व्यक्तित्व विकास एवं चरित निर्माण स्नातक अन्तिम वर्ष के प्रश्न
इकाई (एक)
प्रश्न (1) “ॐ शं नो मित्रः शं वरुण: । शं नो भवत्वर्यमा । शं न इन्द्रो बृहस्पतिः । शं नो विश्नुरुरुक्रमः । नमो ब्रह्मणे । नमस्ते वायो । त्वमेव प्रत्यक्षम ब्रह्मास्मि । त्वामेव प्रत्यक्ष्मं ब्रह्म वदिष्यामि । ऋतं वदिष्यामि । सत्यम वदिष्यामि । तन्मामवतु । तद्वक्त्रारमवतु । अवतु माम् । अवतु वक्तारम् । ॐशांतिः शांतिः शांतिः”- यह प्रार्थना किस उपनिषद से ली गई है ?
उत्तर - कृष्ण यजुर्वेदीय तैतरीय शाखा ,तैत्तिरीयोपनिषद ।
प्रश्न (2) “दुष्ट: शब्द: स्वरतो वर्णतो वा मिथ्या प्रयुक्तो न तमर्थमाह । स वाग्वज्रो यजमानम हिनस्ति यथेन्द्रशत्रु: स्वरतोSपराधादिति ।।” किसका कथन है ?
उत्तर - महर्षि पतंजलि का ( महाभाष्य पस्पशाह्निक में )
प्रश्न (3) स्वर भेद कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर- हस्व, दीर्घ और प्लुत
प्रश्न (4) मात्रा भेद को समझ कर उच्चारण न करने से क्या हानि होती है ?
उत्तर - हस्व के स्थान पर दीर्घ और दीर्घ के स्थान पर हस्व का उच्चारण करने से अर्थ बदल जाते हैं, जैसे सीता और सिता । कृष्ण और कृष्णा ।
प्रश्न (5) ‘बल’ का अर्थ क्या है ?
उत्तर-‘बल’ का अर्थ ‘प्रयत्न’ है । वर्णों के उच्चारण में उनके ध्वनि को व्यक्त करने में जो प्रयास करना पड़ता है, वही ‘प्रयत्न’ कहलाता है ।
प्रश्न (6) ‘प्रयत्न’ कितने प्रकार के होते हैं ? ‘प्रयत्न’ दो प्रकार के होते हैं - ‘आभ्यांतर और बाह्य’ ।
प्रश्न (7) ‘आभ्यांतर’ के कितने भेद (प्रयत्न) होते हैं ?
उत्तर- स्पृष्ट, ईषत्-स्पृष्ट, विवृत, ईषद-विवृत, संवृति - ये पांच आभ्यांतर के भेद हैं ।
प्रश्न (8) ‘बाह्य’ के कितने भेद (प्रयत्न) हैं ? ‘बाह्य’ के विवार, संवार, श्वांस, नाद, घोष, अघोष, अल्पप्राण, महाप्राण, उद्दात्त, अनुदात्त और स्वरित-ये बाह्य प्रयत्न के ग्यारह भेद होते हैं ।
प्रश्न (9) ‘क’ से लेकर ‘म’ तक के अक्षरों के आभ्यान्तर प्रयत्न को क्या कहते हैं ? उत्तर-‘स्पृष्ट’ है क्योंकि कंठ आदि स्थानों में प्राणवायु के स्पर्श से इनका उच्चारण होता है ।
प्रश्न (10) ‘क’ के बाह्य प्रयत्न कौन से हैं ?
उत्तर- बाह्य प्रयत्न विवर, श्वांस, अघोष तथा अल्पप्राण है ।
प्रश्न (11) ‘साम’ किसे कहते हैं ?
उत्तर- वर्णों का संवृति से उच्चारण या साम-गान की रीति ‘साम’ है ।
प्रश्न (12) ‘संतान’ का अर्थ क्या है ?
उत्तर- ‘संहिता’- संधि ।
प्रश्न (13) ‘संधि’ किसे कहते हैं ?
उत्तर- स्वर, व्यंज्जन, विसर्ग अथवा अनुस्वार आदि अपने परवर्ती वर्णों के संयोग से कहीं-कहीं नूतन रूप धारण कर लेते हैं । इस प्रकार वर्णों का यह संयोग जनित विकृति भाव ‘संधि’ कहलाती है ।
प्रश्न (14) प्राकृति भाव क्या है ?
