Thursday, 14 August 2025

अखंड भारत संकल्प दिवस

रक्षाबंधन एवं अखंड भारत संकल्प दिवस

 राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और रक्षाबंधन  

सम्पूर्ण हिन्दू समाज को संगठित करने के लिए डॉ हेडगेवार जी द्वारा १९२५ में नागपुर के मोहिते के बाड़े में पहलीवार शाखा प्रारम्भ की गई।
 किसी भी संगठन को सतत चलाने और जीवंत बनाये रखने के लिए कुछ नित्य और कुछ नैमीत्तिक व्यवहार रखने पड़ते हैं ।
 संघ ने प्रारम्भ में दो प्रकार के कार्यक्रम तय किये । एक स्थाई व्यवस्था नियमित एक घंटे की शाखा । फिर समाज को जोड़ने, अतीत के वैभव को स्मरण करने, सामाजिक समरसता बनाये रखने के निमित्त वर्ष में छह कार्यक्रम तय हुए । उनमें से एक कार्यक्रम है रक्षाबंधन ।
 
 सामाजिक समरसता का कार्यक्रम : यह सामाजिक समरसता का कार्यक्रम है । हम सब जानते हैं की यह उत्सव हिन्दू समाज के सभी वर्गों, घटकों में मनाया जाता है । इस कार्यक्रम से समाज में समबन्धों की नीव तैयार होती है । बंधुता का भाव बढ़ता है । हम सब सहोदर है, यह भावना विकसित होती है । एक दूसरे के दुःख सुख में सरीक होने का भाव जागृत होता है । हिन्दव: सोदर सर्वे न हिन्दू पतितो भवेत् का बोध होता है । 
फिर हमारे जीवन व्यवहार में धीरे-धीरे परिवर्तन आता है । सामान्य रूप से इसे वर्षों से भाई बहन के रिश्तों को लेकर माना जाता था । इसके पौराणिक उदहारण भी हैं तो मुग़ल काल के भी हैं । उन्हें हम सब जानते हैं । 
 यह समाज में भारत के लिए माता-पुत्र की सुरक्षा के लिए भारत माता की प्रतीक स्वरुप रक्षा बंधन करते हैं । यह राष्ट्र के लिए आश्वाशन बना । भगवा ध्वज को गुरु मानकर रक्षा सूत्र बंधाते है । मंदिरों में जाकर आराध्य देव को रक्षा सूत्र बंधाते हैं । राष्ट्रीय स्वंसेवक संघ ने इसे व्यक्तिगत और पारिवारिक आयोजन से आगे लाकर सामजिक और राष्ट्रीय स्वरूप दिया ।
 
संघ में रक्षाबंधन उत्सव सामूहिक जागरण के लिए होता है । इस दिन को वंचित, दलित, पिछड़ी, उपेक्षित वस्तिओं में जाकर उन्हें रक्षा सूत्र बंधार उनके सुरक्षा, समृद्धि और स्वास्थ्य का आश्वाशन देते हैं ।
उनको समाज और राष्ट्र की सेवा, संस्कृति के संरक्षण के लिए जागृत करते हैं ।
 इसके परिणाम हम संघ की इस सौ वर्ष की यात्रा में जगह जगह पड़ाव के रूप में देख सकते हैं । 
मीनाक्षी पुरम की सामूहिक धर्मान्तरित बंधुओं की घर वापसी । विवेकानद केंद्र के निर्माण के समय ईसाई मछुआरों द्वारा उत्पात मचाने पर इन्हीं सेवा वस्ती में रहने वाले नाविकों ने संघर्ष किया और केनीमेरी और क्रास को शिला से हटाया । 
 मोरबी की दुर्घटना हो या आपातकाल सब में समरस समाज के बंधुओं ने इन्हीं उत्सवों से प्रेरणा लेकर अपना योगदान दिया ।
   धागा एक रक्षा सूत्र: यह प्रेम का धागा है तो रक्षा का अश्वाशन भी । तात्पर्य यह की यह मात्र सूत्र नहीं रक्षा सूत्र है । कठिन समय में व्यक्ति का व्यक्ति के प्रति, भाई का बहन के प्रति, माता का पुत्र के प्रति और पुत्र का माता के प्रति, परिवार का समाज के प्रति, समाज का राष्ट्र और संस्कृति के प्रति धर्माधारित यह आश्वाशन है, संकल्प है । 
रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय । टूटे से फिर जुड़े नहीं जुड़े गांठ पद जाय ।।    
आइये इस गाँठ के उलझाते और सुलझाते स्वरुप को समझें -
अखंड भारत संकल्प दिवस
अखण्ड भारत का क्षेत्र:
 ‘उत्तरंयत् समुद्रस्य हिमाद्रिश्चैव दक्षिणम्।’ उत्तर पूर्व पश्चिम में हिमालय की सभी शाखाओं से लेकर दक्षिण में समुद्र तक। नदियों की सीमा देखें तो - कूमा (काबुल नदी ), क्रुमू (कुरम नदी),गोमल (गोमती नदी),स्कात (सुकस्नू), अक्षु-वक्षु (Oxus), सिंधु, शतद्रु (सतलुज), ब्रह्मपुत्र (तीनों तिब्बत में), ऐरावत (वर्मा में), सरलवीन, मीकांग ( गंगा) के जल-ग्रहण क्षेत्र ये सब अखण्ड भारत के अंग रहे हैं।
 इस में बलोचिस्तान, अफगानिस्तान (उप-गणस्थान), सीमाप्रांत (राजधानी: पेशावर अर्थात् पुरुषपुर), सिंध, पश्चिमी पंजाब, बंगलादेश, ब्रह्मदेश, श्याम, इण्डो-चाईना, कंबोज (कंबोडिया), वरुण (बोर्नियो), सुमात्रा तथा तिब्बत के क्षेत्र आते हैं।

