Wednesday, 20 October 2021

मेरे बुद्धि राक्षस

मेरे बुद्धि राक्षस ने
कहा
हमसे जेब में पड़ी 
गंध मारती तौलिया को मेरे मुंह में फेंक कर
लो रख लो इसे भी

जब-जब मैं निकालता हूं
अपनी हरी कलम] मटमैली डायरी
और 
लाल स्याही 
लिखना चाहता हूं
भारत का भविष्य

मैं चाहता हूं लिखना
राम के मन्दिर का अवशेष नहीं है
अयोध्या में
इसे छोड़ दो
घोलेगा हिन्दुओं में एकमुफ्त वोट का जहर

मस्जिद ही थी मथुरा] काशी और अयोध्या में
रहने दो
यह तुम्हारे भूत की धरोहर
वर्तमान का सत्य 
और भविष्य का सपना है

तब तब तुम 
अलापने लगते हो सत्य का राग
राम का अस्तित्व
बाल्मीकि] तुलसी] कम्बन] कृतिवास की
काल्पनिक गाथा
शोर में दबाना चाहते हो 
हमारे लाल झण्डे का भविष्य

जानते हो
मैं डालर हूं
मैंने अरब का तेल पिया है
मेरी नशों में है 
हिंसा] अराजकता]] असहिष्णुता]
हत्या] राजसत्ता का बोध
रावण का चरित्र
महिषासुर का पौरुष

और मैं चाहता हूं
जिन्दा रहना 
जे.एन.यू. में
पंजाब और हरियाणा के 
नशीले] मदहोश वातावरण में
केरल के साम्प्रदायिक वामपंथी उन्माद में

राक्षस मेरी जाति है
जो निरन्तर काल के साथ है प्रवाहित
कभी वह प्रगतिशील बनकर आती है
कभी वामपंथी धारदार हथियार के साथ
कभी यूरो के साथ
तो कभी सीमा पार से

मेरी उत्तेजना का कारण तुम नहीं हो
वह है बुझता हुआ हमारा अस्तित्व
छूटती रक्त पिपाशु वंचना युक्त आदत

तुम साथ रहोगें 
हमारी यह तौलिया गीली रहेगी
सहिष्णुता से
सेवा से
नैतिकता से
परोपकार से
सर्वधर्म समभाव से 
कल्याणी दृष्टि से
और मैं नहीं लिख पाऊँगा
तुम्हारे पाठ्यपुस्तकों में
लाल कलम से इंकलाब
विकृत इतिहास
फूहड़ चरित्र तुम्हारे नायकों का

इसलिए 
मेरे दुश्मनी के प्रियवर मित्र
तुम मेरी यह तौलिया ले लो 
अन्यथा हो जायेगी हमारे
निर्दय मानसिकता
व्यभचारी निष्ठा की धार कुंठित 
और मैं नपुशंक हो कर
अपने पुरखों की तरह 
अपनी कब्रें खुदवाता 
पुस्त-दर-पुस्त 
भटकता रहूंगा
चीन और रूस की तरह
भारत में भी।

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