Saturday, 5 September 2020

राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 मध्यप्रदेश सन्देश

 

राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020

 

प्रायः यह कहा सुना जा रहा है की यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 देश की तीसरी शिक्षा निति है, जो अपने साथ पुरानी शिक्षा नीतियों के गुण-दोष के आधार पर समीक्षा कर अपने साथ एक नया दृष्टिकोण ले कर आई है। जिसमे न केवल अनेक संभावनाऐ हैं तो बहुत से संशय के बादल भी। किन्तु यदि गंभीरता से विचार करें तो ध्यान में आता है की स्वतंत्र भारत की यह प्रथम ऐसी सर्वांगीण शिक्षानीति है, जो सर्वसमावेशी और भविष्यगामी है, जिसमें आगामी ई. 2040 तक के कार्यक्रम है, योजना है।

यह शिक्षा नीति अपने में एक बृहत्तर दृष्टिकोण समाहित किये हुए है। वास्तव में यह एक अभूतपूर्व दस्तावेज है, जिसकी सफलता हर क्षेत्र में प्रभाव डालने वाली है। यह एक ऐसी शिक्षा नीति है जिस पर न केवल शिक्षाविद बल्कि अर्थशास्त्री, उद्योगपति और वैज्ञानिक भी विचार विमर्श किये है और अभी भी संसद में जाने तक कर रहे हैं। इसलिए इस शिक्षा नीति का अब तक की शिक्षा नीतियों से पृथक और विशेष महत्व है। यह भारत जैसे युवाओं के देश के लिए रोजगार देनेवाली शिक्षा नीति है। यह वह शिक्षा नीति है जिसके आँगन से अर्थव्यवस्था जन्म लेगी। इसमें तकनालोजी भी है तो आर्टिफिसियल इंटेलीजेंस भी, इसमें डाटाबैंक भी है तो इंडस्ट्रियल मुद्दे भी। इसमें महिलाओं की चिंता है तो वंचितों की भी, युवाओं की चिंता है तो शिशुओं की भी. शिक्षकों की चिंता तो अभिभावकों की भी, इसीलिए इसे सर्वसमावेशी और सर्वस्पर्शी कहा जा रहा है।

 अत: यह समझ लेना आवश्यक है की स्वतंत्रता से अब तक कब-कब क्या-क्या हुआ ? स्वतंत्रता के बाद 1948 में डॉ. राधाकृष्णन की अध्यक्षता में ‘विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग’ का गठन हुआ था। फिर 1952 में मुदालियर आयोग और बाद में ‘कोठारी आयोग’ (1964-1966) आया, जिसकी सिफारिशों पर आधारित 1968 में पहली बार महत्त्वपूर्ण बदलाव वाला प्रस्ताव पारित हुआ था।

1968 के बाद अगस्त, 1985 ‘शिक्षा की चुनौती’ नामक एक दस्तावेज तैयार किया गया, जिसमें भारत के विभिन्न वर्गों (बौद्धिक, सामाजिक,  राजनैतिक,  व्यावसायिकप्रशासकीय आदि) ने अपनी शिक्षा सम्बन्धी टिप्पणियाँ दीं और 1986 में भारत सरकार ने ‘नई शिक्षा नीति 1986’ का प्रारूप तैयार किया। इस नीति में सारे देश के लिए एक समान शैक्षिक ढाँचे को स्वीकार किया गया और अधिकांश राज्यों ने 10+2+3 की संरचना को अपनाया। बाद में 1992 में इस नीति में कुछ संशोधन किया गया था। किन्तु यह नीति संकल्प के आभाव में अपनी मंजिल नहीं तय कर पाई।

2014 के आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के चुनावी घोषणा-पत्र में एक ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ बनाने का विषय आया। सत्ता में आने के बाद 17 जनवरी, 2015 को तत्कालीन शिक्षा मंत्री श्रीमती स्मृति ईरानी के घर पर प्रेस वार्ता हुई और उसमे 33 बिंदु दिए गए कि इसमें भारत की जनता अपने विचार रखे, सरकार शिक्षा नीति बनाएंगी।

 केंद्र सरकार (मोदी जी की नेतृत्व वाली सरकार) द्वारा ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति के निर्माण के लिए जून, 2017 में इसरों (ISRO) प्रमुख डॉ. के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया।

2019 तक ‘मानव संसाधन विकास मंत्रालय’ ने ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ के लिये जनता से सलाह माँगी और मई, 2019 में ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ का मसौदा सामने आया।

29, जुलाई-2020 को केंद्र सरकार ने ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020’ (National Education Policy- 2020) को मंज़ूरी दी। जिसमे पहला अद्यादेश आया और ‘मानव संसाधन विभाग’ का नाम ‘शिक्षा विभाग’ में बदल गया।

इस तरह कह सकते हैं की पिछले पांच वर्षों में राष्ट्र ने उग्र तपस्या की तब यह शिक्षा नीति सामने आई। इन वषों में पिछली शिक्षा नीतिओं की तुलना में करोंड़ों लोंगों, शिक्षा के सारे भागीदारों– माता-पिता, शिक्षक-अभिभावक-विद्यार्थी, राजनैतिक प्रतिनिधियों, उद्योगपतियों, वैज्ञानिकों सब ने चर्चा में न केवल भाग लिया बल्कि अपने-अपने गंभीर सुझाव भी दिए। ढाई लाख ग्राम पंचायतों तक की चर्चा के बाद, ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ के निर्माण की भूमिका बनी। आश्चर्य होगा कि दुनिया के 120 देशों में जितनी जनसँख्या बसती है, उससे अधिक लोगों ने शिक्षा नीति बनाने के लिए सुझाव दिए। यह इसके सर्वसमावेसी और सर्वव्यापकता का उदहारण है।

इसीलिए इस आलेख के लिखने तक देश के किसी भी कोने से, किसी वर्ग से ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 पर कोई सार्थक विरोध सामने नहीं आया है। सरकार के वैचारिक विरोधियों ने भी यह नहीं कहा की यह नीति गलत है, उनकी चिंता यह है कि इसे लागू कैसे करेंगे ? तो किसी ने मजाक में लिखा की जो लोग धारा 370 ख़तम कर सकते है, राममंदिर का शिलान्यास कर सकते है, वे इस शिक्षा नीति को भी लागू करा ही लेंगे।

 किन्तु ध्यान रखना होगा कि आलेख लिखे जाने तक यह नीति अभी भारत सरकार के मंत्री परिषद् में ही पास हुई है और केवल मानव संसाधन विभाग का नाम भर बदला है। यह नीति अभी संसद में जायेगी, फिर स्टैंडिंग कमेटी में और वहां सुझावों के आधार पर वे सब कोने भी साफ होंगे जो अभी कुछ-कुछ ओझल हैं या कम दिखाई देते हैं। तब समवर्ती सूची में होने से राज्य सरकारों के यहाँ जाकर कहीं दो-तीन महीनों में लागू होने की स्थिति में आएगी।

दृष्टिपथ (vision) और सरकार का संकल्प: पूरी नीति पर विचार करने के पहले ध्यान रखना होगा यह ‘नई शिक्षा नीति’ नहीं ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ है। जो अपने नाम से ही उस मूल चेतना को स्पर्श कराती है, जहाँ भारतीय संस्कृति का प्राण तत्व बसता है।

