Thursday, 14 August 2025

अखंड भारत संकल्प दिवस

रक्षाबंधन एवं अखंड भारत संकल्प दिवस

 राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और रक्षाबंधन  

सम्पूर्ण हिन्दू समाज को संगठित करने के लिए डॉ हेडगेवार जी द्वारा १९२५ में नागपुर के मोहिते के बाड़े में पहलीवार शाखा प्रारम्भ की गई।
 किसी भी संगठन को सतत चलाने और जीवंत बनाये रखने के लिए कुछ नित्य और कुछ नैमीत्तिक व्यवहार रखने पड़ते हैं ।
 संघ ने प्रारम्भ में दो प्रकार के कार्यक्रम तय किये । एक स्थाई व्यवस्था नियमित एक घंटे की शाखा । फिर समाज को जोड़ने, अतीत के वैभव को स्मरण करने, सामाजिक समरसता बनाये रखने के निमित्त वर्ष में छह कार्यक्रम तय हुए । उनमें से एक कार्यक्रम है रक्षाबंधन ।
 
 सामाजिक समरसता का कार्यक्रम : यह सामाजिक समरसता का कार्यक्रम है । हम सब जानते हैं की यह उत्सव हिन्दू समाज के सभी वर्गों, घटकों में मनाया जाता है । इस कार्यक्रम से समाज में समबन्धों की नीव तैयार होती है । बंधुता का भाव बढ़ता है । हम सब सहोदर है, यह भावना विकसित होती है । एक दूसरे के दुःख सुख में सरीक होने का भाव जागृत होता है । हिन्दव: सोदर सर्वे न हिन्दू पतितो भवेत् का बोध होता है । 
फिर हमारे जीवन व्यवहार में धीरे-धीरे परिवर्तन आता है । सामान्य रूप से इसे वर्षों से भाई बहन के रिश्तों को लेकर माना जाता था । इसके पौराणिक उदहारण भी हैं तो मुग़ल काल के भी हैं । उन्हें हम सब जानते हैं । 
 यह समाज में भारत के लिए माता-पुत्र की सुरक्षा के लिए भारत माता की प्रतीक स्वरुप रक्षा बंधन करते हैं । यह राष्ट्र के लिए आश्वाशन बना । भगवा ध्वज को गुरु मानकर रक्षा सूत्र बंधाते है । मंदिरों में जाकर आराध्य देव को रक्षा सूत्र बंधाते हैं । राष्ट्रीय स्वंसेवक संघ ने इसे व्यक्तिगत और पारिवारिक आयोजन से आगे लाकर सामजिक और राष्ट्रीय स्वरूप दिया ।
 
संघ में रक्षाबंधन उत्सव सामूहिक जागरण के लिए होता है । इस दिन को वंचित, दलित, पिछड़ी, उपेक्षित वस्तिओं में जाकर उन्हें रक्षा सूत्र बंधार उनके सुरक्षा, समृद्धि और स्वास्थ्य का आश्वाशन देते हैं ।
उनको समाज और राष्ट्र की सेवा, संस्कृति के संरक्षण के लिए जागृत करते हैं ।
 इसके परिणाम हम संघ की इस सौ वर्ष की यात्रा में जगह जगह पड़ाव के रूप में देख सकते हैं । 
मीनाक्षी पुरम की सामूहिक धर्मान्तरित बंधुओं की घर वापसी । विवेकानद केंद्र के निर्माण के समय ईसाई मछुआरों द्वारा उत्पात मचाने पर इन्हीं सेवा वस्ती में रहने वाले नाविकों ने संघर्ष किया और केनीमेरी और क्रास को शिला से हटाया । 
 मोरबी की दुर्घटना हो या आपातकाल सब में समरस समाज के बंधुओं ने इन्हीं उत्सवों से प्रेरणा लेकर अपना योगदान दिया ।
   धागा एक रक्षा सूत्र: यह प्रेम का धागा है तो रक्षा का अश्वाशन भी । तात्पर्य यह की यह मात्र सूत्र नहीं रक्षा सूत्र है । कठिन समय में व्यक्ति का व्यक्ति के प्रति, भाई का बहन के प्रति, माता का पुत्र के प्रति और पुत्र का माता के प्रति, परिवार का समाज के प्रति, समाज का राष्ट्र और संस्कृति के प्रति धर्माधारित यह आश्वाशन है, संकल्प है । 
रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय । टूटे से फिर जुड़े नहीं जुड़े गांठ पद जाय ।।    
आइये इस गाँठ के उलझाते और सुलझाते स्वरुप को समझें -
अखंड भारत संकल्प दिवस
अखण्ड भारत का क्षेत्र:
 ‘उत्तरंयत् समुद्रस्य हिमाद्रिश्चैव दक्षिणम्।’ उत्तर पूर्व पश्चिम में हिमालय की सभी शाखाओं से लेकर दक्षिण में समुद्र तक। नदियों की सीमा देखें तो - कूमा (काबुल नदी ), क्रुमू (कुरम नदी),गोमल (गोमती नदी),स्कात (सुकस्नू), अक्षु-वक्षु (Oxus), सिंधु, शतद्रु (सतलुज), ब्रह्मपुत्र (तीनों तिब्बत में), ऐरावत (वर्मा में), सरलवीन, मीकांग ( गंगा) के जल-ग्रहण क्षेत्र ये सब अखण्ड भारत के अंग रहे हैं।
 इस में बलोचिस्तान, अफगानिस्तान (उप-गणस्थान), सीमाप्रांत (राजधानी: पेशावर अर्थात् पुरुषपुर), सिंध, पश्चिमी पंजाब, बंगलादेश, ब्रह्मदेश, श्याम, इण्डो-चाईना, कंबोज (कंबोडिया), वरुण (बोर्नियो), सुमात्रा तथा तिब्बत के क्षेत्र आते हैं।

