Wednesday, 12 August 2020

 

इनमें से चुनी जा सकती हैं 

(एक) 

कहो नहीं करके दिखलाओ / श्रीकृष्ण सरल

कहो नहीं करके दिखलाओ

उपदेशों से काम न होगा

जो उपदिष्ट वही अपनाओ
कहो नहीं, करके दिखलाओ।

अंधकार है! अंधकार है!
क्या होगा कहते रहने से,
दूर न होगा अंधकार वह
निष्क्रिय रहने से सहने से
अंधकार यदि दूर भगाना
कहो नहीं, तुम दीप जलाओ
कहो नहीं, करके दिखलाओ।

यह लोकोक्ति सुनी ही होगी
स्वर्ग देखने, मरना होगा
बात तभी मानी जाएगी
स्वयं आचरण करना होगा
पहले सीखो सबक स्वयं
फिर और किसी को सबक सिखाओ।
कहो नहीं, करके दिखलाओ।

कर्म, कर्म के लिए प्रेरणा
होते हैं उपदेश निरर्थक
साधु वृत्ति से मन को माँजो
साधु वेश परिवेश निरर्थक।
दुनिया भली बनेगी पीछे
पहले खुद को भला बनाओ।
कहो नहीं, करके दिखलाओ।।

कथनी है वाचाल कहाती
करनी रहती सदा मौन है,
मौन स्वयं अभिव्यक्ति सबल है
इसे जानता नहीं कौन है।
नहीं सहारा लो कथनी का,
करनी से ही सब समझाओ।
कहो नहीं, करके दिखलाओ।।

 

 (दो) 

 

 मत ठहरो तुमको चलन ही है  / श्रीकृष्ण सरल

 

मत ठहरो, तुमको चलना ही चलना है

चलने के प्रण से तुम्हें नहीं टलना है

मत ठहरो, तुमको चलना ही चलना है।


केवल गति ही जीवन विश्रान्ति पतन है,

तुम ठहरे, तो समझो ठहरा जीवन है।

जब चलने का व्रत लिया ठहरना कैसा?

अपने हित सुख की खोज, बड़ी छलना है

मत ठहरो, तुमको चलना ही चलना है।

 

तुम चलो, ज़माना अपने साथ चलाओ,

जो पिछड़ गए हैं आगे उन्हें बढ़ाओ

तुमको प्रतीक बनना है विश्व-प्रगति का

तुमको जन हित के साँंचे में ढलना है

मत ठहरो, तुमको चलना ही चलना है।

 

बाधाएँ, असफलताएँ तो आती हैं

दृढ़ निश्चय लख, वे स्वयं चली जाती हैं

जितने भी रोड़े मिलें, उन्हें ठुकराओ

पथ के कांटो को पैंरो से दलना है

मत ठहरो, तुमको चलना ही चलना है।

 

जो कुछ करना है, उठो ! करो! जुट जाओ !

जीवन का कोई क्षण़, मत व्यर्थ गँवाओ

कर लिया काम, भज लिया राम, यह सच है-

अवसर खोकर तो सदा हाथ मलना है

मत ठहरो, तुमको चलना ही चलना है।

 

(तीन ) 

 

 जब तक बढे न पाँव / मुकुट बिहारी सरोज

 

जब तक कसी न कमर, तभी तक कठि‍नाई है
वरना, काम कौनसा है, जो कि‍या न जाए ।

जि‍सने चाहा पी डाले सागर के सागर
जि‍सने चाहा घर बुलवाए चाँद-सि‍तारे
कहने वाले तो कहते हैं बात यहाँ तक
मौत मर गई थी जीवन के डर के मारे ।

तुम चाहो सब हो जाए, बैठे ही बैठे
सो तो सम्‍भव नहीं भले कुछ शर्त लगा दो
बि‍ना बहे पाई हो जि‍सने पार आज तक
एक आदमी भी कोई ऐसा बता दो ।

जब तक खुले न पाल, तभी तक गहराई है
वरना, वे मौसम क्‍या, जि‍नमें जि‍या न जाए ।
जब तक बढ़े न पाँव, तभी तक ऊँचाई है
वरना, शि‍खर कौन सा है, जो छिया न जाए

 

 

 

 

 

 

(चार) 

 तीर पर कैसे रुकूँ मैं, आज लहरों में निमंत्रण!/ हरिवंश राय बच्चन

 तीर पर कैसे रुकूँ मैं, आज लहरों में निमंत्रण!
रात का अंतिम प्रहर है, झिलमिलाते हैं सितारे,
वक्ष पर युग बाहु बाँधे, मैं खड़ा सागर किनारे
है प्रतिच्छायित जहाँ पर, सिंधु का हिल्लोल - कंपन!
तीर पर कैसे रुकूँ मैं,आज लहरों में निमंत्रण!

आज अपने स्वप्न को मैं, सच बनाना चाहता हूँ,
दूर की इस कल्पना के, पास जाना चाहता हूँ,
चाहता हूँ तैर जाना, सामने अंबुधि पड़ा जो,
कुछ विभा उस पार की, इस पार लाना चाहता हूँ,
स्वर्ग के भी स्वप्न भू पर, देख उनसे दूर ही था,
किन्तु पाऊँगा नहीं कर आज अपने पर नियंत्रण।
तीर पर कैसे रुकूँ मैं, आज लहरों में निमंत्रण,
तीर पर कैसे रुकूँ मैं, आज लहरों में निमंत्रण!

 

  (पांच ) 

 

खुद सागर बन जाओ / बाल कवि बैरागी

 

नदियाँ होतीं मीठी-मीठी
सागर होता खारा,
मैंने पूछ लिया सागर से
यह कैसा व्यवहार तुम्हारा?
सागर बोला, सिर मत खाओ
पहले खुद सागर बन जाओ!

 

   (छह ) 

बाल कवि बैरागी

शाम ढले पंछी घर आते,
अपने बच्चों को समझाते।
अगर नापना हो आकाश,
पंखों पर करना विश्वास।
साथ न देंगे पंख पराए,
बच्चों को अब क्या समझाए?

 

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