Friday, 13 November 2020

शिक्षक और विद्यार्थी (भाग-दो)

 

 

(भाग-दो)

      स्मरण रखना होगा कि शिक्षक और विद्यार्थी जिस समाज से आते हैं उस समाज के लोगों का भी मन भयानक रूप से चंचल है। उनके सुख का केन्द्र अपने से बाहर है और इसीलिए वे सुख की तलाश में इधर उधर भागते हैं। इतना ही नहीं उनके सुख का केन्द्र अपने अन्दर से निकल कर या तो बाजार, सिनेमाघरों, डांस थियेटरों, क्लवों में या फिर चर्च में, प्रवचनों में, भाषणों में जाते हैं, कहने का अर्थ यह कि लक्ष्य विहीन सुख की तलाश में जहां इच्छा हुई, उधर ही दौड़े जाते हैं। तब एक ही सिद्धांत काम करता है- ‘‘प्रवाह के विपरीत चिंतन करने का कष्ट क्यों करें? मन को क्यों स्थिर करें ? अपनी इस मानसिक प्रवृत्ति के कारण पूरा भटका जन अधिकाधिक बहिर्मुखी बनता जाता है और अज्ञान के पाश में उलझ जाता है।’’

     आज के अधिकांश युवा भी सोचते हैं कि- जब हम ऐसे ही सुख पाते हैं तो मन को विचार करके कष्ट क्यों देना? क्यों न प्रचलित द्रव्यों का सेवन कर निद्रा जैसी मोहक स्थिति में मन को डाल दें, रोचक दिवास्वप्र में मग्र रहें? सोचना या विचार करना तो युवावस्था को वांछित नहीं है।प्रौढ़ और तनिक इस मोह जाल से निकले लोग मस्जिद, गिरिजाघर, देवालय जाते हैं, और विचारहीन अस्पष्ट निरा भौतिक रूप से दिए जानेवाले प्रवचनों को सुनते हैं, जो आध्यात्मिक दृष्टि से शून्य हैं। अर्थहीन हैं। 

शिक्षक का धर्म है कि वह इस वातावरण को बदले और आध्यात्मिक जीवन का प्रवाह शिक्षा संस्थानों के परिसर में प्रवाहित करे। यही शिक्षा की नीति होनी चाहिए। शिक्षा नीति का भौतिक लक्ष्य अपने प्रवेशित विद्यार्थियों की संख्या बढ़ाना तो है, किन्तु उससे अधिक महत्वपूर्ण उसे स्वरोजगार और रोजगार युक्त बनाना भी है। आज इस दिशा में यदि आत्मनिर्भर भारत और आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश की योजना एक आकार ग्रहण कर रही है तो उसका मूलाधार हमारे शिक्षा संस्थान, शिक्षक और शिक्षार्थी ही हैं। इन्हें ही ऊपर उठाना आज का युगधर्म है।

यदि हम कहीं तनिक भी इस पतनोन्मुख वातावरण को ऊपर उठाने में, बदलने में अपने को असमर्थ पाते हो, तो विचार कर स्वयं को ही ऊपर उठाना होगा। क्योंकि जब हम समाज को जिसमें हम स्वयं शामिल हैं, तो पाते हैं कि यह मानव-पशु धन, प्रतिष्ठा, मान-सम्मान को लेकर कितना दुखी है? परिणाम ये उस समाज को भी दुखी करते दिखाई पड़ते हैं, जिनको जीवन निर्वाह हेतु रोटी, कपड़ा और मकान की ही आवश्यकता है।

हमारे मटमैले विचार कम्पन पूरे परिवेश को दूषित और विषाक्त करते हैं।  विकृत विचारों को परिसर पर, सडक़ों पर चलने वाले चेहरों पर देखा जा सकता है। कैसी घोर सांसारिकता और विकृति दिखायी देती है। पुते चेहरेवाले हाड़माँस के पुतले और पुतलियाँ, अपने भडक़ीले भाषा और भूषा से केवल यौन विकार-रस को ही तो प्रवाहित करते हैं? यदि हम थोड़ा अन्तर्मुखी हो जाएं, हमारी संवेदनशीलता तनिक प्रबल हो जाए, तो हम देखेगे कि यह सब कितना भद्रता से रहित है। इसलिए आज शिक्षा के परिसर इतने अरुचिकर मालुम पड़ते हैं ।