आज अंग्रेज तारीख १४ अगस्त है । अगस्त १९४७ से २०२५ की यात्रा का दिन ।
 अखंड भारत क्या है ? इसे कैसे देखेना चाहिए ? १८७६ के पूर्व का भारत : जिसमें अफगानिस्तान (1876), नेपाल (1904),, तिब्बत(1914 ), ब्रह्मदेश (1937 ), और पाकिस्तान (1947), थे।  
वर्तमान विभाजन त्रासदी क्यों ?
* १४ अगस्त बारह बजे की रात्रि । १४ अगस्त भारत माता का अंग भंग और पकिस्तान का विखंडित हिस्सा बनाना ।  
* 14 अगस्त ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ उन सभी की याद में जिन्होंने विभाजन के कारण अपनी जान गंवाई। 
* विभाजन के कारण: विभाजन के पीछे कई कारण थे, जिनमें धार्मिक मतभेद, मुस्लिम लीग की अलग राष्ट्र की मांग, और
* ब्रिटिश सरकार की नीति शामिल थी । क्रांतिकारियों के असंख्य बलिदान, संघर्ष और जीवन गाथाएँ केवल इतिहास की जानकारी नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए चरित्र, साहस और राष्ट्रनिष्ठा की प्रेरणा-स्रोत हैं।
*  इसलिए इस विरासत को शिक्षण में जीवंत, भावनात्मक और प्रेरक रूप में प्रस्तुत करना राष्ट्रीय चेतना के लिए अनिवार्य है।
*  सामाजिक जीवन मूल्यों, समरसता, प्रेरक जीवन जीने के लिये अति आवश्यक है। 
* अन्यथा समाज भ्रम, अज्ञान और स्वार्थ के दावानल के भँवर में अटल जायेगा।
* अल्प नेतृत्व और कमजोर समाज के माहौल, ब्रिटिश चालाकी, सांप्रदायिक दंगे, रणनीतिक चूक, और सैद्धांतिक अहिंसा—ये सभी मिलकर विभाजन की दिशा में काम करने वाले प्रमुख तत्व थे।
* मुस्लिम लीग की सामूहिक रणनीति को लोहिया खासतौर पर दोषी मानते हैं।
* हिंदू अहंकार और जनता की जागरूकता की कमी। ये दो ऐसे अंदरूनी कारक हैं।
* इनकी विवेचना अक्सर कम होती है, लेकिन लोहिया इसे अत्यंत महत्वपूर्ण मानते हैं।
* कम्युनिस्ट या दक्षिणपंथ की भूमिका को लोहिया प्रभावहीन बताते हैं,उनकी नीतियाँ विभाजन में निर्णायक नहीं थीं।
क्यों कर रहें है स्मरण :
• स्वतंत्रता: 14 अगस्त, 1947 को पाकिस्तान और 15 अगस्त, 1947 को भारत को स्वतंत्रता मिली ।
• भारतीय इतिहास में 14 अगस्त मात्र एक तारीख नहीं, एक त्रासदी है।देश के विभाजन और उसकी त्रासदी के शिकार लोगों के दर्द को याद कर संवेदना व्यक्त करने का दिन है।
• इस दिन कांग्रेस ने देश को टुकड़ों में बाँटकर माँ भारती के स्वाभिमान को चोट पहुँचाई।विभाजन के कारण हिंसा, शोषण और अत्याचार हुए, और करोड़ों लोगों ने विस्थापन झेला।
• उन सभी लोगों के प्रति मन की गहराई से श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए ।
• देश विभाजन के इस इतिहास और दर्द को आनेवाली पीढ़ी को स्मरण दिलाने के लिए ।
• भारत विभाजन की अमानवीय वेदना वह पीड़ा हमारी स्मृति है और हमारी सीख भी है।

