जीवन के प्याले को पीकर
सृजन हेतु नव भूमि बनाकर
उठो चलेंगे अब करने कुछ
नव जीवन श्रृंगार सजाकर
चलो आज चिंतन कर डालें
समरसता का भाव जगाकर।।
नहीं जानते विश्व कुंज में
कैसी-कैसी कलियां खिलतीं
कहां-कहां जीवन शब्दों में
विष-अमृत की पुड़िया ढलतीं
बढो आज उनको मथ डालें
तरल हृदय से गरल हटाकर।।
आज यहां संसार स्वत्व का
कौन कर रहा मधुमय दान
किरणों से पराग सिंचन का
माली करता नित अवदान
चलो हृदय से उसे लगा लें
सुधा पिलाता कंठ जलाकर।।
सृजन हेतु नव भूमि बनाकर
उठो चलेंगे अब करने कुछ
नव जीवन श्रृंगार सजाकर
चलो आज चिंतन कर डालें
समरसता का भाव जगाकर।।
नहीं जानते विश्व कुंज में
कैसी-कैसी कलियां खिलतीं
कहां-कहां जीवन शब्दों में
विष-अमृत की पुड़िया ढलतीं
बढो आज उनको मथ डालें
तरल हृदय से गरल हटाकर।।
आज यहां संसार स्वत्व का
कौन कर रहा मधुमय दान
किरणों से पराग सिंचन का
माली करता नित अवदान
चलो हृदय से उसे लगा लें
सुधा पिलाता कंठ जलाकर।।
उमेश कुमार सिंह
28/07/20
जीवन शैली पर अति सुन्दर रचना
ReplyDeleteनवसृजन का संकल्प करने और समरसता का संदेश प्रसारित करनेवाली सुंदर कविता ।बहुत बधाई प्रो स्मृति शुक्ला
ReplyDeleteअति सुन्दर कविता है। बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteबधाई, सुन्दर भाव
ReplyDeleteनव सृजन के लिए किसी को नीलकंठ बनना पड़ता बहुत सुंदर भाव | अनिरुद्ध
ReplyDeleteअति उत्कृष्ट
ReplyDeleteअति सुन्दर समरसता का भाव जगाती कविता,बहुत बहुत बधाई सर जी
ReplyDeleteअति सुन्दर समरसता का भाव जगाती कविता,बहुत बहुत बधाई सर जी
ReplyDeleteवर्तमान की कठिन परिस्थितियों में आशा की किरण जगाती पंक्तियाँ !!
ReplyDeleteप्रणाम !!
चलो आज चिंतन कर डालें...बहुत बढ़िया रचना ! प्रेरणादायक !
ReplyDeleteउत्कृष्ट एवं प्रेरणदायक रचना है||
ReplyDeleteसादर अभिनंदन.. साधुवाद!!!