Saturday, 14 September 2019

गाँधी और भाषा। (भाग एक )

गाँधी और भाषा।  (भाग एक )

नवजागरण काल के प्रतिष्ठित हस्ताक्षर किन्तु अंग्रेजी से प्रभावित राजा राम मोहनराय ने हिंदी की स्वीकार्यता सम्पर्क भाषा के रूप में तो मानी किन्तु उसे ज्ञान-विज्ञान की भाषा नहीं माना। जिसका फायदा उठाकर मेकाले ने हमें अंग्रेजी का मुलम्मा पहना दिया जिसे आज भी हम कंठहार मान कर पहने घूम रहे हैं। यह अंग्रेजों की भारत को सदा अपना दास बनाये रखने की दूरगामी चाल थी।

 महात्मा गाँधी इस चाल को समझते थे इसीलिए उन्होंने अपने स्वराज के अभियान में मातृभाषा एवं राष्ट्रभाषा को कभी नहीं छोड़ा। वे देख चुके थे कि किस प्रकार शासक वर्ग भाषा की सामाजिक सापेक्षता और उसके ऐतिहासिक क्रम को कुचल डालते हैं। विश्व इस औपनिवेशिक मानसिकता का शिकार हुआ है। हमारे यहाँ भी इस्लाम और अंग्रेजों के आगमन के साथ फारसी और अंग्रेजी ने अपना आधिपत्य बनाया।

 समझने की बात यह है कि आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व चीन के महान दार्शनिक कनफ्यूशियस ने भाषा को लेकर क्या कहा था, ‘‘ समाज की गलतियों या खराबियों को सिर्फ समाज की भाषा को ठीक करके ही खत्म किया जा सकता है क्योंकि भाषा अगर गलत हो जाए तो गलत बोला जाएगा, गलत बोला जाए तो गलत सुना जाएगा, और गलत कहकर जो गलत सुनाया गया है, उस पर जो अमल किया जाएगा वह गलत ही होगा और गलत अमल का परिणाम हमेशा गलत ही हुआ करता है। इसलिए गलत समाज की गलत बुनियाद हमेशा गलत भाषा ही डालती है।’’

 लंदन में पढ़ाई से लेकर दक्षिण अफ्रिका (१८९३ से १९१४ तक) के रंगभेद आन्दोलन तक गांधी को समझ आ गया था कि बिना स्वभाषा के साम्राज्यवादी ताकतों से नहीं लड़ा जा सकता। राष्ट्र अपनी भाषा के माध्यम से ही ज्ञान-विज्ञान, शिक्षा, साहित्य और संस्कृति को उन्नति कर संरक्षित रख सकती है। गांधी की मान्यता भी कनफ्यूशियस के समान थी कि किसी भी कौम को पराई भाषा में काम करना  घातक है। इसका प्रमाण उनकी जनवरी,१९१० में छपी ‘हिन्द स्वराज’ तथा उनके ‘इंडियन ओपिनियन’ में छपे लेखों से मिलता है।

गांधी के भाषा सम्बन्धी चिन्तन पर विचार करते हुए दो बातों को ध्यान में रखना चाहिए- पहला कि वे स्थानीय या प्रान्तीय स्तर पर शिक्षा के माध्यम के रूप में सम्बद्ध प्रांत की भाषा के समर्थक थे। दूसरा यह कि समय निष्पादन के लिए आपसी सम्पर्क एवं राजनीतिक तथा प्रशासनिक कार्यों के निष्पादन के माध्याम  के रूप में एक  राष्ट्रभाषा (हिन्दी) के वे प्रबल समर्थक रहे।

गांधी जी हिन्द स्वराज में औपनिवेशिक मंशा का खुलाशा करते हुए लिखते हैं, ‘‘ करोड़ों लोगों को अंग्रेजी शिक्षण देना उन्हें गुलामी में डालने जैसा है। मैकाले ने जिस शिक्षण की नींव डाली, वह  सचमुच गुलामी की नींव थी। उसने इसी इरादे से वह योजना बनायी, यह मैं नहीं कहना चाहता। किन्तु इस कार्य का परिणाम यही हुआ है। हम स्वराज्य  की बात भी पराई भाषा में करते हैं, यह कैसी बड़ी दरिद्रता है।.. यह भी जानने लायक है कि जिस पद्धति को अंग्रेजों ने उतार फेंका  है, वही हमारा शृंगार बनी हुई है। वहाँ शिक्षा की पद्धतियाँ बदलती रही हैं। जिसे उन्होंने भुला दिया है, उसे हम मूर्खतावश चिपटये रहते हैं। वे अपनी भाषा की उन्नति करने का प्रयत्न कर रहे हैं। वेल्स इंग्लैण्ड का एक छोटा-सा परगना है। उसकी भाषा धूल के समान  नगण्य है। अब उसका जीर्णोद्धार किया जा रहा है। .. अंग्रेजी शिक्षण स्वीकार करके हमने जनता को गुलाम बनाया है। अंग्रेजी शिक्षण से दम्भ, द्वेष, आत्याचार आदि बढ़े हैं। अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त लोगों ने जनता को ठगने और परेशान करने में कोई कसर नहीं रखी। भारत को गुलाम बनाने वाले तो इस अंग्रेजी को जानने वाले लोग ही है।  जनता की हाय अंग्रेजों को नहीं हमको लगेगी।’’ (क्रमशः)

(पढ़ते - पढ़ते ) १०/९/२०१९

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