पहले समझे नीति क्या है ? नीति अर्थात एक ‘विज़न’। यह शिक्षा के क्षेत्र में सरकार के माध्यम से लाया गया राष्ट्र के जन का एक ‘दृष्टिपथ’ है। सामान्यत: दृष्टिपथ मार्गदर्शी होते हैं और आवश्यक नहीं की उनका अक्षरशः पालन भी हो। यह सरकारों के संकल्प पर निर्भर करता है। इसलिए पिछली सरकारों की कई नीतियां संकल्प के आभाव में लागू नहीं हो पाई, किन्तु जब प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी कहते हैं कि “यह कोई सर्कुलर नहीं बल्कि महायज्ञ है।” तो समझना होगा भारत सरकार इसे लागू करने को संकल्पित है। भारत सरकार की कैविनेट ने इसे पास भी कर दिया है, विश्वास रखना होगा की संसद में पास होते ही राज्य अपनी विधान सभाओं में पास कर, जो उनके क्षेत्र का है वे लागू करेंगे, शेष भारत सरकार करेगी। माना जा सकता है की यह नीति कैलेंडर वर्ष 20-21 से अपने कुछ हिस्सों के साथ देश भर में लागू हो सकती है।      

     आइये समझें मा. प्रधानमंत्री जी ने क्या कहा है, ‘‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 सभी के परामर्श से तैयार की गई है। यह कोई सर्कुलर नहीं बल्कि महायज्ञ है। जो नए देश की नींव रखेगा और एक नई सदी तैयार करेगा। अब पढ़ाई ही नहीं ‘बर्किंग कल्चर’ को डेवलेप किया जागेया। इसके लिए ‘प्रज्ञावान शिक्षक’ तैयार कर    राष्ट्र को ‘अच्छे छात्र और नागरिक’ देना ही नहीं तो उनको ‘अपनी जड़ों से जुडा ग्लोबल सिटीजन’ बनाना इस नीति का लक्ष्य है, ।’’

स्कूली बच्चों के घर की बोली और स्कूल की सीखने की भाषा एक ही होनी चाहिए। इसमें पाँचवी तक के बच्चों को सहायता मिलेगी। जहां तक संभव हो कम से कम ग्रेड-तक शिक्षा का माध्यम घर की भाषामातृभाषास्थानीय भाषा या क्षेत्रीय भाषा होगी। इसके बाद स्थानीय भाषा को जहां तक संभव हो भाषा के रूप में पढ़ाया जाता रहेगा। सार्वजनिक एवं निजी स्कूल इसका अनुपालन करेंगे। किसी राज्य पर कोई भाषा थोपी नहीं जाएगी।

प्री-प्राइमरी से इंटर तक 100 फीसदी नामांकन होगा। आरम्भिक बाल्यावस्था देखभाल यानी तीन वर्ष की आयु से लेकर उच्चतर माध्यमिक शिक्षा अर्थात ग्रेड-12 तक शिक्षा नि:शुल्क एवं अनिवार्य होगी। भारत में आज टैलेंट-टेक्नोलॉजी की वजह से गरीब व्यक्ति को बढऩे का मौका मिल सकता है। शिक्षा में आटोनामी चाहिए। नए देश की नींव रखना और एक नई सदी तैयार करना इस शिक्षा नीति का संकल्प है।’’

      जरा नए देश और नई सदी को भी समझते चलें- एक ओर हम अपनी प्राचीनत़ा पर गर्व करते हैं तो दूसरी ओर नए देश के बात करते हैं ? प्रश्न स्वाभाविक है किन्तु इसका उत्तर भी इसी नीति में और प्रधानमंत्री जी के उद्वोधन में आया है, “देश को अच्छे विद्यार्थी और नागरिक देना। जो अपनी जड़ों (सनातन संस्कृति) से भी जुडा हो और ग्लोबल सिटीजन (‘वसुधैव कुटुम्बकम’- पूरी आधुनिक तकनीक के साथ चल सकने में सक्षम) भी हो।’’ यह ‘नित्य नूतन चिर पुरातन’ की कल्पना है। अर्थात भारत अपनी शिक्षा के माध्यम से सभी क्षेत्रों में ‘नवीन ऊर्जा के साथ नई सदी का ‘जगत गुरु’ बने।’

ध्यान रखना होगा नया राष्ट्र नहीं बनाना है युवा देश के माध्यम से अर्थात युग के अनुरूप नए तंत्र को विकसित कर चिर पुरातन राष्ट्र को पुन: जगद्गुरु बनाना है, इसलिए मैं पुनः स्मरण करा रहा हूँ यह ‘नई शिक्षा नीति’ नहीं ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ है जो अपने स्वरुप में पहलीवार जनता के बीच आई है।

 

इस पूरी शिक्षा नीति को चार भागों में बाँट कर देखनी चाहिए जिससे इसको नियमन किया जायेगा – पहला- स्कूल शिक्षा, दूसरा- उच्च शिक्षा, तीसरा-शिक्षक निर्माण, और चौथा- वित्त पोषण और निगरानी।   

भाग एक –

विद्यालयीन शिक्षा, अपेक्षित परिणामों हेतु नीतियाँ-

1. ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में शिक्षा अंतिम छात्र तक पहुँचे, यह समानता और गुणवत्ता वाली शिक्षा सभी के लिए सुलभ हो और उत्तरदायित्व का विकास करे। प्राथमिक शिक्षा को हमें दो स्तरों में विभाजन कर देखना होगा- यह व्यवस्था तीन-तीन के दो समूहों पर टिकी है। पहले तीन आधार हैं- रीडिंग, रायटिंग और अर्थमैटिक तो दूसरें तीन आधार हैं– सिखाना, स्वास्थ्य और साक्षरता।

(क). वर्ष से 6 वर्ष की आयु के बच्चों के लिये आँगनवाड़ी / बालवाटिका / प्री-स्कूल (Pre-School) के माध्यम से मुफ्तसुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण ‘प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा (Early Childhood Care and Education-ECCE) की उपलब्धता सुनिश्चित होगी ।  

(ख).  स्कूलों में अब-तक जहाँ पढ़ाई कक्षा एक से शुरू होती थी, वहीं अब तीन साल के प्री-प्राइमरी के बाद कक्षा 3 से के तीन साल शामिल हैं। फिर कक्षा 6 से 8 तक की कक्षा। चौथी श्रेणी (कक्षा 9 से 12वीं तक ) 4 साल की होगी। पहले जहाँ 11वीं कक्षा से विषय चुने जाते थे, अब 9वीं से चुन सकेंगे।

(ग). कक्षा-से ही शैक्षिक पाठ्यक्रम में व्यावसायिक शिक्षा को शामिल कर दिया जाएगा और इसमें इंटर्नशिप (Internship) की व्यवस्था भी दी जाएगी। साथ ही मातृभाषा को कक्षा-और आगे की शिक्षा के लिये प्राथमिकता देने का सुझाव दिया गया है।

(घ). महत्वपूर्ण परिवर्तन यह है की अब पांचवी तक के शिक्षण का माध्यम मातृभाषा, स्थानीय भाषा अथवा क्षेत्रीय भाषा होगी ।

2विद्यालयीन शिक्षा के इस महत्वपूर्ण लक्ष्य की प्राप्ति हेतु करना क्या है-

1. वर्ष 2025 तक प्राथमिक विद्यालयों में कक्षा-तक के सभी बच्चों में बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान पर एक राष्ट्रीय मिशन’ (National Mission on Foundational Literacy and Numeracy)) की स्थापना अपेक्षित है।

