Saturday, 14 December 2024

बिधि बस

 बिधि बस सुजन कुसंगति परहीं।
फन मनि सम निज गुन अनुसरहीं।।

यह चौपाई आज किसी को भेजा तो प्रश्न आया इसको आज भेजने का कोई प्रयोजन?
उत्तर -
 संयोग से यदि प्रशासनिक धूर्तों के कुसंगति में पड़ें तो अपने मूल स्वरूप को न छोड़ें, जैसे शर्प अपने मणि के गुण को नहीं छोड़ता । इसीलिए मणियारा शर्प अपनी जाति में श्रेष्ठ माना जाता है। 
पास में मणि होना (गुणी और क्षमतावान होना) सहज बात है किन्तु (अधिकार से नहीं) कृतित्व से मणि सदृश लाखों में चमकना और ही बात है।

 चौपाई की अर्धाली कई  दिन से दिमाग में चल रही थी,आज पूरी हुई तो भेज दिया शब्द बोध के लिए। सादर
….......

ॐ अग्ने नय सुपथा राये अस्मान् विश्वानि देव वयुनानि विद्वान्।
युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो भूयिष्ठां ते नमउक्तिं विधेम॥(ई.उ./18)
 
ऋषि कहता है -

हे अग्नि देव! हमें कर्म फल भोग के लिए सन्मार्ग पर ले चल । हे देव, तू समस्त ज्ञान और कर्मों को जानने वाला है । 
हमारे पाखंड पूर्ण पापों को नष्ट कर । हम तेरे लिए अनेक बार नमस्कार करते है ।

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