Monday, 9 December 2024

परिवार प्रवोधन और उच्च शिक्षा

( यह सुझाव बौद्धिक जुगाली करनेवालों और गोपियों की भाषा में -"आयो घोष बड़ों ब्यापारी " , नासमझों के लिए नहीं है, इसलिए सार्थक सुझाव जोड़ सकते हैं किन्तु के लिए आप की समझदारी पर छोड़ता हूं -सादर)

उच्च शिक्षा में यूजीसी द्वारा भारत में जिस तरह नित नये नवाचार/प्रयोग  हो रहे हैं उनको देखते हुए लगता है , उसके साथ एक कालांश प्रतिदिन परिवार प्रवोधन का भी होना चाहिए।

यह शिक्षक -अभिभावक योजना अन्तर्गत उसके वर्तमान जड़ स्वरूप को बदल कर किया जा सकता है।

 इसमें आदर्श पारिवारिक जीवन के मानकों और ज्वलंत घटनाओं को रखा जाना चाहिए। एक -दो कक्षा के विद्यार्थी और अभिभावकों को एक कालांश में (अधिकतम 80-से100)बुलाया जाये। बदल बदल कर नित्य एक दो कालांश हो सकते हैं। 

 इसका कोई निर्धारित पाठ्यक्रम नहीं हो किंतु समाज में अच्छे परिवारों के अनुभव कथन, आध्यात्मिक वातावरण, पारिवारिक सदस्यों के आपस में साथ उठने बैठने जैसे विषय हों। बातचीत का स्वरूप हो। आदर्श पारिवारिक वातावरण जैसा ही इस कालांश का स्वरूप हो। 

बैठक सरस्वती वंदना, वैदिक मंत्रों से प्रारंभ हो और समापन राष्ट्रगीत या राष्ट्रगान से हो।

अतिथि नाम का कोई प्राणी न हो। फूल -माला, स्वागत न हो। स्थानीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी, राजनेता भी अभिभावक के रूप में ही सम्मिलित हो। 

अभिभावकों के अनुभव कथन हों। इससे जो गीता -रामायण, रामचरित मानस या अन्य भाषा भाषियों के लिए उनकी भाषा के सद्ग्रंथों को पाठ्यक्रम में रखने का उद्यम किया जा रहा है उसकी भी पूर्ति  चर्चा और उदाहरणों के माध्यम से हो।

एक तरफा ज्ञान न परोसा जाये। पारिवारिक जीवन के व्यवहारिक पक्षों पर सरस और सार्थक चर्चा भारतीय ज्ञान परम्परा के आधार पर भी हो सकती है।

इसमें विद्यार्थियों के परफार्मेंस पर चर्चा न हो।

अंत में उपस्थित किसी ऐसे व्यक्ति का अनुभव कथन हो जो भले ही बड़ा ज्ञानी -विज्ञानी न हो किंतु अपने जीवन में वह कुछ सार्थक प्रयास कर रहा हो। वह किसान,व्यापारी , कर्मचारी, सफाई वाला या संत भी हो सकता है।

सद्ग्रंथों को बोध कथाओं के रूप में शिक्षक अपने पाठ्यसामग्री में सम्मिलित कर पढ़ायेंगे तो उन्हें अलग से प्रश्न पत्र,परीक्षा आदि नहीं बनाने -करने होंगे, इस पर कैसे वातावरण बनाया जाये बातचीत हो।

इससे शासन में विराजमान माननीयों को भी गीता, गंगा,गौ को पाठ्यक्रम में जोड़ने की रोज घोषणा नहीं करनी पड़ेगी। और शासन को रिपोर्टिंग से बचा जा सकेगा। प्राचार्यों -शिक्षकों की वेतन बृद्धि भी नहीं रुकेगा और ऐसे अधिकारियों से भी निजात मिलेगी जिनका नितांत मशीनकरण हो चुका है।

भारतीय ज्ञान परम्परा और व्यक्तित्व विकास तथा चरित्र निर्माण में पाठ्यक्रम की नहीं शासन, प्रशासन,शिक्षक और अभिभावकों को अपने व्यक्तित्व और कृतित्व से बताना होगा। यह आचरण का विषय है न कि वेबीनार और सेमीनार का।

इसके स्थानीय आधार पर स्वरूप भिन्न हो सकते हैं किन्तु केन्द्र में सामाजिक सरोकारों और आध्यात्मिक वातावरण से जुड़ा सुचिता पूर्ण राष्ट्रीय परिवार हो।
सादर

7 comments:

  1. सर सामयिक विषय पर बहुत अच्छा और अनुकरणीय ब्लॉग...सादर

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  2. फिर मूर्खों के लिए क्या बचेगा⁉️
    अभी तो बुद्धि के ऊपर जड़ है और ऊर्ध्व मूल अधो शाखा का अनर्थ या कुअर्थ किया जा रहा है⁉️

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    1. कभी कभी शीर्षासन कर लेना चाहिए

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  3. वर्तमान में नितांत आवश्यक एवं सार्थक पहल,विद्यार्थियों में मूल्यों के विकास के लिए।🙏

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