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद’ (National Council of Educational Research and Training- NCERT) द्वारा ‘स्कूली शिक्षा के लिये ‘राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा’ [National Curricular Framework for School Education, (NCFSE) तैयार की जाएगी। जिसमे छात्रों में 21वीं सदी के कौशल के विकास हेतु अनुभव आधारित शिक्षण के साथ तार्किक चिंतन को प्रोत्साहन और पाठ्यक्रम के बोझ को कम करते हुए कला, विज्ञानव्यावसायिक तथा शैक्षणिक विषयों एवं पाठ्यक्रम व पाठ्येतर गतिविधियों के बीच समन्वय रहेगा। ‘एडल्ट लर्निंग’ में ‘क्वालिटी और टेक्नोलॉजी बेस्ड ऑप्शंस’ को शामिल किया जाएगा। जैसे नये ऐप्स का निर्माणऑनलाइन कोर्सेस अथवा मॉड्यूल्ससैटेलाइट आधारित टीवी चैनल्सऑनलाइन किताबेंऑनलाइन लाइब्रेरीएडल्ट एजुकेशन सेंटर्स आदि को डेवलेप किया जाएगा। त्रि-भाषा फार्मूला रहेगा। संस्कृत और अन्य प्राचीन भारतीय भाषाओं का विकल्प भी होगा परंतु विद्यार्थिओं पर कोई भी भाषा थोपी नहीं जाएगी ।

तीन से आठ साल की उम्र तक न तो कोई भरी भरकम पाठ्यक्रम होगाना किताबें होगी, अब उन्हें केवल खेल-खेल में सिखाया जाएगा। ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ के तहत कक्षा तीनपांच एवं आठ में परीक्षाएं होगीं। वहीँ 10वीं एवं 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं को साल में दो बार आयोजित करवाना या फिर इन परीक्षाओं को दो भागों में बांटकर ‘वस्तुनिष्ठ और ब्याख्यात्मक’ करवाने का सुझाव है। परीक्षाओं में ध्यान विद्यार्थियों के ज्ञान-परीक्षण पर होगा। इससे विद्यार्थियों में रटने की प्रवृति ख़त्म होगी और योग्यता और वास्तविक क्षमता का परीक्षण किया जायेगा। साथ ही अधिक अंक लाने का दबाव कम होगा और भविष्य में अभिभावक भी कोचिंग के चक्कर से मुक्ति पा सकेंगें।

 छात्रों की प्रगति के मूल्यांकन के लिये मानक-निर्धारक निकाय के रूप में परख (PARAKH) नामक एक नए ‘राष्ट्रीय आकलन केंद्र’ (National Assessment Centre) की स्थापना की जाएगी। छात्रों की प्रगति के स्वमूल्यांकन तथा अपने भविष्य से जुड़े निर्णय लेने में सहायता के लिये ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence-AI) आधारित सॉफ्टवेयर का प्रयोग किया जाएगा।

एन.आई.ओ.एस. द्वारा ‘सेकेंडरी एजुकेशन प्रोग्राम्स’ जो ग्रेड 10 और 12 के समकक्ष होंगे‘वोकेशनल एजुकेशनल कोर्सेस’ ‘एडल्ट लिट्रेसी’ और ‘लाइफ इनरिचमेंट प्रोग्राम्स’ भी ऑफर किए जाएंगे। एन.सी.ई.आर.टी. एक 'नेशनल क्यूरीकुलर एंड पैडेगॉजिकल फ्रेमवर्क फॉर अर्ली चाइल्डहुड केयर एंड एजुकेशन ' (NCPFECCE) बनायेगा जो आठ साल तक के बच्चों के लिए होगा। क्लास 6 से बच्चों को क्लास में कोडिंग भी सिखायी जाएगी।

अब विद्यालयों में स्थानीय ज्ञान और लोक विद्या जैसी जानकारियों के लिए स्थानीय पेशेवरों को अनुबंध पर लिया जा सकता है। म्यूजिक़ और आर्ट्स को पाठयक्रम में शामिल कर बढ़ावा दिया जायेगा। ई-पाठ्यक्रम को बढ़ावा देने के लिए एक राष्ट्रीय शैक्षिक टेक्नोलॉजी फोरम (NTTF) बनाया जा रहा है जिसके लिए वर्चुअल लैब विकसित की जा रहीं हैं। साथ ही संकुल (cluster- समूह) योजना आधारित विद्यालय होंगे जो सभी तरह से सक्षम होंगे और अपने आसपास के वंचित या सुविधाविहीन विद्यालयों को शिक्षक से लेकर उपकरण आदि की सहायता कर उन विद्यालयों में अध्यनरत विद्यार्थिओं के प्रतिभा विकास में योगदान देंगे।

‘फंडामेंटल लिट्रेसी और न्यूमरेसी’ पर ‘मिनिस्ट्री ऑफ ह्यूमन रिर्सोस डेवलेपमेंट’ द्वारा ‘नेशनल मिशन’ तैयार किया जाएगा। जिसमें स्टूडेंट्स की हेल्थ (शारीरिक और मानसिक ) और न्यूट्रीशन का भी पूरा ख्याल रखा जाएगा, इसके लिए भोजन की ‘पौष्टिक खुराक’ और ‘नियमित स्वास्थ्य परीक्षण’ की व्यवस्था रहेंगीं।

विद्यार्थियों को ‘हेल्थ कार्ड’ दिया जायेगा जिससे सेहत की ‘मॉनीटरिंग’ की जा सके।  'अर्ली चाइल्डहुड केयर एंड एजुकेशन क्यूरीकुलम' (ECCEC) की प्लानिंग और इम्प्लीमेनटेशन, एच.आर.डी. मिनिस्ट्रीवुमेन एंड चाइल्ड डेवलेपमेंटहेल्थ एंड फैमिली वेलफेयर और ट्राइबल अफेयर्स मिलकर करेंगे।  

हर स्कूल में छात्रशिक्षक अनुपात दो प्रकार से होगा। संपन्न क्षेत्रों में 30:1 और सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित क्षेत्रों के विद्यालयों में छात्र –शिक्षक अनुपात 25:1 रहेगा।

 शिक्षा नीति में वर्ष 2022 तक ‘नेशनल काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन’(NCTE) को टीचर्स के लिए एक समान मानक तैयार करने को कहा गया है। ये पैरामीटर ‘नेशनल प्रोफेशनल स्टैंडर्ड फॉर टीचर्स’ कहलाएंगे। यह कार्य जनरल एजुकेशन काउंसिल के निर्देशन में पूरा करेगी। B.Ed डिग्री कोर्स के लिए नए पैरामीटर्स होंगे।

वर्ष 2030 तक सभी बहुआयामी कालेजों और विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के पठन-पाठन के पाठ्यक्रमों को संस्थानों के अनुरूप अपग्रेड करना होगा । साल 2030 तक शिक्षकों के लिए न्यूनतम डिग्री बी.एड. होगीइसकी अवधि चार साल हो जाएगी। साथ ही बी.एड. की दो साल की डिग्री उन ग्रेजुएट छात्रों को मिलेगी जिन्होंने किसी खास विषय में चार साल की पढ़ाई की हो। चार साल की ग्रेजुएट की पढ़ाई के साथ स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त करने वाले छात्रों को बी.एड. की डिग्री एक साल में ही प्राप्त हो जाएगी।

शिक्षा शास्त्र की सभी विधियों को शामिल करते हुए नए बी.एड. कोर्स का सिलेबस तैयार किया जायेगा। इसमें साक्षरतासंख्यात्मक ज्ञानबहुस्तरीय अध्यापन और मूल्यांकन को विशेष रूप से सिखाया जाएगा। इसके अलावा ‘टीचिंग मेथड’ में टेक्नोलॉजी को खास तौर पर जोड़ा जाएगा।

ई.सी.सी.ई. शिक्षकों का शुरुआती कैडर तैयार करने के लिए आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों और शिक्षकों को एन.सी.ई.आर.टी. द्वारा विकसित पाठ्यक्रम के अनुसार प्रशिक्षण दिया जाएगा।  

