Sunday, 25 February 2024

भारतीय ज्ञान परम्परा (क) राम की व्याप्ति bhaarteey gyaan parmparaa (a) raam kii vyaapti

 

भारतीय ज्ञान परम्परा

(क)

राम की व्याप्ति

              ‘राम’ व्युत्पत्तिएवं अर्थ: ‘रम्’ धातु में ‘घञ्’ प्रत्यय के योग से ‘राम’ शङ्घ द निष्पन्न होता है। ‘रम्’ का अर्थ रमण (निवास, विहार) करने से संबद्ध है। वे प्राणिमात्र के हृदय में ‘रमण’ (निवास) करते हैं, इसलिए ‘राम’ हैं, तथा भक्त जन उनमें ‘रमण’ करते (ध्यान निष्ठ होते) हैं, इसलिए भी वे ‘राम’ हैं - ‘रमते कणे कणे इतिराम:’। आद्य शंकराचार्य ने ‘पद्मपुराण’ का उदाहरण देते हुए कहा है कि 'नित्यानन्दस्वरूपभगवान् में योगिजन रमण करते हैं, इसलिए वे ‘राम’ हैं।‘ राम को राष्ट्र का प्रतीक मानते हुए संतों कीपरंपरा में ‘रा’ अर्थात् राष्ट्र और ‘म’ अर्थात् मंगल। यानी राम राष्ट्र के मंगल (कल्याण) के प्रतीक हैं।

              राम की व्याप्ति और विस्तार: राम के परिचय का आधार ‘रामकथा’ है। भारतीय जीवन मूल्य कीआन्तरिक संरचना के ताने-बाने में ‘रामकथा’ गुम्फित है। भारतीय संस्कृति के उद्दात-मूल्यों का सृजन ‘रामकथा’ के मूल में है। इसी रूप में इस कथा कीकालजयिता भी सिद्ध होती है। ‘रामकथा’ में निबद्ध संवेदना भारतीयता के मूल स्वत्वों का विस्तार करती है। समय के बदलावों में इस कथा कीशक्ति कभी क्षीण नहीं हुई। ‘राम’ कथा कीयह सांस्कृतिक व्यापकता इतिहास के परिवर्तन के साथ विस्तार पाती गई। माना जाता है कि ‘राम’ ने अपने जीवन से लोक को अभिव्यक्ति दी तो लोक ने ‘रामकथा’ को युगानुरूप विकसित कर विस्तार दिया। 

              राम कथा का मूल आधार आदिकवि वाल्मीकि की संस्कृत भाषा में रचित ‘रामायण’ है। ‘रामायण’ के बाद ही साहित्य और समाज में राम का परिचय आया। संस्कृत के साथ अन्य भारतीय भाषाओं में इस रामायण को स्रोत रूप में ग्रहण किया गया। काव्य, नाटक, कथा और अन्य साहित्यिक विधाओं में ‘रामायण’ को आधार बनाकर विपुल साहित्य का सृजन हुआ। राम के जीवन पर शोध करने वाले कामिल बुल्के लिखते हैं, 'रामकथा अनेक रूप धारण करते हुए शनै: शनै: संपूर्ण भारतीय-संस्कृति में व्याप्त हो गयी है। उसकीअद्वितीय लोकप्रियता निरन्तर अक्षुण्ण ही नहीं वरन् शताब्दियों तक जिन कृतियों में उनकीझलक मिलती है उनमें-‘भुशुण्डिरामायण’, ‘योगवसिष्ठ’, ‘अध्यात्मरामायण’,  ‘अद्भुत्रामायण’,  ‘आनन्द रामायण’, प्रमुख हैं

