Saturday, 14 September 2019

भाषा और गांधी (भाग पांच)

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                                 १४/९/१९ (क्रमश:)

गांधी जी का ध्यान जितना दक्षिण की तरफ था उतना ही पूर्व की तरफ भी, तगाँधी और भाषा (भाग: पाँचभी तो १३ दिसम्बर,१९२० का कोलकाता में उनका आत्मविश्वास दिखाई देता है, ‘‘यह निश्चित है कि सारे देश में जहाँ कहीं देश के विभिन्न हिस्सों, के लोगों की मिली-जुली सभाएँ और बैठकें होंगी, उनमें अभिव्यक्ति  का राष्ट्रीय माध्यम हिन्दी ही होगी।’’

२२ जनवरी,१९२१ ‘‘जो बात मैं जोर देकर आपसे कहना चाहता हूँ वह यह कि आप सबकी एक सामान्य भाषा होनी चाहिए, सभी भारतीयों की एक सामान्य भाषा होनी चाहिए, ताकि वे भारत के जिस हिस्से में भी जाएँ, वहाँ के लोगों से बातचीत कर सकें। इसके लिए आपको हिन्दी अपनाना चाहिए।’’

  २३ मार्च,१९२१ विजयनगर, ‘‘हिन्दी पढऩा इसलिए जरूरी है कि उससे देश में भाईचारे की भावना पनपती है। हिन्दी को देश की राष्ट्रभाषा बना देना चाहिए। हिन्दी आम जनता की भाषा होनी चाहिए। आप चाहते हैं कि हमारा राष्ट्र एक ओर संगठित हो, इसलिए आपको प्रान्तीयता के अभियान को छोड़ देना चाहिए। हिन्दी तीन ही महीनों में सीखी जा सकती है।’’

‘यंग इण्डिया’ नवम्बर १०,१९२१ ‘‘हिन्दी के भावनात्मक अथवा राष्ट्रीय महत्त्व की बात छोड दें, तो भी यह दिन-प्रतिदिन अधिकाधिक महत्त्वपूर्ण होता जा रहा है कि तमाम राष्ट्रीय कार्यकर्ताओं को हिन्दी सीख लेनी चाहिए और राष्ट्र की तमाम कार्यवाही हिन्दी में ही की जानी चाहिए।’’

२४ मार्च,१९२५ मद्रास, ‘‘मेरी राय में भारत में सच्ची राष्ट्रीयता के विकास के लिए हिन्दी का प्रचार एक जरूरी बात है, विषेष रूप से इसलिए कि हमें उस राष्ट्रीयता को आम जनता के अनुरूप  साँचे में ढालना है।’’

  २१ दिसम्बर, १९३३ पैराम्बदूर की मजदूर-सभा में, ‘‘साथी मजदूरो, यदि आप सारे भारत के मजदूरों के दु:ख सुख को बाँटना चाहते हैं, उनके साथ तादात्म्य् स्थापित करना चाहते हैं, तो आपको हिन्दी सीख लेनी चाहिए, जब तक आप ऐसा नहीं करते, तब तक उत्तर और दक्षिण में कोई मेल नहीं हो सकता।’’

    राजगोपालाचारी मद्रास प्रान्त के मुख्यमंत्री के नाते १९३७ में मद्रास में स्कूलों में हिन्दी पढ़ाई जाना अनिवार्य की तो ‘मातृभाषा खतरे में है’ के नाम पर आन्दोलन शुरु हो गया तब गांधी जी राजा साहब के पक्ष में उतर आये, १०/९/१९३८ (हरिजन) में, ‘‘ हमने बार-बार  घोषणा की है कि हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा या प्रान्तों के आपसी व्यवहार की सामान्य भाषा है या होनी है , यदि हमारी इस घोषणा के पीछे ईमानदारी है, तो हिन्दी के ज्ञान को अनिवार्य बनाने में बुराई कहाँ है ? ‘मातृभाषा खतरे में है’ यह नारा या तो अज्ञान रूप है या एक पाखंड है और जहाँ इसके पीछे ईमानदारी है, वहाँ भी उन लोगों की देशभक्ति के लिए अपवादमय चीज है।.. .. यदि हमें अखिल भारतीय राष्ट्रीयता के धर्म तक पहुँचना है, तो प्रान्तीयता के आचरण को भेदना होगा। भारत एक देश और एक राष्ट्र है अथवा अनेक देश और अनेक राष्ट्र ? जो मानते हों कि यह एक देश है उन्हें राजाजी को अपना पूरा समर्थन देना चाहिए।’’

राजा जी को समर्थन देने की बात १०/९/१९३८ (हरिजन) में, सामने आती है किन्तु अब जरा गाँधी की मजबूरी भी समझे। कुछ का मत है कि १९३६ में गाँधी ‘हिन्दुस्तानी’ के पक्ष में खड़े दिखते हैं किन्तु ‘हिन्द स्वराज्य’ में जिक्र आता है कि (गांधी के शब्दों में ही), ‘‘सारे हिंदुस्तान के लिए जो भाषा चाहिए, वह तो हिन्दी ही होनी चाएि। उसे उर्दू या नागरी लिपि में लिखने की छूट होनी चाहिए। हिंदू-मुसलमानों के संबंध ठीक रहें, इसलिए हिन्दुस्तानियों को इन दोनों  लिपियों को जान लेना जरूरी है। ऐसा होने से हम आपस के व्यवहार में अंग्रेजी को निकाल सकेंगे।’’

गाँधी जी संविधान सभा की अंतिम कार्यवाई तक जिन्दा नहीं रहे और हिन्दी राजभाषा बन कर रह गई। क्या यह वस्तुत: लिपि का झगड़ा था ? यदि गाँधी जिन्दा होते तो भी हिन्दी क्या राष्ट्रभाषा बन पाती, यह प्रश्न  आज भी यक्ष प्रश्न  बन मेरे मन में खड़ा है।
 
                                        समाप्त

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