* क्या धर्म को आप भी अफीम मानते हैं?
* क्या धर्म निर्पेक्षता सार्वजनिक छल नहीं है?
* क्या व्यक्तिगत और पारिवारिक कार्यक्रमों में सेक्युलर ,वामपंथी और सेमेटिक सभी धर्म सापेक्ष नहीं रहते?
* क्या कम्युनिज्म जीवन दर्शन है?
* क्या कम्युनिज्म सामान्य व्यवहार ही तक सीमित नहीं है?
* क्या कम्युनिज्म को जल्प के आधार पर जीवन मूल्य नहीं बताया जा रहा है?
* क्या कम्युनिज्म राजनीति और समाज में एक नई व्यवस्था से अधिक कुछ भी है?
* क्या वह किसी परिप्रेक्ष्य में जीवन मूल्य या जीवन दर्शन है?
* क्या उसमें मानवीय मूल्यों की उपस्थिति है?
विचार करें -
* जब सेमेटिक पंथ, कम्युनिज्म/वामपंथी अपने तथाकथित धर्मों में ही जीते हैं। तब क्या आप सेक्युलर का प्रश्न उठाते हैं?
* फिर भारतीय संस्कृति और सभ्यता को ही आप धर्मनिरपेक्ष क्यों देखना चाहते हैं?
* क्या आप यह नहीं मानते कि धर्म और अध्यात्म भारतीय संस्कृति के प्राण तत्व हैं। जिनके अंदर विश्व के चर -अचर तक के कल्याण की कामना है।
* आप यह तो मानते होंगे ही कि भारतीय सभ्यता मिश्रित हो सकती है। संस्कृति नहीं।
* आप इतना तो स्वीकार करेंगे ही कि ' सनातन संस्कृति का मूल उत्स धर्म और आध्यात्म ही है। इसमें वैश्विक मानवता के कल्याण के सूत्र हैं।
* क्या खंडित व्यवस्थाएं अखंडित अखंड मंडलाकार नैसर्गिक व्यवस्था पर प्रश्न खड़ा कर सकती है।
* क्या सेक्युलर को पंथनिरपेक्षता की जगह धर्मनिरपेक्षता मानना, पश्चिम केन्द्रित विचारों की अज्ञानता भरी स्वीकारोक्ति की पराकाष्ठा नहीं है ।
आशा है आप सहमत होंगे।
30/7/25
प्रकृति प्रवाह, भोपाल
धर्म प्राकृतिक गुणों के अनुरूप आचरण है।
ReplyDeleteकम्युनिज्म को साम्यवाद समझना चाहिए।
साम्यवाद में सभी को बलात् समान समझने के लिए प्रयास है।
भारतीय संस्कृति भौगोलिक है तथा प्राचीन संस्कृति वृहद् अर्थ में प्रयुक्त शब्द है; जिसमें विराट समाहित है एवं संस्कृति मूल शब्द है; जो कि प्रकृति के अनुरूप आचरण के लिए व्यावहारिक व्यवस्था है। सादर
आज 21 वीं सदी में मार्क्स जैसे घिसे-पिटे एवं कुण्ठित तथा क्षुब्ध और वैचारिक विकलाङ्ग विचारकों का उद्धरण is the out of time thinking❗
ReplyDeleteइसी प्रकार से प्राचीन भारत के उदाहरण देना भी दादी सा का एलबम देखना है⁉️
हमें ऐसा लगता है कि केवल और केवल ईमानदारी से कार्य करते हुए वैदिक संस्कृति का अध्ययन ही आवश्यक है❓सादर