सामान्यत: आज शिक्षा परिसरों के चर्चा के तीन विषय होते हैं: एक, राजनीति का दूषित पक्ष, दूसर- पैसा कमाने के संसाधन-जुगाड़ और तीसरा, यौन चर्चा। इसकी प्रतिछाया हमारे फिल्मों, नाटकों, उपन्यासों और गीत-संगीत में होती हुई धीरे-धीरे हमारे मस्तिष्क में ऐसी छा जाती है कि जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर पाते और जीवन के सामाजिक पक्ष में जैसे ही प्रवेश करते हैं, हमारी यह मानसिकता शरद के कोहरे की तरह हमारी सामाजिक प्रज्ञा को ढकने लगती है।

 स्पष्ट है वायुमण्डल बदलने के कारण शिक्षक और विद्यार्थी दोनों की सोच बदल गई है। यह उसी तरह होती है, जैसे इस कोरोना काल में प्रभावित के सम्पर्क में आते ही हमारा जीवन संकट में आ फँसता है, इपीडेमिक आता है। तब वह वायुमण्डल राष्ट्रनिर्माण के हित में न होकर या यू कहिए कि शिक्षा के लक्ष्य की पूर्ति न करके जीवनमूल्यों को निरन्तर क्षतिग्रस्त करता है।

इसलिए आवश्यक है कि मन को सतत ध्येय की ओर लक्षित कर सदा विचार का एक अखण्ड प्रवाह बनाये रखना चाहिए। किन्तु ध्येय है क्या? शिक्षा का लक्ष्य आत्मनो मोक्षार्थ जगत् हिताय च।यह सबसे अधिक श्रमसाध्य है किन्तु बहुत महत्व का है। यह लक्ष्य घनीभूत होकर जब निरामय, परिपूर्ण और निरतंर अखण्ड और अबाध गति से प्रवाहित होता है, तब ही हमारा शिक्षक और विद्यार्थी न केवल अपनी चेतना को विकसित कर पाता है, बल्कि इस समाज को भी भौतिकता में आसक्ति रहित ‘तेन तक्त्येन भुंजिथा:’, जीवन जीते हुए सुखी बनाने का वातावरण देता है। ऐसे चेतनायुक्त मानस को तैयार करने का कार्य भारतीय ऋषि परम्परा से हमें प्राप्त होता रहा है, जिसे हमने जीवन का मोक्ष कहा है।

इसीलिए व्यक्ति की चेतना का विकास हो, हर व्यक्ति अपनी अन्त:प्रेरणा के अनुसार अंतिम आनन्द का अनुभव करे, इस सुविधा के विकास के लिए हमारे विश्वविद्यालय और महाविद्यालय हैं। बस आज अन्तर इतना है कि इन्हें अपनी प्राचीन जीवन पद्धति तथा जीवनश्रेणी के अनुसार आज के युगधर्म पर आधारित बनाना होगा। जिसका सूत्र यदि बुद्ध का अप्प दीपो भवहै, तो चलो जलाएं दीप वहाँ जहाँ अभी भी अँधेरा है, आज का युगबोध है।

इस युगबोध की पूर्ति हेतु मनुष्यता की महान दृष्टि ‘धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगेने लक्ष्य बताया है कि प्रभावायाहि भूतानां धर्मप्रवचनं कृतम्इसी से सर्वे भवन्तु सुखिन:अर्थात् सम्पूर्ण विश्व अखण्ड सुख को प्राप्त होगा। इसलिए मनुस्मृति कहती है कि जरा अपने base of operation को स्मरण रखें- एतद्देश प्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मन:। स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन् पृथिव्यां सर्वमानवा:। आइये इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु दीपावली के प्रकाश पर्व से अपनी चेतना को आलोकित करें।

सादर 

Tuesday, 10 November 2020

’स्वामी विवेकानन्द कॅरियर मार्गदर्शन योजना’

 

स्वामी विवेकानन्द कॅरियर मार्गदर्शन योजना मध्यप्रेदश के मा. मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह जी की महत्वाकांक्षी योजना है, जो प्रदेश की उच्च शिक्षा, स्कूल शिक्षा मे और तकनीकी शिक्षा अन्तर्गत पालीटेकनीक महाविद्यालयों और आई.टी. आई. में 2005-06 से प्रारंभ है। इस योजना का नोडल उच्च शिक्षा विभाग है  

