Wednesday, 4 June 2025

एक भारत श्रेष्ठ भारत

 

 एक भारत श्रेष्ठ भारत

जब हम पूर्वजों के भारत और एक भारत श्रेष्ठ भारतकी पहचान की बात करते हैं तो आप कह सकते हैं कि एक दुविधा पैदा हो रही है कि हमें एक भारत श्रेष्ठ भारतबनाना है कि उसकी पुरानी पहचान सोने की चिडिय़ाऔर जगत् गुरुकी लौटानी है?

तो आइये इसे समझे एक  प्रसिद्ध स्विस लेखक बजोरन लेण्डस्ट्राम के माध्यम से भारत के सोने के चिडिय़ा के पक्ष को जिसने पुरातन मिस्त्रियों से लेकर अमेरिका की खोज तक तीन हजार वर्ष की साहसी यात्रायों और महान् खोजकर्ताओं की गाथा का अध्ययन कर अपनी पुस्तक भारत एक खोजमें लिखता है- ‘‘ मार्ग और साधन कई थे,परन्तु  उद्देश्य सदा एक ही रहा- प्रसिद्ध  भारत भूमि पर पहुँचने का जो देश सोना चाँदी, कीमती मणियों और रत्नों, मोहक खाद्यों, मसालों, कपड़ों से लबालब भरा पड़ा है।’’

 इसलिए समझें एक भारत श्रेष्ठ भारतके बारे में वर्तमान सरकार का दृष्टिकोण क्या है? वस्तुत: इस अभिनव प्रयास से हमें एक भारत और श्रेष्ठ भारत दोनों पक्षों को प्राप्त करना है। जब आइये स्मरण करते हैं इस अभियान की। 31 अक्टूबर, 2015 अवसर है, सरदार पटेल जी की 140वीं जयंती का। आइये समझें प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी का वह वक्तव्य जहाँ से प्रारंभ होती है एक भारत श्रेष्ठ भारतके पहचान की यात्रा। ‘‘सरदार पटेल जी ने हमें एक भारत दिया। अब यह 125 करोड़ भारतीयों का सामूहिक कर्तव्य है कि सामूहिक रूप से इसे श्रेष्ठ भारत (पूर्वजों का भारत) बनाना है। हम सब सरदार साहिब के जीवन और योगदान से प्रेरणा ले कर ऐसा कर सकते हैं।इसमें से पहला एक भारत को विभिन्न राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों की सांस्कृति धरोहरों, परंपराओं और प्रथाओं, उनकी अपनी ज्ञान परम्पराओं के बीच आपसी समझ से एकता बनेगी। जिससे भारत की एकता और अखण्डता मजबूत होगी। तो पहले भारत सरकार की एक भारत की रचना को जानते हैं-

इसमें योजना तैयार की गई कि राज्यों और केन्द्र शासित राज्यों के बीच जोड़ी बनेगी और यह जोड़ी एक वर्ष या अगली घोषणा तक बनी रहेगी। राज्य स्तर की गतिविधियों के लिए इस जोड़ी का उपयोग किया जायेगा। जिला स्तर की जोड़ी राज्य स्तर की जोड़ी से स्वतंत्र होगी। इसके माध्यम से संस्कृति, पर्यटन, भाषा, शिक्षा, व्यापार आदि के क्षत्रों में उनकी अपनी मौलिक विशेषताओं के आदान-प्रदान से नागरिकों के बीच सांस्कृतिक विविधता का परिचय होगा और वे एक दूसरे को नजदीक महसूस करेंगे। अपने अनुभवों को साझा कर सकेंगे।

इसके उद्देश्य को समझे-

एक : राष्ट्र की विविधता में एकता के गौरव को अनुभव कराना और देश के लोगों के बीच परंपरागत रूप से वर्तमान भावनात्मक बंधनों के सम्बन्धों को बनाए रखने में सम्बल प्राप्त कराना।

दो : राष्ट्रीय एकता की भावना को बढ़ावा देने के लिए एक वार्षिक योजनाबद्ध भागीदारी के माध्यम से सभी राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेश के बीच एक गहन और ढाँचेगत भागीदारी का निर्माण करना।

तीन : लोगों को अलग-अलग प्रांतों की समृद्ध विरासत और संस्कृति, रीति-रिवाजों तथा परम्पराओं से अवगत कराना, जिससे वे भारत की विविधता के बारे में लोगों को समझाने और उनकी प्रशंसा करने के योग्य बनें। संयुक्त पहचान को बढ़ावा देना।

