लोकतंत्र सेनानी और संविदा सेनानी
गत वर्ष लोकतंत्र सेनानी पर लिखते हुए अपेक्षित था कि सेनानियों के सम्मान की परम्परा धीरे-धीरे खत्म हो।
एक गीत उन सेनानियों को छोड़ दें जो समाजवादी पृष्ठभूमि से थे अथवा अन्य कारणों से भी उस कठिन काल में कारागार में पंजीबद्ध हो गये थे, ( जिनका न तो सत्याग्रह से सम्बध था न अन्य से) को छोड़कर सभी ने यह गीत अवश्य गाया होगा- "तेरा वैभव अमर रहे मां हम दिन चार रहे न रहे।" और इस गीत को तो सभी देशवासियों ने सुना और गुनगुनाया होगा, "मुझे तोड़ लेना वनमाली ...."
खैर, आपातकाल भारतीय लोकतंत्र की एक ऐसी भयावह घटना थी इसको आज सभी स्वीकार करते हैं। कुछ लोग उसे राजनीतिक भूल कहते हैं तो कुछ लोग भूचाल।
आज समाचार पढ़ा, लोकतंत्र सेनानियों का शासन के अधिकारियों ने स्वतंत्रता दिवस पर घर -घर जाकर स्वागत किया।
गांधी जयंती में इस साल सरकार बदली थी, सो उस समय सम्मान नहीं हुआ। "बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा" कहूं तो थोड़ा अप्रिय लगेगा क्योंकि एक पक्ष इसे जनता की इच्छा मानता है तो दूसरा पक्ष लोकतंत्र की हत्या।
स्वाभाविक है इस सत्ता पलट को लोकतंत्र की हत्या मानने वाले मीसाबंदियों को लोकतंत्र सेनानी कैसे मानेंगे?
मानधन भी मिल गया होगा नहीं तो मिल ही जायेगा। वैसे तो ऐसे सेनानी जिनको सरकार पेंशन दे रही है, या जिनके पास जिन्दिगी निर्वहन के लिए आर्थिक साधन हैं, उन्हें कोरोना काल में इसे लेने से मना कर देना चाहिए, अथवा सरकार को ही आगे आकर शासकीय सेवकों के वार्षिक वेतन वृद्धि की तरह छाया देय कर देना चाहिए।
वैसे भी 42-45 साल में अब वे तो काल के गाल में चले ही गये हैं जो उस समय लगभग 35-40 के ऊपर के थे। शेष संख्या अब आर्थिक रूप से सफल हो ही गई होगी।
विचार करें, आज कोरोना काल के वैरियरों को क्या हम सेनानी नहीं कह सकते?
परंतु इसकी बारीकी पर भी विचार करने का अवसर आ गया है। कोरोना से जो लड़ रहे हैं उनमें दो प्रकार के लोग हैं, एक-शासकीय नियमित अधिकारी/कर्मचारी। दूसरे स्वास्थ्य विभाग के संविदा चिकित्सक, नर्स, फार्मासिस्ट, लैब टेक्नीशियन,एनम,प्रबंधन इकाइयां, आपरेटर, आयुष,एंडर्स, टी बी परियोजना के जिला स्तर तक कार्यरत कर्मचारी।
जिन्हें फिक्स वेतन मिल रहा है लेकिन मरीज चिन्हित करने से दबाई पिलाने तक घर -घर जाकर नियमित कर्मचारियों से आगे कार्य करना पड़ रहा है ।
विचारणीय यह है कि मध्य प्रदेश में लगभग 19000 ऐसे कर्मचारियों को शासन के निर्णय के वाबजूद 90 प्रतिशत नियमित के समकक्ष (शासन के निर्देश के बाद भी ) वेतन नहीं मिल रहा।
पांच कर्मचारियों की मृत्यु हो गई किंतु विभाग ने न तो नियमित कर्मचारियों की भांति आर्थिक सहायता की, न ही परिवार के रोजगार की व्यवस्था।
विचार करें क्या कोरोना से लोगों को सुरक्षा देते स्वास्थ्य विभाग के इन संविदा कर्मचारियों का समर्पण लोकतंत्र सेनानियों के जेलबंदी से अधिक महत्वपूर्ण नहीं है? क्या इनको आरक्षित सुरक्षित श्रेणी में नहीं लाना चाहिए?