फिर से कोई मुस्लिम लीग न बने -
*  मुस्लिम लीग की मुसलमानों के लिए अलग देश की मांग ने लाखों लोगों को विस्थापित कर दिया, यह विस्थापन कोई सामान्य नहीं था। 
*  हजारों-हजार लोगों का जनसंहार हुआ, महिलाओं के साथ जघन्यतम अपराध हुए- उस दौर में भारतीय उपमहाद्वीप में मानवता त्राहिमाम कर उठी।
*  लेकिन अंग्रेजों की शातिराना कोशिशों तथा मुस्लिम ‌लीग के सांप्रदायिक एजेंडे ने आधुनिक काल में मनुष्यता पर विभाजन द्वारा बड़ा संकट खड़ा किया।
*  सन् 1905 में बंगाल के धर्म आधारित विभाजन के बाद से ही विभाजन की कुत्सित रूपरेखा बनना शुरू हो गई थी, विभिन्न इतिहासकारों ने अंग्रेजों के इस कदम को भारत विभाजन के बीज के रूप में देखा है। 
*  वहीं विभाजन के जिम्मेदारों पर बात करते हुए समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया ने अपनी किताब 'गिल्टी मेन ऑफ़ पार्टिशन' में लिखा है कि कई बड़े कांग्रेसी नेता जिनमें नेहरू भी शामिल थे वे सत्ता के भूखे थे जिनकी वजह से बँटवारा हुआ।
* वर्तमान भारत सरकार 14 अगस्त के दिन को 'विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस' के रूप में मनाने की घोषणा की। 
* नरेन्द्र मोदी जी ने कहा “देश के बंटवारे के दर्द को कभी भुलाया नहीं जा सकता। * नफरत और हिंसा की वजह से हमारे लाखों बहनों और भाइयों को विस्थापित होना पड़ा और अपनी जान तक गंवानी पड़ी।
*  राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ जब शताब्दी वर्ष मना रहा है तो यह स्वाभाविक है की वह अपने अखंड भारत के संकल्प को दुहरायेगा ।
*  नए “पाकिस्तान” में अल्पसंख्यकों, जिनमें बौद्ध, सिख और हिंदू शामिल थे, को देश छोड़ने के लिए कहा गया।
*  कई जिहादियों ने कई मौकों पर महिलाओं के साथ बलात्कार किया। उन्होंने पुरुषों और बच्चों को मार डाला।
 * दिल्ली पहुंचने पर लाशों से लदी ट्रेनों पर बलात्कार की शिकार महिलाओं के शवों पर।“आज़ादी का तोहफ़ा” लिखा हुआ था। 
* मृतकों की संख्या इतनी ज़्यादा थी कि दिल्ली की स्थानीय सरकार कई लोगों के अंतिम संस्कार की योजना नहीं बना पाई। 
* जब उनके पास कोई और विकल्प नहीं बचा, तो उन्होंने मृतकों को एक समतल जगह पर इकट्ठा किया, उन पर मिट्टी का तेल छिड़का और आग लगा दी। उस समय, दोनों तरफ़ तबाही मची थी।
*  यह दिन हमें भेदभाव, वैमनस्य और दुर्भावना के जहर को ख़त्म करने के लिए न केवल प्रेरित करेगा, बल्कि इससे एकता, सामाजिक सद्भाव और मानवीय संवेदनाएं भी मज़बूत होंगी।"
*  तत्कालीन अविभाजित भारत के विभिन्न हिस्सों में 1946 तथा 1947 के दौरान हुई हिंसा तथा दंगों की व्यापकता और क्रूरता ने मानवता पर जो प्रश्नचिन्ह लगाया है, उसका उत्तर आजतक नहीं मिला।
* विभाजन के दौरान हिंसा की सनक न केवल किसी का जीवन ले लेने की थी बल्कि दूसरे धर्म की सांस्कृतिक और भौतिक उपस्थिति को मिटा देने तक की भी थी। 
* विभाजन के बाद जो हिंदू, सिख भारत आए उन्हें अनेक विषमताओं का सामना करना पड़ा।
*  लेकिन भाषाई, भौगौलिक तथा सामाजिक विषमताओं की सीमा को लांघ अपनी मेहनत के बलबूते ये नागरिक भारत के विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
* एक आधुनिक लोकतंत्र के नागरिक के रूप में व्यवहारिकजीवन में अन्यों  के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल पड़े।
*   पाकिस्तान तथा बांग्लादेश में जो अल्पसंख्यक रह गए थे, उनके साथ बाद के वर्षों में हुई ज्यादतियां किसी से छिपी नहीं हैं। 
*  इतिहास पर सरसरी नजर डालने पर ऐसा लगेगा कि भारत का विभाजन जल्दबाजी में लिया गया निर्णय था।
* लेकिन करीब से देखने पर पता चलेगा कि इसकी योजना लंबे समय से बनाई जा रही थी।
* भारत को समझने के लिए इस देश की ऐतिहासिक, सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक एकता को समझना आवश्यक है।
*  दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक भारत की सभ्यता है।
*  मुगल आक्रमणों के बाद अखंड भारत का सपना अतीत की बात हो गया।
* क्योंकि कई भारतीय रियासतों ने लंबे संघर्ष के बाद अपना अधिकार खो दिया। 
* इसी दौरान ब्रिटिश व्यापारी भारत में आए और इतिहास की दिशा को स्थायी रूप से बदल दिया। 
* अंग्रेजों ने भारत की अखंडता पर विनाशकारी प्रहार किया।
*  भारत को दो देशों में विभाजित करने के अलावा शेष राज्यों की अलग-अलग राजनीतिक व्यवस्थाएं थीं। 
करना क्या है- 
• अखंड भारत का संकल्प लेना है।
• देश के इस विभाजन की विभीषिका को भावी पीढ़ी को स्मरण दिलाना है ।  
• राष्ट्र सर्वोपरि को जीवन में उतारना है।  
• टैरिफ बम का तोड़ने के लिए स्वदेशी को अपनाना है । 
• 1947 में धर्म के आधार पर हुआ देश का विभाजन भारतीय इतिहास का एक अमानवीय और काला अध्याय है ।   
• यह देश में दुबारा न दुहराया जाए । संकल्प लें।
• अखंड भारत के स्वप्न को साकार करें । 
• विभाजन सिर्फ भूगोल का नहीं, मानवता का बंटवारा था।

