भाषा और संस्कृति स्नातक अंतिम वर्ष
प्रश्नोत्तर
जिज्ञासा -समाधान
जिज्ञासा - भवानी प्रसाद
का जन्म कब और कहाँ हुआ ?
समाधान - श्री भवानी
प्रसाद मिश्र का जन्म 29 मार्च, 1913 को ग्राम टिगरिया (तत्कालीन होशंगाबाद) वर्तमान जिला -
नर्मदापुरम, मध्यप्रदेश में हुआ था ।
जिज्ञासा - भवानी प्रसाद
मिश्र किस तार-सप्तक के प्रमुख कवि हैं ?
समाधान- भवानी प्रसाद
मिश्र दूसरे तार-सप्तक के प्रमुख कवि हैं ।
जिज्ञासा - भवानी प्रसाद
मिश्र का प्रथम काव्य संग्रह कौन सा है ?
समाधान- भवानी प्रसाद
मिश्र का प्रथम काव्य ‘गीत-फ़रोश’ है ।
जिज्ञासा - भवानी प्रसाद
मिश्र को साहित्य अकादमी पुरस्कार कब और किस रचना के लिए मिला ?
समाधान- भवानी प्रसाद मिश्र को सन् 1972 में ‘बुनी
हुई रस्सी’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला ।
जिज्ञासा - ‘सतपुड़ा के घने जंगल’ किस गीत संग्रह
में संकलित है ?
समाधान- ‘सतपुड़ा के
घने जंगल’ गीत फरोश (1956) काव्य संग्रह में संकलित है ।
प्रश्नों के उत्तर
दें -
प्रश्न - ‘सतपुड़ा के घने जंगल’ का सार लिखें ?
प्रश्न - भवानी प्रसाद
मिश्र के जीवन पर प्रकाश डालिए ?
…………………………………….
जिज्ञासा - उषा
प्रियंवदा का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
समाधान- उषा
प्रियंवदा का जन्म 24, दिसम्बर 1930 को कानपुर में हुआ था ।
जिज्ञासा - उषा प्रियम्बदा
किस प्रकार की साहित्यकार हैं ?
समाधान- उषा प्रियम्बदा एक प्रवासी हिंदी साहित्यकार हैं ।
जिज्ञासा - केन्द्रीय
हिंदी संस्था ने उषा प्रियम्बदा को कब और किस पुरस्कार से सम्मानित किया ?
समाधान- उषा प्रियम्बदा को 2007 में
केन्द्रीय हिंदी संस्थान द्वारा ‘पद्मभूषण डॉ. मोटूर सत्य
नारायण’ पुरस्कार से सम्मानित
किया गया।
जिज्ञासा - वापसी कहानी
का प्रकाशन वर्ष क्या है ?
समाधान- वापसी कहानी
का प्रकाशन वर्ष 1960 है ।
प्रश्नों के उत्तर
दें -
प्रश्न - ‘वापसी कहानी का सारांश लिखे और उसके
उद्देश पर प्रकाश डालिए ?
प्रश्न - गजाधर बाबू
के माध्यम से कहानी क्या सन्देश देती है ?
………………………………………
जिज्ञासा - शिकागो में
कब किस धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद ने उद्वोधन दिया ?
समाधान- स्वामी
विवेकानंद ने 11 सितम्बर, 1893 शिकागो (यूएसए) में आयोजित धर्मसंसद में वेदान्तिक
दर्शन पर विचार व्यक्त किये ।
जिज्ञासा - स्वामी
विवेकानन्द का जन्म कब और कहाँ हुआ ?
समाधान - स्वामी विवेकानन्द
का जन्म
12, जनवरी, 1863 (मकर
संक्रांति संवत् 1920) के दिन कोलकता में हुआ ।
जिज्ञासा - स्वामी विवेकानन्द के माता-पिता
का क्या नाम था ?
समाधान - स्वामी
विवेकानन्द के पिता का नाम विश्वनाथ दत्त तथा माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था ।
जिज्ञासा - स्वामी
विवेकानन्द का बचपन का नाम क्या था ?
समाधान - स्वामी विवेकानन्द का बचपन का
नाम वीरेश्वर था ।
जिज्ञासा - विलियम
हेस्टी (महासभा संस्था के प्रिंसिपल) ने स्वामी विवेकानन्द (नरेन्द्र ) के बारे
में के लिखा ?
समाधान - “नरेन्द्र
वास्तव में एक जीनियस है । मैंने काफी विस्तृत और बड़े इलाकों में यात्रा की है
लेकिन उनकी जैसी प्रतिभा का एक भी
बालक कहीं नहीं देखा, यहाँ तक की जर्मन विश्वविद्यालयों के दार्शनिक छात्रों में
भी नहीं।”
जिज्ञासा
- विवेकानन्द
का शिक्षा-दर्शन क्या है ?
समाधान - स्वामी विवेकानन्द मैकाले द्वारा प्रतिपादित और उस समय प्रचलित अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था के विरोधी
थे, क्योंकि उस शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ बाबुओं की संख्या
बढ़ाना था । वह ऐसी शिक्षा चाहते थे जिससे बालक का सर्वांगीण विकास हो सके । बालक
की शिक्षा का उद्देश्य उसको आत्मनिर्भर बनाकर अपने पैरों पर खड़ा करना है, तथा
विश्व का एक श्रेष्ठ नागरिक बनाना है ।
जिज्ञासा
-
स्वामी विवेकानन्द ने प्रचलित शिक्षा को ‘निषेधात्मक शिक्षा’ की संज्ञा क्यों देते
हैं ?
समाधान - स्वामी विवेकानन्द ने प्रचलित
शिक्षा को ‘निषेधात्मक शिक्षा’ की संज्ञा देते हुए कहा है कि आप उस व्यक्ति को
शिक्षित मानते हैं, जिसने कुछ परीक्षाएं उत्तीर्ण कर ली हों तथा जो अच्छे भाषण दे
सकता हो,
पर वास्तविकता यह है कि जो शिक्षा जनसाधारण को जीवन संघर्ष के लिए
तैयार नहीं करती, जो चरित्र निर्माण नहीं करती, जो समाज सेवा की भावना विकसित नहीं करती तथा जो शेर जैसा साहस पैदा नहीं
कर सकती, ऐसी शिक्षा से कोई लाभ नहीं ।
जिज्ञासा - स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा दर्शन के आधारभूत सिद्धान्त कौन से हैं ?
समाधान - स्वामी
विवेकानन्द के शिक्षा दर्शन के आधारभूत सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-
1. शिक्षा ऐसी हो जिससे
बालक का शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक विकास हो सके ।
2. शिक्षा ऐसी हो जिससे बालक के
चरित्र का निर्माण हो, मन का विकास हो, बुद्धि विकसित हो तथा बालक आत्मनिर्भर बने
।
3. बालक एवं बालिकाओं
दोनों को समान शिक्षा देनी चाहिए ।
4. धार्मिक शिक्षा,
पुस्तकों द्वारा न देकर आचरण एवं संस्कारों द्वारा देनी चाहिए ।
5. पाठ्यक्रम में लौकिक
एवं पारलौकिक दोनों प्रकार के विषयों को स्थान देना चाहिए ।
6. शिक्षा, गुरू गृह में प्राप्त की जा सकती है ।
7. शिक्षक एवं छात्र का
सम्बन्ध अधिक से अधिक निकट का होना चाहिए ।
8. सर्वसाधारण में
शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार किया जान चाहिये ।
9. देश की आर्थिक प्रगति
के लिए तकनीकी शिक्षा की व्यवस्था की जाय।
10. मानवीय एवं
राष्ट्रीय शिक्षा परिवार से ही शुरू करनी चाहिए ।
11. शिक्षा ऐसी हो जो
सीखने वाले को जीवन संघर्ष से लड़ने की शक्ती दे।
प्रश्नों के उत्तर
दें -
प्रश्न - स्वामी विवेकानंद के जीवन पर प्रकाश डालिए ?
