Wednesday, 30 July 2025

सोना बहुत मंहगा है

* वैसे भी सोना बहुत मंहगा हो गया है। विशेष तक रहना है तो सोने की चिड़िया बनने में कोई किंतु परंतु नहीं। 

*  यदि सर्वजनहिताय, सर्वजनसुखाय निर्हेतुक भाव से अंत्योदय हेतु जाना है तो लाठी और काठी आवश्यक है।

* आवश्यक इसलिए नहीं कि आवारा और विषैलों को मारना ही है।

*  आवश्यकता है शेर की मांद में हाथ डालकर झांकने वाले को अहसास कराना है कि अब शेर सर्कश में लाकर जनता का मन बहलाने का साधन नहीं है।

*  यह भी तथ्य है कि सर्कश भी स्वरूप बदल रहा है। उसका दायरा सीमा और सीमापार कर चुका है।

*  शक्ति सर्वव्यापी और सर्वस्पर्शी हो इसके लिए कुछ नवीन कुछ आकर्षक चाहिए। 

* सोने की चिड़िया श्रद्धेय बना सकती है। यह प्राण तत्व है किन्तु विश्व को श्रद्धा नहीं सम्मान दिखता है । 

* और वह सम्मान मांग कर नहीं मिलता। इसलिए अर्जित किया जा रहा है, देश में भी विदेश में भी।

* इसे अर्जन करने , स्थायी और अक्षुण्ण बनाने के लिए भरत जैसा निर्भीक,निडर किंतु बोधयुक्त, शील युक्त,वीर्य युक्त, शक्तिवान होना होगा।

*  अब वह सिंह सावक नहीं चाहिए, जिसे भेड़िया के झुंड में पाला जा सके, बांधा जा सके।

* उसे बाहर आना होगा विश्वगुरु, सोने की चिड़िया के आत्ममुग्धता से। आत्मनिरीक्षण करना होगा। 'स्वत्व' का बोध करना होगा।

 *  अब खेल मुंह में खून लगे, रक्त पिपासु भेड़ियों से हैं। अतः सिंह सावकों को बब्बर शेर बनाना होगा।

*  शस्त्र और शास्त्र, गंगा और नांग एक साथ धारण करना होगा। तभी और तभी भारत के भाल पर बक्र चंद्रमा शोभा पा सकेगा। 

*  तब कोई भी राहु ग्रसने की हिमाकत नहीं करेगा। चाहे जितनी अमावस्या  दुहराई जायें।

इसलिए करणीय -

*  शेरों के अधिकारों की चाह भरी सुरसा को कपीश्वर के कर्तव्य से सीमित करना होगा।

*  समझाना होगा सम्पूर्ण हिन्दू समाज में एक ही हिंदुत्व का डीएनए है। हिंदुओं को हिंदुओं के डी एन ए टेस्ट कराने की आवश्यकता नहीं है।

*  आवश्यकता है समझने की इस पार के हिंदू, उस पार के हिंदू ,  इस और उस पार के हिंदू को कि 'हिंदव:सोदरा सर्वे न हिंदू पतितो भवेत्।'

* हिंदू कोई मदर टेरेसा नहीं जो केवल कैथोलिक बनाती थी, प्रोटेस्टेंट नहीं।

*  न तो अब मनुष्य जाति की सेवा के नाम पर झद्म जालसाजियां चलनी चाहिए।

*  न तलवार के नाम पर लाठी और भैंस की कहावत दुहराई जानी चाहिए।

* समझना होगा नेवला कितना भी पराक्रमी ,जझारू हो पंचमी नाग की ही मनाई जाती है। 

* समझना होगा घर के ही कम्युनिज्म (सेक्युलर हिंदू सहित अन्यों ने) को जो नेवले -नाग का खेल देखने के आदी हो चुके हैं। भेड़िया इसी का लाभ उठाते हैं।

*  स्मरण कराना होगा यहां सावित्री के सामने मृत्यु भी पराजित लाचार दिखती है। 
…...........

निहितार्थ -
* इसलिए कभी-कभी परम्परा बदलनी भी चाहिए। संकल्प की अवधारणा भी।

* सनातन संस्कृति कामधेनु के क्षीर की तरह है जो ईश्वर के ऐश्वर्य की मूर्ति को अपनी धवलता से शील और सौंदर्य प्रदान करता है। जिसका आधार सिंह (शक्ति) है।

* अतः सोने की लंका का ऐश्वर्य नहीं, अयोध्या का संकल्प चाहिए।

अपेक्षा के साथ -

29/7/25
प्रकृति प्रवाह, भोपाल

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