Monday, 14 October 2019

स्त्री हिंसा और गांधी

सुधार का उत्साह और गांधी की अहिंसा
प्रो.उमेश कुमार सिंह

गांधी जी कहते हैं "हम दंपत्ति के बीच जो कुछ भी मतभेद पैदा होता या कलह होता, उसका एक कारण यह मित्रता भी थी। .. मैं जैसा प्रेमी वैसा ही वहमी पति था। मेरी वहम को बढाने वाली यह मित्रता थी।

इस मित्र की बातों में आकर मैंने अपनी धर्मपत्नी को कितने ही कष्ट पहुंचाए थे। इस हिंसा के लिए मैंने अपने को कभी माफ नहीं किया। ऐसे दुख हिंदू स्त्री ही  सहन करती है, और इस कारण मैंने स्त्री को सदा सहनशीलता की मूर्ति के रूप में देखा।

नौकर पर झूठ का शक किया जाए तो वह नौकरी छोड़ देता है, पुत्र पर ऐसा शक किया जाए तो वह पिता का घर छोड़कर चला जाए, मित्रों के बीच शक पैदा हो तो मित्रता टूट जाती है,स्त्री को पति पर शक हो तो वह मन मसोसकर बैठी रहती है, पर अगर पति -पत्नी पर शक करें तो पत्नी बेचारी का तो भाग्य ही फूट जाता है।

 वह कहां जाए? उच्च माने जाने वाले वर्ण हिंदू स्त्री अदालत में जाकर बची हुई गांठ को कटवा भी नहीं सकती, ऐसा एक तरफा न्याय उसके लिए रखा गया है। इस तरह का न्याय मैंने दिया, इसके दुख को मैं कभी भूल नहीं सकता।

इस संदेह की जड़ तो तभी कटी जब मुझे अहिंसा का सूक्ष्म ज्ञान हुआ, यानी जब मैं ब्रह्मचर्य की महिमा को समझा, और यह समझा कि पत्नी को  दासी नहीं, वरन उसकी सहचारिणी है, सहधर्मिणी है, दोनों एक दूसरे के सुख दुख के समान साझीदार हैं, और भला बुरा करने की जितनी स्वतंत्रता पति को है उतनी ही पत्नी को है।

संदेह के उस काल को जब मैं याद करता हूं, तुम मुझे अपनी मूर्खता और विषयान्ध निर्दयता तथा मित्रता विषयक अपनी मूर्छा पर दया आती है।"

गांधी के जीवन का यह दुखद प्रसंग कई बातों को सामने लाता है। आज की परिस्थिति में ध्यान दे तो समझ में आता है कि गांधी की पहली चिंता हिंदू परंपरा, हिंदू संस्कृति और हिंदू संस्कारों को लेकर है।

गांधी के अहिंसा का विस्तार पत्नी के प्रति किए गए हिंसा के व्यवहार पर पछतावे से शुरू होता है जो प्राणी मात्र की हिंसा के विरुद्ध विस्तार पाता है।

दूसरी बात गांधीजी भारतीय नारी के उच्च चरित्र की ओर इंगित करते हुए स्पष्ट करते हैं कि पति- पत्नी का संबंध सहचारिणी और सहधर्मिणी का है।

आज भौतिक चकाचौंध और अराजक वासनाओं का शिकार मानवीय समाज किस स्तर तक गिरा है, गांधी का अपने से दिया गया उदाहरण विचारणीय है।

गांधी की एक बात को बारीकी से समझना होगा की जब तक कोई समाज अपने को ठीक नहीं करता, या कोई व्यक्ति अपने परंपरागत संस्कारों को ठीक नहीं करता तब तक वह किसी दूसरे समाज को ठीक नहीं कर सकता।

अहिंसा, सत्य और ब्रह्मचर्य हिंदू समाज की सनातन विशेषता है यह प्रत्येक भारतीय को समझना होगा तभी हम हिंदू समाज के साथ अन्य मतावलम्बियों के बीच चली आ रही पति -पत्नी के बीच की हिंसा,विषयांध  निर्दयता को दूर कर सकते हैं।

 मित्रता व्यक्ति की हो, पड़ोस की हो या देशों के बीच की हो मूर्छा की स्थिति में नहीं करनी चाहिए। क्या  हम हिंदी-चीनी भाई -भाई या पाकिस्तान के प्रति हमारे मित्रता के व्यवहार को हम गांधी के इन विचारों की छाया में समझ सकते हैं?
यह भी  समझने की आवश्यकता है कि साम्प्रदायिक सम्बंध भी हिंसा और अहिंसा के बीच नहीं बन सकता।


5 comments:

  1. हां गांधी जी के आत्मकथा में यह प्रशंग बहुत विस्तार से दिया गया है । आर आज के परिप्रेक्ष्य में उसे जोड़कर धर्म-कर्म करना और मित्रता पर विचार मंथन बिल्कुल सही और जरूरी है।

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  2. आर की जगह और तथा धर्म कर्म की जगह व्यक्त पढें।

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  3. मेरी दृष्टि में गाँधी जी, पहले ऐसे व्यक्ति थे जो स्त्री के स्वतंत्र अस्तित्व को स्वीकार करते है, और समाज में स्त्री पुरूष समानता और स्वतन्त्रता को लेकर विचार करते हैं । देखा जाय तो स्त्री विमर्श की बात गाँधी की ही देन है ।
    सर, आपने आलेख के माध्यम से अच्छा विषय उठाया है ।
    आभार!

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