पिछली नाथ सरकार में यह योजना उच्च शिक्षा में भी शिथिल हो गई थी और स्कूल तथा  तकनीकी में तो बंद ही पडी थी।

जिसे इस सरकार के आने तथा मा मंत्री उच्च शिक्षा, डॉ मोहन जी यादव के निर्देशन तथा मार्गदर्शन् में न केवल उच्च शिक्षा विभाग में सक्रियता से योजना लागू कर दी गई है, बल्कि स्कूल और तकनीकी शिक्षा विभाग में भी कैलेण्डर जारी कर कार्ययोजना प्रारंभ कर दी गई है।

आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश के इंडीकेटर- 4 का  स्वामी विवेकानन्द कॅरियर मार्गदर्शन योजनाको नोडल बनाया गया है, जिसके लिए अभी तक की स्थिति और कार्ययोजना इस प्रकार है-

आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश सूचकांक - 4

लक्ष्य- माह सितम्बर 2020 तक प्रदेश के दो सौ शासकीय महाविद्यालयों में रोजगार और स्वरोजगार (पी एण्ड ई) प्रकोष्ठ की स्थापना करना है।   

लक्ष्य प्राप्ति हेतु करणीय बिन्दु: 1- प्रदेश के ऐसे 200 शासकीय महाविद्यालयों का चयन जिनसे शासकीय महाविद्यालयों में पढने वाले 75 प्रतिशत विद्यार्थी समाहित हो जायें।

2- उक्त महाविद्यालयों में योजना संचालन हेतु पचास जिला केन्द्रों पर एक-एक ऐसे कुशल प्राध्यापक का नोडल अधिकारी के रूप में चयन करना जो पूर्णकालिक रूप से सूचकांक- 4 के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कार्य करेगा।

3- प्लेसमेंट के लिए देश भर की बडी कम्पनियों, संस्थानों, उद्योगिक घरानों से एम.ओ.यू. करना है, जो प्लेसमेंट दे सकें। प्रदेश के कुछ महाविद्यालयों ने जैसे (शासकीय मानकुंवर बाई महाविद्यालय जबलपुर द्वारा) देश की बडी कम्पनियों से ट्रेनिंग प्रारंभ भी करा दी है।

4- अधिकतम विद्यार्थियों को रोजगार एवं स्वरोजगार तथा शासकीय, अशासकीय सेवा हेतु तैयार करने के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम को संचालित करना।

विगत सत्र में अल्पावधि रोजगार प्रशिक्षण से 328 प्रशिक्षण के माध्यम से 27919 विद्यार्थियों को लाभान्वित किया गया है।

गत वर्ष इन प्रशिक्षणों के माध्यम से 7728 विद्यार्थियों को रोजगार प्राप्त हुए। इसे बढाकर रोजगार और स्वरोजगार तथा शासकीय, अशासकीय संस्थानों में लगभग 50 हजार का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, जिसे समय-समय पर समीक्षा कर पुनः निर्धारित किया जाता रहेगा।

इस वर्ष रोजगार प्रशिक्षण की संख्या बढा कर 200 महाविद्यालयों का लक्ष्य लेकर प्रत्येक महाविद्यालय के 500 विद्यार्थियों को प्रशिक्षित करने का लक्ष्य है जिसके कारण लगभग एक लाख विद्यार्थियों को प्रशिक्षित किया जा सकेगा।

मध्यप्रेदश के बघेली, बुन्देली, मालवी और निवाडी के कृषि, लघु-कुटीर उद्योगों को ध्यान में रख कर ‘लोकल फार वोकल’ अन्तर्गत प्रशिक्षण तथा स्वरोजगार और रोजगार के अवसर उपलब्ध कराये जा रहे हैं

‘लोकल फार वोकल’ अन्तर्गत इस वर्ष प्रदेश के कई शासकीय महाविद्यालयों में विद्यार्थियों को रक्षाबन्धन के अवसर पर रक्षासूत्र बनाने का तथा अभी दीपावली को देखते हुए दीप निर्माण का प्रशिक्षण दिया गया है। जिसमें हजारों की संख्या में छात्र-छा़त्राओं ने दीपक निर्माण किए हैं।

आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश सूचकांक-4 लक्ष्य प्राप्ति हेतु समय का निर्धारण:

1- दो सौ महाविद्यालयों का चयन कर लिया गया है।

2- 30 नवम्बर, 2020 तक पचास जिलों में नोडल बना दिए जायेंगे।

3- प्लेसमेंट के लिए दे श भर की बडी कम्पनियों, संस्थानों, उद्योगिक घरानों से एम ओ यू  नवम्बर और दिसम्बर तक पूर्ण कर लिया जायेगा।

4- स्किल डेवलपमेंट और ट्रेनिंग प्रोग्राम दिसम्बर से अप्रेल तक किया जायेगा।

 

इस तरह से रोजगार निर्माण की प्रक्रिया में महाविद्यालयों को अधिकाधिक सक्रिय कर स्वामी विवेकानन्द कॅरियर मार्गदर्शन योजना के माध्यम से शासकीय, अशासकीय संस्थानों में  रोजगार और स्वरोजगार की प्रक्रिया के लक्ष्य को प्रभावी स्वरूप दिया जा सकेगा। जिससे आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश के इंडीकेटर -4 के लक्ष्य को प्राप्त करते हुए इसे सतत रूप से संचालन हेतु प्रभावी किया जा सके।

भविष्य में स्वा विवेकानन्द कॅरियर मार्गदर्शन योजना को प्रदेश के सभी शासकीय, अशासकीय विश्वविद्यालयों, शिक्षण संस्थाओं में लागू कर सभी विद्यार्थियों का डाटावेस रखा जायेगा।

डॉ उमेश कुमार सिंह

निदेशक

स्वामी विवेकानन्द कॅरियर मार्गदर्शन योजना मध्यप्रदे शासन

 

 

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 स्वामी विवेकानन्द कैरियर मार्गदर्षन योजना अन्तर्गत चाही गई जानकारी बिन्दुवार इस प्रकार है- 

1-विद्यार्थियों हेतु रोजगार प्रषिक्षण, वोकल फार लोकल, काउंसिलिंग एवं अन्य गतिविधियां- 1. रोजगार प्रषिक्षण- स्वामी विवेकानन्द कॅरियर मार्गदर्षन योजना अन्तर्गत नियमित रूप से प्रतिवर्ष रोजगार प्रषिक्षण दिये जाते हैं। विगत सत्र में अल्पावधि रोजगार प्रषिक्षण से 328 प्रषिक्षण के माध्यम से 27919 विद्यार्थियों को लाभान्वित किया गया है। इस वर्ष रोजगार प्रषिक्षण की संख्या बढा कर 200 महाविद्यालयों का लक्ष्य लेकर प्रत्येक महाविद्यालय के 500 विद्यार्थियों को प्रषिक्षित करने का लक्ष्य है जिसके कारण लगभग एक लाख विद्यार्थियों को प्रषिक्षित किया जा सकेगा। यह कार्य आत्मनिर्भर भारत के अन्तर्गत समय-सीमा सितम्बर, 2021 तक पूरा किय जायेगा।

2. वोकल फार लोकल- चयनित महाविद्यालयों में मध्यप्रेदष के बघेली, बुन्देली, मालवी और निवाडी के कृषि, लघु कुटीर उद्योगों को ध्यान में रख कर लोकल फार वोकल अन्तर्गत प्रषिक्षण तथा स्वरोजगार और रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने कराये जायेंगे। अभी कई महाविद्यालयों में विद्यार्थियों को रक्षाबन्धन के अवसर पर रक्षासूत्र बनाने का तथा अभी दीपावली को देखते हुए दीप निर्माण का प्रषिक्षण दिया गया है।

3. काउंसिलिंग- महाविद्यालयों में करोनाकाल में परीक्षा पूर्व षिक्षकों द्वारा विद्यार्थियों को आनलाईन परामर्ष दिए गये जिससे लगभग 80 प्रतिषत विद्यार्थी लाभान्वित हुए। 

आत्मनिर्भर मध्यप्रदेष की योजना अनुसार प्राथमिकता के आधार पर 200 महाविद्यालयों का चयन किया गया है जिसमें जिला स्तर पर पूर्णकालिक नोडल अधिकारी बनाए जा रहे हैं। प्लेसमेंट और स्वरोजगार के प्रषिक्षण हेतु बडे संस्थानों से एम ओ यू किया जा रहा। करोना काल पष्चात अभी तक आनलाइन प्रषिक्षित लाभान्वित विद्यार्थियों की संख्या तीन हजार से अधिक है। यह प्रषिक्षण निरन्तर किया जा रहा है। पूरी संख्या अभी अप्राप्त है।