प्रश्न - स्वामी
विवेकानंद का 11 सितम्बर, 1893 शिकागो का व्याख्यान क्या सन्देश देता है ?
...........................................
जिज्ञासा
- पंडित
विद्यानिवास मिश्र का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
समाधान-
पंडित
विद्यानिवास मिश्र का जन्म 28 जनवरी, सन 1926 में पकडडीहा गाँव, गोरखपुर (उत्तरप्रदेश ) में हुआ
था ।
जिज्ञासा
- पंडित
विद्यानिवास मिश्र देश के किस प्रतिष्ठित के कुलपति भी रहे?
समाधान- पंडित
विद्यानिवास मिश्र देश के प्रतिष्ठित ‘संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय’ एवं
‘काशी विद्यापीठ’ के कुलपति भी रहे ।
जिज्ञासा
-
विद्यानिवास मिश्र के ललित निबन्धों की शुरुआत कब से हुई ?
समाधान - विद्यानिवास मिश्र
के ललित निबन्धों सन 1956 ई. से प्रारम्भ हुई ।
जिज्ञासा
- विद्यानिवास
मिश्र का पहला निबंध संग्रह कब आया ?
समाधान- विद्यानिवास
मिश्र पहला निबंध संग्रह 1976
‘छितवन की छांह’ आया ।
जिज्ञासा
-
विद्यानिवास मिश्र के ललित निबंधों की विषय वस्तु मूल रूप से क्या मानी जाती है ?
समाधान
- विद्यानिवास
मिश्र ने लोक संस्कृति, लोक मानस के पौराणिक कथाओं और उपदेशों के माध्यम से ललित
निबंधों को सरस और प्रवाहमय बनाया ।
जिज्ञासा - विद्यानिवास
मिश्र जी के ललित निबंधों में जीवन दर्शन, संस्कृति, परंपरा और प्रकति के अनुपम सौंदर्य का तालमेल मिलता है । उदहारण देकर
बताइए ?
समाधान - विद्यानिवास मिश्र
जी के ललित निबंधों में जीवन दर्शन, संस्कृति, परंपरा और प्रकति के अनुपम सौंदर्य का तालमेल मिलता है । कला और संस्कृति
के मूल्यांकन करते हुए खजुराहो की कला कृतियों के सम्बन्ध में लिखते हैं-
“यहाँ के मिथुन अंकन साधन हैं, साध्य नहीं ।
साधक की अर्चना का केंद्रबिंदु तो अकेली प्रतिमा के गर्भगृह में है । यहाँ
अभिव्यक्ति कला रस से भरपूर है, जिसकी अंतिम परिणति ब्रहम
रूप है । हमारे दर्शन में धर्म अर्थ, काम और मोक्ष की जो
मान्यताएँ हैं, उनमें मोक्ष प्राप्ति से पूर्व का अंतिम
सोपान है काम ।”
जिज्ञासा
-
विद्यानिवास मिश्र के किन्हीं चार निबंध संग्रहों के नाम लिखिए ?
समाधान
-
विद्यानिवास मिश्र के प्रमुख चार निबन्ध संग्रह हैं - ‘छितवन की छांह’, ‘तुम चन्दन
हम पानी’, ‘आँगन का पंछी और बंजारा मन’, ‘कदम की फूली डाल’ हैं ।
जिज्ञासा - विद्यानिवास मिश्र के अनुसार आँचलिक बोलियों के
शब्दों को प्रोत्साहन क्यों दिया जाये?
समाधान - विद्यानिवास
मिश्र के अनुसार - “हिन्दी में यदि आँचलिक बोलियों के शब्दों को प्रोत्साहन दिया
जाये तो दुरूह राजभाषा से बचा जा सकता है, जो बेहद संस्कृतनिष्ठ है ।”
जिज्ञासा
- विद्यानिवास
मिश्र को कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मानों से नवाजा गया ?
समाधान
-
विद्यानिवास मिश्र को भारतीय ज्ञानपीठ के मूर्तिदेवी पुरस्कार, ‘के. के. बिड़ला
फाउंडेशन’ के ‘शंकर सम्मान’ से नवाजा गया । भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्म श्री’ और पद्मभूषण ' से सम्मानित किया था ।
जिज्ञासा - विद्यानिवास मिश्र का निधन कब और कैसे हुआ
?
समाधान - विद्यानिवास
मिश्र राज्यसभा सांसद के रूप में कार्य करते हुए अस्सी वर्ष की उम्र में 14 फरवरी, 2005 को एक सड़क दुर्घटना में दिवंगत
हुए ।
जिज्ञासा
-
आँगन
के पंछी निबंध में गौरया के घोसले का घर के लिए कैसा माना जाता है ?
समाधान- “ कहा जाता है जिस
घर में गौरया अपना घोसला नहीं बनाती वह घर निर्वंश हो जाता है । एक तरह से घर के
आंगन में गौरैयों का ढीठ होकर चहचहाना, दाने बुनकर मुडेरों पर बैठना, हर साँझ, हर
सुबह, हर कहीं तिनके बिखेरना और घूम-फिरकर फिर रात घर ही में बस जाना,अपनी बढ़ती
चाहने वाले गृहस्थ के लिए बच्चों की किलकारी, मीठी शरारत और उच्छ्लता का प्रतीक है ।”
जिज्ञासा
- हम
तुलसी का पौधा घर में क्यों लगाते हैं और उसके सामाने दिया क्यों जलाते हैं ?
समाधान- विद्यानिवास मिश्र
लिखते हैं- “ हम तुलसी का पौधा इसलिए नहीं लगाते कि तुलसी को वन में कहीं जगह नहीं
है; और सबसे पहले दिया तुलसी को वेदी पर इसलिए नहीं जलाते कि उस दिये की लौ के
बिना तुलसी को अपने जीवन में कोई गरमी नहीं मिलेगी; बल्कि हम
तुलसी की वेदी अपने दर्द निवेदन के लिए रचाते हैं और तुलसी को दीप अपने सर्द दिल
को गरमी पहुँचाने के लिए जलाते हैं ।”
जिज्ञासा - विद्यानिवास
मिश्र सांस्कृतिक जीवन सृष्टि में ‘अणोरणीयान्’ और ‘महतो महीयान्’ को किस नजर से
देखते हैं ?