 विभाजन का उत्तर है- 
*  स्मरण रखना होगा राजनीतिक सीमाएं कभी स्थिर नहीं।
* आलसेस लारेन जर्मनी तथा फ्रांस के बीच का प्रांत है। पहले नेपोलियन ने इसे फ्रांस में मिलाया, फिर प्रशिया जर्मनी
 ने। यह प्रांत 1944 में पुन: फ्रांस में मिल गया। 
* 1918 तक पोलैण्ड का कोई अस्तित्व नहीं था। 
* इस्राइल सैकड़ों वर्ष बाद स्वतंत्र यहूदी देश बना। 
* चीन के पास 1650 से पहले केवल 31 लाख वर्ग मील भूमि थी अब 54 लाख वर्ग मील है।
* रूस (Russia) आज 87 लाख वर्ग मील भूमि का स्वामी है, पहले कुल 21 लाख थी। 
* दोनों जर्मनी मिल चुके हैं। 
*  पाकिस्तान का पहले पूर्वी बंगाल पर भी अधिकार था। अब कट चुका है।
*   भारत की सीमाएं भी बदलेंगी। 
*  भारत विभाजन एक समझौते था , जो स्थाई नहीं है।इस बात को श्री अरबिंदो, श्री गुरूजी,राम मनोहर लोहिया आदि ने बार बार कहा है।


 बिना रक्तपात परस्पर सद्भाव से अखण्ड भारत संभव है-
‘पंद्रह अगस्त का दिन कहता आज़ादी अभी अधूरी है।
सपने सच होने बाकी है,रावी की शपथ न पूरी है॥
लाहौर, कराची, ढाका पर मातम की है काली छाया।
पख्तूनों पर, गिलगित पर है ग़मगीन गुलामी का साया॥
बस इसीलिए तो कहता हूँ आज़ादी अभी अधूरी है।
कैसे उल्लास मनाऊँ मैं? थोड़े दिन की मजबूरी है॥
थोड़े दिन की मजबूरी है॥
दिन दूर नहीं खंडित भारत को पुन: अखंड बनाएँगे।
गिलगित से गारो पर्वत तक आज़ादी पर्व मनाएँगे॥
उस स्वर्ण दिवस के लिए आज से कमर कसें बलिदान करें।
जो पाया उसमें खो न जाएँ, जो खोया उसका ध्यान करें॥
दिन दूर नहीं खंडित भारत को पुनः अखंड बनाएँगे,
गिलगित से गारो पर्वत तक आज़ादी पर्व मनाएँगे।’
14/8/25

Tuesday, 12 August 2025

*जय स्वदेश -जय स्वदेशी

'स्व' आत्मबोध है। 'स्वदेशी' उसी का प्रकटीकरण है।
अतः 
* स्वदेशी व्यक्ति के जीवन में हिस्सा बने।
* परिवार के सदस्य स्वदेशी को प्राथमिकता दें।
* कार्यालय, व्यापारिक केन्द्रों में स्वदेशी वस्तुओं की उपलब्धता रहे।
* स्वदेशी वस्तुओं की गुणवत्ता उत्तम कोटि की हो।
* ऐसे कम्पनियों को सरकारी मदद न मिले जिसमें विज्ञापन ज़्यादा और वस्तु की गुणवत्ता कम हो।
* विद्यालयों में भारतीयता पर जोर हो।
* राजनेता, सामाजिक कार्यकर्ता आचार, व्यवहार में आदर्श सादगी वर्तें।

लाभ - 
* आर्थिक संकट से जूझ रहे सामान्य मध्यम वर्गीय परिवारों को राहत मिलेगी।
* आर्थिक सम्पन्नता प्राप्त समूहों को सादगी पूर्ण जीवन जीने के लिए अभ्यास का अवसर मिलेगा।
* राजनेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी जनता के व्यवहार के अनुरूप अपना आचरण बनाना होगा।
* उपदेशक, प्रवचन कर्ताओं को समाज के सादे जीवन से सीख मिलेगी।
* गरीब, वंचित भी सर उठा कर समानता का भाव बोध कर सकेगा।

राष्ट्रीय पक्ष 

* राष्ट्रीय आय में वृद्धि होगी।
* लघु कुटीर उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा।
* स्वदेश में निर्मित वस्तुएं बेरोज़गारी दूर करेंगी।
* स्वावलंबन और आत्मनिर्भरता बढ़ेगी।
* अमेरिका जैसे देश बार-बार मूर्खता नहीं करेंगे।
* पड़ोसी चीन भी अपने व्यवहार में बदलाव लायेगा।
* भारत विश्व को सादगी, सुचिता और आत्मनिर्भरता का संदेश दे सकेगा।

कैसे होग -
* व्यक्तिगत उपयोग में धीरे-धीरे स्वदेशी चीजों का उपयोग।
* घर के छोटे बड़े सदस्यों के बीच करणीय बातों की सहज समयानुकूल चर्चा।
* घर के भोजन को विज्ञापन आधारित रेसिपी से यथासंभव दूरी बनाते हुए वातावरण को अनुकूलित करना।
* तेल, साबुन,सोड़ा आदि घरेलू चीजों में स्वदेशी का उपयोग।
* धीरे -धीरे नवीन बड़ी और मंहगी चीजों को खरीदते समय स्वदेश निर्मित चीजों को प्राथमिकता देनी चाहिए।

*जय स्वदेश -जय स्वदेशी।

अंत में परिणाम में धैर्य-

* धीरे -धीरे रे मना धीरे से सब होय।
माली सींचे सौ घड़ा ऋतु आये फल होय।।
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✅ यहाँ भारत में स्वदेशी सामान क्रय करने हेतु कुछ लघु और प्रभावशाली श्लोगन दिए जा रहे हैं:-

