Saturday, 25 April 2020

सोंधी माटी

छूटी  सोंधी मांटी परदेशी मजदूर हो गया।
गांव का नन्हकू शहर आ मजबूर हो गया।।

सरहदे केवल अमीरों ने ही नहीं लांघी हैं।
ना-समझ का लांघना- असल कसूर हो गया।। 

अपनों से हाथ फैलाना  समझा अपमान था।
परायों में गुरूर  कितना मजबूर हो गया।।

दाना चुगने घर छोड़ कर उड़ा था परिंदा।
जाहिल-पंजों में तड़पने मजबूर हो गया।।

ऊंजाला लाने शहर निकला था बटोही ।
बाट-दामन में अंधियारा भरपूर हो गया।।

बड़ी हया से घूरा था जिस दरख्त-छांव को। 
हंसी पगडंडी, वही गांव आज दूर हो गया!!


उमेश कुमार सिंह
२३/०४/२०

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