समाधान- विद्यानिवास मिश्र
मानते हैं की “ हमारा सांस्कृतिक जीवन भी इस पारिवारिक प्रेम से आप्लावित है, देवी-देवताओं
की कल्पना, कुल-पर्वतों, कुल-नदियों की
कल्पना, तीर्थों-धामों की कल्पना और आचायों-मठों की कल्पना
पारिवारिक विस्तार के ही विविध रूपान्तर हैं । यही नहीं, पारिवारिक
साहचर्य भाव ही हमारे साहित्यकों की सबसे बड़ी थाती है । यह कुटुम्व-भाव ही हमें
चर-अचर, जड़-चेतन जगत् के साथ कर्त्तव्य-शील बनाता है । हम
इसी से देश-काल की सीमाओं की तनिक भी परवाह न करके, अरबों
प्रकाशवर्ष दूर नक्षत्रों से और युगों दूर उज्ज्वल चरित्रों से उसी प्रकार अपनापा
जोड़ते हैं, जिस प्रकार अपने घर के किसी व्यक्ति से । ग्रहों
की गति से अपने जीवन को परखने का विश्वास कोई अर्थ- शून्य और अन्धविश्वास नहीं है,
वह कुटुम्व-भावना का ही हमारे विचारदर्शी भाव जगत पर प्रतिक्षेप है
। जैसे परिवार में छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा एक-सा ही समझा जाता है, वैसे ही सृष्टि में हम ‘अणोरणीयान्’ और ‘महतो महीयान्’ को एक-सी नजर से
देखने के आदी हैं ।
जिज्ञासा
-
गौरैया और मिनी के माध्यम से विद्यानिवास मिश्र जी कौन सा सन्देश देना चाहते हैं
?
समाधान- विद्यानिवास
मिश्र लिखते हैं, “गौरैया मेरे लिए छोटी नहीं है, बहुत बड़ी है, वैसे ही जैसे मेरी दो साल की मिनी छोटी होते हुई भी मेरे लिए बहुत बड़ी है
। ‘बालसखा’ के संपादक मित्रवर सोहनलाल द्विवेदी ने एक बार मुझसे बालोपयोगी रचना
माँगी । मैंने उन्हें मिनी का फोटोग्राफ भेज दिया और लिखा कि इससे बड़ी रचना मैं
आज तक नहीं कर पाया हूँ । मिनी बड़ी है, मेरे अर्जित
परिष्कार से, मेरे अर्जित विद्या से और मेरे अर्जित कीर्ति
से, क्योंकि उसकी मुक्त हँसी में जो मोगरे बिखर जाते हैं,
उनकी सुरभि से बड़ी कोई परिस्कृति, सिद्ध या
कीर्ति क्या होगी ? वही मिनी जब गौरैयों को देख कर नाचती है,
उन्हें बुलाती है, उनके पास आते ही खुशी से
ताली बजाती है, उन्हें धमकाती है, फिर
मनाती है, तब मुझे लगता है कि सृष्टि के दो चरम आनंदमयी
अभिव्यक्तियाँ ओत प्रोत हो गई हैं । गीता की ब्राह्मी स्थितियाँ एकाकार हो गयी हैं
और मुक्ति की दो धाराएँ मिल गयी हैं । इसीलिए गौरैयों के विरुद्ध अभियान मुझे लगता
है मेरी और न जाने कितनों की मिनियों के विरुद्ध अभियान है । गौरैये और मिनियाँ
राजनीति से कोई सरोकार नहीं रखती, सो मैं राजनीति की सतह पर
इनके बारे में नहीं सोचता । परन्तु मनुष्य की राजनीति का जो चरम ध्येय है उसको
जरूर सामने रखना पड़ता है और तब मुझे बहुत आक्रोश होता है कि भले आदमी मनुष्य बनने
चला हो तो पहले मनुष्य के विश्वास की रक्षा तो करो ।
प्रश्नों के उत्तर
दें -
प्रश्न
- गौरैयों
के खिलाफ अभियान को विद्यानिवास जी कैसा
मानते हैं ?
प्रश्न
- आँगन
के पंछी निबंध का सार और उद्देश्य लिखिए ?
..........................................................
जिज्ञासा
-
गाँधी जिनका पूरा नाम क्या था ?
समाधान- मोहनदास
करमचन्द गांधी है । इन्हें प्यार से बापू भी कहते थे । इनके लिए महात्मा गाँधी
सर्वमान्य उद्वोधन है ।
जिज्ञासा - मोहनदास करमचन्द
गांधी का जन्म कब और कहाँ हुआ ?
समाधान
-
मोहनदास करमचन्द गांधी का जन्म 2. अक्टूबर,1869
पोरबंदर -गुजरात में हुआ ।
जिज्ञासा - मोहनदास करमचन्द
गांधी का निधन कब हुआ ?
समाधान- मोहनदास करमचन्द गांधी का निधन 30, जनवरी,1948 को हुआ ।
जिज्ञासा
-
गाँधी जी ने प्रवासी वकील के रूप में दक्षिण अफ्रिका में किसके लिए कार्य किया और
भारत कब वापस आये ?
समाधान- मोहनदास
करमचन्द गांधी ने प्रवासी वकील के रूप में
दक्षिण अफ्रिका में भारतीय समुदाय के लोगों के नागरिक अधिकारों के लिये संघर्ष
हेतु सत्याग्रह किया । 1915 में वे भारत वापस आए ।
प्रश्नों के उत्तर
दें -
प्रश्न
-
आत्मकथा के अंश ‘राजनिष्ठा और शुश्रूषा’ पर गाँधी जी के विचार का सार समझाइये ।
प्रश्न
-
आत्मकथा के अंश ‘बम्बई सभा’ पर विचार व्यक्त करें , गाँधी यहाँ क्या कहना चाहते
हैं ?
प्रश्न
- आत्मकथा के अंश ‘पूर्णाहुति’ पर गाँधी की दृष्टि क्या थी ?
………………………………………………………………….
जिज्ञासा
- ‘वाक्य’ किसे कहते हैं ?
समाधान-
ध्वनि-प्रतीकों के
माध्यम से विचारों, भावों
और सूचनाओं का संप्रेषण किसी भी भाषा में ‘वाक्य’ के आधार पर ही होता है । इसीलिए
व्याकरणिक रचना की दृष्टि से ‘वाक्य’ किसी भी भाषा की सबसे बड़ी इकाई है और संप्रेषण की दृष्टि से सबसे छोटी
इकाई । भाषा में तीन इकाइयाँ आधारभूत होती हैं- ध्वनि, शब्द और वाक्य । ध्वनियों के योग से शब्द या पद बनते हैं और शब्दों या
पदों के योग से ‘वाक्य’ बनते
हैं ।
जिज्ञासा
- ‘प्रोक्ति’ क्या है ?
समाधान-
भाषा का मूल कार्य है- संप्रेषण । संप्रेषण की
दृष्टि से वाक्य को सबसे छोटी इकाई इसलिए कहा जाता है कि संप्रेषण के लिए वक्ता
द्वारा कम से कम एक वाक्य का प्रयोग भी किया जाता है । संप्रेषण की दृष्टि से सबसे
बड़ी भाषिक इकाई ‘प्रोक्ति’ है
। प्रोक्ति किसी एक कथ्य या संदर्भ से जुड़े वाक्यों का समूह है, जैसे- कोई कथा, कहानी, कविता, व्याख्यान, कार्यक्रम
आदि ।
जिज्ञासा
- वाक्य
अशुद्ध शोधन क्या है ?
समाधान-
एक
ही वाक्य में जब एक ही अर्थ/भाव को प्रकट करने वाले दो शब्दों का प्रयोग कर दिया
जाता है तो वाक्य अशुद्ध हो जाता है । अशुद्ध रूप- वह बहुत जल्दी वापस लौट आया ।
शुद्ध रूप- वह बहुत जल्दी लौट आया । अशुद्ध रूप- जयपुर में कई दर्शनीय स्थल देखने
योग्य हैं।
प्रश्नों
के उत्तर दें -
प्रश्न
- वाक्य रचना के तीन
आवश्यक तत्व बताइये ?
