Sunday, 29 December 2024

मोदी जी का क्रिसमस पर्व पर शामिल होना -

मोदी जी का क्रिसमस पर्व पर शामिल होना -

  पंडित हजारी प्रसाद द्विवेदी जी की 'अशोक के फूल’ की ये पंक्तियाँ- ''धारा रुद्ध न होने पाए कौन जानता है, भविष्य में उसी धारा में कौन कृति बालक पैदा होकर संसार को नई रोशनी दे।“ 

       मैं उसी धारा के प्रवाह में अवगाह्न करते हुए धारा की तीक्ष्णता को बनाए रखने का प्रयत्न करता रहा।

         2019 के मध्यप्रदेश के चुनाव में जनसत्ता लिखता है, ''मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले प्रदेश की राजनीति करवट ले रही है। सपाक्स , अजाक्स आमने सामने हैं।मुसलमान और इसाई वोटर मौन है । हिन्दू बंटा है । वह कहीं ब्राह्मण है तो कही सवंर्ण तो कहीं अवर्ण। किन्तु सामान्यजन भाजपा की ओर रुख करते नज़र आ रहे हैं।“ 

      जनसत्ता के लिखने का कारण-''दरअसल नरेन्द्र मोदी के मध्यप्रदेश दौरे के बाद ही प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से भा.ज.पा को मुसलमानों का जबरदस्त समर्थन मिल रहा है।“

  यह घटना तब ग्वालियर, छिंदवाड़ा और सीधी की है। कांग्रेस के बड़े (सिंधिया, कमलनाथ और अजय सिंह) नेताओं के गृहनगर की ऐसी स्थिति इसलिए थी की कांग्रेस को अभी तक मुसलमान आपना सेल्टर मानता था, किंतु अब नहीं।
      
 मुझे लिखने को दो विषय उसमें स्पष्ट हैं, एक-कट्टर हिन्दूवादी, दूसरा-मुस्लिम और ईसाई । 

पहली बात तो हिन्दू है तो वह कट्टर कैसे ?
 ( कट्टर हिन्दू शब्द जिन हिन्दू कांग्रेसी नेताओं ने दिया, उन्हीं के दरबारी एक आलोचक अब 'नागपुरिया हिन्दू 'शब्द लिख रहे हैं। आश्चर्य न  होगा यदि यह लिखने का निर्देश वहीं से मिला हो)

हाँ, यदि इस देश का सामान्यजन अपने जाति, धर्म, पंथ, परम्परा, संस्कृति और राष्ट्र के मानविन्दुओं तथा उसकी अस्मिता के लिए समर्पित है तो उसके समर्पण को कट्टरता या नागपुरिया कहना वैसे ही होगा जैसे स्वतंत्रता संग्राम के हुतात्माओं को विद्रोही कहना।

     प्रश्र यह है कि मनुष्य के जीवन के पुरुषार्थ को समझते और स्वीकारते हुए यदि हिन्दू समाज धीरे -धीरे ऐसा करता है तो वह सर्वमान्य होना चाहिए न कि दकियानूसी विचारों, सोचों का शिकार। 

    दूसरी बात -
यदि वे भारतीय दर्शन के आधार पर वसुधैव कुटुम्बकम् की अवधारणा का बोध करने लगें तो शेष समाज के बन्धु (ईसाई और मुसलमान) अपनी-अपनी मानवता को उद्घाटित करने वाली परम्परा के साथ स्वयमेव भाजपा के साथ आयेंगे।

 अत:  मोदी जी का क्रिसमस में शामिल होना और भाजपा में मुस्लिमों और ईसाईयों का आना न तो अछूतपन है और न अराष्ट्रीय व्यवहार।

 जैसे-जैसे इस देश के मुस्लिम और ईसाई भारतीय (इस धरती, इसकी गौरवशाली परम्परा, संस्कृति के अंग) होते जायेंगे, वैसे-वैसे वे राष्ट्रीयता के प्रेमसूत्र में अपने आप बँधते चले जायेंगे, जैसा की होते जा रहा है (हजारों वर्ष का मर्ज जो है)।

पाठकों को समझाना होगा की देश को स्थाई सरकार देनी है , तथा भविष्य में केरल, तामिलनाडु, आंध्र में पूर्वोत्तर भारत की तरह  ( विशेष कर असम और मेघालय की तरह) प्रदेशों में सरकार बनानी है या 2014 के पूर्व की स्थिति में जाना है। 

 यदि हिंदुत्व के बढ़ते प्रभाव और प्रधान के राजनीतिक बहाव से ईसाई , मुसलमान दोनों  अपने  (सीमित) जातीय सरोकारों से बहार आकर राष्ट्रीय सरोकारों से जुड़ता जाता है तो यह शुभ ही होगा।

हिन्दू भी सपक्स,अजाक्स, आदिवासी , दलित में न बांटे । वह अपनी उदार परम्परा के साथ रहे, देखना होगा। 

आरक्षण की सुविधा प्राप्त लोगों को एक वार आरक्षण के बाद अपने अजाक्स के अन्य बन्धुओं  लिए अवसर देना होगा , ताकि देश में सभी को रोटी, कपड़ा और माकन उपलब्ध हो सके। 

साथ ही राष्ट्रीय गौरव के प्रतीकों को संरक्षित भी करना होगा इसके लिए अन्यों को पूर्वजों के प्रति गौरव की अनुभूति भी करानी होगी। 

  पूजा पद्धति यदि कभी भय और प्रलोभन (सेवा के क्षद्म हथियार) से बदली है तो समय के साथ प्रेम और सहिष्णु उदारता के साथ आज नहीं तो कल अवश्य बदलेगी। क्योंकि बदलना प्रकृति है।

हां ! केवल सरकार के करने से समय लगेगा। समाज करेगा तो जातीय सौहार्द बढ़ेगा और राष्ट्र प्रगति करेगा।

29/12/24
(मदुरै से चेन्नई शताब्दी एक्सप्रेस में)

No comments:

Post a Comment