अयोग्य शिक्षक हटाए जाएंगेस्तरहीन स्कूल बंद किए जाएंगे। पूरे भारत में देश में एक जैसे शिक्षक और एक जैसी शिक्षा को आधार बनाकर इस समिति की सिफारिशों को लागू किया गया है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति में विद्यालयीन शिक्षा के हर स्टेज पर ‘एक्सपीरियेंशियल लर्निंग’ को शामिल किया जाएगा। यानी केवल किताबों से पढऩे के बजाय उसे करके सीखना या ‘कनवेंशनल मैथड्स’ को छोडक़र दूसरे तरीकों से पढ़ाना। जैसे स्टोरी टेलिंगस्पोर्ट्स के माध्यम से सीखनाआर्ट्स को शामिल करना आदि। ‘टिपिकल क्लासेस कंडक्ट’ करने के बजाय स्टूडेंट की कम्पीटेन्सी बढ़ाने वाले तरीके प्रयोग किए जाएंगे। टीचिंग और लर्निंग को ज्यादा इंटरैक्टिव बनाने और कोर्स कंटेंट में 'कीकांसेप्ट्स, आइडियाज', 'एप्लीकेशंस और प्रॉब्लम सॉल्विंग एटीट्यूड' पर अधिक फोकस किया जाएगा। साथ ही क्यूरिकुलम के कंटेंट को ऐसे कम किया जाएगा जिससे सब्जेक्ट के कोर पर किसी प्रकार का कोई प्रभाव न पड़े और उसमें ‘क्रिटिकल थिंकिंग’ को भी शामिल किया जा सके तथा इंक्वायरीडिस्कवरीडिस्कशन एवं एनालिसेस बेस्ड लर्निंग को बढ़ावा दिया जा सके।

स्टूडेंट्स को 360 डिग्री होलिस्टिक रिपोर्ट कार्ड’ दिया जाएगा। इस रिपोर्ट कार्ड का मतलब है कि सब्जेक्ट्स में मार्क्स के साथ ही स्टूडेंट की दूसरी स्किल्स और मजबूत बिंदुओं को रिपोर्ट कार्ड में जगह दी जाए। कुल मिलाकर नया रिपोर्ट कार्ड सिर्फ पढ़ाई पर केंद्रित नहीं होगा। एजुकेशन मिनिस्ट्री, 'नेशनल कमेटी फॉर द इंटीग्रेशन ऑफ वोकेशनल एजुकेशन ' (NCIVE) का निर्माण करेगी ताकि भारत में जरूरी ‘वोकेशनल नॉलेज’ को ज्यादा से ज्यादा विद्यार्थियों तक पहुंचाया जा सके। इसे ‘लोक विद्या’ नाम दिया गया है।

     वर्तमान समय में ऑनलाइन एजुकेशन और बढ़ते हुए ई-कंटेंट की लोकप्रियता और उपयोगिता को देखते हुए अब ई-कंटेंट केवल हिंदी और इंग्लिश भाषा में नहीं बल्कि क्षेत्रीय भाषाओं में भी उपलब्ध कराया जाएगा। ई-कंटेंट को फिलहाल 8 मुख्य क्षेत्रीय और सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में उपलब्ध कराने पर विचार किया जा रहा है।

इस नीति से विद्यालयीन शिक्षा में बड़ा बदलाव आने वाला है। इसमें व्यावसायिक शिक्षा और कौशल विकास पर ज़ोर दिया गया हैजिससे विद्यार्थी पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर होंगे। प्रत्येक विद्यार्थी को नौकरी व स्वरोजगार के लिए पूर्ण प्रशिक्षण देने का भी प्रावधान है। इससे आने वाले समय में देश से बेरोजग़ारी खत्म होगी।

 

                         भाग-दो (उच्च शिक्षा )

प्रश्नों के समाधान तथा अपेक्षित परिणामों हेतु नीतियों को देखना होगा–

NEP-2020 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय’ (Ministry of Human Resource Development- MHRD) अब ‘शिक्षा मंत्रालय’ (Education Ministry) हो गया है। शिक्षा मंत्रालय’ करने का उद्देश्य ‘शिक्षा और सीखने (Education and Learning)’ पर पुन: अधिक ध्यान आकर्षित करना है।

नीति में शिक्षा की पहुँचसमानतागुणवत्तावहनीय शिक्षा और उत्तरदायित्व जैसे मुद्दों पर विशेष ध्यान दिया जायेगा। इस शिक्षा नीति में छात्रों में रचनात्मक सोचतार्किक निर्णय और नवाचार की भावना को प्रोत्साहित करने पर बल दिया गया है।

‘चिकित्सा एवं कानूनी शिक्षा’ को छोडक़र पूरे उच्च शिक्षा क्षेत्र के लिये एक एकल निकाय के रूप में ‘भारत उच्च शिक्षा आयोग’ (Higher Education Commission of India-HECI) होगा। 

वर्ष 2030 तक उच्च शिक्षा में नामांकन अनुपात प्रतिशत (GER (Gross Enrolment Ratio) 50 % पहुँचाने का लक्ष्य है, जो कि वर्ष 2018 में 26.3 प्रतिशत था। इसके साथ ही देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में 3.5 करोड़ नई सीटों को जोड़ा जाएगा।

यूनिवर्सिटी एंट्रेंस एग्जाम्स के लिए (एन.टी.ए) ‘नेशनल टेस्टिंग एजेंसी’ एक हाई क्वालिटी ‘कॉमन एप्टीट्यूड टेस्ट’ आयोजित करेगीजिसके माध्यम से स्टूडेंट्स का चयन होगा। कॉमन एप्टीट्यूड टेस्ट के साथ ही स्पेशलाइज्ड कॉमन सब्जेक्ट एग्जाम्स जैसे साइंस, ह्यूमैनिटीज़आर्ट्सवोकेशनल सब्जेक्ट्स आदि भी एन. टी. ए. ही आयोजित करेगी।

नीति में ‘मल्टीपल एंट्री और एग्जिट ऑप्शंस’ को शामिल किया गया है। इसके तहत ऐसी व्यवस्था की जाएगी कि विभिन्न कोर्सेस के किसी भी स्टेज पर स्टूडेंट अपनी एलिजबिलिटी और च्वॉइस के हिसाब से कोर्स ज्वॉइन कर लें या कोई खास स्टेज पूरा होने पर उसे वहीं छोड़ दें। विद्यार्थी के पाठ्यक्रम के क्रेडिट को ‘एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट्स’ के माध्यम से सुरक्षित स्थानान्तरित किया जाएगा।

इस शिक्षा निति में ‘स्पेशली ऐबल्ड स्टूडेंट्स’ के लिए विशेष प्रबंध किए जाएंगेजिसके अंतर्गत फंडामेंटल स्टेज से लेकर हायर एजुकेशन तक हर स्टेज पर उनकी भागीदारी को बढ़ाया जा सके। इसमें टेक्नोलॉजी बेस्ड टूल्ससपोर्ट मैकेनिज्मरिसोर्स सेंटर का निर्माणअसिस्टिव डिवाइसेस का प्रबंध आदि शामिल होगा।

‘इंडियन साइन लैंग्वेजेस’ को अब पूरे भारत में मानकीकृत किया जाएगा। इसके लिए देश और राज्य के स्तर पर और ‘स्टडी मैटीरियल’ बनाया जाएगा ताकि वे विद्यार्थी जिन्हें सुनने में समस्या हैइसका इस्तेमाल कर पर्याप्त मैटीरियल के साथ अपनी पढ़ाई आसानी से कर सकें। 