प्रश्न
- ‘वाक्य संरचना’ के तीन कौन से घटक आवश्यक है?
प्रश्न
- संरचना की दृष्टि से पदबंध के प्रकार बताइये ?
प्रश्न
- पदबंधों का
प्रकार्यात्मक वर्गीकरण बताइये ?
............................................................
जिज्ञासा
- अनुवाद
क्या है ?
समाधान- किसी भाषा में कही
या लिखी गयी बात का दूसरी भाषा में सार्थक परिवर्तन अनुवाद (Translation) कहलाता है । अनुवाद बहुत पुराने समय से होता आया है । संस्कृत में ‘अनुवाद’
शब्द का उपयोग शिष्य द्वारा गुरु की बात के दोहराएँ जाने, पुनः
कथन, समर्थन के लिए प्रयुक्त कथन,
आवृति जैसे कई संदर्भों में भाष्य के रूप में किया गया है । संस्कृत के ‘वद’ धातु से
‘अनुवाद’ शब्द का निर्माण हुआ है । ‘वद्’ का अर्थ है बोलना । ‘वद्’ धातु में ‘अ’
प्रत्यय जोड़ देने पर भाववाचक संज्ञा में
इसका परिवर्तित रूप है ‘वाद’ जिसका अर्थ है- ‘कहने की क्रिया’ या ‘कही हुई बात’। ‘वाद’
में ‘अनु’ उपसर्ग जोड़कर ‘अनुवाद’ शब्द बना है, जिसका अर्थ
है, प्राप्त कथन को पुनः कहता । अनुवाद हिन्दी में ‘उल्था’ का
प्रचलन भी है ।
जिज्ञासा - ट्रांसलेशन
एवं लिप्यन्तरण क्या है ?
समाधान- अंग्रेजी में translation के साथ ही transcription का प्रचलन भी है, जिसे हिन्दी में ‘लिप्यन्तरण’ कहा जाता है । अनुवाद और लिप्यन्तरण में अंतर
होता है, जिसे इस उदाहरण से समझा जा सकते हैं- ‘उसके सपने सच हुए’ इसका अंग्रेजी
में अनुवाद हुआ, ‘His dreams became true’ किन्तु इसका
लिप्यान्तरण हुआ ‘uske sapane such hue’ इससे स्पष्ट है कि ‘अनुवाद’
में हिन्दी वाक्य को में प्रस्तुत किया गया है, जबकि
लिप्यन्तरण में नागरी लिपि में लिखी गयी बात को रोमन लिपि में लिख दिया गया है।
अनुवाद के लिए ‘भाषान्तर’ और ‘रुपान्तरण’ का प्रयोग भी किया जाता रहा है । लेकिन
अब इन दोनों ही शब्दों के अर्थ और उपयोग प्रचलित हैं । ‘भाषान्तर’ और ‘रूपान्तर’ का
प्रयोग अंग्रेजी interpretation शब्द के पर्याय स्वरूप होता
है, जिसका अर्थ है दो व्यक्तिओं के बीच भाषिक सम्पर्क
स्थापित करना । असमिया और गुजराती के बीच भाषिक दूरी को भाषान्तरण के द्वारा हो
दूर किया जाता है।
जिज्ञासा -
अनुवादक
एवं इण्टरप्रेटर में क्या अंतर है ?
समाधान - ‘अनुवाद’ एक
लिखित विधा है,
जिसके लिए शब्दकोश, सन्दर्भ ग्रन्थ, विषय की समझ या भावाभिव्यक्ति की क्षमता होनी चाहिए । इसकी कोई समय सीमा नहीं होती । अपनी इच्छानुसार
अनुवादक इसे कई बार भाव, विचार और अर्थ की दृष्टि से
परिवर्तित कर सकता है । इण्टरप्रिटेशन यानी भाषान्तरण । एक भाषा का दूसरी
भाषा में मौखिक रूपान्तरण है । इसे करने वाला इन्टरप्रेटर कहलाता है । इन्टरप्रेटर
का काम तात्कालिक है । वह किसी भाषा को सुनकर दूसरी भाषा में तुरन्त उसका मौखिक
तौर पर रूपान्तरण करता है । इसे मूल भाषा के साथ मौखिक तौर पर आधा मिनट पीछे रहते
हुए किया जाता है । यह बहुत कुछ यान्त्रिक ढंग का भी होता है ।
जिज्ञासा - प्रक्रिया के
आधार पर अनुवाद के प्रकार बताइये ?
समाधान - दो प्रकार हैं - (1) पाठधर्मी अनुवाद, (2) प्रभावधर्मी
अनुवाद।
जिज्ञासा - पाठ के आधार
पर के प्रकार बताइये ?
समाधान - पाठ के आधार
पर अनुवाद के प्रकार ये हैं - (1) पूर्ण अनुवाद (2) आंशिक
अनुवाद (3) समग्र अनुवाद (4) परिसीमित
अनुवाद- (i) स्वनिमिक (ii) लेखिकीय (iii)
व्याकरणिक (iv) शब्दकोशीय (v) शब्द प्रति शब्द अनुवाद (vi) शाब्दिक अनुवाद(vii)
भावानुवाद (viii) छायानुवाद
।
जिज्ञासा - गद्य-पद्य के
आधार पर अनुवाद के प्रकार बताइये ?
समाधान - गद्य-पद्य के आधार
पर अनुवाद - (i)
गद्यानुवाद (ii) पद्यानुवाद
(iii) छन्दमुक्तानुवाद ।
जिज्ञासा - साहित्य विधा
के आधार पर अनुवाद के प्रकार बताइये ?
समाधान - साहित्य विधा के
आधार पर (i) काव्यानुवाद (ii) नाट्यानुवाद
(iii) कथा अनुवाद (iv) रूप प्रधान अनुवाद (v) ललित साहित्य अनुवाद (vi) धार्मिक पौराणिक अनुवाद (vii)
सारानुवाद (viii)व्याख्यानुवाद (ix) रुपान्तण।
जिज्ञासा - विषय की
प्रकृति के आधार पर अनुवाद के प्रकार बताइये ?
समाधान - विषय की
प्रकृति के आधार पर अनुवाद के प्रकार- (i) मूलनिष्ठ (ii) मूलमुक्त ।
जिज्ञासा - अनुवाद के अन्य प्रकार कौन से हैं ?
समाधान - अन्य प्रकार
(i) परोक्ष अनुवाद (ii) पुनरानुवाद (iii) सूचनानुवाद (iv) शैक्षिक अनुवाद (v) वैज्ञानिक एवं तकनीकी अनुवाद (vi) विधि अनुवाद (vii)
प्रशासनिक, मानविकी एवं समाजशास्त्रीय अनुवाद (viii) संचार माध्यमों का अनुवाद ।
प्रश्नों के उत्तर
दें -
प्रश्न - अनुवाद शब्द
की उत्पति, अर्थ एवं परिभाषा बताइए ?
प्रश्न - अनुवाद के
प्रकार बताइए ?
……………………………………….
जिज्ञासा
- राजनीतिक क्षेत्र में लोकतंत्र को
अब्राहम लिंकन ने कैसे परिभाषित किया है ?
