किंतु उससे महत्वपूर्ण है-
* आशीर्वाद है।
* दरअसल यह उत्सव प्रसंग है।
* बस समझना होगा यह कोई उपनिषद काल नहीं है। जहां ऋचाएं ब्रह्म की,जीवन की चर्चा करती हैं।
तुलसी बाबा कहते हैं -
* कीन्हें प्राकृत जन गुन गाना।
सिर धुन गिरा लगत पछिताना।।
इसलिए वे स्मरण दिलाते हैं -
* हृदय सिंधु मति सीप समाना।
स्वाति सारदा कहहिं सुजाना।।
तात्पर्य यह कि-
* इससे जब श्रेष्ठ विचार रूपी जल बरसता है तो मुक्तामणि के समान कविता (साहित्य) बनता है।
इस परिप्रेक्ष्य में कुछ विचार किया जा सकता है -
पुरस्कार आयोजित और प्रायोजित दोनों प्रकार के होते हैं।
कुछ कृतकार को समर्पित, कुछ कृति को।
कुछ कृतियां पुरस्कृत होकर विलुप्त प्रजाति में चली जाती हैं, कुछ बिना पुरस्कार के पुरस्कार की प्रतीक्षा में जीवन खो देती हैं।
कुछ को दीमक चाट जाते हैं, कुछ कचरे में भाव- कुभाव के साथ ठेले में बैठ कर बिदा हो जाती हैं। कुछ पान, नमकीन, भजिया, भुंजिया के लिए शरणस्थली बनती हैं।
किंतु इनके बीच कुछ अनमोल कृतियां मोल तोल के लिए निर्मम समीक्षकों के हाथ पड़ कर सम्बंधों/असंबन्धों के आधार पर -
* निखर कर दुनिया के बीच बौद्धिक खुराक़ बन जाती हैं।
* या समीक्षकीय भाषा के मकड़जाल में छटपटाती रहती हैं।
इसमें न तो कृति का दोष है और न कृतिकार का।
दोष तो पाठक का भी नहीं है, किंतु उसके पास में वह दृष्टि होती है-
* जो साहित्य में मनुष्यता, ममता, करुणा, सहानुभूति और परोपकार के सूत्र खोज कर उसे सद्ग्रंथों की श्रेणी में ला सकती है।
* बस दुर्लभ है तो पाठक!
न कृति रुकेंगी,न पुरस्कार के विज्ञापन। तय करना है-
* आप आवेदन देकर तथाकथित सरकारी, असरकारी संस्थाओं से पुरस्कार लेना चाहते हैं,
* या कृति को लोकार्पण से बचा कर लोक के/ जनता के/ सुधी पाठक के हाथों देकर उसे सम्मानित होने का अवसर देना चाहते हैं।
समझना होगा-
* रचना प्राकृत जन का गुणगान कर रही है,
या
* भारतीय ज्ञान परम्परा को समर्पित है।
यही कृति के पुरस्कार/सम्मान के आधार और उसके कालजयी होने के लक्षण हैं।
इसलिए मित्र!
* नैतिकता की किताब जीवनशैली है। जिससे चरितार्थता प्राप्त होती है।
* जिसमें कुटुम्ब भाव, सामाजिक समरसता, पर्यावरण सुरक्षा, और नागरिक कर्तव्य होता है। इनकी सार्थकता का /प्रकटीकरण का आधार 'स्व'बोध है।
* श्रेष्ठ कृतियों को पढ़ा जाना ही उनका पुरस्कार है। साहित्य और सामाजिक उत्सवों का यही संदेश है।
दुर्गाष्टमी / नवमीं की शुभकामनाएं। मां भारती का आशीर्वाद बना रहे।,🙏🕉️
1/10/25
जी भाईसाहब और कुछ कृतियां बिना पुरस्कार के ही प्रसिद्धि पा जाती हैं
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