आज अंग्रेज तारीख १४ अगस्त है । अगस्त १९४७ से २०२५ की यात्रा का दिन ।
 अखंड भारत क्या है ? इसे कैसे देखेना चाहिए ? १८७६ के पूर्व का भारत : जिसमें अफगानिस्तान (1876), नेपाल (1904),, तिब्बत(1914 ), ब्रह्मदेश (1937 ), और पाकिस्तान (1947), थे।  
वर्तमान विभाजन त्रासदी क्यों ?
* १४ अगस्त बारह बजे की रात्रि । १४ अगस्त भारत माता का अंग भंग और पकिस्तान का विखंडित हिस्सा बनाना ।  
* 14 अगस्त ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ उन सभी की याद में जिन्होंने विभाजन के कारण अपनी जान गंवाई। 
* विभाजन के कारण: विभाजन के पीछे कई कारण थे, जिनमें धार्मिक मतभेद, मुस्लिम लीग की अलग राष्ट्र की मांग, और
* ब्रिटिश सरकार की नीति शामिल थी । क्रांतिकारियों के असंख्य बलिदान, संघर्ष और जीवन गाथाएँ केवल इतिहास की जानकारी नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए चरित्र, साहस और राष्ट्रनिष्ठा की प्रेरणा-स्रोत हैं।
*  इसलिए इस विरासत को शिक्षण में जीवंत, भावनात्मक और प्रेरक रूप में प्रस्तुत करना राष्ट्रीय चेतना के लिए अनिवार्य है।
*  सामाजिक जीवन मूल्यों, समरसता, प्रेरक जीवन जीने के लिये अति आवश्यक है। 
* अन्यथा समाज भ्रम, अज्ञान और स्वार्थ के दावानल के भँवर में अटल जायेगा।
* अल्प नेतृत्व और कमजोर समाज के माहौल, ब्रिटिश चालाकी, सांप्रदायिक दंगे, रणनीतिक चूक, और सैद्धांतिक अहिंसा—ये सभी मिलकर विभाजन की दिशा में काम करने वाले प्रमुख तत्व थे।
* मुस्लिम लीग की सामूहिक रणनीति को लोहिया खासतौर पर दोषी मानते हैं।
* हिंदू अहंकार और जनता की जागरूकता की कमी। ये दो ऐसे अंदरूनी कारक हैं।
* इनकी विवेचना अक्सर कम होती है, लेकिन लोहिया इसे अत्यंत महत्वपूर्ण मानते हैं।
* कम्युनिस्ट या दक्षिणपंथ की भूमिका को लोहिया प्रभावहीन बताते हैं,उनकी नीतियाँ विभाजन में निर्णायक नहीं थीं।
क्यों कर रहें है स्मरण :
• स्वतंत्रता: 14 अगस्त, 1947 को पाकिस्तान और 15 अगस्त, 1947 को भारत को स्वतंत्रता मिली ।
• भारतीय इतिहास में 14 अगस्त मात्र एक तारीख नहीं, एक त्रासदी है।देश के विभाजन और उसकी त्रासदी के शिकार लोगों के दर्द को याद कर संवेदना व्यक्त करने का दिन है।
• इस दिन कांग्रेस ने देश को टुकड़ों में बाँटकर माँ भारती के स्वाभिमान को चोट पहुँचाई।विभाजन के कारण हिंसा, शोषण और अत्याचार हुए, और करोड़ों लोगों ने विस्थापन झेला।
• उन सभी लोगों के प्रति मन की गहराई से श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए ।
• देश विभाजन के इस इतिहास और दर्द को आनेवाली पीढ़ी को स्मरण दिलाने के लिए ।
• भारत विभाजन की अमानवीय वेदना वह पीड़ा हमारी स्मृति है और हमारी सीख भी है।