समाधान
- राजनीतिक क्षेत्र में लोकतंत्र को
परिभाषित करते हुए अब्राहम लिंकन ने कहा है कि ‘लोकतन्त्र जनता का, जनता के द्वारा तथा जनता के लिए शासन है।’
जिज्ञासा
- विश्व भर में लोकतंत्र के प्रमुख रूप से कितने प्रकार सामने
आते हैं ?
समाधान- विश्व भर में नजर डालें तो लोकतंत्र के कई प्रकार सामने आते
हैं, किन्तु उनमें दो प्रमुख हैं - प्रतिनिधि लोकतंत्र और प्रत्यक्ष लोकतंत्र ।
जिज्ञासा
- भारत के प्रसिद्ध गणराज्य लिच्छिव की केन्द्रीय परिषद में कितने सदस्य थे ?
समाधान- भारत के प्रसिद्ध गणराज्य लिच्छिव की केन्द्रीय परिषद में 7707 सदस्य थे ।
जिज्ञासा - शिवाजी ने आधुनिक
भारत के इतिहास में ‘राज्याभिषेक युग’
के रूप में एक नये युग की शुरूआत कब प्रारंभ की ? समाधान- 1674 में शिवाजी ने
रायगढ़ में स्वयं राज-मुकुट धारण किया और भारत के इतिहास में ‘राज्याभिषेक युग’ के रूप में एक नये युग की शुरूआत
हुयी ।
जिज्ञासा
- शिवाजी ने महाभारत व शुक्रनीति जैसे
ग्रन्थों का अध्ययन कर शासन व्यवस्था में किस तरह व्यवस्था दी थी ?
समाधान- शिवाजी ने महाभारत व शुक्रनीति जैसे ग्रन्थों का अध्ययन कर
प्राचीन भारतीय राजनीतिक लेखकों के प्रशासनिक विचारों को आत्मसात किया और पाया कि
शासन व्यवस्था मंत्रि-परिषद में निहित होनी चाहिए । उनके द्वारा अष्टप्रधान नाम से
लोकप्रिय गठित आठ मंत्रियों की परिषद थी और इनके पदनाम संस्कृत भाषा में रख कर
शिवाजी ने वस्तुतः प्रचीन हिन्दू राजनीतिक
संस्थाओं को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया था ।
जिज्ञासा - शिवाजी के स्वराज्य
में प्रशासन के मुख्य सिद्धान्त किस प्रकार के थे ?
समाधान- शिवाजी के स्वराज्य
में प्रशासन के मुख्य सिद्धान्त इस प्रकार के थे :
1.
अपनी
प्रजा की ख़ुशहाली और राज्य के आम कल्याण का संवर्धन ।
2.
स्वराज्य
की प्रतिरक्षा के लिये कुशल सैन्य बल की व्यवस्था ।
3.
कृषि
एवं उद्योग के संवर्धन द्वारा लोगों की आर्थिक ज़रूरतों को पर्याप्त रूप से पूरा
करना ।
जिज्ञासा
- प्राचीन भारत में धर्म आधारित तंत्र
की कैसी व्यवस्था थी ?
समाधान- प्राचीन भारत में धर्म आधारित तंत्र की व्यवस्था इस प्रकार थी
-
“न राज्यं न च राजासीत् न दण्ड्यो न च दाण्डिकः ।
धर्मेणैव
प्रजा: सर्वा रक्षन्ति स्म परस्परम् ॥”
न
राज्य की आवश्यकता है, न राजा की, न दण्ड विधान की और न दंडिक की, यदि आवश्यकता है तो
धर्म की। धर्म से ही प्रजा सौहार्द्र से रहेगी।
जिज्ञासा - लोकतन्त्र की अवधारणा के सम्बन्ध में पश्चिम के कुछ प्रमुख
सिद्धान्त बताइये ?
समाधान- लोकतन्त्र की अवधारणा के सम्बन्ध में पश्चिम के कुछ प्रमुख
सिद्धान्त इस प्रकार हैं - 1. लोकतन्त्र का पुरातन उदारवादी सिद्धान्त, 2.
लोकतन्त्र का अभिजनवादी सिद्धान्त, 3. लोकतन्त्र का बहुलवादी सिद्धान्त, 4.
प्रतिभागी लोकतन्त्र का सिद्धान्त, 5. लोकतन्त्र का मार्क्सवादी सिद्धान्त अथवा
जनता का लोकतन्त्र।
प्रश्नों के उत्तर दें -
प्रश्न
- लोकतन्त्र शब्द की उत्पति एवं परिभाषा
बताइए ?
प्रश्न
- भारत में लोकत्रंत के प्राचीनता और
उसके अस्तित्व पर प्रकाश डालिए ?
........................................................................................
जिज्ञासा
- भारतीय
ज्ञान परम्परा में समरसता
का अर्थ क्या है ?
समाधान- भारतीय
वांग्मय में इसे एक सूत्र से समझाया गया है -‘आत्मवत सर्वभूतेषु’। सृष्टि में सभी जीव एक ही
ईश्वर की संतान है और उनमें एक ही चैतन्य विद्यमान है, इस बात को हृदय से स्वीकार करना और
उनसे सामान व्यवहार करना ।
जिज्ञासा - समरसता का
मूल मन्त्र क्या हैं ?
समाधान- सामाजिक
समरसता का मूलमंत्र समानता है, जो समाज में व्याप्त सभी प्रकार के भेदभावों एवं असमानताओं को जड़-मूल से
नष्ट कर नागरिकों में परस्पर प्रेम एवं सौहार्द में वृद्धि तथा सभी वर्गों में
एकता का संचार करती है ।
जिज्ञासा - स्वामी विवेकानंद
जी सामाजिक और राष्ट्रीय समरसता का मूल किसे मानते है?
समाधान- स्वामी जी
का मानना है, भारतीय होने का गर्व ही हमारी सामाजिक और राष्ट्रीय समरसता का मूल है
। वे आह्वान करते हैं - ‘ओ
वीर पुरुष ! साहस बटोर,
निर्भीक बन और गर्व कर कि तू भारतवासी है । गर्व से घोषणा कर कि ‘मैं
भारतवासी हूँ, प्रत्येक भारतवासी मेरा भाई है ।’ …मुख से बोल, ‘अज्ञानी भारतवासी, दरिद्र और पीड़ित भारतवासी, ब्राह्मण भारतवासी,
चांडाल भारतवासी सभी मेरे भाई हैं । प्रत्येक भारतवासी मेरा भाई है,
भारतवासी मेरे प्राण हैं, भारत के देवी देवता
मेरे ईश्वर हैं । भारत वर्ष का समाज मेरे बचपन का झूला, मेरे
यौवन की फुलवारी और बुढ़ापे की काशी है । मेरे भाई! कह ‘भारत की मिट्टी मेरा
स्वर्ग है, भारत के कल्याण में ही मेरा कल्याण है । अहोरात्र
जपकर, हे गौरीनाथ ! हे जगदम्बे ! मुझे मनुष्यत्व दो । हे
शक्तिमयी माँ ! मेरी दुर्बलता को हर लो, मेरी कापुरुषता को
दूर भगा दो और मुझे मनुष्य बना दो, माँ ।’
जिज्ञासा - श्री राम ने अपने जीवन से किस प्रकार समरसता का
उदाहरण रखा ?