शिक्षामूल्यांकनयोजनाओं के निर्माण और प्रशासनिक क्षेत्र में तकनीकी के प्रयोग पर विचारों के स्वतंत्र आदान-प्रदान हेतु ‘राष्ट्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी मंच’ (National Educational Technology Forum- NETF) नामक एक स्वायत्त निकाय की स्थापना की जाएगी।

भारतीय भाषाओं के संरक्षण और विकास के लिये एक ‘भारतीय अनुवाद और व्याख्या संस्थान’ (Indian Institute of Translation and Interpretation-IITI), ‘फारसीपाली और प्राकृत के लिये राष्ट्रीय संस्थान (या संस्थान)’  [National Institute (or Institutes) for Pali, Persian and Prakrit] स्थापित करने के साथ उच्च शिक्षण संस्थानों में भाषा विभाग को मज़बूत बनाने एवं उच्च शिक्षण संस्थानों में अध्यापन के माध्यम के रूप में मातृभाषा / स्थानीय भाषा को बढ़ावा दिये जाने का सुझाव है

उच्च शिक्षा में छात्रों के लिये संस्कृत और अन्य प्राचीन भारतीय भाषाओं का विकल्प उपलब्ध होगा परंतु किसी भी छात्र पर भाष की बाध्यता नहीं होगी। नेशनल साइंस फाउंडेशन के तर्ज पर ‘नेशनल रिसर्च फाउंडेशन’ लाई जाएगी जिससे पाठ्यक्रम में विज्ञान के साथ सामाजिक विज्ञान को भी शामिल किया जाएगा।

देश में आई. आई. टी (IIT) और आई. आई. एम. (IIM) के समकक्ष वैश्विक मानकों के  ‘बहुविषयक शिक्षा एवं अनुसंधान विश्वविद्यालय’ (Multidisciplinary Education and Research Universities- MERU) की स्थापना की जाएगी।

ई-पाठ्यक्रम को बढ़ावा देने के लिए एक राष्ट्रीय शैक्षिक टेक्नोलॉजी फोरम (NTTF) बनाया जायेगा, जिसके लिए ‘वर्चुअल लैब’ विकसित की जा रहीं हैं। तकनीकी शिक्षाभाषाई बाध्यताओं को दूर करनेदिव्यांग छात्रों के लिये शिक्षा को सुगम बनाने आदि के लिये तकनीकी के प्रयोग को बढ़ावा देने पर बल दिया गया है।

एजुकेशन मिनिस्ट्री, 'नेशनल कमेटी फॉर द इंटीग्रेशन ऑफ वोकेशनल एजुकेशन ' (NCIVE) का निर्माण करेगी ताकि भारत में जरूरी ‘वोकेशनल नॉलेज’ को ज्यादा से ज्यादा विद्यार्थियों तक पहुंचाया जा सके। इसे ‘लोक विद्या’ नाम दिया गया है।

वर्तमान समय में ऑनलाइन एजुकेशन और बढ़ते हुए ई-कंटेंट की लोकप्रियता और उपयोगिता को देखते हुए अब उच्च शिक्षा में भी ई-कंटेंट केवल हिंदी और इंग्लिश भाषा में नहीं बल्कि फिलहाल 8 मुख्य क्षेत्रीय सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में उपलब्ध कराया जायेगा।

उच्च शिक्षा के क्षेत्र में ‘एक्सटर्नल कमर्शियल बोर्रोविंग और विदेशी निवेश (एफडीआई)’ के लिए कदम उठाए जाएंगे। सरकार युवा इंजीनियरों को इंटर्नशिप का अवसर देने के लिए शहरी स्थानीय निकायों के साथ कार्यक्रम शुरू करेगी। साथ ही ‘राष्ट्रीय पुलिस यूनिवर्सिटी और राष्ट्रीय फॉरेंसिक यूनिवर्सिटी’ का भी है।

राष्ट्रीय स्टार टॉप 100 यूनिवर्सिटीज पूरी तरह से ऑनलाइन शिक्षा कार्यक्रम शुरू सकेंगी। और 100 विदेशी विस्वविद्यलों के साथ उनका MOU होगा।   

 

पुरानी और इस शिक्षा नीति में प्रमुख परिवर्तन क्या हैं-

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग समाप्त होगा। HECI के कार्यों के प्रभावी और प्रदर्शिता पूर्ण निष्पादन के लिये चार संस्थानों / निकायों का निर्धारण किया गया जायेगा। महाविद्यालयों की संबद्धता 15 वर्षों में समाप्त हो जाएगी और उन्हें क्रमिक स्वायत्तता प्रदान करने के लिये एक चरणबद्ध प्रणाली की स्थापना की जाएगी।

एम.फिल.को समाप्त किया जायेगा। अब अनुसंधान में जाने के लिये तीन साल के स्नातक डिग्री के बाद एक साल स्नातकोत्तर करके पी.एचडी. में प्रवेश लिया जा सकता है।

जो छात्र इंजीनियरिंग कर रहे हैं, वे अभिनय, संगीत, कला को भी अपने विषय के साथ पढ़ सकते हैं। इसी तरह दूसरे संकाय के छात्र भी इस सुबिधा का लाभ उठा सकते हैं। यह छात्रों के न केवल मानसिक और आध्यात्मिक विकास में सहयोगी होगी तो उन्हें सब प्रकार के हीनभावों से भी बचाएगी।  

संस्थानों को उनके प्रमाणन के आधार पर फीस की एक उच्चतर सीमा तय करने का पारदर्शी तंत्र विकसित किया जाएगा। जिससे निजी उच्चतर शिक्षण संस्थानों द्वारा निर्धारित सभी फीस और शुल्क पारदर्शी रूप से लिए जाएंगे और किसी भी छात्र के नामांकन के दौरान फीस/शुल्क में कोई मनमानी वृद्धि नहीं होगी।

  नयी शिक्षा नीति-2020 का सबसे महत्वपूर्ण पॉइंट है ‘मल्टीपल एंट्री और एग्जि़ट सिस्टम’ लागू होना। अभी यदि कोई छात्र तीन साल इंजीनियरिंग पढऩे या छह सेमेस्टर पढऩे के बाद किसी कारण से आगे की पढाई नहीं कर पाता है तो उसको कुछ भी हासिल नहीं होता है। लेकिन अब मल्टीपल एंट्री और एग्जि़ट सिस्टम में एक साल के बाद पढाई छोडऩे पर सर्टिफिक़ेटदो साल के बाद डिप्लोमा और तीन-चार साल के बाद पढाई छोडऩे के बाद डिग्री मिल जाएगी।

अगर कोई छात्र किसी कोर्स बीच में छोडक़र दूसरे कोर्स में एडमिशन लेना चाहें तो वो पहले कोर्स से एक ख़ास निश्चित समय तक ब्रेक ले सकता है और दूसरा कोर्स ज्वाइन कर सकता है और इसे पूरा करने के बाद फिर से पहले वाले कोर्स को जारी रख सकता है। इससे देश में ‘ड्राप आउट रेश्यो’ कम होगा।यह व्यवस्था खास तौर पर ग्रामीण महिलायों, वंचित और आर्थिक रूप से निर्वल विद्यार्थियों के लिए बहुत ही उपयोगी है।

 विभिन्न उच्च शिक्षण संस्थानों से प्राप्त अंकों या क्रेडिट को डिजिटल रूप से सुरक्षित रखने के लिये एक ‘एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट’ (Academic Bank of Credit) दिया जाएगाजिससे अलग-अलग संस्थानों में छात्रों के प्रदर्शन के आधार पर उन्हें डिग्री प्रदान की जा सके।