1. "स्वदेशी अपनाओ, देश आत्मनिर्भर बनाओ!"
2. देश भक्ति रखो दम खम, स्वदेशी वस्त्र पहला कदम।
3. हर खरीदी हो भारत हितैषी, करो टेरिफ की ऐसी तेसी।
4. "विदेशी छोड़ो, स्वदेशी जोड़ो!"
5. "राष्ट्रहित में उठे हर हाथ– स्वदेशी की ही हो हर बात!
6. आत्मबल से बढ़ेगा भारत, स्वदेशी से सजेगा भारत।
7. स्वदेशी की भक्ति, स्वदेश की शक्ति।
8. अपना देश स्वदेशी माल, राष्ट्र रक्षा देखभाल।
9. स्थानीय बने सामान लाओ, भारत को भव्य बनाओ।
10. खरीदी स्वदेश की , सोच अपने देश की।
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रक्षा बंधन की शुभकामनाएं 🙏

स्व से स्वदेशी की अनवरत यात्रा

  

                  स्व से स्वदेशी की अनवरत यात्रा

          (ऋषि परम्परा -कूका राम सिंह -वीर सावरकर और गांधी )

भारतीय परम्परा में दृष्टि श्रेय और प्रेय की है।  

श्रेय के हकदार ऋषि हैं तो प्रेय में क्रमशः कूका राम सिंहवीर सावरकर और गांधी तक के सभी वे जिन्होंने यह यात्रा आगे बढ़ाई।

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भारत की मानवता के कल्याण की दृष्टि -

भारत के प्रथम परमाणु वैज्ञानिक महर्षि कणाद ने वैशेषिक दर्शन में कहा है, ‘दृष्टनां दृष्ट प्रयोजनानां दृष्टाभावे प्रयोगोऽभ्युदयाय’ । अर्थात् प्रत्यक्ष देखे हुए और अन्यों को दिखाने के उद्देश्य से अथवा स्वयं और अधिक गहराई से ज्ञान प्राप्त करने हेतु किये गये प्रयोगों से अभ्युदय’ का मार्ग प्रशस्त होता है ।

 * कण से लेकर ब्रह्मांड तक के प्रयोजनों को जानने के लिए महर्षि गौतम ने न्याय दर्शन में सोलह चरण की प्रक्रिया बताई हैं । और बताया कि इस प्रक्रिया से पृथ्वीजलतेजवायुआकाशदिक्कालमन और आत्मा को जानना चाहिए । 

गीता के 7वें अध्याय में भगवान् श्रीकृष्ण बताते हैं कि ब्रह्म के समग्र रूप को जानने के लिए ज्ञान-विज्ञान दोनों को जानना चाहिएक्योंकि इन्हें जानने के बाद कुछ जानना शेष नहीं रहता ।

भृगु संहिता में भारतीय शिल्प शास्त्र में पूरे विज्ञान सम्पदा और उसकी भारतीय खोजों- विद्युत शास्त्रयंत्र विज्ञानधातु शास्त्रविमान विद्यानौका शास्त्रवस्त्रु शास्त्रगणित शास्त्रकाल गणनाखगोल सिद्धांतस्थापत्य शास्त्ररसायनशास्त्रवनस्पतिशास्त्रकृषि विज्ञानप्राणि विज्ञानस्वास्थ्य विज्ञानघ्वनि विज्ञानलिपि विज्ञानसनातन राष्ट्र की उपलब्धियों का परिचय है ।

 * इसलिए यह बोध होना आवश्यक है की विज्ञान की श्रेष्ठ परम्परा उस समय से हैं जब पश्चिम ठीक से अस्तित्व में भी नहीं आया था । यह भारत की स्वदेशी विरासत है।

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राम सिंह कूका से गाँधी तक :.

१८५७ का स्वातंत्र्य समर स्वदेशी स्व’ शब्द से आया । १८५७ में पंजाब के कूका राम सिंह ने स्वदेशी की बात की और अंग्रेजों की डाक व्यवस्था का विरोध कर स्वदेशी कूका व्यवस्था लागू की ।

वीर सावरकर ने १२ वर्ष की उम्र में हितेच्छु’ में स्वदेशी की फटकार’ लेख लिखा । २२ वर्ष की उम्र में विदेशी वस्त्रों की होली जलाई । 

वर्ष १९०५ के बंग-भंग विरोधी जनजागरण से स्वदेशी आन्दोलन को बल मिला । अरविन्द घोषरवीन्द्रनाथ ठाकुरविनायक दामोदर सावरकरलोकमान्य बाल गंगाधर तिलकऔर लाला लाजपत राय स्वदेशी आन्दोलन के मुख्य उद्घोषक थे । बंगभंग आन्दोलन में बंदेमातरम्’ ने धूम मचा दी । समझना होगा तब तक गांधी यहां अनुपस्थिति हैं।

 * पूर्वजों की विरासत गांधी में छाया बन कर दिखी। परिणामत: कांग्रेस को १९३० में रावी के तट पर पूर्ण स्वराज’ का प्रस्ताव पारित करना पड़ा । 

रा.स्व. संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार ने इसके लिए कांग्रेस को धन्यवाद पत्र भी भेजा था । तात्पर्य संघ का स्वदेशी प्रकटीकरण।

यही स्वदेशी आन्दोलन स्वतन्त्रता आन्दोलन का केन्द्र-बिन्दु बना । जिसे गाँधी ने स्वराज की आत्मा’ कहा।

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विदेशियों की नज़र में भारत -

