अटल बिहारी
बाजपेई
1. उजियारे
में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
कुछ कांटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
(दो)
कदम मिलाकर चलना होगा
बाधाएँ
आती हैं आएँ
घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,
निज हाथों में हँसते-हँसते,
आग लगाकर जलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
हास्य-रूदन में, तूफ़ानों
में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों
में,
अपमानों में, सम्मानों
में,
उन्नत मस्तक, उभरा
सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
उजियारे में, अंधकार
में,
कल कहार में, बीच धार
में,
घोर घृणा में, पूत
प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ
हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल
समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढ़लना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
कुछ काँटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना
होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
किसी अनजान रचनाकार की
आत्मनिर्भर
जीवन
की चपला वेला में, तू बन कर दिखा आत्मनिर्भर।
मद
मस्त हाथियों का मेला, बुद्धि विवेक का प्रयोग कर।
समय, आश्चर्य परीक्षा ये; तत्पर सदा, आत्ममंथन कर।
विश्वास
मेरा तेरे आगे, इस आलस्य का दमन कर।
प्रारंभ
तेरा तेरे द्वारा; पूर्णता स्वयं तेरे पीछे।
आत्मनिर्भर
है यदि तू, कठिनाई तेरी कांटे फीके।
तेरा
भविष्य तेरे आगे, लिख उसे स्वयं की कलम से।
दूजो
के जो हाथ पकड़े, हाथ उनके कबके छूटें।
आत्मनिर्भर
तू रे बन तो, देश तेरा आत्मनिर्भर।
आत्मनिर्भर
यदि देश तेरा, तो भविष्य क्या रे सुंदर।
विश्वगुरु
ये फिर बनेगा, बस तू बन कुछ आत्मनिर्भर।
वाणी
यही अंतिम हो मेरी, ये देश मेरा, सत्य, आत्मनिर्भर।
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