चार : दीर्घकालिक भागीदारी का निर्माण करना।

पाँच : एक ऐसा वातावरण बनाना जो राज्यों के बीच सर्वोत्तम प्रथाओं और अनुभवों को साझा करके शिक्षण को बढ़ावा देता हो।

भारत दुनिया का सबसे प्राचीन राष्ट्र तो है ही इसकी विविध भाषाई, सांस्कृतिक और पंथीय व्यवस्था एक ऐसे धागे से बँधी हैं जिसे हम माता-पुत्रका सम्बन्ध कहते हैं। भारत को हम अपनी माता मानने के कारण इसके सारे पुत्र सहोदर होने से भाई-भाई हैं। हमारे सुदीर्घ इतिहास और उसकी सांस्कृतिक धरोहरों ने विश्व में हमारी एक विशिष्ट पहचान बनाई है। राष्ट्रीयता की यही पहचान हमारी विशिष्टता का वह सूत्र है जिसमें हम करोड़ों वर्षों से विविधता के साथ एकात्म हैं।

आज हम देखते हैं कि संचार और भौतिक समृद्धि के कारण सुदूर अंचलों से निरन्तर जुड़े हैं किन्तु यह हमारे लिए कोई नई बात नहीं है क्योंकि जब हमारे पास इस तरह के कोई संसाधन नहीं थे तब भी शंकराचार्य जैसे महानुभावों ने पैदल देश की चतुर्दिक यात्रा कर पीठों की स्थापना की। इतना ही नहीं जिन बावन शक्ति पीठियों की अवधारणा हमारे वैदिक ऋषियों ने सती-शिव के सूत्र में बाँधकर हमारे सामने रखी थी वह केवल भावनात्मक कथाओं के आधार नहीं हैं, बल्कि आज वे सब शक्ति स्थल बने हैं और वहाँ नाना प्रकार की धातुएँ, तेल आदि की खानें मिल रही हैं। यह हमारी वैज्ञानिक समझ और भावनात्मक एकात्मता की परिचायक हैं। प्राचीन काल से आज के आधुनिक काल तक भारतीय दृष्टि सदा मानवीय सरोकारों और राष्ट्रनिर्माण के लिए एक विशिष्ट दृष्टिकोण लेकर चलता आया है। आपसी समझ चाहे वह पंथीय हो या जातीय  ही भारत की असली सामथ्र्य है।

स्वतंत्रता के बाद भारत की एकता को दृढ़ करने के लिए जो सांस्कृतिक व्यवहार होने चाहिए उसमें अवश्य कुछ कमी रही, जिसके कारण सुदूर पूर्वांचल का व्यक्ति आज भी दिल्ली जैसी राजधानी में अपने को अकेला समझता है। इस प्रयास में कमी के कारण शारीरिक रंग, रूप संरचना के आधार पर भी हम आपस में दुव्र्यवहार कर बैठते रहे हैं।

इसी को दूर करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने सरदार पटेल की जयन्ती पर 2015 में राष्ट्रीय एकता दिवस के दौरान विभिन्न प्रकार के भेदों, उपभेदों और दूरियों को दूर करने के लिए साम्प्रदायिक, पंथीय, जातीय, क्षेत्रीय दूरी को खत्म कर भारत की गहरी एकता कल्पना दी थी।

इसके लिए देश के विभिन्न प्रदेशों के बीच कुछ कार्यक्रम तैयार किए गये- वर्तमान में 2020 तक के लिए कुछ रचना इस प्रकार है, (यह ठीक है कि कोरोना ने अभी इसमें व्यवधान डाला है)-पंजाब-आन्ध्रप्रदेश, हिमांचल-केरल,उत्तराखण्ड -कर्नाटक, हरियाणा-तेलंगाना, राजस्थान-असम, गुजरात-छत्तीसगढ़, महारष्ट्र -उड़ीसा, गोवा-झारखण्ड, दिल्ली-

सिक्किम,मध्यप्रदेश-मणिपुर और नागालैण्ड, उत्तरप्रदेश-अरुणांचल प्रदेश और मेघालय, बिहार-त्रिपुरा और मिजोरम, चंडीगढ़-दादरा और नगर हवेली, पुद्दुचेरी-दमन और दीव,लक्ष्यदीप-अंडमान और निकोबार आदि।

