंटीग्रेशन ऑफ वोकेशनल एजुकेशन ' (NCIVE) का
निर्माण करेगी ताकि भारत में जरूरी ‘वोकेशनल नॉलेज’ को ज्यादा से ज्यादा विद्यार्थियों
तक पहुंचाया जा सके। इसे ‘लोक विद्या’ नाम दिया गया है।
वर्तमान समय में ऑनलाइन एजुकेशन
और बढ़ते हुए ई-कंटेंट की लोकप्रियता और उपयोगिता को देखते हुए अब ई-कंटेंट केवल
हिंदी और इंग्लिश भाषा में नहीं बल्कि क्षेत्रीय भाषाओं में भी उपलब्ध कराया
जाएगा। ई-कंटेंट को फिलहाल 8 मुख्य क्षेत्रीय और
सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में उपलब्ध कराने पर विचार किया जा रहा है।
परिणामत: इस नीति से शिक्षा में बड़ा बदलाव आने वाला है।
इसमें व्यावसायिक शिक्षा और कौशल विकास पर ज़ोर दिया गया है, जिससे विद्यार्थी पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर होंगे। प्रत्येक विद्यार्थी को
नौकरी व स्वरोजगार के लिए पूर्ण प्रशिक्षण देने का भी प्रावधान है। इससे आने वाले
समय में देश से बेरोजग़ारी खत्म होगी।
ईसीसीई
शिक्षकों का शुरुआती कैडर तैयार करने के लिए आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों और शिक्षकों
को एनसीईआरटी द्वारा विकसित पाठ्यक्रम के अनुसार प्रशिक्षण दिया जाएगा।
शिक्षा पर जी.डी.पी. का छह फीसदी खर्च करने का
लक्ष्य है अत: कोई आर्थिक कठिनाई नहीं होंगी।
फिर भी, यह बात सत्य है कि समवर्ती सूची का विषय होने से कुछ कठिनाइयाँ आयेगी । सरकार ने नीति बना दी किन्तु यदि यह कक्षा-कक्ष तक नहीं पहुंची तो इस नीति का हश्र भी 1968 और 1986 की नितियों जैसा होगा।
सरकारें भी शिक्षकों की भूमिका और उनकी योग्यता को जानती हैं, इसीलिए शिक्षकों को अपनी भूमिका अन्य सरकारी नौकरियों से अलग समझना होगा।
क्योंकि शिक्षा में अयोग्य शिक्षकों को निकालने
का विषय कितना व्यवहारिक होगा अभी प्रश्र के घेरे में है। शासकीय संस्थान
यदि ऐसा करेंगे तो वे कोर्ट कचेहरी में घिरेंगे। साथ ही यदि स्कूल बन्द किये जाते
है तो सरकारों को राजनैतिक विरोध का सामना करना होगा। अत: इन सुझावों को लागू होने
में प्रयास केंद्र और राज्य दोनों तरफ से होनी चाहिए।
किन्तु इस शिक्षा नीति में अनेकों ऐसे सकारात्मक सुझाव हैं जो भारत को शिक्षा के क्षेत्र में नए मानक स्थापित करने में मदद करेंगे। यह शिक्षा नीति स्कूली शिक्षा के अधिकार, स्कूलों के समवर्ती विकास, छात्रों के सम्पूर्ण विकास पर जोर देती है ।
कुल मिलाकर राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020
का स्वागत ज्यादा और विरोध आंशिक है। कुछ शंकाएँ रहेंगीं जिनका समाधान समय के साथ ही हो सकता है।
प्रो उमेश कुमार सिंह
Umeshksingh58@gmail.com
अच्छा विश्लेषण सर जी
ReplyDeleteबहुत सुचिन्तित आलेख ! सारगर्भित विचारों का समीक्षात्मक प्रस्तुतीकरण ! अवश्य पठनीय
ReplyDeleteIt is analytical article on the new education policy in which Prof Umesh Singh not explained the historical development of education policy since independence but also examined and investigated the questions which are running in mind of academicians of different ideological groups and provided the relevant and appropriate solution.It a readable article. Congratulations sir you have good command on the literary as well as social and cultural issues
ReplyDeleteसभी पहलुओं पर विश्लेषणात्मक व तार्किक तथ्यों सहित शानदार लेख👍😊
ReplyDeleteआदरणीय भैया जी सादर अभिनंदन, जैसा कि आप ने नई शिक्षा नीति 2020 का बहुत ही सुंदर तरीके व सरल भाषा मे स्कूलों के समवर्ती विकाश के साथ छात्रों के सम्पूर्ण विकाश पर कार्य करने वाली इस शिक्षा नीति का विश्लेषण किये है यह हम सबके लिए प्रेरणादायी है।
ReplyDelete