Saturday, 27 May 2023

भारतीय ज्ञान एवं शौर्य परम्परा

भारतीय ज्ञान परम्परा और भारतीय शोर्य परम्परा दोनों में बारीक अंतर है। शौर्य परम्परा काल सापेक्ष है। इतिहास का हिस्सा है। जबकि इतिहास स्वयं ज्ञान परम्परा का एक सामने लाया गया लेखा जोखा है। लेखा जोखा में हासियां और पाई हैं। पुनर्विचार की गुंजाइश है। 
ज्ञान विज्ञान का मूल है जो प्रमाण है,प्रत्यक्ष है, अनुभूत है। इतिहास प्रमाण मांगता है,अपरोक्ष है,अनुभूति की गाथा है।
इसलिए देखना होगा भारतीय ज्ञान परम्परा जिसकी मांग राष्ट्रीय शिक्षा नीति करती है,वह क्या है? ज्ञान विद्या का बहिरंग है। प्रकटीकरण है। शिक्षा, व्याकरण,निरुक्त,छंद और ज्योतिष विद्या के उपांग और ज्ञान के घटक है।
भारत वर्ष अपनी सम्पूर्णता में वर्ष के साथ आता है। वह स्थान और समय है। इसलिए वैज्ञानिक शब्दों में स्पेस और टाइम है। स्पेस जितनी गति से चलकर स्थिर दिखाई देता है, समय उतना ही स्थिर रह कर गतिशील दिखाई देता है। यही कारण है कि समय चक्राकार दिखाई देता है। जरा चक्र की कल्पना करें,वह स्थिर है,अपने चाक की नोक पर है किन्तु उसका बाहृय रूप गतिशील है। उस गतिशीलता का केन्द्र विज्ञान है जबकि उसकी स्थिरता का आधार ज्ञान है। ज्ञान गुणवत्ता के साथ,चलित होने से विज्ञान हो गया। वस्तुत: वह विद्या के उपांग का बहिरंग है।
ठीक इसी प्रकार राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भारतीय ज्ञान परम्परा विद्या आधारित है। उसमें साहित्य, संगीत,कला और विज्ञान मिलकर उसके सांस्कृतिक स्वरूप को गढ़ते हैं, जिसमें संस्कृति,जीवन मूल्य , धर्म, मत,पंथ आदि तीलियां हैं।उस चाक की वह घुमावदार पट्टी जो उसे वर्तुलाकार, अखंड मंडलाकार बनाती है,वह अध्यात्म है। भारतीय ज्ञान परम्परा में भारत और भारतवर्ष दो स्वरूप हमारे सामने आते हैं। वर्ष के बिना भारत को समझाना संभव नहीं।.  

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