मित्र!
तुम्हारे उदार मोमबत्ती को
प्रज्ज्वलित करने तत्पर हैं
हमारे दीपक की
सहस्त्र सहस्त्र उर्ध्वगामी शिखाएं,
एक टुकड़ा केक का केकड़ा
धस गया भारत की मांटी पर
मलाई बन कर,
पुराने मंदिरों की हिल गई हैं नींव
जगह ले लिया है दीपकों का
कुछ विदेशी मतांतरित मोमबत्तियां ने।
हृदय तल की मौन प्रार्थना
गुम हो गई पुस्तकों के क्षद्म-सेवी
नख- दंती पृष्ठों पर
मेरी कविता ने जो रचा था
वसुंधरा के सद्भावना का आकाश
डसता जा रहा है ....रचा है जो..
पहुंचे तुम तक
मेरी भगवाच्छादित ज्ञान रश्मियां
सत्य का संदेश लेकर।।
-उमेश
29/12/21
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