Tuesday, 16 November 2021

 

शिक्षा में आधारभूत परिवर्तन के लिए  

भारत सरकार और शिक्षा मंत्रालय वर्तमान शिक्षा व्यवस्था को बदल कर भारतीय परम्परा आधारित शिक्षा लाना चाहती है. यदि उच्च शिक्षा में गुणात्मक परिवर्तन लाना है तो आधारभूत परिवर्तन आवश्यक है .

 इसके लिए आवश्यक है कि प्रदेश-प्रदेश में वर्तमान से लेकर चालीस वर्ष से प्रचलित अधिनियमों  में परिवर्तन किये जायें. उसमे कुलपति के नाम परिवर्तन से लेकर कुलगुरु और कुलसचिव में अधिकार, साधारण सभा के अधिकार, वित्त समिति के अधिकार हों या सबसे महत्वपूर्ण अध्यन मंडलों का गठन हो. वर्त्तमान में अध्यन मंडल के गठन की एसी प्रक्रिया है की उसमें परम्परा का निर्वहन ज्यादा है, गुणवता और शिक्षाविदों का स्थान कम.  अत: पाठ्यक्रम निर्माण समिति बनाने की प्रक्रिया बदली जाए

विषय विशेषज्ञ केवल पद के आधार पर न हों बल्कि वे विषय के ज्ञाता इतिहास, साहित्य , संस्कृति, भूगोल  के साथ भारतीय मनोविज्ञान  ,विज्ञान और अर्थशास्त्र की परम्परा के जानकार भी हों. जिन्हें  सही तथ्यों और  वर्तमान के कल्पित तथ्यों का  गहन अन्तर ज्ञात हो।

प्रकाशकों की भी एक ऐसी कार्यशाला हो, जो यह तय करें कि राष्ट्रहित में पाठ्यक्रम  आधारित पुस्तकें कैसे तैयार हों. तथा इसके तथ्यों, कथ्यों लिए फिल्म सेंसर बोर्ड की  एक मार्गदर्शक मंडल तैयार किया जाए । विश्वविद्यालयों / स्वसाशी संस्थानों के विभागाध्यक्ष, डीन और कुलगुरु तथा कुलसचिव की दृष्टि पाठ्यक्रम निर्णय के बारे में स्पष्ट हो ।

पुस्तक लेखक  तथा परीक्षक को भी विषय का गहन अध्यन हो । इन सबके अतिरिक्त छोटी -छोटी पुस्तकें तैयार करा कर प्राथमिक विद्यालय से लेकर विश्वविद्यालय तथा पुस्तकालयों के माध्यम से विद्यार्थिओं को उपलब्ध कराये जायें ।

विकिपीडिया के तथ्यों को निरंतर अपडेट किया जाये अथवा विकिपीडिया य गूगल  के समान एक प्लेटफार्म तैयार किया जाये । प्रतियोगी परीक्षाओं के पाठ्यक्रम में इन्ही तथ्यों के आधार पर पुस्तकें तथा प्रश्न तैयार कराये जायें ।

इस सामग्री की उपलब्धता कोचिंग की कक्षाओं में भी रहे ।  इतिहास के तथ्यों को रोचक बनाकर कहानियों, लेखों के आधार पर प्राथमिक से माध्यमिक शाला तक के विद्यार्थियों को प्रयोग एवं व्यवहार में लाने हेतु उपलब्ध  कराई  जाये।

इतिहास,भूगोल, भाषा, साहित्य, संस्कृति, परम्परा, पंथ, समुदाय एवं प्रचलित शब्दों की विद्यार्थी और शिक्षकों के समक्ष बार-बार पुनर्व्याख्या की जाये तथा इन पर प्रतियोगिता संपन्न हों। तथ्यों के ठीक प्रचार के लिए समाचार पत्र, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और उनके संपादक, तथा कर्मियों का भी सहयोग लिया जाए । सोसल मीडिया प्लेटफार्म का उपयोग भी किया जाये ।

No comments:

Post a Comment