Saturday, 27 May 2023

तकनीकी शब्दावली

 जब  सरकारी मत सूची, तकनीकी शब्द मर्यादा के सहारे नैतिकता को तिलांजलि दे रही थी तब विरोध के नाम पर दूर संचार में कानफोडू प्रतिक्रियाएं राज्य के भूगोल खगोल को बदल रहीं थी।

सत्ता ने अपना सुर बदला, रुख बदला ,क्षेत्रीयता का संतुलन दाएं बाएं बिना देखे असंतुलन की पटरी पर सरपट दौड़ता रहा। चाटुकारों की फौज स्वार्थ सिद्धि में ऐसी डूबी की समय के पंख ने उसे बिना हवा का रुख पहचाने ऐसे मोड़ पड़ पहुंचा दिया, जहां त्याग, परिश्रम, नैतिकता मानों अपने पंख असमय झाड़ कर संध्या के इंतजार में खड़ी हो गई।

मार्तंड ने मनुष्यता की परछाईं को लील लिया! प्रलोभन और महत्त्वाकांक्षा  ने बेवशी के हाथ फैला दिए।
भीख के कटोरों की ऐसी बाढ़ आई की रहीम का झुका सिर ऊपर उठ जयकारों में ताल देने लगा।

मित्रता की पहचान बदली। मित्र डिलीट होने लगे। स्वागत भी हुआ और भविष्य की आकांक्षाओं ने आगत का स्वागत भी किया। प्रार्थना और प्रयत्न कर रहे जन और तंत्र असुरक्षित हैं आगे भी रहेंगे या आश्वासन सदैव के लिए दिया गया। लेकिन कभी जातीय, कभी क्षेत्रीयता, कभी मैं और मेरा ध्येयनिष्ठ पतंगों को जलने से नहीं बचा पा रहा है । समय की मर्यादा सीमा लंघन को तत्पर है।

भीष्म की प्रतिज्ञा, कृष्ण का राजयोग ,अर्जुन का मोह धृतराष्ट्र  मौन, दुर्योधन की बाचालता , कर्ण का अपरिचय और परिचय की प्रतिबद्धता,  विदुर की नीति , स्वच्छता के संकल्प सभी कुछ गुरु द्रोणाचार्य और आचार्यों के बीच ऐसा उलझा है कि तरकस का तीर किसे संधान करेगा पता करना कठिन हो रहा है।

शकुनि की कायरता बार-बार कुलांचे भरती है तंत्र के सफेद पोस हाथी नीला सफेद और हरे को पकड़ने के लिए गिरगिटी रंग बदलते हैं। प्रभात की वेला अपनी स्वर्णिम आभा से दसों दिशाओं में अक्षादित करने को तत्पर है।

क्या लोकतंत्र अपनी मर्यादाओं के लचीले धागों में बिना दाग लगाए सूरदास का काला कम्बल बन सकेगी।
 जन की सत्ता नारद की वीणा में कब तक बदलते सुर को साधते रहेंगे कहना कठिन है।

आश्वासन,घोषणाएं , प्रलोभन ,प्राथमिकताएं ऊंट को किस करवट बैठने को मजबूर करती हैं ,समय ही बताएगा। अपेक्षा इतनी ही है कि सांस्कृतिक धरोहर को समेटे जो एक धारा विश्व की कृति के लिए कटिबद्ध है, वह बनी रहे।
असतो मां सद्गमय।
तमसो मां सद्गमय। 

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