2-विद्यार्थियों में अवसाद की बढ रही समस्या हेतु आनलाइन काउंसिलिंग किया जाना प्रस्तावित है।

कोरोनाकाल में  ग्रामीण क्षे़त्र के विद्यार्थियों को षिक्षक अभिभावकों द्वारा आनलाईन माध्यम से बराबर सम्पर्क रखते हुए उनकी समस्याओं का समाधान दिया गया। योजना मित्र के माध्यम से सक्षम विद्यार्थियों द्वारा निर्धन और अपेक्षित विद्यार्थियों की मदद की गई। बडवानी और जबलपुर के कई महाविद्यालयों में इस तरह के कार्य किए गए।

अभी भी महाविद्यालयों में विद्यार्थियों से संवाद निरन्तर जारी है। सायकोमेटि़क एसेसमेंट को प्रभावी बनाया जा रहा है। टीसीएस और बजाज जैसी बडी कम्पिनियों से विद्यार्थियों को प्रषिक्षण दिया जा रहा है।

3-ई-प्लेटफार्म पर विद्यार्थियों, षिक्षकों से संवाद का नियमित आयोजन किया जाना है।

कार्ययोजना-षिक्षक-अभिभावक योजना के माध्यम से प्रत्येक षिक्षक द्वारा अपने आवंटित विद्यार्थियों से नियमित संवाद किया जा रहा है। साथ ही उनका डाटावेस अपडेट किया जा रहा है। महाविद्यालयों में षिक्षको ने अपने विद्यार्थियों के ह्वासएप गु्रप तैयार किए गये हैं जिनके माध्यम से उनसे निरन्तर सम्पर्क रखा जा रहा है।

महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि स्वामी विवेकानन्द कॅरियर मार्गदर्षन योजना द्वारा आत्मनिर्भर मध्यप्रदेष के अन्तर्गत आगामी सितम्बर तक पूरी कार्ययोजना तैयार कर ली गई है, जिसकी पी पी टी आयुक्त महोदय को अवलोकनार्थ 10 नवम्बर, 20 को प्रेषित की जा चुकी है। योजना का लक्ष्य प्रत्येक विद्यार्थी का डाटाबेस तैयार करना और उसे रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना है। 

पी पी टी अवलोकनार्थ प्रेषित है।

निदेषक

स्वामी विवेकानन्द कॅरियर मार्गदर्षन योजना, मध्यप्रदेष षासन


Saturday, 7 November 2020

शिक्षक और विद्यार्थी

 शिक्षक और विद्यार्थी

(भाग-एक)

‘ॐ सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहै। तेजस्विनावधीतमस्तु। मा विद्विषावहै।  ॐ शान्ति:! शान्ति:!! शान्ति:!!! ’

 शिक्षक का जीवन आध्यात्मिकता से भरपूर होना चाहिए। वातावरण में इसका प्रभाव पड़ता है। शिक्षक की चित्त शुद्धि स्वयं के लिए ही नहीं बल्कि  विद्यार्थी और समाज के कल्याण के लिए भी आवश्यक है। 

भौतिक जगत से भी अधिक सत्य एक सूक्ष्म मनोजगत् है। विचार एक तरह के  मानसिक स्पन्दन होते हैं। ये स्पन्दन हमारे अन्दर से निकलकर निरन्तर बाह्य मनोजगत् में प्रसारित हो रहते हैं। यदि विचारों का स्पन्दन शुभ है तो वे विचारों के शुभ तरंगों को उत्पन्न करते हैं। तब जो भी इन शुभ स्पन्दनों के संस्पर्श में आता है, उसे लाभ होता है। 

इतना ही नहीं तो शुभ तरंगें हमारे लिए भी शुभ विचारों का पुन: चिन्तन आसान कर देती हैं परिणामत: अशुभ चिन्तन के बाद हमारे चारों ओर का दूषित वातावरण पुन: शुभ तरंगों से परिव्याप्त हो जाता है। और तब धीरे-धीरे अशुभ विचारों का उठना भी रुक जाता है। जब शिक्षक और विद्यार्थियों के बीच ऐसा वातावरण एक दीर्घ काल तक बना रहता है तब शिक्षक और विद्यार्थी के मानसिक स्पन्दन सामान्यत: एक सरीखे होते जाते हैं।

