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ठीक एक माह बाद
आज के ही दिन
तथाकथित धर्मों के ठेकेदारों
के चंगुल से मुक्त
भारत के ही नहीं
दुनिया के अनभिषिक्त सभी अस्पृश्य पा सकेंगे माथे पर राम-रज
चरणों में राम-पादुका
हृदय में पवित्रता-समानता- एकात्मकता का अनंत यात्राओं से प्रतीक्षित अनुराग।
उस दिन से न होगी कोई जाति
न कोटा आरक्षित -अनारक्षित का
झर पड़ेंगे हृदय की गहराई से जन्म जन्मांतर से सहेजे धरोहर-मंत्र
समर्पित हो सकेंगे
उस देवता के चरणों में खुली
पृथ्वी और आकाश की अंजुलि से।
अब कभी देवता न हो सकेंगे कैद किसी मंदिर में
दर्शन होंगे दुनिया के किसी कोने में बैठे अस्पृश्य को
मंदिर के बाहर और भीतर भी।
तमाम सम्प्रदायों द्वारा उपेक्षित
बौनों द्वारा संचालित आदिम मनुष्य
पा सकेगा शबरी, जटायू, निषाद -बानर के मैत्री भाव।
'परस्परं भावयन्तु' के सनातन सूत्र में एकरस होकर
पार कर सकेंगे बाधाओं की दीवार
नहीं खड़ा होगा कोई पहरेदार
नहीं आयेंगे नजर विभिन्न तरह के जाति -सम्प्रदाय- वंचित -शोषित बाड़ों में बंद मनुष्य ।
सारी सीमाओं के पार
होगा 'चिर सनातन, नित्य नूतन' मनुष्य
जहां एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र से,
एक धरती दूसरी धरती से कर रहे होंगे आलिंगन।
'वसुधैव कुटुम्बकम' की नाभि !!
हे राम ! पुनः 'अयोध्या' सार्थक होगी।
-उमेश
22/12/23
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