Saturday, 17 December 2022

मध्यप्रदेश, छग और राजस्थान की सरकारें क्या बदली ऐसी तीखी शब्दमर्यादा को तिलांजलि देती प्रतिक्रियाएं आ रही हैं कि मानों इन राज्यों का भूगोल खगोल ही बदल गया।
तर्पण करना है तो कुलांचे मारती सत्ता सुख की आसक्ति को करिए। भविष्य की आकाक्षाओं को आगत के स्वागत के लिये रखिये।
प्रार्थना और प्रयत्न यह रहे कि जन और तंत्र सुरक्षित रहे। नेताओं की शब्दमर्यादा अभी और टूटेगी। समाज जातीय सम्मोहन मे और प्राप्ति की आकांक्षाओं मे पतंगा बन रहा है उसे सम्हालने की आवश्यकता है।
भीष्म की प्रतिज्ञा और अर्जुन का मोह दोनों साथ रहेंगे। द्रोपदी का चीरहरण अवश्यंभावी है।काल की कठिन यात्राएं भीम को चाहे जितना उत्तेजित करें युधिष्ठिर का धैर्य नही टूटेगा ऐसा विश्वास आवस्यक है।कृष्ण जब तक हमारे भावबोध मे हैं धृतराष्ट्र विजयी नहीं हो सकता। गाधारी को चाहिए कि वह यथार्थ का बोध करे।अन्यथा कुलनाश सुनिश्चित है।
युयुत्सु की आवाज़ जिन्दा हो कौरवगण उसे समझे तभी शकुन की कायरता से बच सकेंगे।
सरकारी तंत्र को भगवा से नीला, सफेद, हरा होने मे समय नहीं लगता।उसके पास सिंहासन से बधे रहने की प्रतिज्ञा है। किन्तु नारद तो केवल नारायण के भक्त है। साहित्यिक संस्थाओं के कितने नारद तटस्थ रह पाते हैं देखने का अवसर है।

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