Sunday, 2 August 2020

सत्ता@ युवा

सत्ता @ युवा
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आपके पास कान मोहतरमा
 वाणी हमारे कहाँ मोहतरमा।

आपका पक्का मकान है मगर
हम गुदड़ी के लाल मोहतरमा !

कान सदियों खुले रक्खे होंगे
दर्द ही बेजुबान है मोहतरमा।।

कुबेर के ख़ज़ाना होंगे उधर 
हम तो एहतराम हैं मोहतरमा !

वक्त ने टेढी की यह कमर
सजदे में नहीं हैं मोहतरमा !

अब हम  जानकर हीं मानेंगे 
ये तीर क्यों छूटे हैं मोहतरमा ?

02/08/20

#उमेश

16 comments:

  1. वाह
    शानदार जी👍👍

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  2. Really a heart provoking poem. Felt elevated after reading it. Hope more such poems will flow from your pen. Congratulations

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  3. उमेश जी की जय हो |

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  4. 👌👌👌👏👏👏👏👏👏👏

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  5. हम गुदड़ी के लाल मोहतरमा - बहुत खूब बातों के तीर बढ़िया है

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  6. अति सुन्दर । गहराई है शब्दों में ।
    अभिषेक शुक्ल ।

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  7. Awesome poem sir. A good comment. Excellent

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  8. कान सदियों खुले रक्खे होंगे
    दर्द ही बेजुबान है मोहतरमा।।
    मुकम्मल शेर। वाह।

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