फिर से कोई मुस्लिम लीग न बने -
*  मुस्लिम लीग की मुसलमानों के लिए अलग देश की मांग ने लाखों लोगों को विस्थापित कर दिया, यह विस्थापन कोई सामान्य नहीं था। 
*  हजारों-हजार लोगों का जनसंहार हुआ, महिलाओं के साथ जघन्यतम अपराध हुए- उस दौर में भारतीय उपमहाद्वीप में मानवता त्राहिमाम कर उठी।
*  लेकिन अंग्रेजों की शातिराना कोशिशों तथा मुस्लिम ‌लीग के सांप्रदायिक एजेंडे ने आधुनिक काल में मनुष्यता पर विभाजन द्वारा बड़ा संकट खड़ा किया।
*  सन् 1905 में बंगाल के धर्म आधारित विभाजन के बाद से ही विभाजन की कुत्सित रूपरेखा बनना शुरू हो गई थी, विभिन्न इतिहासकारों ने अंग्रेजों के इस कदम को भारत विभाजन के बीज के रूप में देखा है। 
*  वहीं विभाजन के जिम्मेदारों पर बात करते हुए समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया ने अपनी किताब 'गिल्टी मेन ऑफ़ पार्टिशन' में लिखा है कि कई बड़े कांग्रेसी नेता जिनमें नेहरू भी शामिल थे वे सत्ता के भूखे थे जिनकी वजह से बँटवारा हुआ।
* वर्तमान भारत सरकार 14 अगस्त के दिन को 'विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस' के रूप में मनाने की घोषणा की। 
* नरेन्द्र मोदी जी ने कहा “देश के बंटवारे के दर्द को कभी भुलाया नहीं जा सकता। * नफरत और हिंसा की वजह से हमारे लाखों बहनों और भाइयों को विस्थापित होना पड़ा और अपनी जान तक गंवानी पड़ी।
*  राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ जब शताब्दी वर्ष मना रहा है तो यह स्वाभाविक है की वह अपने अखंड भारत के संकल्प को दुहरायेगा ।
*  नए “पाकिस्तान” में अल्पसंख्यकों, जिनमें बौद्ध, सिख और हिंदू शामिल थे, को देश छोड़ने के लिए कहा गया।
*  कई जिहादियों ने कई मौकों पर महिलाओं के साथ बलात्कार किया। उन्होंने पुरुषों और बच्चों को मार डाला।
 * दिल्ली पहुंचने पर लाशों से लदी ट्रेनों पर बलात्कार की शिकार महिलाओं के शवों पर।“आज़ादी का तोहफ़ा” लिखा हुआ था। 
* मृतकों की संख्या इतनी ज़्यादा थी कि दिल्ली की स्थानीय सरकार कई लोगों के अंतिम संस्कार की योजना नहीं बना पाई। 
* जब उनके पास कोई और विकल्प नहीं बचा, तो उन्होंने मृतकों को एक समतल जगह पर इकट्ठा किया, उन पर मिट्टी का तेल छिड़का और आग लगा दी। उस समय, दोनों तरफ़ तबाही मची थी।
*  यह दिन हमें भेदभाव, वैमनस्य और दुर्भावना के जहर को ख़त्म करने के लिए न केवल प्रेरित करेगा, बल्कि इससे एकता, सामाजिक सद्भाव और मानवीय संवेदनाएं भी मज़बूत होंगी।"
*  तत्कालीन अविभाजित भारत के विभिन्न हिस्सों में 1946 तथा 1947 के दौरान हुई हिंसा तथा दंगों की व्यापकता और क्रूरता ने मानवता पर जो प्रश्नचिन्ह लगाया है, उसका उत्तर आजतक नहीं मिला।
* विभाजन के दौरान हिंसा की सनक न केवल किसी का जीवन ले लेने की थी बल्कि दूसरे धर्म की सांस्कृतिक और भौतिक उपस्थिति को मिटा देने तक की भी थी। 
* विभाजन के बाद जो हिंदू, सिख भारत आए उन्हें अनेक विषमताओं का सामना करना पड़ा।
*  लेकिन भाषाई, भौगौलिक तथा सामाजिक विषमताओं की सीमा को लांघ अपनी मेहनत के बलबूते ये नागरिक भारत के विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
* एक आधुनिक लोकतंत्र के नागरिक के रूप में व्यवहारिकजीवन में अन्यों  के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल पड़े।
*   पाकिस्तान तथा बांग्लादेश में जो अल्पसंख्यक रह गए थे, उनके साथ बाद के वर्षों में हुई ज्यादतियां किसी से छिपी नहीं हैं। 
*  इतिहास पर सरसरी नजर डालने पर ऐसा लगेगा कि भारत का विभाजन जल्दबाजी में लिया गया निर्णय था।
* लेकिन करीब से देखने पर पता चलेगा कि इसकी योजना लंबे समय से बनाई जा रही थी।
* भारत को समझने के लिए इस देश की ऐतिहासिक, सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक एकता को समझना आवश्यक है।
*  दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक भारत की सभ्यता है।
*  मुगल आक्रमणों के बाद अखंड भारत का सपना अतीत की बात हो गया।
* क्योंकि कई भारतीय रियासतों ने लंबे संघर्ष के बाद अपना अधिकार खो दिया। 
* इसी दौरान ब्रिटिश व्यापारी भारत में आए और इतिहास की दिशा को स्थायी रूप से बदल दिया। 
* अंग्रेजों ने भारत की अखंडता पर विनाशकारी प्रहार किया।
*  भारत को दो देशों में विभाजित करने के अलावा शेष राज्यों की अलग-अलग राजनीतिक व्यवस्थाएं थीं। 
करना क्या है- 
• अखंड भारत का संकल्प लेना है।
• देश के इस विभाजन की विभीषिका को भावी पीढ़ी को स्मरण दिलाना है ।  
• राष्ट्र सर्वोपरि को जीवन में उतारना है।  
• टैरिफ बम का तोड़ने के लिए स्वदेशी को अपनाना है । 
• 1947 में धर्म के आधार पर हुआ देश का विभाजन भारतीय इतिहास का एक अमानवीय और काला अध्याय है ।   
• यह देश में दुबारा न दुहराया जाए । संकल्प लें।
• अखंड भारत के स्वप्न को साकार करें । 
• विभाजन सिर्फ भूगोल का नहीं, मानवता का बंटवारा था।