  नई एजुकेशन पॉलिसी-2020 में सभी सेंट्रल यूनिवर्सिटीजडीम्ड यूनविर्सिटीऔर स्टैंडअलोन इंस्टिट्यूशंस के लिए समान नियम होंगे। 

देश में शोध और अनुसन्धान को बढ़ावा देने के लिए अमेरिका के NSF (नेशनल साइंस फाउंडेशन) की तर्ज पर एक ‘नेशनल रिसर्च फ़ाउंडेशन (NRF) की स्थापना की जाएगी।

 NRF का उद्देश्य विश्वविद्यालयों के माध्यम से शोध -संस्कृति को बढ़ावा देना है। यह स्वतंत्र रूप से सरकार द्वाराएक बोर्ड ऑफ़ गवर्नर्स द्वारा शासित होगा और बड़े प्रोजेक्टों की फाइनेंसिंग करेगा।

शिक्षा पर जी.डी.पी. का छह फीसदी खर्च करने का लक्ष्य है अत: कोई आर्थिक कठिनाई नहीं होंगी।

नीति लागू करने में आने वाली दिक्कतें,शंकाएं और समाधान - 

     यह स्वाभाविक बात है की कोई भी नीति जब तैयार होकर आती है तो उसमे कई प्रकार की पूर्व से कहीं वैचारिक आधार पर तो कहीं अल्पसंख्यक–बहुसंखाय्क, आरक्षित-अनारक्षित, जाति-वर्ण, पूजा पद्धतिओं तथा भाषाओँ आदि को लेकर शंकाए खड़ी होती हैं। किन्तु यह सत्य है की उपर्युक्त बातों को लेकर इसमें शंका करने की कहीं कोई गुंजाइश नहीं है। इससे वाम विचारकों की भगवाकरण के पुराने आरोप को यू.जी.सी. के सदस्य रहे श्री योगेन्द्र यादव समाधान देते हुए कहते हैं की ‘इस शिक्षा नीति में हमें जिस भगवाकरण, और दकियानूसी बातों का डर था, वह यहाँ नहीं दिखाई देता, बल्कि संस्कृति की बात कही गई है जो अच्छा है।    

एक बात आ रही थी की क्या इससे राज्यों के अधिकार कम होंगे ? वह भी नहीं है। क्या शिक्षा का क्षेत्र सीमित हो जायेगा ? तो हम पाते है की यह सर्वस्पर्शी शिक्षा नीति है। केंद्र शासित प्रदेशों और पूर्वोत्तर राज्यों को इससे बड़ा लाभ होने वाला है।ऐसे राज्यों के महाविद्यालय और विश्वविद्यालय अपनी स्वायत्तता प्राप्त कर दूरस्थ विश्वविद्यालयों तक नहीं भटकेंगे।  

एक प्रश्न और क्या घोषित बज़ट प्राप्त हो सकेगा ? तो इसी माह संसद में यह शिक्षा नीति जा रही है और पूरा भरोसा है की इसे घोषित जी.डी.पी का 6 प्रतिशत प्राप्त होगा।

क्या शिक्षा का व्यवसायीकरण बढेगा ? इस प्रशन को देखते है तो दो बाते सामने आती हैं, एक शिक्षा में (cluster) समूह विद्यालयों की व्यवस्था होगी जो कम संसाधन वाले विद्यालयों के सहयोगी होंगे और सामान्य आमदनी का ब्यक्ति भी अपने संतानों को अच्छी शिक्षा दे पायेगा। और जो संसाधन संपन्न विद्यालय है उनमे सामजिक सरोकारों का भाव भी जाग्रत होगा।

     क्या महाविद्यालय और विश्वविद्यालय पुनर्गठित होंगे ? जी हैं। पुनर्गठन का अर्थ यहाँ ठीक से समझाना होगा। विश्वविद्यालयों में दो प्रकार के विश्वविद्यालय होंगे। प्रथम श्रेणी के विश्वविद्यालयों का पूरा ध्यान शोध पर होगा। यह प्रशन उठ सकता है की क्या ऐसा ही शोध होगा जैसा अब तक हो रहा था ? तो उत्तर है, नहीं। पेटेंट आधारित शोध होगा। इसका यह भी अर्थ नहीं की उसमे अन्य विषय पढाये ही नहीं जायेंगे तो ऐसा नहीं है, वहां भी अन्य विषय होंगे परन्तु जैसा कहा गया की पेटेंट आधारित शोध पर जोर होगा।

ऐसे ही सौ विश्वविद्यालय विदेशी विश्वविद्यालयों से MOU कर सकेंगे। इससे दोनों विश्वविद्यालयों अपनी ज्ञान सम्पदा का आदान प्रदान करेंगे।यह एक तरफ़ा विदेशी विश्वविद्यालयों का भारत में फैलाव नहीं है।इससे शिक्षा लोकल से ग्लोबल होगी।    

दूसरी बात देश के विश्वविद्यालयों को अपनी स्वायतत्ता के साथ अध्यापन और शोध कराना होगा। महाविद्यालय भी दो प्रकार के होंगे- एक जो स्वायत्तशासी होंगे और अपनी परीक्षा से लेकर डिग्री तक देंगे। पाठ्यक्रम डिजायन करेंगे। और दूसरे महाविद्यालय वे होंगे जो क्रमश NAAK के माध्यम से अपनी गुणवत्ता को बढ़ाते हुए ऑटोनोमस स्टेटस को प्राप्त करेंगे।   

इससे शिक्षा के स्वायत्त, स्वावलंबी और रोजगारमुखी सिद्ध होने के अवसर बढ़ेंगे। और नई सदी की चुनौतियों, समूचे समाज की आकांक्षाओंआग्रहों और सोच को संतुष्ट कर पाएगी।

इस शिक्षा नीति में जिस मातृभाषा, क्षेत्र भाषा की बात कही गई है उसमे भी प्रश्न खड़ा होना स्वाभाविक है की आज कुकुरमुत्तो की तरह चल रहे अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों का क्या होगा। नीति में बहुत स्पष्ट है पांचवी तक मातृभाषा, क्षेत्रभाषा को माध्यम बनाकर सभी विद्यालयों को शिक्षा देनी होगी। इसमें कुछ संस्थायों को विरोध हो सकता है क्योंकि जो अंग्रेजी माध्यम का लालीपाप था उसमे संकट आ सकता है किन्तु यदि एक वार माता-पिता और अभिभावक ठान लें  तो यह सुलभ हो जायेगा। तमिलनाडु से जो आवाज़ आ रही है वह महज राजनीतिक ही कही जा सकती है।

इस नीति की प्रारूप देने वाले कस्तूरीरंगन जी का स्वयं का भी यह मानना है की ‘मातृभाषा में शिक्षा इसलिए आवश्यक है की आज विज्ञान भी यह मानता है की बालमन सबसे अधिक किसी बात को अपनी घर की भाषा में ही ग्रहण करता है।‘

ऊपर की शिक्षा के लिए माध्यम का बंधन नहीं है किन्तु यदि कोई शोध तक अपने मातृभाषा या क्षेत्रभाषा में शिक्षा देना चाहे तो उसे भी बंधन नहीं है।

त्रिभाषा फार्मला का कोई बंधन नहीं है, उसमे चुनाव की पूरी स्वतंत्रता है।

क्या प्रत्येक तकनीकी, गैर-तकनीकी महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में सभी मनचाहे विषय पढ़ने वाले शिक्षक होंगे ? तो इसको ठीक से समझ लें। यह सामान्य कक्षाओं की तरह लगनेवाली कक्षा नहीं होगी। यह कक्षाएं सभी बिधाओं के विद्यार्थिओं के लिए होंगी। इसमे ऐसे भी विद्यार्थी हो सकते है, जो पूरे सत्र में एक दूसरे के परिचित भी न हों।  