प्रसंग आया तो इसकी भी बात कर ही ली जाये। आज दबी जुबान में ही सही आरक्षण के पुनर्विचार की बात चल रही है। अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग के आरक्षण ने अन्दर ही अन्दर हिन्दू समाज में गहरी खाई खड़ी कर दी है।
जहां अनारक्षित वर्ग का गरीब तपका परिवार चलाने को दर-दर भटक रहा है। बेरोजगारी का आलम यह है कि "विभुक्षिति:किम न करोति पापम्' की तरह इस अनारक्षित वर्ग के युवा आज क्राइम की दुनिया में प्रवेश कर रहे हैं, ओर मेधा भी कुंठित हो रही है। तो दूसरी ओर आरक्षित वर्ग सम्पन्न और प्रतिष्ठित तपका अपने ही वर्ग को आगे नहीं आने दे रहा है।
इसी पिछड़ा वर्ग के 27% आरक्षण के चलते म प्र लोक सेवा आयोग का प्री परीक्षा परिणाम रुका है। सरकार चाहे तो निर्णय आने तक की स्थिति में सीटों की तुलना में ज्यादा प्रतिशत बच्चों को प्री में परिणाम के अन्दर ले कर न्यायालय के निर्णय के आधीन परीक्षा परिणाम घोषित करने लोक सेवा आयोग से चर्चा कर सकती है।
तात्पर्य यह कि यदि स्वतंत्रता सेनानियों ने उस समय त्याग दिखाया होता और पीढ़ी- दर -पीढ़ी लाभ न लिया होता तो आज कई तरह के लाभ प्राप्त कर रहे लोगों के बीच आदर्श बन कर आते!
आज लोकतंत्र सेनानियों के पास त्याग की मूर्ति बनने का अवसर है।
यदि ये ऐसा करते हैं तो कल एस सी -एस टी, ओ बी सी के आर्थिक, सामाजिक सम्पन्न सुविधा वर्ग से अपेक्षा और आग्रह किया जा सकता है कि वे समाज के वंचित वर्ग को लाभ का अवसर दें। वैसे समय की मांग है कि आरक्षित वर्ग के बड़े लोग इस दिशा में आगे आयें!
लोक तंत्र सेनानियों में क्रीमीलेयर के नीचे केे भी हैं कि नहीं शोध करना चाहिए। जो सक्षम हैं ,साधन सम्पन्न हैं , उन्हें आर्थिक लाभ क्यों?
इसी तरह जो अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ा वर्ग में सभी प्रकार के संसाधनों से युक्त है क्या उन्हें भी लाभ लेना चाहिए?
लोकतंत्र सेनानियों का लाभ, कल नौकरी और चुनाव में संतान के लिए सीट आरक्षण की भी मांग हो सकती है।
इसे कौन रोकेगा? फिर जो सतत लोक की रक्षा में लगे हैं उनकी चिंता कौन करेगा?
सनातन तंत्र रोज घायल हो रहा है। औजार बनाया जा रहा है नवीन तंत्र जाल को।
सेनानियों ! एक और नया वर्ग मत बनाइए। आपकी चिंता अब तक सरकार ने की अब आप समाज की चिंता करें।
सेनानियों लोक आज खतरे में है, जाति, सपाक्स, अजाक्स हिन्दू को बांटने पर तुला है। आपका सम्मान तो होता ही रहेगा,समाज और देश के सम्मान के लिए आगे आइये।
मेरा मत है सरकार को इस समय किसी को सम्मान नहीं करना चाहिए। न जाने कौन सा लोकतंत्र सेनानी कम्प्यूटर बाबा बन जाये।
Babuprasad@gmail.com
------------------------------
No comments:
Post a Comment