सेवानिवृत्त छोटा कर्मचारी परेशान है-
किसी ने सुझाव दिया -
" रिटायर्ड लोग परचून की दुकान खोलें। गौ आश्रम खोलें। सरकार के स्थानीय प्रतिनिधियों की जय जोहार करें। शेष की इच्छा जगत प्रपंच है। 'दिल्लीश्वरोवा जगदीश्वरोवा'।"
"सरकारें पंजाब सरकार से सीखे और सब को समान न्याय के आधार पर विधायकों /सांसदों (केन्द्र सरकार भी) को भी एक पेंशन का ही प्रावधान रखे।"
सरकारों का खजाना नहीं लुटेगा। पूर्व मुख्यमंत्रियों की आजीवन बंगला, गाड़ी, विशेष सहायक, टेलीफोन, बिजली के बिल, चिकित्सा सुविधाएं भी बंद होनी चाहिए।
एक मुख्यमंत्री आने वाली सात पीढ़ी के लिए कमा लेता है फिर क्या वह अपने जीवन काल में भी उस धन का अपने जनता की सेवा में ख़र्च नहीं कर सकता? कैसा त्याग और कैसी सेवा?
जब मुख्यमंत्री रहते हैं तो समझाते हैं -"क्या लेके आया बंदे,क्या ले के जायेगा!"
फिर यह सुविधा स्वीकार करना सरकारी खजाने का दुरुपयोग नहीं है?
इस सुविधा का दुरुपयोग सबसे अधिक मुख्यमंत्री करते हैं।अपने रहते अपने पुराने बंगले को आलीशान (केजरीवाल की तरह) कोठी बना लेते हैं और उनकी सुविधा बरकरार रहती है।
यह बंद होना चाहिए। त्याग तपस्या के आधार को लिए भाजपा को इस पर अवश्य चिंतन करना चाहिए।
यदि मुख्यमंत्रियों को सुविधा देना है तो भाजपा कार्यालय में उन्हें जनता की समस्या सुनने और संगठन में योगदान करने के लिए कमरा देना चाहिए।
यही चलता रहा तो कुछ दिनों में राजधानी के महत्वपूर्ण इलाकों की अरबों-खरबों की जमीन, बंगला भूतपूर्व (भूतों)के हवाले हो जायेगी। क्योंकि पांच साल में कभी-कभी तीन मुख्यमंत्री भी बन जाते हैं!
ऐसे अधिकारियों पर भी कठोर कार्रवाई होनी चाहिए जो नियम के विरुद्ध जाकर निर्माण की अनुमति देकर निर्माण कराते हैं।
एक फ़ैशन गौ शाला का चला है। सरकारी बंगलों में सरकारी खर्च पर गौशालाओं की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
ऐसे प्रेमी,कृपाल जनों को फ़ार्म हाउस बना कर गौसेवा करनी चाहिए। सब लोग लालूजी ही बनना चाहते हैं तो उस ग्वाल के बेटे को चारा खाने की सज़ा क्यों?
अब जब मुखिया ही अपने भविष्य को तय करने में जुटा हो तो पेंशनर्स -सेवक क्या पायेंगे? इसीलिए कहता हूं सेवानिवृत्त के पहले अपने लिए धंधा तय कर लें।
क्या आप को नहीं लगता कि दरअसल यह लोकतंत्र प्रकारांतर से राजतंत्र ही है।
क्योंकि राजनेता, ब्यूरोक्रेट्स, विभिन्न प्रशासनिक सेवा के अधिकारी आखिर आचरण से क्या प्रकट करते हैं?
कथा लम्बी है फिर किसी प्रसंग में। शेष आप सब जानते ही हैं।
उमेश कुमार सिंह
16/4/25
आपकी सारी बातें सही हैं लेकिन इन्हें अमल में लाने वाला ही तो राजा है ......कोई क्या करे ? कैसे करे ?
ReplyDeleteजो नेतागण नैतिकता की बातें करते है उनको स्वेच्छा से ही सरकारी लाभ सेवा निवृत्ति के बाद त्याग देबा चाहिए l अन्यथा कठोर नियम बनें l आपका कहना बिलकुल सही है l🙏
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