तत्कालीन मानव संसाधन विभाग अब का शिक्षा विभाग भारत सरकार इसका नोडल विभाग है। इसी तरह राज्यों में उच्च शिक्षा या शिक्षा विभाग इसके नोडल हैं। बातचीत के लिए मुख्य विषय बिन्दु- भारत के विचार को एक ऐसे राष्ट्र के रूप में मनाने के लिए जिसमें विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में विभिन्न सांस्कृतिक इकाइयाँ एक दूसरे के साथ मेल खाती हैं और एक दूसरे के साथ बाातचीत करती हैं विविध व्यंजनों, संगीत, नृत्य, रंगमंच, फिल्मों, हस्तशिल्प, खेल, साहित्य, त्योहारों, चित्रकला की यह शानदार अभिव्यक्ति है। यह सब बिन्दु सभी भारतीयों को आपस में बन्धुता भाव के साथ अत्मसात करने को सक्षम बनाएगी। इससे विभिन्न संम्प्रदायों, राज्यों के बीच आपस में छोटे-छोटे मसलों के कारण दूरी पैदा होती है।

इसके लिए पच्चीस-छब्बीस प्रमुख गतिविधियाँ की रूपरेखा तैयार की गई,जिनको हम चार पाँच बिन्दुओं के माध्यम से उनको स्मरण कर लें या कहिये दुहरा लें- एक: कम से कम पाँच ऐसी पुस्तकों का जिन्हें विभिन्न स्थापित मान्य पुरस्कारों से पुरस्कृत किया गया हो, और इसी तरह दोनों राज्यों के पाँच-पाँच गीत-गानों को साझेदारी राज्य की भाषा में अनुवाद हो। साथ ही दोनों राज्यों की समान अर्थवाली कहावतों की पहचान और उनका अनुवाद कर उनके उपयोग के लिए व्यवहार में प्रयोग किया जाये।

दो: सांस्कृतिक प्रतियोगिताओं के माध्याम से गृह राज्य में पहचाने गए मंडलों की सहायता से राज्यों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान के कार्यक्रम। साहित्योत्सव के रूप में लेखकों और कवियों आदि के लिए विनिमय कार्यक्रम हों। सहभागी राज्यों के आगंतुकों के लिए राज्य अतिथि संस्कृति को बढ़ावा दिया जाये। विद्यापीठ के छात्रों द्वारा शैक्षणिक भ्रमण में सहभागी राज्यों में उस राज्य की विशिष्ट पहचानों को सामने लाया जाये। एक राज्य के छात्रों का वर्णमाला, गीत, कहावत और सहभागी राज्य की भाषाओं में सौ वाक्यों का प्रदर्शन। युग्म राज्यों की दो भाषाओं में शपथ प्रतिज्ञाओं के  प्रशासन को प्रोत्साहित करना। भागीदारी वाले राज्य की भाषा में विद्यालयों की पाठ्यक्रम पुस्तकों में कुछ पन्नों को शामिल करना। सहभागी राज्य की भाषा में छात्रों के बीच निबंध प्रतियोगिता का आयोजन। साझीदार राज्यों की भाषाओं में विद्यालय और महाविद्यालयों में वैकल्पिक कक्षाओं का अभ्यास कराना।  सहभागी राज्य के शिक्षण संस्थानों में अन्य राज्य के नाटकों के प्रदर्शन का आयेजन कराना।

तीन: भागीदार राज्य की पाक प्रथाओं को सीखने के अवसर के साथ पाक त्योहार मनाना। राज्यों की भागीदारी वाले पर्यटकों के लिए राज्य दर्शन कार्यक्रमों को बढ़ावा देना। एक राज्य के टूर ऑपरेटर्स के लिए परिचितों के पर्यटन का आयोजन भागीदारी राज्य के लिए करना।

चार : राज्यों में किसानों के बीच पारंपरिक कृषि प्रथाओं और पूर्वानुमान के बारे में आदन-प्रदान की व्यवस्था करना। राज्यों की भागीदारी वाले क्षेत्रीय टीवी, रेडियों चैंनलों पर साझा राज्यों को आपसी कार्यक्रमों के प्रसारण की व्यवस्था करना।

पाँच : पन्द्रह अगस्त और 26 जनवरी के अवसर पर साझेदारी वाले राज्यों की संयुक्त झांकी का आयोजन। भागीदारी वाले राज्य के औपचारिक कार्यों में एक राज्य से परेड आदि की भागीदारी। साझेदारी राज्यों की उपशीर्षक वाली फिल्मों का प्रसारण कराना।

