उत्तर-दक्खिन पूर्व-पश्चिम
बैठे हैं प्रज्ज्वलित कर यज्ञकुंड
रावणी-आत्मघाती-आताताई
जाने कितने राष्ट्रभक्त-प्राण
हुए न्योछवर अब तक वेदी पर
बहुत हुए झूठे मानसम्मान सलामी
शहीदी का वन्चनापूर्ण दिखावा
कैसे कहें उन देशभक्तों को पागल
देखा जिन्होंने दिवास्वप्न विश्वास पर
सर सेनापति वर्षों से सो रहे थे
पहन जिरहबख्तर आजादी का बेपरवाह
वह था जग रहा रक्षा की थाती लेकर
जो नहीं सह सकता उन्माद-आतंक का धरा पर
थे राष्ट्रनायक सुबिधा के पिंजर में बंद
स्वर्ण मुद्रा में लेते रहे आनंद
यहाँ यह रक्षक स्वतंत्रता का जिसे भाता था नीला आकाश सदा सीमा पर
हाथों में पुरानी गौरव की ले सलाखें
दिव्य क्रीड़ाओं में लगता सुदूर
व्यथा सही सीमाओं में कितनी
और कथा सौर्य की दी जग को थाती पर
ऐसे वीर स्वतंत्रता प्रेमी सीमारक्षक अंत में
अंगीकार किया पाशविक मृत्यु सही व्यथा
हो गए शहीद दी आहूत खुद की
परिवार हुआ नंगा भूखा प्यासा छलाव पर
मत बहाना घड़ियाली आंशू
मत सजाना शहीद पार्क
हो सके तो इनकी याद में
अपना भी एक बेटा देना वार सीमा पर
१७/०४/२०१९
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