एक प्रशन यह भी है की क्या विदेशी विश्वविद्यालयों का हस्तक्षेप बढेगा? यदि हाँ तो इसे कैसे रोका जायेगा ? विदेशी विश्वविद्यालयों के प्रवेश से स्वदेशी विश्वविद्यालयों का भविष्य क्या होगा? ऊपर चर्चा की जा चुकी है की विदेशी विद्यालय हमारे आपसी MOU के आधार पर होंगे। प्रतिभावान विद्यार्थियों को केंद्र और राज्य सरकारें जैसी सुविधा आज दे रही है, वैसे ही देंगी। इस नीति से गुणवत्ता में विकास होगा, प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, आधारभूत संरचना और तकनीक में विकास होगा। समाजिक उत्तरदायित्व का बोध होगा।  

महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में ऑटोनोमी किस स्तर तक रहेगी ? पाठ्यसामग्री निर्माण और परीक्षा संचालन में कितनी ऑटोनोमी रहेगी ? बनने वाले विभिन्न आयोग / परिषदें इन सब बातों को किस प्रकार नियंत्रित कर पाएंगे ? तो समझाना होगा ऑटोनोमी का अर्थ यह बिलकुल नहीं है की उनके ऊपर कोई देख रेख या नियंत्रण ही नहीं होगा। हम ऊपर स्कूल और उच्च शिक्षा की बात करते हुए देख चुके है की चार तरह की नियमन संस्थाएं होंगी जो क्रमशः स्कूल में national mission on fundamental and nursery, NCFSC, PARAKH, AI ( artificial intelligence), NCPFECCE,NTTE,ECEEC तथा NCIVE संस्थाएं / परिषदें होंगी जो पूरी स्कूल शिक्षा को सभी प्रकार से पोषण और नियमन करेंगी।

इसी तरह उच्च शिक्षा में क्रमश: HEC (भारत उच्च शिक्षा आयोग), NTA, ISL, NRE, NTTE, FDI और अंत में MERU. वस्तुत: ये संस्थाए पूरे शिक्षा तंत्र को प्रभावित करेंगी, इसलिए किसी प्रकार की नकारात्मक धारणा निर्मूल हैं।

फिर भी अभी संसद सत्र में बहस में बहुत सी बातें जैसे- थर्ड जेंडर की शिक्षा, अल्पसंख्यक विद्यालायों में बहुसंख्यक के पढाने की बातें आदि आने वाली है जो सामान्य जन की भावनाओं को प्रतिबिंबित करेंगी और यदि लगेगा तो सरकार उसमे संशोधन करेगी।

मध्यप्रदेश और राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020

हम जानते हैं की शिक्षा समवर्ती सूची का विषय है इसलिए इस पर राज्य के मुख्यमंत्री जी के साथ शिक्षा के मंत्रियों की भूमिका,चिंतन और क्रियान्वन की सिधता बहुत महत्व पूर्ण है। इसलिए शिक्षा नीति पर विचार जानना बहुत आवश्यक है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के विचार- “मध्यप्रदेश में राष्ट्रीय शिक्षा नीति आदर्श ढंग से लागू होगी। हमारें यहाँ शिक्षा के तीन उद्येश्य माने गए हैं- ज्ञान देना, कौशल देना और नागरिकता के संस्कार देना। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में विशेषकर व्यावसायिक शिक्षा जो छठी से लागू होगी हमारे प्रदेश में उसे लागू किया जायेगा। शिक्षकों के प्रशिक्षण पर विशेष ध्यान दिया जायेगा, जिससे टैलेंट पूल बनेगा और भविष्य में प्रदेश की शिक्षा का विकास होगा। दस पंद्रह गाँव के बीच में एक-एक सर्व सुविधायुक्त विद्यालय बनायें जायेंगे जहाँ पर्याप्त योग्य शिक्षक रहेंगे। ऐसे विद्यालयों में भले बसों से विद्यार्थिओं को लाना पड़े तो लाये जायेंगे तथा पड़ोस के विद्यालयों को भी इनके माध्यम से सक्षम बनाया जायेगा। संगीत नृत्य योग एवं भारतीय संस्कार की शिक्षा देना भी हमारा लक्ष्य है। तकनीकी शिक्षा प्राप्त करनेवाले विद्यार्थियों को सत प्रतिशत प्लेसमेंट प्राप्त हो इसकी तरफ हमारा ध्यान है, बेरोजगारी दूर करना हमारा लक्ष्य है। वास्तव में शिक्षा जगत में सुधार की असीम संभावनाएं है, इसलिए एक तरफ शिक्षकों का मान सम्मान सुनिश्चित करते हुए भावी पीढ़ी के भविष्य को गढ़ने में इस दिशा में काम करते हुए राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से हम शिक्षा जगत का परिदृश्य बदलेंगे। प्रायवेट सेक्टर में भी शिक्षक का शोषण न हो, गैर जरूरी फीस भी अभिभावकों से न ली जाए इसके लिए जल्दी हम एक्ट (क़ानून) लेकर आने वाले हैं। साथ ही प्रायवेट सेक्टर की भूमिका शिक्षा के क्षेत्र में बढे यह भी हमारी सरकार सुनिश्चित करेगी।” जब मा. मुख्यमंत्री जी यह विचार व्यक्त कर रहे थे उस समय साथ में स्कूल शिक्षा मंत्री जी भी थे, इसलिए यह मानाने में कोई हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए की प्रदेश सरकार स्कूल शिक्षा के और राष्ट्रीय शिक्षा नीति के लिए काफी गंभीर है। 

 प्रदेश के उच्च शिक्षा की बात करें तो ध्यान में आता है की पिछले दस वषों में प्रदेश में निरंतर शासकीय और अशासकीय विश्वविद्यालय खुले हैं।

मध्यप्रदेश शासन शासकीय महाविद्यालयों को सीधे और विश्वविद्यालयों को कुल सचिवों के माध्यम से नियंत्रित करती है, तथा सभी को यू.जी.सी. की फंडिग के अतिरिक्त पोषित भी। वही प्रायवेट विश्वविद्यालयों के लिए विश्वविद्यालय नियामक आयोग है। फीस नियामक आयोग भी पिछलें कई वषों से यहाँ अस्तित्व में है।

जहाँ तक पेटेंट आधारित शोध का विषय है तो प्रदेश को इस दिशा में अपनी  विशिष्टता स्थापित करनी है।

प्रदेश सरकार के अपने उत्कृष्टता महाविद्यालय और संस्थान हैं जो अपनी कार्य शैली से निरंतर NAAC जैसी संस्थाओं को प्रभावित किया है और निरंतर A+ प्राप्त कर रहे हैं, परन्तु वे अभी पाठ्यक्रम और परीक्षा परिणाम के लिए पूर्ण स्वायत्त नहीं हैं।

शिक्षक भारती में शासकीय विश्वविद्यालय बहुत पीछे हैं जिससे गुणवता आवश्य प्रभावित होती है। लेकिन महाविद्यालयों के लिए यह सुखद है की जब-जब प्रदेश में भा.ज.पा. सरकार आई चाहे वह पटवा जी का कार्यकाल रहा हो या वर्तमान मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह जी का लोक सेवा आयोग के माध्यम से सहायक प्राध्यापकों की भारती हुई है। इसी तरह विश्वविद्यालयों में कुलसचिव , सहायक कुल सचिव भारती हुए हैं।