समाधान-
भारतीय
आदर्श में श्री राम ने सबरी , गुह, निषाद, किन्नर, बानर आदि जातियों को अपने साथ
लेकर , उन्हें गले लगाकर जो सन्देश दिया है, आज उसे आचरण में उतारने की आवश्यकता
है । सभी को सहोदर अर्थात एक ही जगत जननी एवं मातृभूमि की संतान होने का बोध होना
चाहिए ।
प्रश्नों के उत्तर दें -
प्रश्न
- सामाजिक समरसता किसे कहते हैं बताइए ?
प्रश्न
- समरसता का
मूल मन्त्र समानता है इस पर
प्रकाश डालिए ?
प्रश्न
- समरसता में
संतों-महापुरुषों का योगदान बताइए ?
प्रश्न
- समरसता
आवश्यक क्यों है ?
.............................................................
जिज्ञासा- ऋग्वेद में ‘कला’ शब्द
का प्रयोग किस प्रकार मिलता है ?
समाधान- ऋग्वेद में ‘कला’ शब्द
का प्रयोग कुछ इस प्रकार मिलता है, यथा- ‘कला यथा शफ, मध,
शृण स नियामती ।” अर्थात् ऐसा कोई ज्ञान
नहीं, जिसमें कोई शिल्प नहीं, कोई विधा
नहीं या जो कला न हो ।’
जिज्ञासा- कला किस भाषा
का शब्द है ?
समाधान- कला संस्कृत
भाषा का शब्द है । ‘कल’ धातु से कला की उत्पत्ति मानी जाती है जिसका अर्थ ‘प्रसन्न करना’ है। कुछ विद्वान इसकी उत्पत्ति ‘कड़’ धातु से मानते हैं,
जिसका अर्थ ‘प्रसन्न करना’ है ।
जिज्ञासा- किन जैन ग्रंथों में
कला का वर्णन प्राप्त होता है ?
समाधान- जैन ग्रंथ ‘प्रबंधकोश’,‘कलाविलास’,‘ललित विस्तार’ इत्यादि सभी भारतीय ग्रंथों में कला का वर्णन प्राप्त होता है ।
जिज्ञासा- वेदोत्तर साहित्य में
कला शब्द का प्रयोग कहाँ कहाँ मिलता है ?
समाधान- वेदोत्तर
साहित्य में कला शब्द का प्रयोग सबसे पहले भरत के नाट्यशास्त्र में मिलता है ।
उसके बाद वात्स्यायन के कामसूत्र तथा और उशनस के ग्रंथ ‘शुक्रनीति’ में इसका वर्णन
मिलता है । इसका व्यवहारिक अर्थ है ‘किसी
भी कार्य को पूर्ण कुशलता के साथ करना ।
जिज्ञासा- अधिकतर
ग्रंथों में कलाओं की संख्या कितनी मानी गई है ?
समाधान- अधिकतर
ग्रंथों में कलाओं की संख्या 64 मानी गयी है । ‘प्रबंधकोश’ इत्यादि में 72 कलाओं की सूची मिलती है । ललित
विस्तार में 86 कलाओं के नाम गिनाये गये हैं । प्रसिद्ध
कश्मीरी पंडित क्षेमेन्द्र ने अपने ग्रंथ कलाविलास में
सबसे अधिक संख्या में कलाओं का वर्णन किया है । उसमें 64 जनोपयोगी,
32 धर्म, अर्थ, काम,
मोक्ष, सम्बन्धी, 32 मात्सर्य-शील-प्रभावमान
सम्बन्धी, 64 स्वच्छकारिता सम्बन्धी, 64 वेश्याओं सम्बन्धी, 10 भेषज, 16 कायस्थ तथा 100 सार कलाओं की चर्चा है । सबसे अधिक
प्रामाणिक सूची ‘कामसूत्र’ की है ।
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प्रश्न
- शब्द
व्युत्पति, परिभाषा के आधार प्र कला को समझिए ?
प्रश्न
- भारतीय
कला दृष्टि पर प्रकाश डालिए ?
प्रश्न
- कला
के प्रकार और विशेषताएं बताइये ?
………………………………………………………………………….
जिज्ञासा
- साहित्य
का मूल स्रोत क्या है ?
समाधान-
वैदिक
साहित्य सभी साहित्य का मूल स्रोत है । भारतीय वाड्मय का एक बहुत बड़ा भाग चार
महास्तंभों पर आश्रित है , वे हैं- रामायण, महाभारत, पुराण और बृहत्कथा । सभी भारतीय भाषाओं के
रचनाकारों ने आदिकाव्य रामायण, जयकाव्य महाभारत और पुराणों को
अपना उपजीव्य बनाया हैं । वैदिक साहित्य भारतीय संस्कृति के
प्राचीनतम स्वरूप पर प्रकाश डालने वाला तथा विश्व का प्राचीनतम् साहित्य है ।
जिज्ञासा
-
संस्कृति
और प्राकृत भाषाओं का वाड्मय किस पर आधारित है ?
समाधान-
संस्कृति
और प्राकृत भाषाओं का पर्याप्त वाड्मय बृहत्कथा पर भी आश्रित है ।
जिज्ञासा
-
वैदिक साहित्य को निम्न भागों में बांटा गया है?
समाधान- वैदिक साहित्य को निम्न
भागों में बांटा गया है - (1)
संहिता, (2) ब्राह्मण और आरण्यक, (3) उपनिषद् (4) वेदांग (5) सूत्र-साहित्य
।
जिज्ञासा
- भारत
में वर्तमान में कितनी संविधानिक भाषाए हैं जिनका अपना साहित्य है ।
समाधान- भारत में 22
संविधानिक भाषाए हैं और उनका अपना साहित्य है ।
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प्रश्न
- साहित्य
की परिभाषा और उसकी प्राचीनता पर प्रकाश डालिए ?
प्रश्न
- वैदिक
साहित्य सभी भारती साहित्य का मूल स्रोत है , समझाइए ?
प्रश्न
- लोक
साहित्य और लोक संस्कृति पर प्रकाश डालिए ?
प्रश्न
- साहित्य का सामर्थ्य स्पष्ट कीजिए ?
प्रश्न
- साहित्य
का अधिष्ठान क्या है ?
...................................................
जिज्ञासा
- अध्यात्म
क्या है ?
समाधान
-‘अध्यात्म’
अर्थात ‘आत्मनः सम्बद्धम्-आत्मानम्’ । आत्मा से संबंध रखने वाला ।
जिज्ञासा
-
अध्यात्म की ऊर्ध्वंमुखी विकास यात्रा
में क्या प्राप्त होता है तथा इसका केंद्र क्या है ?
समाधान
-
अध्यात्म की ऊर्ध्वंमुखी विकास
यात्रा में अनेक अतीन्द्रिय शक्तियां जैसे - दूरदर्शन , दूरश्रवन व
दिव्यदर्शन आदि प्राप्ति होती हैं । इसके केंद्र में आत्मा है, ईश्वर,
जगत, अन्य प्राणी इसकी परिधि पर स्थित हैं ।
जिज्ञासा
- श्री
कृष्ण ने अध्यात्म को क्या कहा है ?
समाधान
- श्री
कृष्ण ने गीता में कहा है - ‘अध्यात्मविद्याविद्यानां’।
जिज्ञासा
- धर्म
को शास्त्रों ने किस प्रकार परिभाषित किया है ?
समाधान
-‘
धर्म एव हतो हन्ति, धर्मों रक्षति रक्षति: । इसी तरह ‘यतो धर्मस्ततो जय: । ‘सत्यम
वाद धर्मं चर’।
जिज्ञासा
- राम
कृष्ण परमहंस अध्यात्म को किस प्रकार समझाते हैं ?