 * स्वदेशी से समृद्ध भारत का संकेत प्रसिद्ध स्विस लेखक बजोरन लेण्डस्ट्राम अपनी पुस्तक भारत एक खोज’ में देता है- ‘‘ मार्ग और साधन कई थेपरन्तु उद्देश्य सदा एक ही रहा- प्रसिद्ध भारत भूमि पर पहुँचने काजो देश सोना चाँदीकीमती मणियों और रत्नोंमोहक खाद्योंमसालोंकपड़ों से लबालब भरा पड़ा है।’’

 * सार यह कि आधुनिक विज्ञान के क्षेत्र में भारत के पास ये क्षमताएँ उस समय से थींजब पश्चिम के कई देशों का जन्म भी नहीं हुआ था ।  

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परिधान में भारतीय दृष्टि -

भारतवर्ष में उत्तर से लेकर दक्षिण तक परिधानों/वस्त्रों के प्रयोग में जलवायु भिन्नता के कारण विविधता दिखाती है । किन्तु वे सब भारतीय भेषभूषा ही हैं ।

भारतीय परिधान का अर्थ है भारत की पारंपरिक वेशभूषा । कपड़ों का पहनना अपनी स्व’ की पहचान हैं । यह सिर्फ कपड़े पहनने का तरीका नहीं है । यह भारत की संस्कृतिपरम्परा और क्षेत्रीय पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है ।

यह विभिन्न क्षेत्रोंमत-पंथों और सामाजिक- सांस्कृतिक समूहों के बीच विविधतासामाजिक स्थिति को दर्शाता है ।

कूका राम सिंह से लेकर गांधी तक का खादी का आग्रह स्वदेशी और स्वाभिमान का आग्रह तो था हीस्वरोजगारकुटीर उद्योगों के अस्तित्व के लिए भी था । 

 * गांधी का चरखा स्वदेशी यंत्रों के उपयोग का प्रतीक था ।  

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 स्वदेशी वर्तमान में प्रासंगिक क्यों -

 (१) भारत की सुरक्षा एवं एकता को सुनिश्चित करना। (२) आर्थिक और सामरिक रूप से आत्मनिर्भर राष्ट्र का निर्माण । (३) भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों को बढावा देना । (४) प्राकृतिक संपदा का संरक्षण। (५) सभी क्षेत्रों एवं सभी समाजों का संतुलित विकास । 

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 स्व का व्यवहारिक सूत्र स्वदेशी  -

स्वदेशी की सफलता उसके क्रियात्मक स्वरुप पर निर्भर करता है । स्व’ सिद्धांत है तो स्वदेशी उसका व्यावहारिक स्वरूप ।

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 ‘स्व’ का जागरण और स्वदेशी प्रकटीकरण के क्षेत्र -

* (१) भाषा, (२) भूषा, (३) भजन, (४) भोजन, (५) भेषज । 

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 शाश्वत और परिवर्तनशील : युगानुकुल प्रयोग:

तीन स्तर पर करना अपेक्षित है -

 (१) व्यक्तिगत जीवन में आचरण करना । 

(२) परिवार में स्वबोध और स्वदेशी का उपयोग । 

 (३) अपने कार्यक्षेत्र में स्वाबलंबी बनाने की प्रकिया में स्व’ और स्वदेशी का चिंतन,अनुशंधान तथा युगानुकूल प्रयोग। 

13/8/25

Saturday, 9 August 2025

चर्पटिमंजरी


चर्पटिमंजरी 

स्तोत्र 

दिनमपि रजनी सायं प्रातः शिशिरवसन्तौ पुनरायातः । कालः क्रीडति गच्छत्यायुः तदपि न मुञ्चत्याशावायु ॥

भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते । प्राप्ते सन्निहिते मरणे नहि नहि रक्षति डुकृञ् करणे ॥१॥

अग्ने वह्निः पृष्ठे भानू रात्रौ चिबुकसमर्पितजानुः । करतलभिक्षा तरुतलवासस्तदपि न मुञ्चत्याशापाशः ॥२॥

यावद् वित्तोपार्जनसक्तः तावन्निजपरिवारो रकतः । पश्चाध्दावति जर्जरदेहे वार्ता पृच्छति कोऽपि न गेहे ॥३॥

जटिलो मुण्डी लुञ्चितकेशः काषायाम्बरबहुकृतवेषः । पश्यन्नपि च न पश्यति मूढः उदरनिमित्तं बहुकृतशोकः ॥४॥

भगवद‍गीता किञ्चितधीता गङ्गाजललवकणिका पीता । सकृदपि यस्य मुरारिसमर्चा तस्या यमः किं कुरुते चर्चाम ॥५॥

अङ्गं गलितं पलितं मुण्डं दशनविहीनं जातं तुण्डम् । वृध्दो याति गृहीत्वा दण्डं तदपि न मुञ्चत्याशा पिण्डम् ॥६॥

बालस्तावत्क्रीडासक्तस्तरुणस्तावत्तरुणीरक्तः । वृध्दस्तावच्चिन्तामग्नः परे ब्रह्मणि कोऽपि न लग्नः ॥७॥

पुनरपि जननं पुनरपि मरणं पुनरपि जननी जठरे शयनम् । इह संसारे खलु दुस्तारे कृपयापारे पाहि मुरारे ॥८॥

पुनरपि रजनी पुनरपि दिवसः पुनरपि पक्षः पुनरपि मासः । पुनरप्ययनं पुनरपि वर्षं तदपि न मुञ्चत्याशामर्षम् ॥९॥

