Tuesday, 28 July 2020

जीवन का श्रृंगार सजा कर


जीवन के प्याले को पीकर
सृजन हेतु नव भूमि बनाकर
उठो चलेंगे अब करने कुछ
नव जीवन श्रृंगार सजाकर
चलो आज चिंतन कर डालें
समरसता का भाव जगाकर।।



नहीं जानते विश्व  कुंज में
कैसी-कैसी कलियां खिलतीं
कहां-कहां जीवन  शब्दों में
विष-अमृत की पुड़िया ढलतीं
बढो आज उनको मथ डालें
तरल हृदय से गरल हटाकर।।


आज यहां संसार स्वत्व का
कौन कर रहा मधुमय दान
किरणों से पराग सिंचन का
माली करता नित अवदान
चलो हृदय से  उसे लगा लें
सुधा पिलाता कंठ जलाकर।। 

उमेश कुमार सिंह
28/07/20

11 comments:

  1. जीवन शैली पर अति सुन्दर रचना

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  2. नवसृजन का संकल्प करने और समरसता का संदेश प्रसारित करनेवाली सुंदर कविता ।बहुत बधाई प्रो स्मृति शुक्ला

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  3. अति सुन्दर कविता है। बहुत बहुत बधाई।

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  4. नव सृजन के लिए किसी को नीलकंठ बनना पड़ता बहुत सुंदर भाव | अनिरुद्ध

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  5. अति उत्कृष्ट

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  6. अति सुन्दर समरसता का भाव जगाती कविता,बहुत बहुत बधाई सर जी

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  7. अति सुन्दर समरसता का भाव जगाती कविता,बहुत बहुत बधाई सर जी

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  8. वर्तमान की कठिन परिस्थितियों में आशा की किरण जगाती पंक्तियाँ !!
    प्रणाम !!

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  9. चलो आज चिंतन कर डालें...बहुत बढ़िया रचना ! प्रेरणादायक !

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  10. उत्कृष्ट एवं प्रेरणदायक रचना है||
    सादर अभिनंदन.. साधुवाद!!!

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