समाधान
-
राम कृष्ण परमहंस कहते हैं, ‘एक हाथ से संसार का कार्य करो और दूसरे हाथ से ईश्वर
को पकड़े रखों, जैसे ही कार्य पूरा हो दोनों हाथ से ईश्वर को पकड़ लो । पहला धर्म है
तो दूसरा अध्यात्म । इसलिए अध्यात्म अर्थात ‘स्व’ का साक्षात्कार । अर्थात ‘आत्मा’
के बोध और परमात्मा की दिव्यता-बोध में धर्म-दर्शन अर्थात् सांसारिक व्यवहार की
उपेक्षा नहीं कर सकते हैं । व्यवहार और उच्च चेतना के विचार में समन्वय करके जीना
ही अध्यात्म और धर्म का आंतरिक सम्बन्ध है ।
प्रश्नों
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प्रश्न
- अध्यात्म
शब्द की उत्पति बताइये ?
प्रश्न
- अध्यात्म
की आवश्यकता क्यों है ?
प्रश्न
- अध्यात्म
और कर्म का सम्बन्ध समझाइये ?
प्रश्न
- अध्यात्म
और धर्म में क्या सम्बन्ध है ?
...........................................................................................................
जिज्ञासा - धर्म की
अवधारणा क्या है ?
समाधान - धर्म शब्द की
मूल धातु ‘धृ’ है जिसका अर्थ है, ‘धरना, धारण करना,
ग्रहण करना, स्थापित करना, पकड़ना, पकड़ के सँभालना ।’ शब्दकल्पद्रुम शब्दकोश
धर्म की पदव्याख्या देता है- ‘धरति लोकान्’ जो सभी भुवनों को धारणकर सँभालने वाला
है, वह धर्म है । वामन श्रीराम आप्टे के शब्दकोश अनुसार
‘धियते लोकोऽनेन, धरति लोक वा।’ धर्म है ।
जिज्ञासा - मत-पंथ (Religion) क्या है ?
समाधान - दक्षिण की चार भाषाओं
का रिलीजन के लिए शब्द है ‘मतम्’ । तेलुगु, कन्नड़, तमिल, मलयालम् के शब्द हैं हिन्दुमतम्, क्रिस्तुमतम्, मुस्लिम मतम्, जैनमतम्,
बुद्धमतम्, शैवमतम्, वैष्णवमतम्
आदि । जिन पंथ-सम्प्रदायों को आज गलती से धर्म कहते हैं वह ‘मतम्’ ही हैं । ईश्वर,
मोक्ष, पुण्य, पाप
सम्बन्धी ईसा मसीह का मत है ‘ईसा मतम्’, मुहम्मद का मत है
‘मुहमदीय मतम्’, बुद्ध का मत है ‘बुद्धमतम्’, जिन-तीर्थंकर का मत है ‘जैनमतम्’, सिख गुरुओं का मत
है, ‘सिखमतम्’, मूर्ति उपासना के आधार पर विष्णु के उपासकों
का मत है, ‘वैष्णवमतम्, उसी कड़ी में ‘शैवमतम्’, ‘शाक्तेयमतम्’ आदि। (गुरु परम्परा के उपासकों का मत है ‘शिष्य मतम्’ जिसका
तद्भव है ‘सिख मतम्’) । मतम् के उद्गम का स्थान कोई न कोई पुरुष होता है । अतः
मतम् पौरुषेय है तथा धर्म अपौरुषेय है ।
जिज्ञासा
- धर्म
और मत- पंथ (Religion) का अंतर बताइए ?
समाधान - कहा जाता है कि पंथ-सम्प्रदायों को ‘धर्म’ नाम
से उल्लिखित करने की विकृति अंग्रेजों के कारण है । किन्तु त्रुटिपूर्ण अनुवाद
अपने ही लोगों ने किया होगा। उदाहरण - सन् 1850 के आसपास बंगाल के
राजनारायण बसु ने "The Superiority of Hindu Religion" के विज्ञापन से बंगाली भाषा में ‘हिन्दुधर्मेर श्रेष्ठता’ नाम की पुस्तक
लिखी थी । जब की भारत के अध्यात्म साहित्य में आदि शंकराचार्य को ‘पुण्मताचार्य’
कहा है, न कि ‘षड्धर्माचार्य’ । स्वामी विद्यारण्य जैसे
तत्वज्ञानी महात्मा ने शंकरमत को संस्कृत में शंकर धर्म नहीं कहा । यह प्राचीन
पुरातन बात नहीं, १५-१६वीं सदी की बात है । आज भी दक्षिण की
भाषाओं में हिन्दुओं के ईसाकरण को ‘धर्मान्तर’ नहीं, ‘मतान्तर’
अथवा ‘मतंमाट्ट’ कहते हैं । उसी प्रकार
‘सेकुलर’ को ‘धर्मनिरपेक्ष’ नहीं, ‘मतनिरपेक्ष’ कहते हैं । Religious
fanaticism को मतान्चुता कहते हैं । पंथ-सम्प्रदाय सम्बन्धित
प्रवचनों को ‘मतप्रभाषणं’ कहते हैं । किन्तु पर्व सम्बन्धित सुविदित गीता उद्घोष
(यदा यदा हि धर्मस्य) को भाषांतरित करके समझाते समय कोई आचार्य धर्मग्लानि के लिए
मालानि और धर्मसंरक्षण के लिए 'मतसंरक्षण’ नहीं कहते हैं ।
वहां वे धर्म का ही प्रयोग करते हैं । अर्थात् ‘मतम्’ व ‘धर्म’ दो अलग शब्द माने
जाते है ।
जिज्ञासा
- धर्म
का व्यवहारिक पक्ष क्या है ?
समाधान - भारत में
धर्म का शब्द हम ठीक ढंग से प्रयोग करते आये हैं । उदाहरण के नाते धर्मपत्नी, उसका
अर्थ पंथ या सम्प्रदाय सम्बन्धित पत्नी नहीं । यहाँ धर्म को मजहब के नाते कोई नहीं
समझता । और एक शब्द ‘धर्मशाला’ का अर्थ मजहबी मकान नहीं । परोपकार हमदर्दी आदि
धार्मिक भावों की अन्तःप्रेरणा से अज्ञात अपरिचित अनामिक यात्रियों के
सुविधापूर्वक निवास हेतु सेवाभाव से निर्माण किया गया स्थान है, धर्मशाला । पुराने
जमाने में न्यायालय या कचहरी को धर्मसभा या धर्माधिकरण कहा करते थे । इसका अर्थ यह
नहीं था कि वहाँ मजहब की नजर से भिन्न मजहबवालों को भिन्न प्रकार का न्याय मिलता
रहा । पंथ सम्प्रदाय के परे जहाँ चिरन्तन सत्य और नैतिकता के बल पर न्याय मिलता था
वह थी धर्मसभा । पुराने जमाने में राजाओं के पास, अनपेक्षित
प्राकृतिक पीड़ाओं से प्रजा को मुक्त करने हेतु विशेष संचित धनराशि रहती थी। वह
धर्मकोष नाम से जानी जाती श्री। उसका उद्देश्य वर्तमान की ‘हज्ज सबसिडि’ मदरसा
सबसिडि जैसी मजहबी सहायता देने का नहीं था । धर्मकोष कभी मज़हबी कोष नहीं था ।
पुराने जमाने में राजमहलों, मुख्यनगरों, मन्दिरों के सिंहद्वारों पर ऊँचे स्थान पर टाँगी हुई जो घड़ी रहती थी उसका
नाम था धर्मघड़ी । मजहब और घड़ी का क्या सम्बन्ध ? फिर भी थी
धर्मघड़ी, क्यों ? अभीष्ट था सब कोई, अमीर-फकीर,
व्यापारी-कर्मचारी, किसान-कारीगर, शिक्षक-शिक्षार्थी, इधर-उधर जानेवाले सब, समय देखकर लाभ उठा सकें । हम सब मानते हैं कि महाभारत का युद्ध
‘धर्मयुद्ध’ था । यहाँ धर्म का संकेत क्या है ? पंथ
सम्प्रदाय मजहब कभी नहीं । दोनों पक्ष एक ही सम्प्रदाय के, एक
ही कुल के थे । अगर धर्म का अर्थ मजहब है तो यह धर्मयुद्ध नहीं हो सकता। ‘धरति
लोकान्’ जो धर्म था, वह खतरे में था । उसके संरक्षण हेतु
‘धर्म संस्थापनार्थाय’ जो अवतरित हुए उनके नेतृत्व में जो युद्ध हुआ वह है ‘धर्म
युद्ध’।
जिज्ञासा - क्या धर्म, मतम्
से व्यापक है एक अधिष्ठान है ?