 विभाजन का उत्तर है- 
*  स्मरण रखना होगा राजनीतिक सीमाएं कभी स्थिर नहीं।
* आलसेस लारेन जर्मनी तथा फ्रांस के बीच का प्रांत है। पहले नेपोलियन ने इसे फ्रांस में मिलाया, फिर प्रशिया जर्मनी
 ने। यह प्रांत 1944 में पुन: फ्रांस में मिल गया। 
* 1918 तक पोलैण्ड का कोई अस्तित्व नहीं था। 
* इस्राइल सैकड़ों वर्ष बाद स्वतंत्र यहूदी देश बना। 
* चीन के पास 1650 से पहले केवल 31 लाख वर्ग मील भूमि थी अब 54 लाख वर्ग मील है।
* रूस (Russia) आज 87 लाख वर्ग मील भूमि का स्वामी है, पहले कुल 21 लाख थी। 
* दोनों जर्मनी मिल चुके हैं। 
*  पाकिस्तान का पहले पूर्वी बंगाल पर भी अधिकार था। अब कट चुका है।
*   भारत की सीमाएं भी बदलेंगी। 
*  भारत विभाजन एक समझौते था , जो स्थाई नहीं है।इस बात को श्री अरबिंदो, श्री गुरूजी,राम मनोहर लोहिया आदि ने बार बार कहा है।


 बिना रक्तपात परस्पर सद्भाव से अखण्ड भारत संभव है-
‘पंद्रह अगस्त का दिन कहता आज़ादी अभी अधूरी है।
सपने सच होने बाकी है,रावी की शपथ न पूरी है॥
लाहौर, कराची, ढाका पर मातम की है काली छाया।
पख्तूनों पर, गिलगित पर है ग़मगीन गुलामी का साया॥
बस इसीलिए तो कहता हूँ आज़ादी अभी अधूरी है।
कैसे उल्लास मनाऊँ मैं? थोड़े दिन की मजबूरी है॥
थोड़े दिन की मजबूरी है॥
दिन दूर नहीं खंडित भारत को पुन: अखंड बनाएँगे।
गिलगित से गारो पर्वत तक आज़ादी पर्व मनाएँगे॥
उस स्वर्ण दिवस के लिए आज से कमर कसें बलिदान करें।
जो पाया उसमें खो न जाएँ, जो खोया उसका ध्यान करें॥
दिन दूर नहीं खंडित भारत को पुनः अखंड बनाएँगे,
गिलगित से गारो पर्वत तक आज़ादी पर्व मनाएँगे।’
14/8/25

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