                उपनिषदों, पुराणों, जैन, बौद्ध और प्राकृत साहित्य में भी रामकथा व्याप्त है। बौद्ध परंपरा में श्रीराम से संबंधित दशरथजातक, अनामकजातक तथा दशरथकथानक नामक तीन जातक कथाएँ उपलब्ध हैं। जैन साहित्य में रामकथा सम्बन्धी कई मुख्य ग्रंथ -विमलसूरिकृत ‘पउमचरियं’ (प्राकृत), आचार्य रविशेणकृत ‘पद्मपुराण’ (संस्कृत), स्वयंभू कृत ‘पउमचरिउ’ (अपभ्रंश), रामचंद्र चरित्रपुराण तथा गुणभद्र कृत उत्तरपुराण (संस्कृत) आदि हैं। परमार भोज ने भी ‘चंपुरामायण’ में राम कथा का वर्णन किया है। महाभारत में भी ‘रामोपाख्यान’ के रूप में आरण्यक पर्व (वनपर्व) में प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त ‘द्रोणपर्व’ तथा ‘शांतिपर्व’ में भी राम के सन्दर्भ उपलब्ध्  हैं।

              राम को विष्णु का अवतार माना गया। ‘राम’ का जीवन हमारे संवेगों को अधिक प्रभावित करता हैं। कुबेरनाथराय ‘रामायण महातीर्थम्’ नामक पुस्तक में लिखते हैं, 'श्रीराम भारतीय परंपरा में सर्वाधिक व्यापक और संकल्प-संवेग-संपन्न नायक हैं। भारतीय परंपरा पूरे एक समाज के सामने आती है और वह समाज भारत के आज के मानचित्र से ज्यादा व्यापक  है। वह वंक्षुधारा से लेकर पूर्वीद्वीप समूह तक के संपूर्ण मनोमय भारत से है। यानी ‘सेरेहिन्दी’, ‘लघुहिन्दी’, ‘हिन्दखास’ एवं ‘हिन्देशिया’ के साथ-साथ महाचीन-तिब्बत तक। इस समूचे विशाल भूखण्ड में कुरतन (खोतान) से लेकर कम्पूचिया तक राम कथा के भिन्न-भिन्न संस्करण पाये जाते हैं। इस प्रकार इस बहुरूपी विस्तार से इसकीआन्तरिक ऋद्धि तो समृद्धतर हुई ही है, यह तथ्य इस बात का भी संकेत देता है कि राम का वास्तविक इतिहास है।’

                आज की स्थिति में रमाकथा पर आधारित ग्रंथ तीन सौ से लेकर तीन हजार तक कीसंख्या में विविध रूपों में मिलते हैं। श्रीराम का चरित भारतीय भाषाओं में जैसे- मराठी, बांग्ला, तमिल, तेलुगु तथा उड़िया, गुजराती, कन्नड़, मलयालम, असमिया, उर्दू, आदि में मिलते हैं।

              गोस्वामी तुलसीदास कृत ‘रामचरितमानस’   विश्व के कोने-कोने में श्रीराम के चरित को पहुँचाया है। भगवान भोलनाथ आदिदेव महादेव से प्रारंभ होकर यह राम का चरित, महर्षि नारद, लोमश, याज्ञवल्क्य, कागभुशुण्डि, महाकवि कालिदास, भट्ट, प्रवरसेन, क्षेमेन्द्र, भवभूति, राजशेखर, कुमारदास, विश्वनाथ, सोमदेव, समर्थ रामदास, संत तुकड़ोजी महाराज, केशवदास, सूरदास, स्वामी करपात्री, मैथिलीशरण गुप्त, आदि ऋषियों-मुनियों, संतों, आचार्यों और कवियों ने अलग-अलग भाषाओं में राम को जन-जन तक पहुँचाया है। 

              विदेशों में भी तिब्ब्ती रामायण, पूर्वी तुकिर्स्तान कीखोतानी रामायण, इंडोनेशिया कीकबिन रामायण, जावा का सेरतराम, सैरीराम, पातानी रामकथा, इण्डो चायना कीरामकेर्ति (रामकीर्ति), खमैर रामायण, बर्मा (म्यांम्मार) कीयूतोकीरामयान, थाईलैंड कीराम कियेन आदि में रामचरित्र का व्यापक विस्तार है। (क्रमशः)

 

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