छह : फैशन शो को प्रोत्साहित करना और राज्य के विद्यार्थियों और लोगों द्वारा भागीदारी राज्यों की पोषाकों को पहनना।

सात : माय गवन्र्मेट पोर्टल और संचार माध्यमों का सहारा लेकर भागीदारी वाले राज्य की भाषा में राष्ट्रीय प्रश्रोत्तरी प्रतियोगिता का आयोजन तथा एक भारत श्रेष्ठ भारत पर ब्लॉग प्रतियोगिता का आयोजन करना। साथ ही आपसी राज्यों के लिए फोटोग्राफी प्रतियोगिता का आयोजन, स्थान, वस्तुओं और दृश्यों का चयन।

 आठ : सहभागी राज्यों में सायकलिंग अभियान का आयोजन। एक राज्य के एन.सी.सी. और एन.एस.एस के शिविरों का आयोजन जो सहभागी राज्यों के स्थानो पर हों। तो यह है  सरकारी कार्यक्रम जिनसे भारत की एकता में युवाओं की सहभागिता कर भारत परिचय कराया जाये और उनके अन्दर एक भावनात्मक एकता पैदा की जाये। अब जरा श्रेष्ठ भारत पर विचार किया जाये। ध्यान में आता है कि स्वतंत्रता के बाद सरदार पटेल को अपनी पूरी ताकत राष्ट्रीय एकता के लिए लगानी पड़ी जिसमें विभाजन की विभीषिका के बाद भारत का एक खण्डित भौगोलिक स्वरूप हमारे सामने आया। इसलिए एक प्रश्र उठना स्वाभाविक है कि क्या जिस श्रेष्ठ भारत की संकल्पना हमने 2015 में एकता दिवस के दिन की वह इस एक पक्ष के प्राप्त करने से पूर्व हो जायेगी ?

इसलिए अब हमें श्रेष्ठ भारत के आवश्यक तत्वों पर भी यहाँ विचार करना होगा।  कारण कि भारत मात्र भौतिकता के  साथ जीने वाला राष्ट्र नहीं है। यह उसके स्वस्थ्य शरीर का परिचायक हो सकता है किन्तु उस आत्मा की खोज और बोध करना अभी निरन्तरता में है जिसे हम धर्म और अध्यात्म कहते हैं।  और एक जो विशिष्ट बात ध्यान में आती है कि जब हम भौतिक रूप से सम्पन्न थे तभी हमारी अध्यात्म भूमि भी उतनी ही उर्जावान थी। स्वत्व आधारित थी। भारत ने सदा से यह विचार किया है कि हम भौतिक समृद्ध, विज्ञान और तकनीकी विकास के शिखर पर तो पहुँचे ही किन्तु वह विकास हमारी संस्कृति, प्रकृति और आत्मविकास के विपरीत न हो।

इसी के साथ दूसरा पक्ष जो भारत के जगत्गुद् गुरु की पहचान को बताता है पाश्चात्य चिंतक मार्क ट्वेन के इस वक्तव्य समझें- ‘‘भारत उपासना पंथों की भूमि, मानव जाति का पालना, भाषा की जन्म भूमि, इतिहास की माता, पुराणों की दादी एवं परंपरा की परदादी है। मनुष्य के इतिहास में जो भी मूल्यवान एवं सृजनशील सामग्री है, उसका भंडार अकेले भारत में है। यह ऐसी भूमि है जिसके दर्शन के लिए सब लालायित रहते हैं और एक बार उसकी हल्की सी झलक मिल जाए तो दुनिया के अन्य सारे दृश्यों के बदले में भी वे उसे छोडऩे के लिए तैयार नहीं होंगे।’’ अब इसी तरह के एक भारत श्रेष्ठ भारतके बारे में दुनिया के अनेक चिंतकंो, शोधकों यथा हीगल, गैलबैनो, मार्कपोलो आदि के हैं। दूसरा कथन अर्नोल्ड टायनवी एडिनवर्ग का समझे- 21वी सदी का नेता भारत होगा, प्रत्येक क्षेत्र में भारत की महान प्रगतिहोगीक। उससे भी अधिक यह विज्ञान  एवं धर्म को समन्वित करेेगा। मात्र भारत  यह कर सकता है और करेगा भी। तो करना क्या है? सर्वप्रथम  तो हमारे देश मे एक धारणा  बनी हुई है कि पश्चिम का व्यक्ति बुद्धिवादी, तर्कशील तथा प्रयोगशील होताहै और भारत का व्यक्ति  ग्रंथ को ही प्रमाण मानने वाला, अंधश्रद्धालु तथा प्रयोग से दूर भागने वाला होता है।