समाधान - वास्तव में
धर्म, मतम् से व्यापक है और वह अधिष्ठान है । धर्म समावेशक है । उसमें आस्तिक,
नास्तिक, सबको स्थान है । क्योंकि मानव समुदाय
की सुव्यवस्था हेतु आस्तिक-नास्तिक सब प्रतिबद्ध और उत्तरदायी हैं । अहिंसा,
सत्य, अस्तेय आदि का ठोस अधिष्ठान मानवीयता है,
न आस्तिकता, न नास्तिकता ।
जिज्ञासा - धर्म के
लक्षण बताइये ?
समाधान - मनुस्मृति
में मनु द्वारा परिभाषित धर्म के दस लक्षण हैं । वे लक्षण मानावता से सम्बंधित हैं
- धृति (धैर्य),
क्षमा, दम, अस्तेय,
शुचिता, इन्द्रियनिग्रह, धी (ज्ञान), विद्या, सत्य,
अक्रोध । सावधानी से विवेचन करें, उपासना
मार्ग पर उनमें किसी का आग्रह नहीं । आस्तिक हो या नास्तिक, सभी
सदाचारी स्त्री-पुरुष में ये गुण अपेक्षित हैं ।
धृति: क्षमा दमोऽस्तेयं
शौचमिन्द्रियनिग्रह:।
धीर्विद्या
सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्।। (मनुस्मृति ६.९२)
जिज्ञासा
-
धर्मयुक्त मानव किसे कहेंगे ?
समाधान -भीष्म पितामह
युधिष्ठिर से कहते हैं- ‘जो सर्व भूतों का बन्धु है और सर्व भूतों से एकात्म है, वही
धर्मयुक्त कहलाता है । यह विश्वमानव का लक्षण है, वैश्विक
नागरिक के गुण हैं । जब राजा रन्तिदेव ने कहा कि ‘ईश्वरीय चरमस्थान मुझे नहीं
चाहिए, आठ दैवी सिद्धियों भी नहीं चाहिए, पुनर्जन्मों के चक्र के परे ले जानेवाली देवी शक्ति भी नहीं चाहिए,
वरन् दुःख भुगतने वालों के अन्दर रहते हुए उनके दुःखों का भागीदार
बनकर उनके दुःख को शमन करने वाली क्षमता मुझे चाहिए, तब वे उपर्युक्त विश्वमानव के
धार्मिक स्तर पर पहुंच चुके थे ।
जिज्ञासा - क्या पंथों में पृथक्ता है और
धर्म में संपृक्तता है ?
समाधान - पंथ-सम्प्रदाय मतम् व्यतिरेकी हैं ।
वैष्णवों की उपासना पद्धति में शैव और शैवों की उपासना पद्धति में वैष्णव अपेक्षित
नहीं, दोनों का कर्मकाण्ड अलग है । उसी प्रकार इस्लामी कर्मकाण्डों में ईसाई और
ईसाई कर्मकाण्डों में इस्लामी अनपेक्षित है, अवांछनीय भी ।
पंथों में पृथक्ता है और धर्म में संपृक्तता । पंथ विश्लेषी है. धर्म आश्लेषी है धर्म
का वर्तुल सर्वाश्लेषी है, मतम् का वर्तुल स्वैच्छिक है।
जिज्ञासा
- क्या
धर्म और क़ानून में अन्तर है ?
समाधान - धर्म और
क़ानून में अंतर है । धर्म स्वचालक है । उसके लिए बाहरी प्रेरणा आवश्यक नहीं ।
उसमें से जो आनन्द प्राप्त होता है, वही उसकी उर्जा है । कानून
में स्वयं संचालन क्षमता नहीं । उसका उद्भव बाहर के सत्ताकेन्द्र से है । उसका
पालन करनेवालों में हृदय की विशालता और बुद्धि की प्रबुद्धता हो, ऐसी कोई मजबूरी नहीं, सजा मिलने का डर ही उनमें अधिक
प्रभावी है । धर्म की प्रेरणा परिस्थिति-निरपेक्ष है, कानून की प्रेरणा
परिस्थिति-सापेक्ष है । धर्म गलत काम करने रोकता है, कानून
गलत काम करने पर सजा देता है ।
जिज्ञासा - सनातन
धर्म क्या है ?
समाधान - सनातन धर्म
‘मत’ से व्यापक और मूल अधिष्ठान है । सनातन
धर्म सर्व समावेशक है । उसमें आस्तिक नास्तिक
सब को स्थान है । भीष्म पितामह युधिष्ठिर से कहते हैं -‘जो सर्व भूतों का बन्धु है
और सर्व भूतों से एकात्म है, वही धर्मयुक्त
कहलाता है ।’ यही विश्वमानव का लक्षण
है और वैश्विक नागरिक के लक्षण हैं ।
जिज्ञासा -सनातन धर्म
के प्रचलित चिन्ह बताइये ?
समाधान - सनातन धर्म के प्रचलित चिन्ह- धर्म ग्रन्थ, ॐ (ओम्), वेद,
प्रस्थानत्रयी (उपनिषद, ब्रम्ह-सूत्र,भगवद्गीता), पूजास्थल- मंदिर, अग्नि, धर्मचक्र, धम्मपद,
जातक, बौद्ध विहार ।
प्रश्नों के उत्तर
दें -
प्रश्न- ऐसे मत -
पंथ जिनका अधिष्ठान सनातन (भारतीय) हैं की
मुख्य शिक्षाएँ क्या हैं ?
प्रश्न- बौद्ध मत (पंथ) की मुख्य शिक्षाएँ
कौन-सी हैं ?
प्रश्न- जैन मत (पंथ)
की मुख्य शिक्षाएँ
प्रश्न- सिख पंथ
(धर्म मुख्य) शिक्षाएँ कौन-सी हैं ?
प्रश्न- पारसी religion की मुख्य शिक्षाएँ कौन-सी हैं ?
प्रश्न- जरथुस्त्र (religion) को परिभाषित कीजिए ?
प्रश्न- इब्राहीमी religion को परिभाषित कीजिए ?