वयसि गते कः कामविकारः शुष्के नीरे कः कासारः । नष्टे द्रव्ये कः परिवारो ज्ञाते तत्वे कः संसारः ॥१०॥

नारीस्तनभरनाभिनिवेशं मिथ्यामायामोहावेशम् । एतन्मांसवसादिविकारं मनसि विचारय वारम्वारम् ॥११॥

कस्त्वं कोऽहं कुत आयातः का मे जननी को मे तातः । इति परिभावय सर्वमसारं विश्वं त्यक्त्वा स्वप्नविचारम् ॥१२॥

गेयं ग‍ीतानामसह्स्रं ध्येयं श्रीपतिरुपमजस्रम् । नेयं सज्जनसङ्गे चित्तं देयं दीनजनाय च वित्तम् ॥१३॥

यावज्जीवो निवसति देहे कुशलं तावत्पृच्छति गेहे । गतवति वायौ देहापाये भार्या बिभ्यति तस्मिन्काये ॥१४॥

सुखतः क्रियते रामाभोगः पश्चाध्दन्त शरीरे रोगः । यद्यपि लोके मरणं शरणं तदपि न मुञ्चति पापाचरणम् ॥१५॥

रथ्याचर्पटविरचितकन्थः पुण्यापुण्यविवर्जितपन्थः । नाहं न त्वं नायं लोकस्तदपि किमर्थं क्रियते शोकः ॥१६॥

कुरुते गङ्गासागरगमनं व्रतपरिपालनमथवा दानम् । ज्ञानविहीनः सर्वमतेन मुक्तिं न भजति जन्मशतेन ॥१७॥

॥ इति श्रीमच्छंकराचार्यविरचितं चर्पटपंजरिकास्तोत्रं संपूर्णम् ॥

मैं ममत्व हूं, समत्व हूं, बर्धत्व हूं"

"मैं ममत्व हूं, समत्व हूं, बर्धत्व हूं"

* टुकड़े पर बिके, कोहनी पर टिके, गमले में उगे, न धूप सही,न आंधी जानी,बस दिखावे के धनी, बातें करते ऊंचे आकाश की।

* आत्मचिंतन इन्हें करना है या आत्ममंथन उन्हें करना है जिन्होंने धूप सही, जमीन में उगे, फंसी हैं जड़ें जिनकी जड़ो में। 

* चिंतनीय वे हैं जो परिस्थित के कारण बौने हैं या वे जो मन: स्थिति के। क्या बरगदों ने ही अपने शौक के लिए गमलों में बौने पैदा नहीं किये हैं?

* बौने वे हैं जिन्हें बरगद ने उठने नहीं दिया या बौने वे हैं जो बरगद से दूर उगे, सुविधा भोगी और अब बरगद से बड़े हैं। 

* उन्हें बरगद के ऊपर ही देखने की आदत हो गई है। वो डरते हैं कि कहीं बरगद के नीचे देखा तो हमारे महल और उसकी झोपड़ी का अंतर हमारी बची कुची नैतिकता को रौंद न दे।

* धूप,आंधी तो दूर्वा ने सहा और देखा है,जिसे रौंदा है तथाकथित बरगदों की जाल भरी जड़ों ने। 

* वह तो दूर्वा की जीजिविषा है कि वह रौंदी जाकर भी दूने उत्साह से छिछल कर छिछोरों को अपनी अस्मिता का परिचय दे रही है। 

* क्योंकि जब बाढ़ आती है, बिजली चमकती है,मेघ तांडव करते हैं तब यदि कोई पानी में डूब कर, बिजली के ताप के सुलझ से बच कर, मेघों के गर्जन को राग मल्हार मान कर साथ में गुनगुनाने लगती है। वह दूर्वा ही तो है।

* वह दूर्वा ही तो है जो भोर तक बेसुध मौन , शताब्दियों की चली आ रही निशाचारी माया से बचने समाधि में चली जाती है।

* दरअसल परम्परा के बरगद, पीपल और रसाल सदा से कुचले दीमक के शरणस्थली रहे हैं। वहीं कबीर,सूर, तुलसी बढ़े,पले है। 

* वहां कोई कागभुशुण्डि बनते हैं,तो किसी की शम्भु समाधि लगती है,तो कोई ध्यान लगाता है और कोई आत्मचिंतन -मंथन करता है। 

* तभी वह बुद्धत्व को प्राप्त होता है। संघं शरणं गच्छामि और धम्म की ओर बढ़ता है।

* किंतु सुविधा भोगी बना तथाकथित बरगद?? कभी इस दल-दल में कभी उस दल-दल में सडांध दल में दाल गला रहा होता है। 

* अभी तक भारतीय गौरवशाली परम्परा  की उसी बात को मान्यता मिलती थी जिसे पश्चिम अच्छा कहता था। अब मान्यता उसे जिसे देश का अहिंदू कहे। है न, आत्म गौरव की अबूझ पहेली?

