मध्यप्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग ने भारतीय ज्ञान परम्परा को समझने के लिए कुछ पुस्तकों को महाविद्यालयों में खरीदने का आदेश दिया। इस पर कुछ तथाकथित गैर शिक्षाविदों, लीक पीटने वाले नेताओं का विरोध आया।
विरोध है कि पुस्तकें आर एस एस के लेखकों की हैं। तो समझें इसकी आवश्यकता क्यों?
राष्ट्रीय शिक्षा नीति - 2020 मध्यप्रदेश में लागू हुए तीन वर्ष पूरे हो गए हैं। नीति को लागू करने में अग्रणी राज्य होने के कारण इसके अच्छे परिणाम लाने में भी इसकी महती भूमिका अपेक्षित है ।
इन तीन वर्षों में अनुभव को साझा करने
देश, राज्य और काल की स्थिति' को ध्यान में रखते हुए निरंतर मंथन चल रहा है। उसके परिणाम स्वरूप अध्ययन मंडलों की सलाह पर संदर्भ ग्रंथ के रूप में पुस्तकों को महाविद्यालयों में खरीदने का आग्रह किया गया है। जो विशुद्ध रूप से भारतीय वांग्मय पर आधारित हैं।
इन पुस्तकों का हेतु मात्र इतना ही है कि भारतीय ज्ञान परम्परा को उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रम में समाहित कैसे करें कि वह शिक्षक और विद्यार्थी दोनों के लिए व्यवहारगत शिक्षा के रूप में सामने आ सके।
समझना होगा कि जब चीजें धुंधली रहती हैं तो चिन्तन और विमर्श की आवश्यकता पड़ती है। जहाँ चेतना है, वहाँ यथास्थिति नहीं रहती और यथास्थिति नहीं रहती है तो सम -विषम परिणाम भी सामने आते हैं।
आज उच्च शिक्षा में वाद की जगह दुराग्रह पूर्ण जल्प 'डिबेट कॉम्पटीशन चल रहा है। परिणाम शिक्षा नीति "वादे वादे जायते तत्व बोध": की जगह "वादे वादे कंठशोष:" आ रहा है।
इतना भी होता तो कुछ गुंजाइश निकलती किंतु यह उससे भी आगे सेक्युलरिस्ट और कम्युनिज्म का वितंडा वाद है, जो स्वतंत्रता के बाद से आज तक कुछ सार्थक तो दे नहीं पाये, बस वितंडा कर भारत, हिंदू, धर्म, सनातन, संस्कृति, परम्परा के सार्थक दृष्टि कोण का खंडन ही करते रहे। यह एक तरह का राष्ट्र के साथ छल है।
अतः कुछ सार्थक चाहिए तो 'वाद' के आधार पर तथ्यों के साथ चीजों को समझना होगा ।
किसी भी देश की ज्ञान परम्परा उस देश का दर्पण हुआ करती है । ज्ञान परम्परा के माध्यम से उस देश की अतीत से वर्तमान तक की यात्रा से आज की पीढ़ी अवगत होती है। ज्ञान परम्परा के माध्यम से ही देश का तत्त्वचिंतन, संस्कृति, सभ्यता अभिव्यक्त होती हैं।
भारत और उसकी पहचान तथ्यों के आधार पर मार्कट्वेन के शब्दों में -"भारत उपासना पंथों की भूमि, मानव जाति का पालना, भाषा की जन्मभूमि, इतिहास की माता, पुराणों की दादी तथा परम्परा की परदादी है। मनुष्य के इतिहास में जो भी मूल्यवान एवं सृजनशील सामग्री है , उसका भंडार अकेले भारत में है।
किन्तु कुचक्रों , जल्पों और वितंडा वाद के आधार पर ( मैक्समूलर अपनी पत्नी को साफ-साफ) लिखता है कि "वेद का मेरा यह अनुवाद उत्तर काल में भारत के भाग्य पर दूर तक प्रभाव डालेगा। यह उनके धर्म का मूल है और विगत तीन हजार वर्षों से उत्पन्न आस्थाओं को जड़मूल से उखाड़ने का उपाय है ।"
श्री एन. के. मजूमदार को मृत्यु से एक वर्ष पूर्व लिखे पत्र में, प्रो. मैक्समूलर लिखता है " मैं हिन्दू धर्म को शुद्ध बनाकर ईसाइयत के पास लाने का प्रयास कर रहा हूँ । आप या केशवचन्द्र सरीखे लोग प्रकट तौर पर ईसाइयत को स्वीकार क्यों नहीं करते ?... नदी पर पुल तैयार है। केवल तुम लोगों को चलकर आना बाकी है। पुल के उस पार लोग स्वागत के लिए आपकी राह देख रहे हैं ।" विचार करें यूरो सेंट्रिक शिक्षा कैसे हमारे घरों में ' कान्वेंट ' के रास्ते आ रही है?