शिक्षक को ध्यान रखना होता है कि यदि उसके जीवन में सामन्जस्य नहीं है तो वह विद्यार्थी को भी कष्ट पहुँचाएगा। विद्यार्थी के प्रति क्रोधित होने से पूर्व हम स्वयं पर क्रोधित होते हैं। विद्यार्थी के प्रति सहानुभूति रखें यदि कोई विद्यार्थी नाराज हो तो उसके प्रति भी सहानुभूति रखें। ऐसे भी अवसर आयेंगे जब विद्यार्थी को डाँटना पड़ेगा। उनके प्रति कड़े शब्दों का प्रयोग करना पड़ेगा तब अपने आत्मसंतुलन को खोये बिना भी यह काम किया जा सकता है। 

यदि शिक्षक आत्मसंतुष्ट हो तो दूसरे में भी तादात्म्य और संतुलन पैदा होगा। यदि शिक्षक चंचल और असंतुष्ट हो तो बाहरी और भीतरी दोनों प्रकार की समस्याएँ पैदा होंगी। शिक्षक को सब के साथ मिलकर काम करना चाहिए। लेकिन आसक्त भाव से नहीं। विचलित होकर नहीं। दयालु हो कर पर अंधे हो कर नहीं।  

दु:ख और कष्ट स्वयं महान शिक्षक होते हैं। उन्हें सहन करना शिक्षक-धर्म है। एक उत्कृष्ट शिक्षक सदा ही एक अच्छा विद्यार्थी भी होता है। दु:खों और कष्टों को भूमा की ओर मोडक़र उन्हें भी अपनी प्रगति के साधन बनाता है। 

सत्य की तीव्र अभिलाषा विद्यार्थी को दु:खों और कष्टों के बावजूद लक्ष्य की ओर ले जाती है। इसलिए शिक्षक और विद्यार्थी किसी भी समाज के क्यों न हों यदि वे अपने सभी कार्यों को ईश्वराभिमुख करने का प्रयत्न करें और आपस में विश्वास अर्जित कर ले तो दोनों का जीवन प्रेरक हो जाता है।  

जीवन के प्रति आध्यात्मिक दृष्टिकोण का विकास करना ही शिक्षा का उद्देश्य है।  शिक्षा जब अर्थ के लक्ष्य में धर्माधारित होती है तो उसकी कामनाएँ भी पवित्र होती हैं और वह शिक्षक-शिक्षार्थी के साथ ही समाज को भी मोक्षगामी बनाती है। 

शिक्षक-शिक्षार्थी अपने नित्य प्रति के जीवन में भी धर्म को उतारने का प्रयत्न करते हैं तो दोनों के अन्दर का श्रद्धावान भक्त श्रमपूर्वक दूसरो के समक्ष करुणा और प्रेम को प्रस्तुत करने का प्रयत्न करता है। 

यदि शिक्षक दूसरो की सहायता करना चाहता है तो उसका एक मात्र उपाय यह है कि ऐसा जीवन यापन करे, जो दूसरों के लिए उदाहरण स्वरूप हो। शिक्षक को यह उदाहरण अपने जीवन के द्वारा प्रदान करना होगा। लोगों के सामने विचारों की ढेर ईटें रखने से कोई लाभ नहीं होगा। चरित्ररूपी जिस भवन का शिक्षक निर्माण करेगा, उसे लोग देखना और उसे आत्मसात करना चाहेंगे। 

  आवश्यक है कि शिक्षक और शिष्य के चारो ओर जो कुछ हो रहा है, उसके प्रति दोनों सजग रहें, और संतुलित दृष्टिकोण रखें तभी समाज का जीवन शांतिपूर्ण होगा। और शांति, प्रवित्रता, पंच निष्ठा, श्रद्धा आदि विभिन्न सद्गुण समाज में दोनों के कार्यों द्वारा अभिव्यक्त होंगे। 