* शरद और बसंत के छुटपुट बादल पानी की बूंदें छिड़क सकते हैं किन्तु चातक और धरती को तो स्वाती नक्षत्र, आषाढ़ की पहली बूंद,  सावन की रिमझिम और भादौं की भदोही ही तृप्त कर सकती है। 

* बौने, कुबड़े, अपाहिज और अन्त्यज अब विकलांग नहीं, दिव्यांग हैं। वे धंसते,उठते, वृक्षों की जड़ थामें, चट्टानों की बांहों में लिपटे हिमालय हैं, किंतु तथाकथित साधकों की चतुराई से अंजान हैं।

* वे विंध्याचल की विनम्रता हैं जो अगस्त्य के आश्वासन पर टिके और झुके हैं। वे महेंद्र हैं जहां परशुराम शरण पाते हैं। उनमें भरी है मलयानिल की नष्ट न होने वाली,संसार को तृप्त करने वाली सुगंध।

* वे संगम हैं जहां सरस्वती का दिखावा नहीं है। वे कालिंदी हैं जिसे कालिया के जहर पीने की आदत है। और भी बहुत कुछ 🙏🚩

सादर

श्रावण,चतुर्थी, 
27/7/25

मणिं दत्वा

जिज्ञासा -मणिं दत्त्वा ततः सीता हनूमन्तमथाब्रवीत् । अभिज्ञानमभिज्ञातमेतद् रामस्य तत्त्वतः (१)मणि देने के पश्चात् सीता हनुमान्‌ जी से बोलीं- 'मेरे इस चिह्न को भगवान् श्री रामचन्द्र जी भलीभाँति पहचानते हैं (१) मणिं दृष्ट्वा तु रामो वै त्रयाणां संस्मरिष्यति । वीरो जनन्या मम च राज्ञो दशरथस्य च (२)'इस मणि को देखकर वीर श्रीराम निश्चय ही तीन व्यक्तियों का- मेरी माता का, मेरा तथा महाराज दशरथ का एक साथ ही स्मरण करेंगे ॥ २ ॥(श्रीमद्वाल्मीकीय रामायणे एकोनचत्वानरिंश: सर्ग:)दूसरे श्लोक में सीता कहती हैं,इस मणि को देखकर वीर श्रीराम निश्चय ही तीन व्यक्तियों का- मेरी माता का, मेरा तथा महाराज दशरथ का एक साथ ही स्मरण करेंगे। बाल्मीकि जी तीनों के स्मरण का कारण नहीं बताते।मैं जो अनुमान लगा पा रहा हूं, 'यहां माता अर्थात् मायका, मेरा अर्थात सीता के वर्तमान परिस्थिति का,(इस मणि का प्रसंग दूसरी वार सर्ग 66/4 में आता है, जहां हनुमान जी जब श्रीराम को मणि देते हैं और सीता का संदेश बताते हैं कि इसे देखकर श्रीराम को जनन्या,मेरी और दशरथ का स्मरण होगा,तब राम कहते हैं,यह मणि हमारे श्वसुर ने सीता को दिया था। इसे देख कर मुझे वैदेहस्य, पिता दशरथ के दर्शन हो रहे हैं और ऐसा लग रहा है मानो सीता मिल गई है।यह मुद्रिका जनक को इंद्र ने दी थी।)  दशरथ याने ससुराल का।'⭐'मेरा ऐश्वर्य पूर्ण मायका, चक्रवर्ती सम्राट की बहू, अजेय राम की पत्नी।'⭐⭐क्या यह भी संकेत है कि आपातकाल में प्रत्येक बेटी /पत्नी/बहू को यही तीन स्मरण आते हैं?⭐⭐⭐और भी बहुत कुछ हो सकता है। बाल्मीकि कविपुंगव जो ठहरे।…............⭐ वृहत्तर कुटुम्ब के निहितार्थ।⭐⭐ कुटुम्ब का स्वाभिमान।⭐⭐⭐ कुटुम्ब की रक्षा में अपनी सुरक्षा।…...#परिवार प्रवोधन #अतीत का गौरव

Friday, 8 August 2025

तिब्बती साहित्य की विशेषताएं

तिब्बती साहित्य की विशेषताएं इस प्रकार हैं:

1. *बौद्ध धर्म का प्रभाव*: तिब्बती साहित्य पर बौद्ध धर्म का गहरा प्रभाव है, जिसमें बुद्ध की शिक्षाएं, दर्शन, और प्रार्थनाएं शामिल हैं।

2. *आध्यात्मिकता*: तिब्बती साहित्य में आध्यात्मिकता एक महत्वपूर्ण विषय है, जिसमें जीवन के उद्देश्य, आत्म-ज्ञान, और मोक्ष की खोज शामिल है।

3. *कविता और गद्य*: तिब्बती साहित्य में कविता और गद्य दोनों शैलियों का समावेश है, जिनमें प्रार्थनाएं, स्तोत्र, और दार्शनिक ग्रंथ शामिल हैं।

4. *तिब्बती संस्कृति का प्रतिबिंब*: तिब्बती साहित्य तिब्बती संस्कृति, इतिहास, और परंपराओं का प्रतिबिंब है, जो तिब्बती लोगों के जीवन और मूल्यों को दर्शाता है।

5. *प्रतीकात्मकता*: तिब्बती साहित्य में प्रतीकात्मकता का उपयोग किया जाता है, जिसमें विभिन्न प्रतीकों और चिन्हों के माध्यम से आध्यात्मिक और दार्शनिक विचारों को व्यक्त किया जाता है।

6. *लामाओं की भूमिका*: तिब्बती साहित्य में लामाओं की महत्वपूर्ण भूमिका है, जिन्होंने तिब्बती बौद्ध धर्म की शिक्षाओं को प्रसारित करने और साहित्यिक परंपरा को बनाए रखने में योगदान दिया है।

इन विशेषताओं के साथ, तिब्बती साहित्य एक अद्वितीय और समृद्ध साहित्यिक परंपरा है जो तिब्बती संस्कृति और बौद्ध धर्म के मूल्यों को प्रतिबिंबित करती है।