एनी बेसेण्ट का भारत की राष्ट्रीयता और उसकी ज्ञान परम्परा पर कालजयी दृष्टांत भी समझना होगा- "विश्व के विभिन्न महान धर्मों एवं पंथों के अपने चालीस वर्षों से अधिक के अध्ययन के आधार पर मैं कह सकती हूँ कि मुझे हिन्दू धर्म जितना सम्पूर्ण, विज्ञानसम्मत, दार्शनिक और आध्यात्मिक दिखा उतना कोई दूसरा धर्म नहीं दिखा। जितना अधिक आप इसे जानते हैं उतना ही अधिक आप इससे प्यार करने लगते हैं और जितना अधिक आप इसे समझते हैं उतनी ही गहराई से आप इसका महत्त्व समझने लगते हैं।"
उन्होंने आगे कहा- "इस विषय में कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि बिना हिन्दुत्व के भारत का कोई भविष्य ही नहीं है। जिसमें भारत की जड़ें गहरी जमी हुई हैं और यदि उस भूमि से उसे उखाड़ा गया तो भारत वैसे ही सूख जायेगा जैसे कोई वृक्ष भूमि से उखड़ने पर सुख जाता है। समय के साथ हर कोई वैसे ही चला जायेगा जैसे यह आया था किन्तु एक बार हिन्दुत्व को हटा दीजिए तो उसके बाद भारत का क्या बचता है ? भारत का इतिहास, उसका साहित्य, उसकी कला, उसके स्मारक सब में हिन्दुत्व आद्योपांत भरा पड़ा है। ... "यदि हिन्दू ही हिन्दु को नहीं बनाये रखेंगे तो इसको कौन बचायेगा ?"
विचारें ये प्रश्न जितने उस समय प्रासंगिक थे उससे कहीं अधिक उनकी प्रासंगिकता आज के समय में भी है।(अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश हमारे सामने हैं)
इस परिस्थिति के पीछे का कुचक्र -
प्रख्यात जर्मन विद्वान् शोपन हॉवर ने लिखा -" उपनिषद् सर्वोच्च मानव बुद्धि की उपज हैं। यह मेरे जीवन के लिए शान्ति का आश्वासन रहा है और जो मेरी मृत्यु के बाद तक बना रहेगा।"
हमबोल्ट गीता को संसार की गम्भीरतम और उच्चतम वस्तु मानते थे।
विद्वानों के यह कथन स्वाभाविक थे, परन्तु जैसे-जैसे भारत, भारतीयता और हिन्दू धर्म का अधिक प्रचार होने लगा वैसे-वैसे ईसाई धर्म प्रचारकों और पादरियों के कान खड़े हो गये। उन्हें लगने लगा कि यदि संस्कृत वाङ्मय का इसी प्रकार प्रचार चला तो सृष्टि का निर्माण 4004 ईसा पूर्व हुआ तथा बाइबिल में व्यक्त विचार ही सर्वश्रेष्ठ विचार हैं,' ये धारणाएँ ध्वस्त हो जायेंगी।
अतः उन्होंने अनेक लोग तैयार किये जो भारतीय ज्ञान परम्परा उसकी प्राचीनता, श्रेष्ठता और गहनता को अप्रमाणिक और अवास्तविक बताएं।
इन लोगों के मन में भारतीय साहित्य का भय कितना था इसका परिचय फ्रेडरिक वॉडमेर ने इन शब्दों में दिया था, “बाइबिल के रक्षक इतने भयभीत हो गये हैं कि उन्हें ऐसा लगने लगा है कि संस्कृत का वर्चस्व बाबेल की मीनार गिरा देगा (दि लूम ऑफ लैंग्वेज न्यूयार्क १६४४ - पृ० १७४) ।
दूसरी ओर हजार वर्षों से सेमेटिक मजहबों का, आर्थिक, राजनैतिक विचारधाराओं का, जो सतत आक्रमण चला उन आक्रमणों के परिणामस्वरूप यहाँ के समाज को यहाँ की सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक रचनाओं को तोड़ने- मरोड़ने और अपने अनुकूल ढालने का प्रयत्न दीर्घकाल में हुआ।
वर्ष 1921 में रवीन्द्र नाथ टैगोर ने अपने भाषण में कहा था- "ऐसा नहीं है, अंग्रेजों का यह एक सर्वकष आक्रमण है, जो हमारे समाज को, उसके मानस को, उसकी 'आत्मा को मूल से परिवर्तित कर देगा और इसका मुकाबला करने के लिए अगर आप तीर कमान लेकर उसके पीछे छोड़ेंगे तो यह रूप बदलता जाएगा।"
समाधान के रुप में पूर्वजों का मत है - " भारत अपनी आत्मा का साक्षात्कार करे । उस आत्मा की अभिव्यक्ति 'Philosphical label' नहीं, रचनाओं, जीवन मूल्यों, दैनंदिन जीवन की अभिव्यक्ति के अंदर अभिव्यक्त हो।
अत: भारतीय ज्ञान परम्परा को आज के पाठ्यक्रम में लाना कितना आवश्यक है, हम समझ सकते हैं । आज भी शिक्षा और सेवा के क्षेत्र में एक बड़ा तंत्र भारत में इसी दिशा में काम कर रहा है।
सार यह कि शिक्षा, संस्कृति के ऊपर की धूल हटे और भारत भारत केन्द्रित ज्ञान परम्परा को भारतीय वांग्मय के आधार पर समझे।
13/8/24
बहुत अच्छा लिखा सर, स्व का बोध कराता । विशद अध्ययन से रचित ज्ञानपूर्ण ब्लॉग ...सादर
ReplyDeleteभारतीय ज्ञान परंपरा को सुस्पष्ट रेखांकित करता हुआ महत्वपूर्ण आलेख। कृपया बताने का कष्ट करें कि उच्च शिक्षा में किन पुस्तकों को समाहित करने की अनुसंशा की गई है?
ReplyDelete👍🌹
ReplyDelete