जब शिक्षक स्वयं सद्गुणों को अपने जीवन में पालन करता है, तो ही उपदेश और आदेश देने का कोई लाभ होता है अन्यथा विद्यर्थियों को व्यर्थ तंग नहीं करना चाहिए। विद्यार्थियों में आध्यात्मिकता का संचार मौन रहकर किया जा सकता है। उचित रूप से आध्यात्मिकता देने पर वे उसे शीघ्र ग्रहण कर लेते हैं। हमें केवल अग्रि प्रज्वलित करना है, वे उसकी स्वाभाविक गर्मी के लिए उसके चारो ओर इकठ्ठे हो जाएँगे। 

यह खेद का विषय है कि आध्यात्मिक अनुभूति के लिए बहुत कम शिक्षक प्रयत्नशील होते हैं। किन्तु यदि  कुछ लोग जो आध्यात्मिक हो गये हैं, वे ही तीव्र साधना करें, तो इस दुनिया को और अच्छा बना सकते हैं। वे दूसरों का भी आध्यात्मिक कल्याण कर सकते हैं। 

दूसरों की सेवा और सहायता करना प्रत्येक शिक्षक और विद्यार्थी के जीवन का एक अनिवार्य अंग बन जाना चाहिए। विभिन्न प्रकार की सहायताओं में आध्यात्मिक सहायता सर्वोत्कृष्ट है। इसकी आज विश्व में सब से अधिक आवश्यकता है। जिन्हें आवश्यकता है, उन्हें आध्यात्मिक निर्देश देना, मार्गदर्शन प्रदान करना हमें अपना कर्तव्य समझना चाहिए। यदि हम ऐसा न कर सके तो दूसरों की बौद्धिक अथवा भौतिक सहायता करनी चाहिए। यदि यह हमारी आंतरिक प्रार्थना हो तो यह किसी से कम नहीं।

सब शिक्षक और विद्यार्थी एकाएक आध्यात्मिक नहीं बन सकते। दूसरों की आध्यात्मिक सहायता करने से पहले अपने को आध्यात्मिक होना होगा। स्वामी विवेकानन्द जी ऐसे ही कुछ व्यक्ति के तलाश में थे जो उच्चतम आदर्श के लिए अपना जीवन  समर्पित कर दें। तन, मन  और वचन की पवित्रता के आदर्श के लिए अपना सर्वस्व न्योंछावर कर दें तथा उस आदर्श को प्राप्ति के लिए हर कठिनाई का सामना करने को प्रस्तुत हो। 

 यह ध्यान रखें कि हम सम्पूर्ण शिक्षक और विद्यार्थी समूह में परिवर्तन नहीं ला सकते, हम  समूचे  विद्यार्थी समुदाय को आध्यात्मिक भी नहीं बना सकते, किन्तु हम उन कतिपय शिक्षक और विद्यार्थियों के जीवन को अवश्य बदल सकते हैं, जो निष्ठावान् हैं तथा जिनका मानस बन गया है। 

‘ॐ सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहै। तेजस्विनावधीतमस्तु। मा विद्विषावहै। ॐ शान्ति:! शान्ति:!! शान्ति:!!! ’हे परमात्मा हम शिक्षक और विद्यार्थी दोनों की साथ-साथ रक्षा करें। हम दोनों का साथ साथ पालन करें। हम साथ -साथ विद्या-सम्बन्धी सामर्थ्य को प्राप्त करे। हम दोनों का पढ़ा हुआ तेजस्वी हो। हम द्वेष न करें। त्रिविध ताप की शांति हो।’  



Monday, 2 November 2020

swapn lata aaj man

 

 

 

 

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संवेदना की नोक से झांकता है आज मन।
ओस सी बूंदे छिपाए अश्रु पूरित आज मन।।

लूट लेगा पास पाकर षुभ्र सृजित बूंद धन
देख कर प्राची प्रभा  सूखता है आज मन ।।

सांझ संचित किए को फिर पकाता रात यौवन 
भोर में उषा किरण से सहम जाता नित्य मन ।। 

धन हमारा मन हमारा स्वत्व भी प्रतिदान का
संषय भरे दिन स्वप्न लाता रोज क्यों मन।। 

युग-युग की सतत आराधना का छू षून्य पथ  
वासना वीणा अचंचल ढो रहा नित साज मन।।

दे सको तो आज दे दो मृत्यु का ताजा कलेवर
हो अमर उस बोध को पा सकूं निज स्वत्व धन।।