2024 पृष्ठ -तीन (8)
वर्ष देख जीवन के बीतते
उतराता - डूबता हूं
आश्चर्य में
किस रहस्यपूर्ण डोर से बंधकर
पहुंचता जा रहा हूं
अनदेखे अपठित काल के
अगले पृष्ठ को पढ़ने ।
गिनते हुए वर्ष के नवीन पृष्ठ
जो लिखा जा चुका है
विधाता के हाथ
परंतु जीने का पुरुषार्थ-
भ्रम जिंदा है कि
मैं ही लिखता आ रहा हूं।
कर्म और प्रारब्ध का द्वंद्व
लेकर एक दिन
विदा होना है
किसी को आज
तो
किसी को कल ।
चालू रहेगी यह अक्षुण्ण
काल की अनंत यात्रा
क्योंकि काल गति अखंड है !!
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