परन्तु वास्तविकता इसके विपरीत है।इस लिए पहले स्व का बोध। अपने पूर्वजों की खोजो पर अभिमान और उसको समाज के सामने तथ्य के साथ रखना। वे दोनेां प्रकार की हैं, वैदिक विज्ञान पर आधारित किन्तु वर्ममान में लिए पूर्णत: उपयोगी। दूसरी हमारी आध्यात्मिक परंपरा जो वैश्विक मानव बनने की क्षमता रखती है। आधुनिक विज्ञान के क्षेत्र में जाते हैं जो भारत के पास ये क्षमताएँ उस समय थी जब दुनिया ठीक से चलना भी नहीं जानती थी। पश्चिम के कई देशों का जन्म भी नहीं हुआ था। भारत के प्रथम परमाणु वैज्ञानिक महर्षि कणाद ने वैशेष्ज्ञिक दर्शन में कहा है, ‘दृष्टनां दृष्ट प्रयोजनानां दृष्टाभावे प्रयोगोऽभ्युदयायअर्थात् प्रत्यक्ष देखे हुए और अन्यों को दिखाने के  उद्देश्य से अथवा सव्यं और अधिक गहराई से ज्ञान प्राप्त करने हेतु रखकर किये गये प्रयोगों से अभ्युदय का मार्ग प्रशस्त होता है। इसी तरह कण से लेकर ब्रहमांड  और उनका प्रयोजन जानने के लिए महर्षि  गौतम न्याय दर्शन में सोलह चरण की प्रक्रिया बताते हैं। और पृथ्वी, जल, जेज, वायु, आकाश, दिक्् काल, मन ओर आत्मा को जानना चाहिए ऐसाकहा है। गीता के 7वें अध्याय में श्रीकृष्ण जी बताते हैं कि ब्रह्म के समग्र रूप को जानने के लिए ज्ञान-विज्ञान दोनेां को जानना चाहिए, क्योंकि इन्हें जानने के बाद कुछ जानना शेष नहीं रहता।

भृगु संहिता में शिल्प की परिभाषा करते हुए कहते हैं-

नानाविधानां वस्तूनां यंत्रणाँ कल्पसंपदा

धातूनां साध्रानां च वस्तूनां शिल्पसंज्ञितम्।

कृषिर्जलं खनिश्चेति धातुखंड त्रिधाभिधम्।।

नौका-रथाग्रिनानां, कृतिसाधनमुच्यते।

वेश्म, प्राकार नगररचना वास्तु संज्ञितम्।।

इन्होंने दस शास्त्रों का उल्लेख किया किन्तु बात यहीं पूर्ण नहीं होती तो पूरे विज्ञान सम्पदा और उसकी भारतीय खोज को देखे तो - विद्युत शास्त्र,यंत्र विज्ञान, धातुशास्त्र, विमान विद्या, नौका शास्त्र, वस्त्रुशास्त्र,गणित शास्त्र, काल गणना, खगोल सिद्धांत, स्थापत्य शास्त्र, रसायन शास्त्र, वनस्पतिशास्त्र, कृषि विज्ञान, प्राणि विज्ञान, स्वास्थ्य विज्ञान, घ्वनि विज्ञान, लिपि विज्ञान, यह हमारी वो उपलब्धियाँ है जो श्रेष्ठ भारत की परिचायक हैं। आवश्यकता है इन्हें आधुनिक सन्दर्भ और काल के साथ ठीक से संगति बैठाकर समाज के सामने लाना और उनका खोया स्वाभिमान जाग्रत करना और डीकोलनाइजेशन की ओर ले जाना। यही श्रेष्ठ भारत की निशानी है। इसे ही हमें स्वयं बोध कर दुनिया को बोध कराना है। जिसे भारत के महान वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र वशु कुछ इस प्रकार कहते हैं-

To my country men

Who will yet claim

The intellectual heritage

Of their ancestors

    मेरे देश वासियो को जो उनके पूर्वजों की, बौद्धिक विरासत के अभी भी अधिकारी हैं। अपने पुरुषार्थ को जगाना होगा तभी हम अभ्युदय और नि:श्रेयस की प्राप्ति कर एक भारत श्रेष्ठ भारत के सपने को पुन: पूरा कर सकते हैं। आप ने हमें सुना आभार।

No comments:

Post a Comment