 उच्च शिक्षा के लिए यह सुखद संयोग है की राष्ट्रीय शिक्षा नीति के साथ ही प्रदेश को उर्जावान उच्च शिक्षा को समझाने वाले डॉ मोहन यादव जी मा. मंत्री मिले हैं, जिन्होंने आते ही प्रदेश के कुलपतियों, प्राचार्यों, शिक्षकों से सीधा कन्फेरेंसिग के माध्यम से लगातार संपर्क बना कर नीति-2020 के लिए जमीन तैयार कर ली है। संभागों में उत्कृष्ट महाविद्यालय खोलने, प्रदेश के कुछ विश्वविद्यालयों को केन्द्रीय विश्वविद्यालय बनाने के उनकी सोच को सराहना मिली है।

अपने कार्य से जहाँ डॉ मोहन यादव जी ने सरकार की संवेदन शीलता का परिचय देते हुए तत्काल दो कार्य किये हैं, उनका उल्लेख करना आवश्यक होगा, एक – कोरोना काल में विद्यार्थिओं की प्रवेश शुल्क कम करा कर तथा दो- पिछले वर्ष भर से भटकते योग्य अतिथि विद्वानों को महाविद्यालयों में पदस्थ कर, उन्ही  मानवीय मूल्यों और भारतीय संस्कृति को बढ़ने की बात की जिसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति कह रही है। यह कदम प्रदेश के उच्च शिक्षा के सुंदर प्रभावशाली, गुणवत्ता पूर्ण भविष्य की और संकेत दिया है। साथ ही उनकी उच्च शिक्षा के प्रति दूर दृष्टि की परिचायक भी है।

तात्पर्य यह कि- प्रथम दृष्टया राष्ट्रीय शिक्षा नीति में बननेवाली इतनी परिषदें और संस्थानों ने यदि अपने निर्माण से लेकर नीति के क्रियान्वयन पर जोर दिया तो परिणाम अवश्य निकलना चाहिए। किन्तु जिस तरह से आयोग और परिषदें बन रही है क्या 6 प्रतिशत का ज्यादा हिस्सा इन्हीं के स्थापना मद में नहीं ? क्या ये सभी अपने में स्वतंत्र और शिक्षाविदों से नियंत्रित होंगे! क्या प्रदेशों में उच्च शिक्षा और तकनीकी, चिकित्सा शिक्षा भी शिक्षाविदों और तज्ञ प्रतिभाओं के हाथ होगा ? यह बिंदु इतना महत्वपूर्ण है की सम्पूर्ण नीति का धरती पर उतरना इसी पर निर्भर होगा

 वास्तविकता यह है कि सम्पूर्ण शिक्षा हर छह महीनों में बदलने वाले प्रशासकीय व्यवस्था के हाथों की कठपुतली बन कर रह जाती है ! अभी तक का यह कटु अनुभव है। किन्तु जैसा सुनाई दे रहा है की केंद्र सरकार हर पद के लिए लक्ष्य और विज़न तय कर रही है फिर उसमे ‘अ’ बैठे या ‘ब’ उसे टारगेट पूरा करना है न की फिर से श्री गणेश करना है, यदि ऐसा ही प्रदेश की सरकारों ने किया तो परिणाम सुखद होंगे।  

साथ ही माननीय प्रधानमंत्री जी का जो लक्ष्य है की ‘पढ़ाई ही नहीं, बर्किंग कल्चर को डेवलेप किया जायेगा’,व्हाट टू थिंक’ से ‘हाऊ टू थिंक’ की पद्धति की और बढ़ाना है तो वह निश्चित पूरा होगा।

इस नीति में जिस शिक्षा में आधुनिक तकनीक के साथ व्यक्तित्व निर्माण (शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक तथा आध्यात्मिक विकास ) की बात कही जा रही है, मध्यप्रदेश का सौभाग्य है की माननीय मुख्य मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने इसे अपने प्रदेश में अध्यात्म विभाग, अटलबिहारी सुशाशन संस्थान बना कर पहले से ही बढाया है। मध्यप्रदेश में स्कूल शिक्षा में पहले से ही संगीतखेलयोग आदि को पाठ्यक्रम में जोड़ा है। महाविद्यालयों में व्यक्तित्व विकास के लिए उच्च शिक्षा पहले से ही कार्य कर रहा है। हिंदी माध्यम से उच्चतर शिक्षा हेतु अटल बिहारी हिंदी विश्व विद्यालय, हिंदी माध्यम से तकनीकी शिक्षा से लेकर चिकित्सा शिक्षा तक की पुस्तकों के निर्माण के लिए हिंदी ग्रन्थ आकादमी है।

 यदि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के लागू होने में शासन, प्रशासन, अभिभावक, वैज्ञानिक और शिक्षक पूरे मनोयोग से सामने आते हैं  तो निश्चित रूप से अपने जड़ों से जुडा विश्वमानव तैयार होगा। इसमें शिक्षा की आटोनामी और ‘टैलेंट-टेक्नोलॉजी’ से गरीब विद्यार्थियों को बढऩे का मौका प्राप्त होगा।

 लेकिन इसमें जिन शिक्षकों और कुलपतियों, अध्ययन मंडलों की (पाठ्य निर्माण में ) भूमिका रहेगी उनके नियुक्ति और निर्माण में भी गंभीर परिवर्तन लाना होगा। यह बात इस पर भी निर्भर कराती है की जैसा की नीति की मंशा है क्या प्रायवेट महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों की तरह शिक्षकों की नियुक्ति उनके सतत योग्यता के आधार पर अनियतकालीन होगी ? किन्तु जो अपनी योग्यता को बढ़ाते जायेंगे उन्हें किसी प्रकार का कोई नुकसान नहीं होगा।      

महाविद्यालयों की संबद्धता 15 वर्षों में समाप्त हो जाएगी और उन्हें क्रमिक स्वायत्तता प्रदान करने के लिये एक चरणबद्ध प्रणाली की स्थापना की जाएगी। 

यदि  विद्यालयीन शिक्षा की तरह महाविद्यालय और विश्वाविद्यालयों में भी छात्र शिक्षक अनुपात 30:1 और सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित क्षेत्रों में है छात्र शिक्षक अनुपात 25:1 तय किया जायेगा तो निश्चित रूप से इसके सार्थक परिणाम होंगे।  

     इस शिक्षा नीति में अनेकों ऐसे सकारात्मक सुझाव हैं जो भारत को शिक्षा के क्षेत्र में नए मानक स्थापित करने में मदद करेंगे। यह शिक्षा नीति स्कूली शिक्षा के अधिकारस्कूलों के समवर्ती विकासछात्रों के सम्पूर्ण विकास पर जोर देती है । 

कुल मिलकर अनेक किन्तु परन्तु के बाद भी यदि इन सब बातों पर व्यावहारिक चिंतन कर केंद्र और प्रदेश सरकारों द्वारा अपने-अपने हिस्से को लागू किया जाता है तो इस नीति से शिक्षा में बड़ा बदलाव आने वाला है। इसमें व्यावसायिक शिक्षा और कौशल विकास पर ज़ोर दिया गया हैजिससे विद्यार्थी पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर होंगे। प्रत्येक विद्यार्थी को नौकरी व स्वरोजगार के लिए पूर्ण प्रशिक्षण देने का भी प्रावधान है। इससे आने वाले समय में देश से बेरोजग़ारी खत्म होगी और अच्छे नागरिक प्राप्त होंगे, जिनके अंदर विश्वमानव बनाने की क्षमता होगी। कुल मिलाकर राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का स्वागत ज्यादा और विरोध आंशिक है। कुछ शंकाएँ रहेंगीं जिनका समाधान समय के साथ ही हो सकता है।

प्रो उमेश कुमार सिंह

Umeshksingh58@gmail.com

 

        

 

 

 

 

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