सत्ता @ युवा
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आपके पास कान मोहतरमा
वाणी हमारे कहाँ मोहतरमा।
आपका पक्का मकान है मगर
हम गुदड़ी के लाल मोहतरमा !
कान सदियों खुले रक्खे होंगे
दर्द ही बेजुबान है मोहतरमा।।
कुबेर के ख़ज़ाना होंगे उधर
हम तो एहतराम हैं मोहतरमा !
वक्त ने टेढी की यह कमर
सजदे में नहीं हैं मोहतरमा !
अब हम जानकर हीं मानेंगे
ये तीर क्यों छूटे हैं मोहतरमा ?
02/08/20
#उमेश
व्यंजना गहरी है।
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteशानदार जी👍👍
सच्चाई है
ReplyDeleteजय हो। जय हो।
ReplyDeleteReally a heart provoking poem. Felt elevated after reading it. Hope more such poems will flow from your pen. Congratulations
ReplyDeleteउमेश जी की जय हो |
ReplyDeleteअच्छाहै
ReplyDeleteBadhaai wah kya khoob kaha
ReplyDelete👌👌👌👏👏👏👏👏👏👏
ReplyDeleteहम गुदड़ी के लाल मोहतरमा - बहुत खूब बातों के तीर बढ़िया है
ReplyDeleteअति सुन्दर । गहराई है शब्दों में ।
ReplyDeleteअभिषेक शुक्ल ।
Awesome poem sir. A good comment. Excellent
ReplyDeleteकान सदियों खुले रक्खे होंगे
ReplyDeleteदर्द ही बेजुबान है मोहतरमा।।
मुकम्मल शेर। वाह।
सुंदर अभिव्यक्ति है।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteगहरा व्यंग्य है ...
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