Tuesday, 28 July 2020

राष्ट्र भाषा हिंदी

राष्ट्रभाषा हिन्दी नहीं सँस्कृत होना चाहिए -डॉ.उमेश कुमार सिंह
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भोपाल | राष्ट्रभाषा हिन्दी ही क्यों ,सँस्कृत क्यों नही ? सँस्कृत देवभाषा है ,हिंदी सँस्कृत की बेटी है,अन्य सभी भारतीय भाषाएं सँस्कृत से ही निकली हैं | यह उदगार हैं डॉ.उमेश कुमार सिंह ,निदेशक साहित्य अकादमी मध्यप्रदेश के वे मध्यप्रदेश राष्ट्र भाषा प्रचार समिति हिंदी भवन भोपाल द्वारा आयोजित 25 वीं रजत जयंती पावस व्याख्यान माला के अवसर पर आयोजित विमर्श सत्र -05 की " राष्ट्रभाषा हिन्दी और चुनौतियां " विषय पर अपना अध्यक्षीय वक्तव्य दे रहे थे | उन्होंने इस अवसर पर बोलते हुए अनेक महत्वपूर्ण बातें कहीं | सरकार द्वारा पिछले विश्व हिंदी सम्मेलन जो कि भोपाल में आयोजित किया गया था ,में सरकार द्वारा जो संकल्प लिए गए थे,उनमें से जो कदम इस दिशा में उठाये गए हैं उनकी जानकारी दी,जैसे सभी शासकीय विभागों में अनुवादकों की नियुक्ति,हिंदी में उत्कृष्ट कार्य करने वालों को पुरस्कृत करना,इत्यादि | उन्होंने वक्ताओं द्वारा अंग्रेजी से लड़ने की कवायद का विरोध करते हुए कहा कि अंग्रेजी जैसे कद्दावर पहलवान से लड़ने की बजाय स्वयम को उससे शक्तिशाली बनने का अनुरोध किया | साथ ही उन्होंने कहा कि हमारे देशवासी मैकाले का क्यों विरोध करते हैं ,वह तो  अपने राष्ट्र  का पक्काभक्त था ,आप भी उस जैसे समर्पित राष्ट्र भक्त बनिये | आपने देश के स्वतंत्र होने के 70 साल हो गए क्या किया | सब कुछ सरकार करे | आप यहां सब बैठ हिंदी की बात कर रहे हैं ,आप अपने ह्रदय पर हाथ रख कर बोलिये आपकी संताने अंग्रेजी स्कूलों में तो नही पढ़ रहीं | सबको केरियर की चिंता है,देश भाड़ में जाये ,आपको केवल भाषा पर संकट  दिखाई दे रहा है ,मैँ कहता हूं पूरे देश पर ही संकट है | देश खत्म हो जाये ,केरियर बचा रहे ,ऐंसा नही चलेगा | केरियर बर्वाद हो जाये देश बचा रहे ,ऐंसी सोच और समर्पण वाले कितने लोग हैं हमारे बीच ,अंग्रेजी से हम क्यों लड़ें स्वयम को सबल बनाएं  | आज देश में लगभग हिंदी की सेवा करने वाली लगभग 162 संस्थाएं हैं ,जिनमें से लगभग 80 मध्यप्रदेश में ही है ,यह क्या कर रही हैं ,जिस ढंग से यह हिंदी सेवा का कार्य कर रही हैं ,उससे अगले 100 वर्षों में भी हिंदी देश की राष्ट्र भाषा नहीं बनने वाली | ऐंसे आयोजनों में असहाय श्रोता,और सबल वक्ता,और आयोजन समाप्त ,सुनाने की नहीं सुनने की भी आदत डालो,बात बताने की नहीं अपनाने की है,| सब अपना भाषण देकर चलते बनते हैं ,अरे भाई तीन दिन का आयोजन है ,तो रुकिए ,समय नहीं है तो न कहिये ,हवा में बातें की जा रही हैं मूल आधार को पकड़िए | आठवीं अनुसूची में बोलियां शामिल की जा रही है तो करने दीजिए ,यह बड़ा नाजुक मसला है,बोलियों का संरक्षण आवश्यक है,बोलियों में हमारे संस्कार हैं ,सँस्कृति है,बोलियों में हमारा लोक है,चित्र है, गीत है ,धर्म है, मानस है, शासन को चाहिए कि वह 18 बोलियों को ही आठवी अनुसूची में शामिल कर दे ,बोलियां मजबूत होंगी तो हिंदी भी मजबूत होगी यानी शरीर का कोई एक नहीं हर अंग मजबूत होना चाहिए, विरोध अगर करना है,तो किसी बोली को अष्टम अनुसूची में शामिल करने का मत करो ,विरोध करना है तो आठवी अनुसूची को खत्म करने का ही करो | आज हिंदी का स्वरूप क्या है आने वाले कल में क्या होगा ,वैसे भी 50 साल में बोली और 100 साल में भाषा का स्वरूप बदल ही जाता है | हम दुनिया को समझते हैं,स्वयम को नहीं समझते,हमें अंग्रेजी से नहीं स्वयम से लड़ना है | सच्चे मन से प्रयास करेंगे तो प्रभु राम सकारात्मक परिणाम भी देंगे | इसके पूर्व डॉ आनन्द त्रिपाठी ने "हिंदी की व्याप्ति " डर अमरनाथ ने "बोलियों का आठवीं अनुसूची के के लिए आग्रह " प्रो0 आशा शुक्ला " विश्व हिंदी सम्मेलनों की सार्थकता " डॉ जवाहर कर्नावट " सूचना प्रौद्योगिकी में हिंदी " विषय पर अपने वक्तव्य रखे | इन विद्वानों ने जो भी इन विषयों पर अपनी बात रखी डॉ उमेश जी ने सभी वक्तव्यों का अपने अध्यक्षीय उदबोधन में सारगर्भित व सार्थक उत्तर दिया ,उनके वक्तव्य को सुन अनेक बार करतल ध्वनि से सदन में उपस्तिथित जनों ने ह्रदय से उनकी बात का समर्थन किया ,दिनभर के थके हुए श्रोता, अध्यक्षीय उदबोधन सुन नई ऊर्जा से भर गए ।

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