उत्तर- किसी स्थान विशेष स्थल में जहां ‘संधि’ बाधित होती है, वहां वर्ण में विकार नहीं आता, अत: उसे ‘प्रकृति भाव’ कहते हैं ।
प्रश्न (15) ‘संहिता’ किसे कहते हैं ?
उत्तर- वर्णों में जो संधि होती है, उसे ‘संहिता’ कहते हैं ।
प्रश्न (15) ‘महा संहिता’ किसे कहते हैं ?
उत्तर- संहिता दृष्टि जब व्यापक रूप धारण करके लोक आदि को अपना विषय बनाती है, तब उसे ‘महा संहिता’ कहते हैं ।
प्रश्न (16) महासंहिता या महासंधि के कितने आश्रय होते हैं ?
उत्तर- लोक, ज्योति, विद्या, प्रज्ञा और आत्मा (शरीर) पांच आश्रय होते हैं ।
प्रश्न (17) प्रत्येक संधि के कितने भाग होते हैं ?
उत्तर-चार भाग होते हैं- पूर्व रूप , उत्तर रूप, संधि और संधान ।
प्रश्न (18) ‘नियम’ क्या है ? उत्तर - पूर्व रूप और उत्तर रूप के मेल से होने वाला रूप तथा दोनों का संयोजक ‘नियम’ कहलाता है ।
प्रश्न (19) ‘लोक’ को संधि के इन चार प्रकारों से समझाइए?
उत्तर- पृथ्वी यह लोक ही ‘पूर्व रूप’ है, स्वर्ग ही संहिता का ‘उत्तर रूप’ (पर वर्ण) हैं । आकाश या अन्तरिक्ष ही इन दोनों की ‘संधि’ है और वायु इनका ‘संधान’ (संयोजक) है । यहाँ वायु का अर्थ ‘प्राण’ है।
प्रश्न (20) ‘अग्नि’ को संधि के इन चार प्रकारों से समझाइए?
उत्तर- ‘अग्नि’ इस भूतल पर सुलभ है, अत: उसे संहिता का ‘पूर्व वर्ण’ माना है और ‘सूर्य’ द्युलोक में प्रकाशित होता है; अत: उसे ‘उत्तर रूप’ कहते हैं । इन दोनों से उत्पन्न होने के कारण ‘मेघ’ ही संधि है तथा ‘विद्युत् शक्ति’ ही इस संधि की हेतु (संधान) बतायी गयी है । इन ज्योतियों के सम्बन्ध से उत्पन्न होने वाले भोग्य पदार्थों को ‘जल’ का नाम दिया गया है।
प्रश्न (21) वेद या विद्या को संधि के इन चार प्रकारों से समझाइए?
उत्तर- आचार्य को ‘पूर्व रूप’ पहला वर्ण माना गया है । अन्तेवासी शिष्य ‘उत्तररूप’ वर्ण है । दोनों के मिलन (संधि) से उत्पन होने वाली ‘विद्या’ है, तथा गुरु के प्रवचन को श्रद्धापूर्वक सुनकर उस विद्या को धारण करना ‘संधान’ है ।
प्रश्न (22) ‘संतान’ उत्पति को संधि के इन चार प्रकारों से समझाइए?
उत्तर- माता को ‘पूर्वरूप’, पिता को ‘उत्तररूप’, संतान उत्पान हेतु उद्देश्य ‘संधान’ तथा संतान का उत्पन्न होना ‘संधि’ है ।
प्रश्न (23) मुख (संहिता) को संधि के इन चार प्रकारों से समझाइए?
उत्तर- नीचे के जबड़े को ‘पूर्वरूप’, ऊपर के जबड़े को ‘परवर्ण’, दोनों के मिलन को ‘संधि’ तथा जिह्वा (वर्ण के उत्पन्न होने से ) ‘संधान’ है ।
क्रमशः
बहुत अच्छा है । विद्यार्थियों के लिये बहुत उपयोगी। योजना के सभी व्हाट्सएप समूहों पर अग्रेषित कर रहा हूं, सर
ReplyDeleteबहुत ही उपयोगी जानकारी🙏🙏😊
ReplyDeleteभारतीय ज्ञान परंपरा एवं व्यक्तित्व विकास की सही जानकारी आपके द्वारा उपलब्ध कराई गई है यह छात्रों के लिए बहुत उपयोगी है
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