Sunday, 3 October 2021

मूल श्लोकः
कविं पुराणमनुशासितार

मणोरणीयांसमनुस्मरेद्यः।

सर्वस्य धातारमचिन्त्यरूप

मादित्यवर्णं तमसः परस्तात्।।8.9।।

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka
।।8.9।।किन लक्षणोंसे युक्त परम पुरुषको ( योगी ) प्राप्त होता है इसपर कहते हैं --, जो पुरुष भूत भविष्यत् और वर्तमानको जाननेवाले -- सर्वज्ञ पुरातन सम्पूर्ण संसारके शासक और अणुसे भी अणु यानी सूक्ष्मसे भी सूक्ष्मतर परमात्माका जो भी सम्पूर्ण कर्मफलका विधायक अर्थात् विचित्ररूपसे विभाग करके सब प्राणियोंको उनके कर्मोंका फल देनेवाला है तथा अचिन्त्यस्वरूप अर्थात् जिसका स्वरूप नियत और विद्यमान होते हुए भी किसीके द्वारा चिन्तन न किया जा सके ऐसा है एवं सूर्यके समान वर्णवाला अर्थात् सूर्यके समान नित्य चेतनप्रकाशमय वर्णवाला है और अज्ञानरूप मोहमय अन्धकारसे सर्वथा अतीत है उसका बारम्बार स्मरण करता है। ( वह ) उसका स्मरण करता हुआ उसीको प्राप्त होता है इस प्रकार पूर्वश्लोकसे सम्बन्ध है।

Sanskrit Commentary By Sri Abhinavgupta
।।8.9 -- 8.10।।कविमिति। प्रयाणेति। एवम् अनुस्मरेदिति। आदित्येति। आदित्यवर्णत्वं वासुदेवतत्त्वस्य [न] परिच्छेदकम्। आकृतिकल्पनादि (N विकल्पनादि) विभ्रान्तिमयमोहतमसः अतीतत्त्वात् रवित्वेनोपमानमित्याशयः। भ्रुवोर्मध्ये इति प्राग्वत्।

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।8.9।। जो सर्वज्ञ, पुराण, शासन करनेवाला, सूक्ष्म-से-सूक्ष्म, सबका धारण-पोषण करनेवाला, अज्ञानसे अत्यन्त परे, सूर्यकी तरह प्रकाशस्वरूप -- ऐसे अचिन्त्य स्वरूपका चिन्तन करता है।

Hindi Translation By Swami Tejomayananda
।।8.9।। जो पुरुष सर्वज्ञ, प्राचीन (पुराण), सबके नियन्ता, सूक्ष्म से भी सूक्ष्मतर, सब के धाता, अचिन्त्यरूप, सूर्य के समान प्रकाश रूप और (अविद्या) अन्धकार से परे तत्त्व का अनुस्मरण करता है।।

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya
।।8.9।। --,कविं क्रान्तदर्शिनं सर्वज्ञं पुराणं चिरन्तनम् अनुशासितारं सर्वस्य जगतः प्रशासितारम् अणोः सूक्ष्मादपि अणीयांसं सूक्ष्मतरम् अनुस्मरेत् अनुचिन्तयेत् यः कश्चित् सर्वस्य कर्मफलजातस्य धातारं विधातारं विचित्रतया प्राणिभ्यो विभक्तारम् अचिन्त्यरूपं न अस्य रूपं नियतं विद्यमानमपि केनचित् चिन्तयितुं शक्यते इति अचिन्त्यरूपः तम् आदित्यवर्णम् आदित्यस्येव नित्यचैतन्यप्रकाशो वर्णो यस्य तम् आदित्यवर्णम् तमसः परस्तात् अज्ञानलक्षणात् मोहान्धकारात् परं तम् अनुचिन्तयत् याति इति पूर्वेण संबन्धः।।किञ्च --,
इससे काव्य को समझना चाहिए।

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