हिन्द स्वराज और वर्तमान सन्दर्भ
प्रो. उमेश कुमार सिंह
मित्रों नमस्कार। आपके सामने आज मैं गांधी जी के 'हिंद स्वराज' पर लिखी उनकी पुस्तक की भूमिका से बात प्रारंभ कर रहा हूं। विश्वास है आपको यह जानकारी उपयोगी होगी।
गांधीजी लिखते हैं बहुत पढ़ा, बहुत सोचा, विलायत में ट्रांसवाल डेपुटेशन के साथ में 4 माह रहा, उस बीच हो सका उतने हिंदुस्तानियों के साथ मैंने सोच - विचार किया , हो सकता है इतने अंग्रेजों से भी मैं मिला। अपने जो विचार मुझे आखिरी मालूम हुए, उसे पाठकों के सामने पुस्तक रूप में रखना मैंने अपना फर्ज समझा।
बात प्रारंभ करते हुए लिखते हैं,-
'इंडियन ओपिनियन' के गुजराती ग्राहक 800 की करीब है। हर ग्राहक के पीछे कम - से - कम 10 आदमी दिलचस्पी से अखबार पढ़ते हैं, ऐसा मैंने महसूस किया है। जो गुजराती नहीं जानते वे दूसरों से अनुवाद करवाते हैं। इन भाइयों ने हिंदुस्तान की हालात के बारे में मुझसे बहुत सवाल किए हैं। ऐसे ही सवाल मुझसे विलायत में किए गए थे इसलिए मुझे लगा कि जो विचार मैंने यो खानेगी मैं बताएं, उन्हें सबके सामने रखना गलत नहीं होगा।
जो विचार यहां रखे गए हैं, वह मेरे और मेरे नहीं भी है। यह मेरे हैं, क्योंकि उनके मुताबिक बरतने कि मैं उम्मीद रखता हूं, वे मेरी आत्मा में गढ़े-जुड़े हुए जैसे हैं। यह मेरे नहीं है, क्योंकि सिर्फ मैंने ही उन्हें सोचा हो सौ बात नहीं। कुछ किताबें पढ़ने के बाद वे बने हैं। दिल में भीतर ही भीतर जो मैं महसूस करता था, उसका इन किताबों ने समर्थन किया।"
गांधी जी बड़ा महत्वपूर्ण संकेत दे रहे हैं, " यह साबित करने की जरूरत नहीं कि जो विचार मैं पाठकों के सामने रखता हूं, वे हिंदुस्तान में जिन पर (पश्चिमी) सभ्यता की धुन सवार नहीं हुई है ऐसे बहुतेरे हिंदुस्तानियों के हैं। लेकिन यही विचार यूरोप के, हजारों लोगों के हैं यह मैं अपने पाठकों के मन में अपने सबूतों से जांचना चाहता हूं। जिसे इसकी खोज करनी हो, जिसे ऐसी फुर्सत हो, वह आदमी वे किताबे देख सकता है। इसका उद्देश्य सिर्फ देश की सेवा करने का और सत्य की खोज करने का तथा उसके मुताबिक बरतने का है। अगर यह सच साबित हो तो दूसरे लोग भी उनके मुताबिक बरतें, ऐसी दशा के भले के लिए साधारण तौर पर मेरी भावना रहेगी.(क्रमशः)
गाँधी जी के इस कथन से उनकी स्पष्टवादिता और सत्यनिष्ठा परिलक्षित होती हैं ।" हिन्दस्वराज " पुस्तक गाँधी जी के तत्कालीन समाज साहित्य और अपनी सांस्कृतिक पृष्ठ भूमि से संग्रहित उद्भूत विचारों का समूह है ।विशेष रूप से जॉन रस्किन की "अन टू दिस लास्ट " से वे बहुत प्ररित थे ।अच्छा आलेख है ।
ReplyDeleteआपका चिंतन सदैव पठनीय है, आप गांधी जी के चिन्तन और विचारधारा से भी हमारा परिचय करा रहे हैं, यह स्वागत योग्य है, बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय !
ReplyDeleteआज गाँधी का नाम लेकर समूचा देश गौरवशाली बन रहा है।यह युग गाँधी के पुण्य स्मरण का नया अध्याय रचने का प्रयास कर रहा है।शायद यह प्रसंगवश हो किन्तु सभी अथक प्रयासों के साथ 150 वर्षों के पश्चात भी गाँधी चिंतन कहीं फलीभूत होता दिखाई नहीं देता। वह आज भी बस उनके साहित्य में ही मात्र पठन-पाठन की उत्कृष्ट सामग्री और अमूल्य धरोहर बना हुआ है।!!!
ReplyDeleteसर! आपका दृष्टिकोण गाँधी साहित्य से परिचय करवाता सशक्त लेखन है।
धन्यवाद।
सभी पाठकों का आभार।
ReplyDeleteडॉक्टर साहब बहुत अच्छा लेख .इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई.
ReplyDeleteडॉ मृगेंद्र राय मुंबई
ReplyDeleteगांधी जी की बहुत कुछ ऐसी बाते है,जिन्हें पड़ने,सुनने का अवसर नही मिला।लेकिन आपके इस लेख को पढ़ने से ,गांधी जी के बारे में बहुत अच्छी जानकारी मिल रही है।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर
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